जेल में मेरा एनकाउंटर हो सकता है: डॉ. कफील खान

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में बाल रोग विशेषज्ञ रहे डॉ. कफील खान पर इसी साल फरवरी में एनएसए लगाया था। उन पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सीएए के खिलाफ एक सभा में भड़काऊ भाषण देने का आरोप है। डॉ कफील को जमानत भी नहीं मिल पा रही है। इस बीच उन्होंने कई चिट्ठी लिखी है। पिछले दिनों उन्होंने नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर खुद को कोरोना के खिलाफ चल रही जंग में शामिल किए जाने की मांग की थी। इस बार सोशल मीडिया में उनकी लिखी एक और बिना तारीख की चिट्ठी वायरल हो रही है। इस चिट्ठी को डॉ. कफील खान के ऑफिशियल फेसबुक पेज से 3 जुलाई को जारी किया गया है। चिट्ठी का मजमून है मथुरा जेल में डॉ. कफील का डेली रूटीन। इस चिट्ठी में डॉ. कफील ने अपनी बैरक का नक्शा भी बनाकर भेजा है। 

अपने रूटीन के बारे में मथुरा जेल से डॉ. कफील लिखते हैं, ‘ठीक पांच बजे सुबह सिपाहियों की आवाज से नींद टूटती है। ‘उठ जाओ ओए सारे, चल बाहर जोड़े में’, गिनती के लिए। जैसे ही गिनती पूरी होती है, सब टॉयलेट और वॉशरूम के लिए दौड़ते हैं। 534 कैदियों की कैपिसिटी वाली इस जेल में 1600 बंदी बंद हैं। एक एक बैरक में सवा सौ से डेढ़ सौ कैदी और उनके लिए चार से छह टॉयलेट। तो लाइन में लगना होता है। फ्रेश होने के लिए यूजुअली मैं तीसरे से चौथे नंबर पर रहता हूं। फिर इंतजार करिए कि दूसरा कब निकले- कितनी बार में वो अपना शिट/एस साफ कर रहा। जैसे जैसे अपना नंबर करीब आता है, पेट में दर्द बढ़ता जाता है। आखिर में जब आप टॉयलेट में घुसते हैं, तो वहां पर इतने मच्छर और मक्खियां और इतनी गंदी स्मेल कि कभी-कभी मुझे वहां बैठने से पहले ही उल्टी हो जाती है।

बहरहाल, मक्खियां-मच्छर भगाते रहो और किसी तरह से फारिग होकर बाहर भागो। फिर हाथ अच्छी तरह से धोकर ब्रश करता हूं और नहाने के लिए लाइन में लग जाता हूं। यूजुअली आधे घंटे में नंबर आ जाता है। खुले में ही 3-4 टैप लगे हैं। फर्श धोकर पहले कपड़े धोता हूं, फिर नहाता हूं। साढ़े सात-आठ बजे के करीब दलिया या चना आता है, उसके लिए फिर से लाइन में लगना होता है। वही नाश्ता होता है। फिर टहलता हूं, लेकिन आजकल इतनी कड़ी धूप और गर्मी से दस-पंद्रह मिनट में ही पसीने से भीग जाता हूं तो बनियान और शॉर्ट्स में ही टैप के नीचे बैठ जाता हूं।

यहां एक कंबल पर चादर बिछाकर छोटी सी जो जगह आपको मिली है, वहां पर झाड़ू-पोछा करके बेड बनाया जाता है। टैप के नीचे से भीगकर वापस अपनी इसी जगह पर आकर बैठ जाता हूं। चूंकि भीड़ बहुत होती है तो लोग सट-सटकर सोते हैं। सोशल डिस्टेंसिंग तो भूल ही जाओ। लाइट अक्सर चली जाती है तो मैं तो हर आधे-एक घंट पर अपने आपको भिगोकर आ जाता हूं। इसकी वजह से पूरे बदन में घमौरियां निकल आई हैं और बदन जलता है। फिर लाखों लाख मक्खियां आपके ऊपर मंडराती रहती हैं। आप भगाते रहो और अगर पांच-दस मिनट के लिए रुक जाओ तो हजारों मक्खियां आपके बदन से चिपक जाएंगी।

11 बजे के करीब लंच आ जाता है, फिर बरतन-थाली धोकर लाइन में लगकर पानी जैसी दाल और कभी फूलगोभी, कभी लौकी, कभी मूली की उबली सब्जी मिलती है। रोटी के लिए अलग से लाइन में लगो। निगलो, क्योंकि यही जीना है- पानी के साथ दो-तीन रोटी ही निगली जाती है। कोरोना की वजह से मुलाकात बंद है, वरना फल आ जाते थे तो उसी से पेट भर लेता था।

12 बजे बैरक फिर बंद हो जाती है। अंदर एक ही टॉयलेट है। बैरक में फिर से सवा सौ-डेढ़ सौ बंदी और लाइट गायब। पसीने से भीगते लोगों की गर्म सांसें और पेशाब-पसीनों की बदबू में वो तीन घंटे का जहन्नुम। नरक से बदतर लगते हैं। पढ़ने की कोशिश करता हूं पर इतना सफोकेशन होता है कि लगता है कि गश खाकर गिर जाऊं। पानी पीता हूं। तीन बजे बैरक खुलते ही सब बाहर भागते हैं, लेकिन पैंतालीस डिग्री का तापमान और सूरज की तपती किरणें आपको बाहर ठहरने नहीं देतीं। दीवार के पास, जहां छाया मिलती है, वहीं खड़े होकर मिनट-मिनट गिनता हूं। जोहर की नमाज फिर से नहाने के बाद ही पढ़ता हूं। पांच बजे के करीब डिनर आ जाता है। लगभग वही कच्ची-पक्की रोटी और सब्जी दाल ऐसी कि बस निगलकर किसी तरह पेट की भूख शांत कर लो। छह बजे फिर बैरक बंद हो जाती है। नहाने के लिए वो भागदौड़ होती है कि दस-दस लोग एक साथ नहाने की कोशिश करते हैं।

