उत्तराखंड के मछली व्यवसाय पर मानसून की मार, 39.92 करोड़ मूल्य की मछलियां नष्ट हो गईं

देहरादून। जलवायु परिवर्तन का प्रकोप उत्तराखंड के उभरते मत्स्य पालन व्यवसाय पर भी साफ नजर आने लगा है। अनिश्चित और अत्यधिक बारिश के कारण नदी-नालों में आ रही त्वरित बाढ़ के कारण राज्य का मछली व्यवसाय उभरने के बजाए घाटे का सौदा होता जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण इस साल का मानसून है, जिसमें अब तक राज्य की लगभग 100 सहकारी समितियों की 39.92 करोड़ मूल्य की लगभग 1597.32 क्विंटल मछलियां नष्ट हो गयीं।

एक जमाना था जब उत्तराखंड में व्यवसायिक तौर पर उत्तरकाशी के कालद्यानी और चमोली के तलवाड़ी तथा बैरांगना में ट्राउट मछलियों की हैचरियां थीं। धीरे-धीरे मछलियों की मांग बढ़ने तथा इस व्यवसाय में अच्छी आमदनी की संभावनाओं के चलते लोग निजी तौर पर भी और सहकारी संस्थाओं के माध्यम से भी मछली पालन में जुड़ते गये। आज कम से कम सौ सहकारी समितियां और बाकी हजारों निजी व्यवसायी इस व्यवसाय में जुड़े हुये हैं। राज्य गठन के 23 साल बाद भी राज्य के बड़े जलाशयों की मछलियां अभी तक उत्तराखंड के हिस्से में नहीं आ पायीं।

अतिवृष्टि के कारण आने वाली त्वरित बाढ़ के कारण यह व्यवसाय अति जोखिमपूर्ण होता जा रहा है। राज्य मत्स्य निदेशालय द्वारा अखिल भारतीय किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह सजवाण को दी गयी लिखित जानकारी के अनुसार 2023 की मानसूनी आपदा में उत्तरकाशी की 19, चमोली की 4, टिहरी की 6, चम्पवात की 5, पिथौरागढ़ की 4, हरिद्वार की 49 और देहरादून की 12 मत्स्य पालक सहकारी समितियों की विभिन्न प्रजातियों की 1597.32 क्विंटल मछलियां नष्ट हो गयीं जिनका मूल्य लगभग 399.28 लाख रुपये आंका गया।

इनमें से अकेले चमोली के मत्स्य पालक पान सिंह बिष्ट को 96 लाख का नुकसान हुआ है। पहाड़ों में अत्यधिक ढाल के कारण नालों में अक्सर त्वरित बाढ़ आने के कारण वे बहुत विकराल रूप धारण कर अपने नियमित मार्ग से भी काफी दूर तक भारी नुकसान करते हैं। जबकि हरिद्वार में इस बार कई गावों के जलमग्न होने के साथ ही हैचरियों में बाढ़ का पानी भरने से मछलियां जीवित या मृत बाढ़ के पानी में समा गयीं। हरिद्वार में इस बार हैचरियों से लगभग 1373 क्विंटल मछलियां नष्ट हो गयीं।

हिमालयी राज्य उत्तराखंड पर्वत श्रृंखलाओं और जंगलों से भरापूरा है, जिसमें बड़ी नदियों, सहायक नदियों, पहाड़ी झरनों, झीलों और जलाशयों के रूप में विविध जलीय संसाधन हैं। इतने विशाल और विविध ठंडे पानी के संसाधनों के साथ, इस राज्य के पास इस क्षेत्र के लिए स्थानीय मछली जर्मप्लाज्म और स्थानिक प्रजातियां हैं।

अधिक ऊंचाई पर ट्राउट, विशेष रूप से रेनबो प्रजाति, स्नो ट्राउट, ब्राउन ट्राउट के साथ-साथ महासीर और विदेशी कार्प जैसी ‘कम मात्रा, उच्च मूल्य वाली प्रजातियों’ के विकास की जबरदस्त गुंजाइश है। लेकिन उत्तराखंड में भैगोलिक परिस्थतियां मत्स्य पालन के लिये जितनी अनुकूल हैं उतनी ही प्रतिकूल भी हैं। इसलिये यह व्यवसाय जितना लाभप्रद है, उतना ही जोखिम भरा भी है।

भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार विश्व स्तर पर मछलियों की कुल 21,723 प्रजातियां दर्ज की गई हैं। भारत में मछलियों की 2,513 प्रजातियां पाई गई हैं, जो विश्व की मछली आबादी का 11.1 प्रतिशत हैं। जिनमें से 1,580 समुद्री और 933 मीठे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र में पाई जाती हैं। देवी प्रसाद उनियाल और मनीषा उनियाल के एक शोध पत्र ‘फिश फौना ऑफ उत्तराखंड, प्रजेंट स्टेटस, डाइवर्सिटी एंड कन्जर्वेशन’ के मुताबिक उत्तराखंड में 27 परिवारों और 8 गणों से संबंधित मछलियों की कुल 132 प्रजातियां पायी गई हैं।

इनमें मछली के जिलेवार वितरण में सबसे अधिक 101 प्रजातियां नैनीताल से, इसके बाद देहरादून से 81 प्रजातियां, हरिद्वार से 75, उधमसिंहनगर से 73, पौड़ी गढ़वाल से 59, रुद्रप्रयाग से 37, अल्मोडा से 36, चमोली से 35, बागेश्वर से 34, पिथौरागढ़ और चंपावत से 32 और उत्तरकाशी और टिहरी गढ़वाल से 29-29 प्रजातियां शामिल हैं। इनके अलावा 10 प्रजातियां लुप्तप्राय की श्रेणी में हैं, जबकि 10 प्रजातियां प्रकृति में विदेशी हैं और 11 प्रजातियां उत्तराखंड राज्य के लिए स्थानिक हैं।

उत्तराखंड में ट्राउट मछली पालन न केवल एक लाभदायक व्यवसाय है, बल्कि क्षेत्र के कई लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी प्रदान करता है। मछली पकड़ने के आधार पर ऊपरी क्षेत्र (पहाड़ी क्षेत्र) में प्रमुख प्रजातियां स्किजोथोरासिन प्रजातियां हैं और मैदानी इलाकों में प्रमुख प्रजातियां बैरिलियस प्रजातियां हैं।

मछली का भोजन स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त लाभकारी होने के बावजूद अभी उत्तराखंड में इसकी खपत काफी कम है। मछली ओमेगा-3 फैटी एसिड और विटामिन जैसे डी और बी-2 (राइबोफ्लेविन) से भरपूर होती है। मछली कैल्शियम और फास्फोरस से भरपूर होती है और आयरन, जिंक, आयोडीन, मैग्नीशियम और पोटेशियम जैसे खनिजों का एक बड़ा स्रोत है।

अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन स्वस्थ आहार के हिस्से के रूप में प्रति सप्ताह कम से कम दो बार मछली खाने की सलाह देता है। फिर भी उत्तराखंड में मछली का आहार अभी तक काफी कम है। वर्ष 2021 में लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में सरकार की ओर से बताया गया था कि लक्ष्यदीप में जहां प्रति वर्ष औसतन प्रति व्यक्ति 105.6 किग्रा, निकाबार में 59 किग्रा मछली का आहार करता है वहीं उत्तराखंड में औसतन एक व्यक्ति प्रतिवर्ष केवल 700 ग्राम और राजस्थान में 860 ग्राम मछली खाता है।

उत्तराखंड में मछली की कम खपत के बावजूद राज्य का मछली उत्पादक क्षेत्र अवाश्यकतानुसार आपूर्ति भी नहीं कर पा रहा है। जीबी पन्त विश्वविद्यालय के अनिल शर्मा और आशुतोष मिश्रा के शोध पत्र के अनुसार 2018-19 के दौरान, उत्तराखंड राज्य ने 4320 टन मछली और 65.56 मिलियन मछली बीज का उत्पादन किया, जो वास्तविक मांग से बहुत कम है। वर्ष 2022 में उत्पादन 6000 टन तक पहुंचा फिर भी मांग की पूर्ति के लिये बाहरी राज्यों से मछली आयात करनी पड़ी। यहां मछली उत्पादन में मुख्य बाधाओं में से एक आवश्यक मात्रा में गुणवत्तापूर्ण मछली बीज की उपलब्धता मानी जा रही है।

(जयसिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

जयसिंह रावत
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