85% और 15% पर मोदी सरकार का 100% झूठ

क्या मोदी सरकार देश भर में भूखे पेट खाली जेब आंखों में घर जाने की आस लिए मजदूरों से इतिहास का सबसे भद्दा खेल कर रही है? पिछले दिनों जब सोनिया गांधी ने यह कहा कि कांग्रेस पार्टी मजदूरों का ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा देने के लिए तैयार है, उसके बाद अचानक सबके सामने कुछ इस तरह की खबरें आने लगीं कि मजदूरों के लिए केंद्र सरकार 85 प्रतिशत तो राज्य सरकारें 15 प्रतिशत किराया दे रही हैं। हमारी जांच में भाजपा सरकार की यह बात सिरे से झूठ निकली है।

इस लेख में हम आपको बताएँगे कि कैसे मजदूरों से राज्य सरकार, केंद्र की मोदी सरकार ने वसूली तो की ही, मौके पर मौजूद सरकारी ठग भी उन भूखे बेबस मजदूरों को लूटने से बाज नहीं आए। इसके साथ ही मोदी सरकार के मजदूरों के किराए का 85 फीसद देने के महा झूठ का भी भंडाफोड़ आप देखेंगे। यह भंडाफोड़ सुप्रीम कोर्ट में हुई एक सुनवाई में हुआ है, जहां चौबीसों घंटे सिर्फ और सिर्फ झूठ बोलने वाली मोदी सरकार जाने कैसे सच बोल गई।

सूरत से बीते शनिवार यानी दो मई को एक श्रमिक स्पेशल चली, फिर रविवार को तीन ट्रेनें चलीं और फिर सोमवार यानी चार मई को पांच श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई गईं। सोमवार को सूरत से 5 ट्रेनें गईं और इनमें तीन ओडिशा के पुरी को गईं, एक झारखंड के धनबाद को गई और एक ट्रेन बिहार के बरौनी के लिए रवाना हुई। दैनिक भास्कर के सूरत एडिशन में पांच मई को यह खबर छपी है कि ओडिशा के लिए जो ट्रेन गई, उसमें बैठे एक एक मजदूर से 710 रुपए लिए गए। अब तक ओडिशा 7 ट्रेनें जा चुकी हैं जिनसे तकरीबन 8400 मजदूर गए हैं। इन भूखे बेबस मजदूरों से रेलवे ने कुल 59 लाख 64 हजार रुपए बतौर किराया वसूला है।

इसी तरह से सूरत से धनबाद के लिए जो एक ट्रेन गई, उसमें हर एक मजदूर से मोदी जी की रेलवे ने 715 रुपए लिया। धनबाद जाने वाली ट्रेन में कुल 1200 मजदूर थे तो इस तरह से कुल 8 लाख 58 हजार रुपए मोदी जी ने वसूले हैं। यह खबर अभी भी वहीं प्रकाशित हुई है और इसके साथ कई तस्वीरें भी छपी हैं। जिसे इसके दीदार का शौक हो, वो नजर पैदा कर ले। इसी तरह से सूरत से बिहार के लिए एक ट्रेन गई जिसमें हर एक मजदूर से 710 रुपए किराया लिया गया। बरौनी जाने वाली इस ट्रेन में कुल 1200 मजदूर थे, भूखे थे और बेबस थे। मोदी सरकार ने उनकी बेबसी का जमकर फायदा उठाया और उन 1200 मजदूरों से कुल 8 लाख 52 हजार रुपए वसूल लिए। 

इस बीच इस बात पर भी लोगों में गोदी मीडिया सहित बीजेपी आईटी सेल वालों ने जमकर भ्रम फैलाया कि जब टिकट काउंटर से टिकट बिक ही नहीं रहे हैं तो मजदूरों ने खरीदे कहां से। इसके लिए आईटी सेल के जितने हैंडल, उतने ही उनके पास सरकार जैसे दिखने वाले कागज। तो हम सीधे मजूदरों के पास पहुंचे और पता किया कि जमीन पर यह सिस्टम काम कैसे कर रहा है। दरअसल अभी जो श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनें चल रही हैं, उनमें जाने के लिए 1200 लोगों की लिस्ट डीएम ऑफिस में भेजी जाती है। डीएम का ऑफिस इस लिस्ट को स्थानीय रेलवे स्टेशन से शेयर करता है। फिर स्थानीय रेलवे स्टेशन इस लिस्ट में शामिल लोगों का टिकट बनाता है, जिन्हें लेने के लिए डीएम कार्यालय से अमला रेलवे स्टेशन भेजा जाता है।

