(कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने आज कोरोना काल में सरकार द्वारा बोले गए झूठ और छुपाए गए आंकड़ों के मसले पर बात की है। उन्होंने जिम्मेदार कौन? नाम की अपनी फेसबुक श्रृंखला में इसे सरकार की आपराधिक लापरवाही करार दिया है। उनका कहना है कि अगर सरकार इन आंकड़ों का इस्तेमाल करती तो न केवल कोरोना को नियंत्रित करने में सफलता मिलती बल्कि उसका इस्तेमाल वैज्ञानिक या विशेषज्ञ रिसर्च से जुड़ी दूसरी चीजों के लिए भी कर सकते थे। लेकिन सरकार की सोच के दिवालिएपन ने इसको करने नहीं दिया। जिसका नतीजा है कि हर तरीके से लोगों को नुकसान उठाना पड़ा है। पेश है उनका पूरा वक्तव्य-संपादक)
कोरोना महामारी में लोगों ने सरकार से आंकड़ों की पारदर्शिता की आवश्यकता स्पष्ट की थी। ऐसा इसलिए जरूरी है कि आँकड़ों से ही पता लगता है: बीमारी का फैलाव क्या है, संक्रमण ज्यादा कहाँ है, किन जगहों को सील करना चाहिए या फिर कहाँ टेस्टिंग बढ़ानी चाहिए। इस पर अमल नहीं हुआ।
जिम्मेदार कौन?
विशेषज्ञों का मानना है कि पहली लहर के दौरान आंकड़ों को सार्वजनिक न करना दूसरी लहर में इतनी भयावह स्थिति पैदा होने का एक बड़ा कारण था। जागरूकता का साधन बनाने की बजाय सरकार ने आँकड़ों को बाज़ीगरी का माध्यम बना डाला। इसके कुछ नमूने देखिए:
सरकार ने शुरू से ही कोरोना वायरस से हुई मौतों एवं कोरोना संक्रमण की संख्या को जनसँख्या के अनुपात में दिखाया मगर टेस्टिंग के आंकड़ों की टोटल संख्या बताई।
आज भी वैक्सिनेशन के आँकड़ों की टोटल संख्या दी जा रही है आबादी का अनुपात नहीं। और उसमें पहली व दूसरी डोज़ को एक में ही जोड़कर बताया जा रहा है। ये आंकड़ों की बाज़ीगरी है।
कोरोना वायरस से जुड़े तमाम आंकड़ों को केवल सरकारी चैम्बरों में कैद रखा गया एवं वैज्ञानिकों द्वारा पत्र लिखकर इन आकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग के बावजूद भी ये नहीं किया गया।
उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने टेस्टिंग के आंकड़ों में भारी हेरफेर की। सरकार ने कुल टेस्टों की संख्या में RTPCR एवं एंटीजन टेस्ट के आंकड़ों को अलग-अलग करके नहीं बताया (उप्र में एंटीजन टेस्ट एवं RTPCR के बीच 65:35 का अनुपात था)। इसके चलते टोटल संख्या में तो टेस्ट ज्यादा दिखे लेकिन वायरस का पता लगाने की एंटीजन टेस्ट की सीमित क्षमता के चलते वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या का सही अंदाजा नहीं लग सका।
दिव्य भास्कर अखबार के हिसाब से दूसरी लहर के दौरान गुजरात में 71 दिनों में 1,24000 मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किए गए। मगर गुजरात सरकार ने मात्र 4218 कोविड मौतें बताईं। गुजरात के 4 शहरों में जारी हुए मृत्यु प्रमाणपत्रों एवं सरकार के हिसाब से कोरोना से हुई मौतों के आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं-
शहर
जारी मृत्यु प्रमाणपत्र
कोरोना से हुई मौतें (सरकारी आंकड़े)
अहमदाबाद
13593
2126
सूरत
8851
1074
राजकोट
10887
208
बड़ोदा
7722
189
खबरों के अनुसार उप्र के 27 जिलों में लगभग 1100 किमी की दूरी में गंगा किनारे 2000 शव मिले। इनको सरकारी रजिस्टर में जगह नहीं मिली। जब प्रयागराज जैसे शहरों में गंगा के किनारे दफ़नाए गए शव टीवी में आने लगे तो उप्र सरकार ने तत्काल ‘सफाई अभियान’ चलाकर क़ब्रों के निशान मिटाते हुए उनपर पड़ी चादरें उतरवा लीं। मृत देहों से अंतिम संस्कार की निशानी को भी कैसे छीना गया इसे पूरे देश ने देखा।
एक खबर के अनुसार उप्र के छः शहरों वाराणसी, गोरखपुर, लखनऊ, कानपुर झांसी एवं मेरठ में सरकारी आंकड़ों में कोरोना से हुई मौतों एवं श्मशानों के आंकड़ों में अंतर मिला।
तारीख और शहर
सरकारी आकंडा
शम्शान/कब्रिस्तान के आँकड़े
30 अप्रैल – 5 मई, वाराणसी
73
413
25 अप्रैल – 5 मई, गोरखपुर
28
626
25 अप्रैल – 5 मई, लखनऊ
316
1375
25 अप्रैल – 5 मई, कानपुर
260
955
25 अप्रैल – 5 मई, झांसी
118
808
25 अप्रैल – 5 मई, मेरठ
55
265
सरकार आंकड़ों को बाज़ीगरी का माध्यम बनाना चाहती है या कोरोना को शिकस्त देने का एक अहम हथियार?
इसलिए जनता की तरफ से सरकार से कुछ सवाल पूछे जाने जरुरी हैं:
आखिर क्यों वैज्ञानिकों द्वारा बार-बार मांगने के बावजूद कोरोना वायरस के बर्ताव एवं बारीक अध्ययन से जुड़े आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया? जबकि इन आँकड़ों को सार्वजनिक करने से वायरस की गति और फैलाव की जानकारी ठीक तरह से होती और हज़ारों जानें बच सकती थीं?
केंद्र सरकार आंकड़ों को अपनी छवि बचाने के माध्यम की तरह क्यों प्रस्तुत करती है? क्या इनके नेताओं की छवि, लाखों देशवासियों की जान से ज्यादा महत्वपूर्ण है? सही आंकड़ें अधिकतम भारतीयों को इस वायरस के प्रभाव से बचा सकते हैं। आखिर क्यों सरकार ने आंकड़ों को प्रोपेगंडा का माध्यम बनाया न कि प्रोटेक्शन का?