संघीय ढांचे के खिलाफ है मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, बड़ी बेंच करे सुनवाई: कपिल सिब्बल

सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में 2002 के मनी लांड्रिंग एक्ट को गलत करार देते हुए कहा कि यह न केवल न्याय बल्कि देश के संघीय ढांचे के खिलाफ हैं। ईडी पुलिस की तरह से काम कर रही है। किसी भी मामले में केस दर्ज होता है तो यह मनी लांड्रिंग के आरोप के तहत एक्टिव हो जाती है चाहे अपराध कहीं भी हुआ हो।

उसका कनेक्शन दूसरी जगह से जोड़कर ईडी रेड मारती है और प्रॉपर्टी अटैच करने लगती है। सिब्बल का कहना था कि ईडी कोर्ट की तरह काम करती है। जब वह किसी को समन भेजती है तो यह पता नहीं चलता कि उसे आरोपी के तौर पर बुलाया गया है या गवाह के तौर पर।

वहीं सीनियर एडवोकेट सी आर्यमा सुंदरम ने आरोप लगाया कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में लोगों को फंसाने के लिए ‘फिशिंग’ जैसी पूछताछ कर रहा है। उन्होंने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय ‘धन-शोधन निवारण अधिनियम’ के तहत आगे बढ़ता है, जैसे कि वह मछली पकड़ने का अभियान चला रहा हो।

सुंदरम ने कहा कि इस अधिनियम को अनुमान के आधार पर लागू नहीं किया जा सकता। तथ्यों और सूचनाओं के अस्तित्व का पता लगाने के लिए एक्ट की धारा 50 के तहत समन जारी नहीं किया जा सकता है, जो प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट को दाखिल करने की अनुमति देगा।

प्रथम सूचना रिपोर्ट, उदाहरण के लिए केवल तभी दायर की जाती है जब किसी अपराध के रूप में सूचना प्राप्त होती है। शुरू करने के लिए कुछ आधार होना चाहिए। बिना किसी आधार के आप एफआईआर दर्ज नहीं कर सकते हैं और फिर कहते हैं, आइए देखें कि क्या कोई अपराध हुआ। ईडी की जांच के संबंध में भी यही बात लागू होती है।

जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ अपील के बैच की सुनवाई कर रही थी, जिसमें ‘कैश-फॉर-जॉब्स’ घोटाले की नए सिरे से जांच का आदेश दिया गया, जिसमें तमिलनाडु के मंत्री वी सेंथिल बालाजी सहित अन्य ने 2011 और 2015 के बीच राज्य परिवहन निगम में नियुक्तियों के बदले नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों से रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया है।

कपिल सिब्बल के विपरीत (जिन्होंने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि विजय मदनलाल चौधरी में सुप्रीम कोर्ट के जुलाई, 2022 के फैसले पर ‘पुनर्विलोकन’ की आवश्यकता है) सुंदरम ने तर्क दिया कि वह अपनी व्याख्या का समर्थन करने के लिए “जैसा है” निर्णय को पढ़ेंगे।

सुंदरम ने आरोप लगाया कि ईडी ने अभियुक्तों की पहचानी गई संपत्ति या अवैध लाभ के अस्तित्व के आवश्यक अधिकार क्षेत्र के तथ्य के बिना कथित मनी लॉन्ड्रिंग आरोपों की नियमित रूप से जांच की। उन्होंने कहा कि ये मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के लिए अनिवार्य हैं। इनके अभाव में ‘धन-शोधन-रोधी क़ानून’ लागू नहीं किया जा सकता।

सुंदरम ने समझाया कि गलत काम करने वाला हो सकता है, जिसे विधेय अपराध के लिए दंडित किया जाता हो लेकिन इस अधिनियम को अपराध के अस्तित्व के आधार पर संपत्ति या अपराध की आय के अभाव में लागू नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह गलती प्रवर्तन निदेशालय ने सिर्फ इस मामले में ही नहीं बल्कि सभी मामलों में की है।

उन्होंने यह भी कहा कि अगर इन न्यायिक तथ्यों के अस्तित्व के बिना ‘पीएमएलए’ के तहत समन जारी किया जा सकता है जिससे प्रवर्तन निदेशालय मछली पकड़ने की जांच कर सके तो अधिनियम कठोर हो जाएगा। वैसे भी ‘धन-शोधन निवारण अधिनियम’ अपने आप में कठोर है। यदि ईडी को इस तरह की निरंकुश शक्ति का प्रयोग करने की अनुमति दी जाती है तो यह अनुचित और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।

यह ईडी को किसी को भी लेने की अनुमति देगा और मांग करेगा कि वे अपनी संपत्तियों के संबंध में विवरण प्रकट करें भले ही निदेशालय खुद ऐसी संपत्ति के बारे में जानता हो या नहीं। इतना ही नहीं झूठी गवाही देने का खतरा भी उस व्यक्ति पर मंडराता रहता है।

इसके पहले सिब्बल ने सोमवार को कहा कि ‘प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट’ और निदेशालय की कार्यप्रणाली न केवल ‘न्याय के सभी सिद्धांतों’ के खिलाफ है बल्कि संघवाद के सिद्धांतों का भी उल्लंघन है।