बैरक बंद होने के बाद फिर वही सफोकेशन, सोने के लिए फिर से वही जद्दोजहद। मगरिब पढ़ने के बाद नॉवेल लेकर बैठ जाता हूं पढ़ने के लिए, लेकिन यहां इतना ज्यादा सफोकेशन है, कि मैं बता नहीं सकता। और ऐसे में अगर लाइट चली जाती है तो हम पढ़ भी नहीं सकते। यहां इतनी गर्मी होती है कि आप अपने ही पसीने से नहाए रहते हैं। फिर ऊपर से कीड़े और मच्छर पूरी रात आप पर लगातार हमला करते रहते हैं। पूरा माहौल मछली बाजार की तरह लगता है। कोई खांस रहा है, कोई खर्राटे ले रहा है, कोई हवा खारिज कर रहा, कुछ लोग लड़ रहे तो कोई बार बार पेशाब करने जा रहा है।

यूजुअली पूरी रात बैठकर ही गुजारनी होती है। अगर नींद लगी तो पता चला कि किसी का हाथ लग गया या किसी का पैर लग गया तो फिर से टूट जाती है। फिर सुबह के पांच बजने का इंतजार रहता है कि कैसे बाहर निकलें इस जहन्नुम से।

किस बात की सजा मिल रही है मुझे?

क्या अपने बच्चों, बीवी, मां, भाई-बहनों के पास जा पाऊंगा? क्या कोरोना की लड़ाई में अपना योगदान दे पाऊंगा?’ चिट्ठी के नीचे डॉ. कफील का हस्ताक्षर है।

तो ये थी उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार की जनविरोधी नीतियों का शिकार बने डॉ कफील खान की वह चिट्ठी, जिसे मथुरा जेल से लिखा बताया जा रहा है। इस चिट्ठी को डॉ. कफील खान के ऑफिशियल पेज से तीन जुलाई 2020 को रिलीज किया गया है। डॉ कफील के बारे में छह जुलाई को भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर रावण ने ट्वीट करके कहा था कि, ‘मासूमों की जान बचाने वाले जिस डॉ. कफ़ील पर देश को फ़क्र है, योगी जी उसे राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा मानते हैं। CAA, NRC का विरोध करना उनका गुनाह है या संविधान की वकालत करना या फिर एक मुसलमान होना?’

भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर रावण ने अगले ट्वीट में यह भी कहा, ‘राजनीति में वैचारिक मतभेद होना लोकतंत्र की मजबूती होती है, लेकिन योगी सरकार ने राजनीतिक रंजिश के चलते आजम खान जी को जेल में कैद किया हुआ है। सरकार अपनी साम्प्रदायिक सोच से बाहर निकले और उन्हें रिहा करे। मत भूलिए कि सरकारें बदलती रहती है।’ जनसत्ता में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक आठ जुलाई को फिर डॉ. कफील खान का एक वीडियो आया, जिसे कथित रूप से जेल से आया हुआ वीडियो बताया जा रहा है, उसमें डॉ कफील यह कहते हुए नजर आते हैं कि मेरे परिवार को डर है कि पुलिस मुझे एनकाउंटर बताकर ना मार दे कि मैं भाग रहा था। या ऐसा दिखाया जाएगा कि मैंने आत्महत्या कर ली। इस वीडियो में डॉ कफील ने यह भी कहा कि मैं बुजदिल नहीं हूं कि सुसाइड कर लूंगा। मैं सुसाइड नहीं करूंगा। मैं यहां से भागने वाला भी नहीं हूं। हो सकता है कि पुलिस मुझे मार दे। आपको बता दें कि यूपी की बीजेपी सरकार डॉ. कफील खान पर फरवरी में एनएसए लगा चुकी है।

डॉ. कफील खान पर 12 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान भड़काऊ भाषण देने का आरोप है। यूपी एसटीएफ ने डॉ. कफील को जनवरी में मुंबई से गिरफ्तार किया था। डॉ. कफील खान को गिरफ्तार करने के लिए यूपी एसटीएफ लगाने पर सवाल भी उठे थे, हालांकि उस समय पुलिस का कहना था कि न्यायिक प्रक्रिया के तहत डॉ. कफील खान की गिरफ्तारी हुई है। पुलिस के मुताबिक डॉ. कफील को हेट स्पीच की वजह से गिरफ्तार किया गया था। यूपी एसटीएफ ने जब डॉ. कफील को गिरफ्तार किया था, तब डॉ कफील खान ने कहा था, कि उन्हें गोरखपुर के बच्चों की मौत के मामले में क्लीन चिट दे दी गई थी। अब उनको फिर से आरोपी बनाने की कोशिश की जा कर रही है। वे महाराष्ट्र सरकार से अनुरोध करते हैं कि उन्हें महाराष्ट्र में रहने दे। उनको उत्तर प्रदेश पुलिस पर भरोसा नहीं है।’

(राइजिंग राहुल की रिपोर्ट।)

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