यह सब जितना सीधा सुनने में लग रहा है, उतना है नहीं। सात सवा सात सौ रुपये तो टिकट पर प्रिंट रेट है जो संबित पात्रा चिल्लाए कि केंद्र और राज्य सरकारें दे रही हैं, असल में वह पूरा का पूरा मजदूरों से ही वसूला जा रहा है। न तो मोदी की सरकार इस टिकट में एक फूटी चवन्नी दे रही है और न ही राज्यों की सरकारें इसमें एक पैसा दे रही हैं। उल्टे हो यह रहा है कि जब कोई मजदूर अपनी मां से मिलने की आस आंखों में लेकर डीएम ऑफिसों में पहुंच रहा है तो वहां पहले से ही मौजूद दलाल उसे घेर ले रहे हैं। सूरत से इलाहाबाद जाने वाले मजदूर हरिशंकर शर्मा ने बताया कि उनसे प्रयागराज जाने के नाम पर फॉर्म भराया गया और किराया 1100 रुपए लिया। उनको बोला गया कि बुधवार यानी 6 मई को उनको प्रयागराज जाने वाली ट्रेन में जगह मिल जाएगी। इसके अलावा रंजीत कुमार ने भी यही बात बताई।

अनूप शर्मा ने कहा कि उनसे भी पैसे लिए। आपको बता दें कि तकरीबन हर शहर में मजदूरों के फार्म भरने का काम कुछ एनजीओ को सौंपा गया है और मजदूरों का कहना है कि उन्हीं के लोग इस तरह की अनाप शनाप वसूली कर रहे हैं। यही एनजीओ डीएम ऑफिस से टिकट लेकर लिस्ट में शामिल लोगों को बांटने का काम करते हैं। इसके लिए इन लोगों ने टोकन सिस्टम बना रखा है। सूरत में इस तरह के एनजीओ उत्तर भारतीय संघर्ष समिति, सेवा फाउंडेशन, समस्त बिहार झारखंड समिति का कहना है कि फॉर्म भरने के कोई पैसे नहीं लिए जा रहे हैं। वहीं अगर सिर्फ सरकारी वसूली की बात करें, जो कि ऑन पेपर है, वह यह है कि शनिवार से लेकर सोमवार तक सूरत से कुल  9 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें गई हैं जिनमें 10,800 मजदूर गए। इन मजदूरों से रेलवे ने 76 लाख 74 हजार रुपए किराया वसूला है। तो ये तो है मोदी जी का 85 प्रतिशत जो कि सौ फीसद सिर्फ और सिर्फ मजदूरों से वसूला जा रहा है। 

अब जरा देखते हैं कि दूसरे मीडिया हाउसेज ने इस बारे में क्या कुछ छापा है। द प्रिंट की खबर है कि रेलवे ने पहले कहा था कि लोगों से रेल का पूरा किराया लिया जाएगा। प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो के अधिकारी डीजे नारायन ने भी कहा है कि रेलवे पूरा किराया वसूलेगा और उसके आदेश में कोई चेंज नहीं है। सूत्रों के हवाले से द प्रिंट ने यह भी बताया है कि रेलवे ने अपने आदेश में कोई चेंज नहीं किया है। अहमदाबाद मिरर ने तो अपनी रिपोर्ट में मजदूरों के रिकॉर्डेड वीडियो पेश किये हैं जिसमें ऐसे कई मजदूरों के बयान हैं कि उनसे किराया वसूला गया है। अहमदाबाद मिरर के रिपोर्टर ने गुजरात के अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा से उत्तर प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ जाने वाले 20 से अधिक प्रवासी मजदूरों से बात की जिसमें सभी ने एक सुर में कहा कि उनसे झारखंड और छत्तीसगढ़ छोड़ कर बाकी की सभी जगहों पर जाने के लिए पैसे लिए जा रहे हैं।

इसी तरह से एबीपी न्यूज ने भी एक वीडियो रिपोर्ट चलाई जिसमें साफ दिखता है कि मजदूरों के हाथ में जो टिकट मौजूद है, उसमें उतना ही किराया है जितना आम दिनों में होता था। आपको एक बार फिर याद दिला दें कि रेलवे ने एक मई को जो सर्कुलर जारी किया था, उसमें उसने कहा था कि किराया तो वसूलेंगे ही, साथ में पचास पचास रुपये सबसे अलग से वसूलेंगे। एबीपी न्यूज की रिपोर्ट बताती है कि महाराष्ट्र के नासिक से मध्य प्रदेश के भोपाल के लिए जो ट्रेन चली थी उसमें सभी मजदूरों से पैसे लिये गए थे। मजदूरों ने ये भी कहा कि 305 रुपये की टिकट थी लेकिन उनसे 315 रुपये किराया लिया गया।

