यस बैंक घोटालाः मनी लॉन्ड्रिंग के बहाने दोस्तों को बचा रही है मोदी सरकार

संकट में फंसे निजी क्षेत्र के यस बैंक के बड़े डिफाल्टर्स को बचाने के लिए मनी लॉन्ड्रिंग की जांच के नाम पर मोदी सरकार ने लीपापोती की कार्रवाई शुरू की है, ताकि आम जनता की आंखों में धूल झोंका जा सके। यस बैंक घोटाला बैंक प्रबंधन और लेनदारों के गबन, वित्तीय फ्रॉड का है।

वास्तव में यह यस बैंक से भारी ऋण लेकर न चुकाने का मामला है जो विशुद्ध गबन और वित्तीय फ्रॉड की श्रेणी में आता है। इसलिए अनिल अंबानी, सुभाष चंद्रा समेत सभी बकायेदारों पर यस बैंक संस्थापक राणा कपूर के साथ मिलकर बैंक के पैसे को गबन करने का मुकदमा धारा 403 भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और अन्य सुसंगत कानूनों के तहत दर्ज़ किया जाना चाहिए। यही नहीं संशोधित बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट के तहत कार्रवाई होनी चाहिए।

यस बैंक संस्थापक राणा कपूर ने मनमाने ढंग से न केवल भारी भरकम ऋण इन डूब रही कम्पनियों को दिलाया बल्कि 4500 करोड़ के आस पास किक बैक यानि कमीशन भी वसूला। सीबीआईने राणा कपूर और उनकी पत्नी-बेटियों के विरुद्ध वित्तीय धोखाधड़ी का मामला जरूर दर्ज किया है, लेकिन इसमें डिफाल्टर्स का नाम नहीं है।

ईडी ने अनिल अंबानी को सोमवार को मुंबई में प्रवर्तन निदेशालय के कार्यालय में आने के लिए कहा था, क्योंकि अनिल अंबानी ग्रुप कंपनियां उन बड़ी संस्थाओं में से हैं, जिन्होंने यस बैंक से लोन लिए थे। रिलायंस ग्रुप की कंपनियों ने बैंक से तकरीबन 12,800 करोड़ रुपये कर्ज लिया था, जो एनपीए हो गया।

ईडी के अधिकारियों का कहना है कि उन सभी बड़ी कंपनियों के प्रमोटर, जिन्होंने बैंक से बड़े लोन लिए थे, जो बाद में खराब हो गए, उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया जा रहा है। अधिकारियों ने कहा कि उन सभी बड़ी कंपनियों के प्रमोटर्स को पूछताछ के लिए बुलाया है, जिन्होंने कर्ज लिया और वापस नहीं कर सके।

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कहा कि यस बैंक से लिए गए कर्ज में से जो खाते गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) में तब्दील हो गए, उनमें अनिल अंबानी के समूह की कंपनियां बड़े कर्जधारकों में हैं। राणा कपूर फिलहाल ईडी की हिरासत में हैं। कपूर पर दीवान हाउसिंग फायनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) से संबधित मनी लॉन्ड्रिंग की साजिश में शामिल होने का आरोप है।

छह मार्च को प्रेस कॉन्फ्रेंस में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया था कि यस बैंक से कर्ज लेने वालों में मुख हैं, अनिल अंबानी ग्रुप, सुभाष चंद्रा का एस्सेल ग्रुप, आईएलफएस, डीएचएफएल, वोडाफोन आदि। अनिल अंबानी के समूह की कई कंपनियां उन बड़ी कंपनियों की लिस्ट में हैं, जिनको दिया गया कर्ज बैड लोन की लिस्ट में पहुंच गया है। इन कंपनियों ने यस बैंक से भी कर्ज लिया था, लेकिन इसे लौटाया नहीं।

यस बैंक के को-फाउंडर राणा कपूर ने 30 हजार करोड़ रुपये लोन के रूप में बांटे, जिनमें 20 हजार करोड़ नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) में बदल गए। ईडी का दावा है कि लोन देने के बदले राणा कपूर ने पांच हजार करोड़ लिए और 30 या उससे ज्यादा ‘शेल’ कंपनियों में लगाए। शेल कंपनियां वो होती हैं, जो काग़जों पर होती हैं, लेकिन असल में नहीं। पैसों से भारत और विदेशों में प्रॉपर्टी खरीदी गई।

ईडी ने दावा किया कि यस बैंक ने डीएचएफएल  के 3,700 करोड़ रुपये के डिबेंचर खरीदे। इसके बदले डीएचएफएल ने 600 करोड़ ने दोइत अर्बन वेंचर्स प्राईवेट लिमिटेड को 600 करोड़ रुपये दिए। ईडी का कहना है कि इस कंपनी में राणा कपूर की बेटियां डायरेक्टर हैं। ईडी ने राणा कपूर को आठ मार्च की सुबह मुंबई से गिरफ्तार किया था। सीबीआई भी कपूर के खिलाफ अलग से एक केस दर्ज कर चुकी है।

अब यह विडम्बना ही है कि एक ओर जहां केन्द्र सरकार प्रत्यक्ष करों से करों का आधार बढाने के लिए सतत प्रयत्नशील  रहती है, वहीं बड़े कॉर्पोरेट घरानों से कर्ज के पैसे वसूलने में इसे भारी शर्म आती है। लगता है कि कर्ज कॉर्पोरेट घरानों ने नहीं वरन सरकारों ने उन्हें जबरन दिया है।

यह स्थिति तब है जबकि सरकारी बैंकों की माली हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है।सरकार की नॉन परफॉर्मिंग एसेट्‍स (एनपीए) लाखों करोड़ों में है और सरकारी बैंकों के एक लाख करोड़ रुपये ऐसी देनदार कंपनियों पास फंसे हैं, जो सक्षम होते हुए भी लोन नहीं चुका रहे हैं।

जाहिर है कि इन्हें राजनीतिक संरक्षण हासिल है और इनका ‘ऊपर तक’ प्रभाव है क्योंकि अगर यह मामला आम कर्जदारों, किसानों का होता तो सरकारी बैंक इन कर्जदाताओं की आंतों में हाथ डालकर अपने पैसे वसूल कर लेते।

यह किसी से छिपा नहीं है कि सरकारी बैंकों के कुल एनपीए में 77 फीसदी हिस्सेदारी बड़े कॉर्पोरेट घरानों की है। इससे एक बात तो साफ है कि जो जितना बड़ा नाम है, वह उतना ही बड़ा डिफ़ाल्टर भी है। व्यावसायिक शुचिता या कॉर्पोरेट गवर्नेंस की बात को बड़े कॉर्पोरेट धता बताते रहे हैं। ये ऐसे कर्जदार हैं जो कि सक्षम होते हुए भी कर्ज नहीं चुकाते हैं। ऐसे कर्जदारों को ‘विलफुल डिफाल्टर’ कहा जाता है।

भारत के कुल 21 बड़े सरकारी बैंकों का लगभग 7.33 लाख करोड़ रुपये एनपीए की श्रेणी में है। यह वह राशि है जो देश की अर्थव्यवस्था में काम नहीं आ रही है यानी इसे फंसी हुई रकम कह सकते हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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