मुस्लिम दंपति ने 29 साल बाद फिर से की शादी, बेटियों के उत्तराधिकार के चलते लिया फैसला

एक मुस्लिम दंपत्ति का फिर से शादी करने का मामला सुर्खियों में है। कन्नूर यूनिवर्सिटी में लॉ डिपार्टमेंट की हेड प्रोफेसर शीना शुक्कूर और उनके पति ने शादी के 29 साल बाद फिर एक दूसरे से ही विवाह किया है। इस बार शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत की गई है और उसके पीछे एक खास मकसद भी है। महिला दिवस के दिन हुई ये शादी उनके परिवार, दोस्तों और 3 बेटियों की मौजूदगी में हुई।

एडवोकेट और अभिनेता सी शुक्कूर को कुंचाको बोबन अभिनीत फिल्म ‘नना थान केस कोडू’ (सू मी देन) में एक वकील के रूप में उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है और इस शादी को लेकर उन्होंने रविवार को ही फेसबुक पोस्ट की थी, जिसके बाद लोगों में इस पूरे मामले को लेकर एक जिज्ञासा पैदा हो गई थी। ये दंपति 6 अक्टूबर 1994 को पर्सनल लॉ के तहत एक दूसरे के साथ शादी के बंधन में बंधे थे।

दरअसल ये सारा मसला उनकी बेटियों के उत्तराधिकार के सवाल से जुड़ा है। टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट में शुक्कूर का कहना था कि-ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि हमारा कोई बेटा नहीं है, क्योंकि 1937 के मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट और अदालतों द्वारा लिए गए स्टैंड के अनुसार, पिता की संपत्ति का केवल दो-तिहाई हिस्सा बेटियों के पास जाता है।

पत्रकारों से बात करते हुए शीना ने कहा कि-ये हमारी बेटियों की ही बात नहीं है बल्कि ये जेंडर जस्टिस से जुड़ा हुआ मसला है। इसीलिए हमने महिला दिवस चुना। इनका कहना है कि इस कदम के ज़रिये हम ये संदेश देना चाहते हैं कि सोशल स्टेटस से लेकर वसीयत में भी लड़कियों का उतना ही हिस्सा होना चाहिए जितना कि पुरुषों का। हालांकि वो इन बातों को काफी समय से सोच रहे थे। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए कहा भी कि वो कई बार ऐसा सोचते थे कि वो अपनी बेटियों के लिए क्या छोड़कर जा रहे हैं?

वो नहीं चाहते थे कि उनकी संपत्ति बंटे। वे सिविल लॉ के तहत कानूनी उत्तराधिकार अपनी तीन बेटियों को देना चाहते थे। ‘हमारी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत दर्ज कराना ही एकमात्र रास्ता बचा था, जिससे हमारे न रहने पर बेटियों को कोई दिक्कत न हो।’

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक दरअसल, शरिया कानून में कई फैक्टर्स से उत्तराधिकार की हिस्सेदारी तय होती है। परिस्थितियां बदलने से शेयर भी बदलता है। जैसे, इकलौती बेटी को विरासत का आधा हिस्सा ही मिलता है। अगर मृतक की एक से ज्यादा बेटी हैं तो सभी बेटियों को दो-तिहाई हिस्सा ही मिलता है। इस दंपत्ति के इस कदम को उनके समुदाय में ही खासा समर्थन मिल रहा है, तो विरोध भी हो रहा है, खुद दोनों पति-पत्नी का कहना है कि ये फैसला-मुस्लिम परिवारों में बेटियों के साथ होने वाले लैंगिक भेदभाव को खत्म करने का रास्ता दिखाएगा और लड़कियों के आत्मविश्वास और सम्मान को बढ़ाने में मदद करेगा।

हालांकि सोशल मीडिया पर लिखी एक पोस्ट में शुकूर ने लिखा भी है कि-पुनर्विवाह करने का उनका यह फैसला किसी को या किसी चीज को या वर्तमान में मौजूद शरिया कानून की अवहेलना करने के लिए नहीं था। उन्होंने कहा, “हम केवल इस संभावना की तलाश कर रहे हैं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ विशेष विवाह अधिनियम के माध्यम से शादी करने वालों को प्रभावित नहीं करेगा। शीना और मैं अपने बच्चों के लिए पुनर्विवाह कर रहे हैं।”

एक टीवी चैनल से बात करते हुए शीना ने कहा कि वे जिस कठिनाई से गुज़रे हैं, उसका सामना ऐसे कई मुस्लिम परिवारों को करना पड़ता है, जिनकी केवल बेटियां हैं। “कॉलेज में पढ़ाते समय या किसी सार्वजनिक मंच पर बोलते समय, इसके खत्म होने के बाद, कई पैरेंट्स मेरे पास आते हैं और पूछते हैं कि क्या यह (विरासत का मुद्दा) सही है। शीना ने कहा, “हम इसे सालों से सुनते आ रहे हैं। हम किसी को इसके बारे में कुछ करने के लिए कह सकते हैं या हमारे पास दो विकल्प हैं-कानूनी रास्ता अपनाएं या अपने जीवन विकल्पों के जरिए से रास्ता दिखाएं, हमें वह करना चाहिए जो हम कर सकते हैं।

दरअसल स्पेशल मैरिज एक्ट का सेक्शन 15 किसी भी धार्मिक रस्मों के तहत शादी किए दो लोगों को अपने विवाह को फिर से रजिस्टर करने की इजाजत देता है। ऐसे में फिर से तलाक लेकर शादी करने की ज़रूरत नहीं है। अब शादी रजिस्टर हो जाने के बाद भारतीय उत्तराधिकार कानून 1925 लागू हो जाएगा। हालांकि जिस तरह से आशंका की जा रही थी इस फैसले का विरोध भी हो रहा है।

डीएच इस्लामिक यूनिवर्सिटी की फतवा और रिसर्च काउंसिल ने शुकूर के फैसले की आलोचना की है। संस्था ने कहा कि जो अल्लाह पर विश्वास करते हैं, उन्हें इसको लेकर कोई हिचक नहीं होती है। उन्हें यह लालच नहीं होती कि संपत्ति उनके बच्चों को ही मिले। हालांकि उस पर जवाब देते हुए कहा कि अगर उनके इस बयान के बाद किसी भी तरह की हिंसा होती है तो इसके लिए संस्था खुद जिम्मेदार होगी।

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