अब जरा उन झूठ का प्रसार करने वाले इन सज्जनों का नाम भी जान लीजिए जो इन मजदूरों की बेबसी पर चढ़कर अपनी राजनीति की रोटी सेंक रहे हैं। नंबर एक पर हैं भाजपा का प्रवक्ता संबित पात्रा। मामला गर्म होते ही कोरोना के डर से घर में छुपकर बैठे एमबीबीएस डॉक्टर संबित पात्रा ने ट्वीट करके दावा किया कि मजदूरों के ट्रेन टिकट का 85 फीसदी खर्चा केंद्र सरकार उठा रही है और 15 फीसदी खर्चा राज्य सरकारों को उठाना होगा। थोड़ी देर बाद असत्य बोलने वाले भाजपा के नंबर दो नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने भी एक ट्वीट कर कहा कि उनकी रेल मंत्री से बात हो गई है और रेलवे किराया का 85 फीसदी खर्चा केंद्र उठाएगा। और तो और, स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने भी यही बात दोहराई। जबकि जो टिकट बेच रहा है, जो मजदूरों से पैसे वसूल रहा है, यानी कि रेलवे, उसकी ओर से इस बारे में एक भी सर्कुलर कम से कम अभी तक तो नहीं जारी हुआ है। वह तो पूरे पैसे ले रहा है, साथ में मजदूरों से पचास रुपये एक्स्ट्रा ले रहा है। 

अब जरा छूट का भी हिसाब किताब समझ लें। आपको बता दें कि आम तौर पर रेलवे का जो किराया होता है, उसमें ऑलरेडी सब्सिडी शामिल होती है और ये कोई आज की बात नहीं है। रेल मंत्रालय का जो एक्शन प्लान है, वह बताता है कि पैसेंजर से जो किराया मिलता है, उसके जरिये रेलवे अपना सिर्फ 53 फीसदी खर्च ही निकाल पाता है और बाकी की 47 फीसदी सब्सिडी होती है। यानी कि आम दिनों में भी सरकारें रेलवे यात्रियों को किराये में छूट देती रही हैं।

अब चलते हैं जरा सुप्रीम कोर्ट की ओर। सुप्रीम कोर्ट में मजदूरों से वसूली का मामला मंगलवार 5 मई को उठा। इस मामले में जजों ने मोदी सरकार के वकील से पूछा कि क्या सरकार श्रमिक ट्रेनों से यात्रा करने वालों का 85 फीसदी किराये दे रही है? जब जजों ने यह पूछा तो केंद्र सरकार ने इस बारे में कोई भी जवाब देने से मना कर दिया। और तो और, अदालत में सरकार ने ये भी नहीं बताया कि हर एक टिकट पर केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर कितनी सब्सिडी दे रही हैं और प्रवासियों या मजदूरों से कितना पैसा वसूला जा रहा है। इस बारे में अखबार द टेलीग्राफ में पूरी खबर छपी है। यह खबर बताती है कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि इस बारे में जानकारी देने के लिए उन्हें कोई ‘निर्देश’ नहीं मिला है।

आपको बता दें कि सामाजिक कार्यकर्ता जगदीप छोकर ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका डाली थी। अपनी याचिका में छोकर साहब ने लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों और छात्रों के कोरोना टेस्ट के बाद उन्हें उनके घर वापस लौटने की परमिशन देने की मांग की थी। छोकर साहब ने ये भी मांग की थी कि प्रवासियों से इसके लिए कोई किराया नहीं लिया जाना चाहिए। इस याचिका में याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट प्रशांत भूषण पेश हुए। इस याचिका की सुनवाई जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने की। एडवोकेट प्रशांत भूषण ने बेंच से कहा कि प्रवासियों की स्थिति बेहद दयनीय है और वे ऐसे वक्त में किराया देने की हालत में नहीं हैं। एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि जब से इन मजदूरों को घर भेजने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें शुरू की गई हैं, तभी से लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि मजदूरों से किराया लिया जा रहा है।

यहां तक कि रेलवे मिनिस्ट्री तक ने इस बारे में एक सर्कुलर जारी किया है जिसमें साफ साफ सबसे किराया वसूलने की बात की गई है। इस पर जस्टिस गवई ने खबरों का हवाला देते हुए कहा कि सरकार 85 फीसदी किराया दे रही है। इस पर प्रशांत भूषण ने बेंच से कहा कि अगर ये खबर सही है, तब भी प्रवासी मजदूर 15 फीसदी किराया नहीं दे सकते हैं। इस पर जस्टिस संजय किशन कौल ने मोदी सरकार के वकील तुषार मेहता से पूछा कि क्या केंद्र सही में 85 फीसदी किराया दे रहा है? इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कोई जवाब नहीं दे पाए और कहा कि उन्हें इस बात का खुलासा करने का ‘निर्देश’ नहीं मिला है कि केंद्र और राज्य सरकारें कितना किराया भुगतान कर रही हैं। तुषार मेहता ने बेंच को बताया कि उन्हें निर्देश नहीं मिले हैं।