सीनियर वकील ने पीठ से कहा कि ‘पीएमएलए’ सबसे कठोर क़ानून है जिसमें यह अधिनियम गिरफ्तारी, कुर्की, तलाशी और जब्ती के लिए प्रवर्तन निदेशालय को कठोर अधिकार देता है। दंड प्रक्रिया संहिता में प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों को बाहर रखा गया है। क़ानून के तहत कोई सुरक्षा उपाय नहीं हैं।

सिब्बल ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय अब देश भर में घूम रहा है और लोगों को लक्षित कर रहा है। केंद्रीय जांच ब्यूरो को जांच करने के लिए, राज्य की सहमति की आवश्यकता होती है। लेकिन ईडी के लिए ऐसी कोई पाबंदी नहीं है। इसने विधेय अपराधों की भी जांच शुरू कर दी है। यह संघीय सिद्धांत का उल्लंघन करता है।

कल्पना कीजिए कि एक अनुसूचित अपराध पश्चिम बंगाल में हुआ है लेकिन अपराध का एक छोटा सा हिस्सा दिल्ली में है। प्रवर्तन निदेशालय क्या करता है? यह दिल्ली में शिकायत दर्ज करती है और बंगाल के मामले राजधानी में स्थानांतरित हो जाते हैं। ये ऐसे मुद्दे हैं जो देश की राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं।

वरिष्ठ वकील ने जोरदार तर्क दिया कि विजय मदनलाल चौधरी में सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2022 के फैसले पर ‘पुनर्विचार’ की जरूरत है। इस फैसले में जस्टिस ए.एम.खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सी.टी.रविकुमार की तीन जजों की बेंच ने ईडी की गिरफ्तारी, कुर्की और तलाशी और जब्ती की शक्ति से संबंधित ‘धन-शोधन निवारण अधिनियम’ के प्रावधानों को बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम की धारा 24 के तहत सबूत के उलटे बोझ को भी सही ठहराया था, यह कहते हुए कि अधिनियम की वस्तुओं के साथ इसका उचित संबंध था।

सिब्बल ने बताया कि अधिनियम की धारा 3 के अर्थ में मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध, जैसा कि विजय मदनलाल चौधरी पीठ द्वारा व्याख्या की गई है, में हर प्रक्रिया और गतिविधि शामिल है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अपराध की आय से निपटने में चाहे ऐसा हो या नहीं दागी संपत्ति को औपचारिक अर्थव्यवस्था में एकीकृत कर दिया गया है। इसके परिणामस्वरूप “मनी लॉन्ड्रिंग” और “अपराध की आय” के बीच अंतर खो गया है। विजय मदनलाल चौधरी में दी गई “त्रुटिपूर्ण” व्याख्या के परिणामस्वरूप अपराध की आय का कब्जा “मनी लॉन्ड्रिंग” के अपराध के बराबर होगा।

उन्होंने पीठ से कहा कि मान लीजिए मैं रिश्वत देता हूं। वह ‘अपराध की आय’ होगी। लेकिन यह मनी लॉन्ड्रिंग तब तक नहीं होगा जब तक कि रिश्वत के पैसे का इस्तेमाल जमीन या गहने खरीदने के लिए नहीं किया जाता है। इस बहाने कि यह वैध पैसा है।

यदि रिश्वत को भूमि या आभूषण में परिवर्तित नहीं किया जाता है तो धन-शोधन नहीं होता है। हालांकि इस फैसले के बाद मनी लॉन्ड्रिंग और अपराध की आय के बीच का अंतर अब खत्म हो गया है। यह व्याख्या पूरी तरह से क़ानून की भाषा के विपरीत है। और वैधानिक व्याख्या के सिद्धांतों के खिलाफ है। न्यायाधीशों के प्रति उचित सम्मान के साथ, निर्णय संवैधानिक रूप से संदिग्ध है।

इस संबंध में सिब्बल ने ‘पीएमएलए’ के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों की जांच के लिए अभियुक्तों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों की कमी के विभिन्न तरीकों पर जोर दिया।

उन्होंने पीठ को यह भी बताया कि “संपूर्ण सीलबंद कवर प्रक्रिया” जिसे हाल ही में मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम के खिलाफ ‘पीएमएलए’ मामले में शुरू किया था। मैं उस मामले में एक वकील था और मैंने अदालत से कहा कि प्रक्रिया असंवैधानिक है जैसा कि हालिया मौलिक निर्णय भी कहता है।

‘धन-शोधन निवारण अधिनियम’ की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली अपनी बहु-आयामी प्रस्तुतियां करने के बाद, सिब्बल ने फिर से डिवीजन बेंच से विजय मदनलाल चौधरी के फैसले पर पुनर्विचार के लिए वर्तमान अपील में उठाए गए सवालों को एक बड़ी बेंच को भेजने का आग्रह किया।

सिब्बल ने कहा कि मैं समझता हूं कि यह बेंच तीन जजों की बेंच के फैसले से बंधी है। मैं जो कह रहा हूं वह यह है कि फैसले पर संदेह करने के कारण हैं और यदि संदेह है तो आपको फैसले को एक बड़ी पीठ के पास भेजना चाहिए।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

जेपी सिंह
Published by
जेपी सिंह