कृषि कानून के बरखिलाफ राज्यों के लिए कांग्रेस का मॉडल ड्रॉफ्ट तैयार

नई दिल्ली। कांग्रेस ने केंद्र द्वारा पारित कृषि कानूनों के समानांतर और किसानों के पक्ष में बनाए जाने वाले ड्राफ्ट विधेयक को तैयार कर लिया है। बताया जा रहा है कि इसमें केंद्र सरकार के कानून में मौजूद खामियों को दूर कर उसे किसान हितैषी बनाया गया है। कांग्रेस ने इस ड्राफ्ट को कांग्रेस और गैर भाजपा शासित राज्यों के लिए बनाया है।

प्रस्तावित ड्राफ्ट की जो सबसे प्रमुख बात है वह यह कि तीनों केंद्रीय कानूनों में जो भी चीज राज्य के कानूनों से मेल नहीं खाती है वह राज्य के लिए शून्य और निष्क्रिय घोषित कर दी जाएगी, और फिर उसे लागू नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही इस बात की गारंटी की जाएगी कि किसी भी किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे कीमत नहीं दी जाएगी।

सूत्रों का कहना है कि राज्यसभा सदस्य अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रस्तावित मॉडल कानून के ड्रॉफ्ट पर अपनी सहमति दे दी है। केंद्र के तीन कानूनों को अगर खारिज करना चाहते हैं तो कांग्रेस और गैर बीजेपी शासित राज्य उसे पारित कर सकते हैं।

इसके साथ ही कांग्रेस कृषि कानूनों के खिलाफ अपने विरोध को और तेज कर देना चाहती है, जिसके तहत बताया जा रहा है कि राहुल गांधी 3 अक्तूबर को पंजाब के बदनी कलान से हरियाणा होते हुए दिल्ली तक एक किसान यात्रा का नेतृत्व करेंगे, जिसमें तीनों कानूनों की वापसी की मांग होगी।

मॉडल विधेयक का ड्राफ्ट कहता है, “यह एक ऐसा विधेयक है जो किसानों, खेत मजदूरों और ऐसे लोग जो खेती के कामों या फिर उससे जुड़ी गतिविधियों में संलग्न हैं उनकी आजीविका के हितों की रक्षा करने और उन्हें सुरक्षित रखने की दिशा में एपीएमसी के नियामक ढांचे के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य के तंत्र समेत सभी कृषि सुरक्षाओं को बहाल करेगा।”

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पिछले हफ्ते पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पुडुचेरी को संविधान की धारा 254 (2) के तहत ऐसे कानून को पारित करने की संभावनाओं की तलाश करने को कहा था, जिससे कृषि विरोधी कानूनों को खारिज किया जा सके जो राज्यों के कार्यक्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं।

मॉडल ड्राफ्ट बिल का मुख्य क्लाज कहता है, “फसलों की बिक्री और खरीद का कोई भी कृषि संबंधी समझौता वैध नहीं होगा जब तक कि खेती की उपज के एवज में दिया गया पैसा केंद्र सरकार द्वारा फसलों के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य के बराबर या फिर उससे ज्यादा नहीं है।” ड्राफ्ट बिल इस बात को बिल्कुल साफ कर देता है कि कृषि कानूनों का सीधा प्रभाव न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी जो एपीएमसी द्वारा अपने तरीके से सुनिश्चित की जाती है, उसे निष्क्रिय बना देगा।

2015-16 के खेती संबंधी आंकड़े का हवाला देते हुए ड्राफ्ट कहता है, “86.2 फीसदी किसानों के पास पांच एकड़ से नीचे जमीन है। उनकी आखिर में सीमित या फिर बाजार तक कोई पहुंच नहीं है और इससे सौदेबाजी के मामले में बिल्कुल विकलांग हो जाते हैं…… इसलिए एक लेवल प्लेइंग फील्ड को सुनिश्चित करने के लिए राज्य की सुरक्षा उनकी जरूरत बन जाती है, जिससे शोषण को रोक जा सके और उनकी खेती की उपज के लिए बाजार के बराबर कीमत की गारंटी हो सके।”

ड्राफ्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार संविधान में दिए गए इस उद्देश्य को पूरा करने और उसे लागू करने में नाकाम रहा है और यह बात किसी को नहीं भूलनी चाहिए कि खेती, खेती का बाजार और जमीन प्राथमिक तौर पर राज्य का विषय है। उसी के दायरे में आता है, जो भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में वर्णित है। साथ ही उत्पादन, सप्लाई और सामानों का वितरण भी राज्य का ही विषय है। यह भी भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची का हिस्सा है और यही बात राज्य को अपना कानून बनाने के लिए बाध्य कर रही है।

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