इस काम के लिए देश भर में कई ट्रेनें और बसें लगाई गईं हैं।’ आपको बता दें कि मेहता कोर्ट को ये भी नहीं बता पाए कि प्रवासी मजदूरों से कितना किराया वसूला जा रहा है। हालांकि इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने जो फंसे हुए लोगों को घर भेजने की मांग की थी, उसको केंद्र सरकार ने पूरा कर दिया है। लेकिन कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों से किराया वसूलने के मामले पर कोई आदेश जारी करने से मना कर दिया। अलबत्ता कोर्ट ने यह कहा कि यह राज्यों और रेलवे की जिम्मेदारी है और वे मौजूद दिशानिर्देशों के आधार पर सभी जरूरी कदम उठाएं। अब सवाल है कि बेबस मजदूरों को नरेंद्र मोदी की सरकार यूं ही चूसती रहेगी, या उनको किसी भी तरह की कोई राहत देने की कोशिश करेगी। अभी तक की जितनी खबरें मजदूरों को लेकर आ चुकी हैं, उनसे तो यही लगता है कि मजदूरों को राहत तो नहीं मिलने वाली, अलबत्ता संबित पात्रा और सुब्रमण्यम स्वामी जैसे फेक न्यूज के महाअवतार हम सभी लोगों को लगातार कन्फ्यूज तो करते ही रहेंगे।

रेलवे बोर्ड के चेयरमैन वीके यादव का एक बयान इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपा है। वीके यादव कहते हैं कि मजदूरों से किराया लेने का फैसला पूरी तरह सोच-समझकर लिया गया है। ऐसा इसलिए किया गया है कि इन श्रमिक ट्रेनों से सिर्फ वही लोग यात्रा करें, जो इसके पात्र हैं। वे कहते हैं कि समस्या यह है कि जब आप यह सर्विस फ्री कर देते हैं तो हर कोई यात्रा करने का अधिकारी हो जाता है। इससे जो लोग भी स्टेशन आ रहे हैं, जो लोग यात्रा कर रहे हैं, उन्हें ट्रैक करना एक समस्या बन जाती है। श्रमिक ट्रेनें सिर्फ मजदूरों और छात्रों के लिए चलाई गई हैं जिन्हें स्क्रीनिंग के बाद ही यात्रा करने की अनुमति है। यह ट्रेनें आम नागरिक के लिए नहीं हैं, इसलिए हम टिकट का नॉमिनल किराया ले रहे हैं।

रेलवे ने अपनी गाइडलाइंस में कहा है कि वह टिकटों को राज्य प्रशासन के हवाले करेगा और प्रशासन टिकट का किराया वसूलकर उसे रेलवे के हवाले करेगा। उदाहरण के लिए, जब झारखंड को अपने छात्रों को कोटा से मंगाना था तो झारखंड ने कोटा के स्थानीय प्रशासन को 5.4 लाख रुपए दिए। झारखंड को अपने 1200 प्रवासी मजदूरों के लिए अभी तेलंगाना को भी पैसे देने हैं। तेलंगाना के लिंगमपल्ली से पहली श्रमिक स्पेशल ट्रेन हटिया के लिए चली थी। पहले इस बात को लेकर कुछ कन्फ्यूजन थी कि पैसे राज्यों को देने हैं या रेलवे को देने हैं। इस बारे में 2 मई को रेलवे मिनिस्ट्री ने एक एसओपी जारी करके इसे साफ किया। यह एसओपी कहता है कि किराया तो यात्रियों से ही वसूला जाता है। इस एसओपी का 11वां बिंदु यह साफ साफ कहता है कि राज्य प्रशासन यात्रियों से टिकट का किराया वसूलेगा और उसे रेलवे के हवाले करेगा। हालांकि रेलवे बोर्ड के चेयरमैन आरके यादव का कहना है कि राज्य सरकारों ने किराया वसूलने के लिए दो तीन मॉडल बनाए हैं। आरके यादव कहते हैं कि कई जगहों पर मजदूरों के मालिक पैसा इकट्ठा करके स्थानीय प्रशासन को दे रहे हैं तो कुछ जगहों पर यह पैसा एनजीओ स्पॉन्सर कर रहे हैं।

(राइजिंग राहुल की रिपोर्ट।) 

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