मेरी रूस यात्रा-1: संस्कृति और इतिहास संजोयी धरती का दर्शन

सोवियत संघ को देखने की तमन्ना अधूरी रह जाने के बावजूद, रूस को देखने की चाह बहुत दिनों से थी। मन के कोने-अतरे में यह सोच उमड़ती कि शायद इतिहास के अवशेषों से धरती पर स्थापित पहली समाजवादी सत्ता को समझने में मदद मिलेगी। बस इसी चाह में हम सपरिवार, एक साथी परिवार के साथ निकल पड़े थे। हम दिल्ली से मॉस्को और मॉस्को से सेंट पीटर्सबर्ग की लगभग आठ घंटे की यात्रा के बाद 13 सितम्बर 2021 को रूसी धरती पर थे। दिल्ली से मॉस्कों की सीधी उड़ान है जो साढ़े छः घंटे का समय लेती है। वहां से सेंट पीटर्सबर्ग की डेढ़ घंटे की उड़ान।

मैंने जिस ट्रैवल कंपनी के माध्यम से इस यात्रा की रूपरेखा बनाई थी, उसे अपनी प्राथमिकताएं बता दी थीं। इसलिए हवाई अड्डे पर इतिहास के जानकार, स्थानीय गाइड मार्क गुडकिन और कंपनी के मैनेजर स्टानिस्लॉव डिकोव लेने आए हुए थे। दिल्ली के गर्म मौसम की जगह, हम ठंडे मौसम में पहुंच चुके थे इसलिए शरीर पर जैकेट डाल लिया गया था। होटल तक की यात्रा में महमारे गाइड द्वारा अगले दिन के भ्रमण की रूपरेखा समझा दिया गया था। मार्क ने सुबह 10 बजे, पैदल भ्रमण हेतु तैयार होकर लॉबी में मिलने को कहा। पूरे यूरोप में पैदल भ्रमण का जबरदस्त प्रचलन है। ‘वॉकिंग टूर’हर यूरोपीय शहरों में आम है। शहरों का बेहतर प्रबंधन, सीधी, चैराहों में मिलतीं चौड़ी सड़कें, पैदल यात्रियों के लिए चौड़ा पैदल पथ और सड़कों को पार करने के लिए उम्दा पैदल-पारपथ की व्यवस्था, पैदल भ्रमण को सुविधाजनक और सम्मानजनक बना देती है।

सेंट पीटर्सबर्ग एक ऐतिहासिक शहर और रूस का सांस्कृतिक केन्द्र है। यह लगभग दौ सौ वर्षों तक जारशाही का केन्द्र रहा है। इस शाही राजधानी की पहचान, यहां के नायक, पीटर द ग्रेट की घोड़े पर सवार तांबे की मूर्ति है, जिसे हर गाइड बताता, सुनाता है। ज़ार पीटर को रूसी अपना महान नायक मानते हैं और उसकी विद्वता, दूरदर्शिता और युद्ध विजयों को सुनाते हुए गौरवान्वित होते हैं। पीटर द ग्रेट (1696-1725) रोमानोव वंश का शासक था। रूस में इस वंश की सत्ता 1917 तक रही। वह पोत निर्माण और समुद्री यात्रा में विशेष रुचि रखता था। उसने अपनी नौ सेना को मजबूत बनाया था। पीटर ने तुर्कों को परास्त कर काले सागर के अजोव बन्दरगाह पर अधिकार किया तथा 27 मई 1703 को स्वीडन के चार्ल्स बारहवें को पराजित कर उसके किले पर कब्जा कर लिया जिससे रूस की सीमा बाल्टिक सागर तक जा पहुंची। उसके बाद पीटर द ग्रेट ने बाल्टिक सागर तट पर सेंट पीटर्सबर्ग की नींव रखी।

पीटर द ग्रेट, खुले विचारों का शासक था। उसने परंपरागत रूसी परिधान की जगह पाश्चात्य कपड़े पहनने का आदेश जारी किया। दाढ़ी कटवाने, धूम्रपान करने, स्त्रियों को सार्वजनिक जीवन में हिस्सा लेने आदि की अनुमति दी। उसका बेटा पॉल, उसके इन सुधारों को पसंद नहीं करता था। पीटर को आशंका हुई कि कहीं उसके बाद उसका बेटा, उसके सुधारों को पलट न दे, इसलिए उसने बेटे की हत्या करा दी।
सेंट पीटर्सबर्ग, 1713 से 1918 तक रूस की राजधानी रहा। इस बीच, मात्र थोड़े समय के लिए, रूस की राजधानी 1728 से 1730 तक मॉस्को में स्थानान्तरित रही। 1917 की अक्तूबर क्रांति के बाद, 1918 में ब्लादिमीर लेनिन ने सुरक्षा की दृष्टि से देश की राजधानी को मॉस्को स्थानान्तरित करने का निर्णय लिया था।

आर्थोडॉक्स कैथेड्रलों में सोने के पानी से की गई पेंटिंग से खूबसूरत लगता सेंट पीटर्सबर्ग, आज रूस का दूसरा सबसे बड़ा गैर राजधानी शहर है, जिसकी जनसंख्या लगभग 55 लाख के आस पास है। आर्थोडॉक्स चर्चों और लगभग 150 भव्य महलों से सजा यह शहर, बाल्टिक सागर की फिनलैंड की खाड़ी और नेवा नदी के तट पर स्थित दुनिया का सबसे बड़ा उत्तरी शहर है। सेंट पीटर्सबर्ग नाम जर्मन भाषा का होने के कारण प्रथम विश्वयुद्ध के प्रारम्भ में इसका नाम पेट्रोग्रैड कर दिया गया था जो 1924 तक इसी नाम से जाना गया। सोवियत संघ के अस्तित्व में आने और 1924 में लेनिन की मृत्यु के बाद, 1924 से 1991 तक, यह शहर लेनिनग्राद के नाम से जाना गया और उसके विघटन के बाद पुनः इसका पुराना नाम बहाल कर दिया गया।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, लेनिनग्राद ने 900-दिवसीय नाजी नाकाबंदी का सामना किया था, जिसके कारण भूख से शहर की आबादी मारी गयी। जो आबादी बची, उसमें बिल्लियों का महत्वपूर्ण योगदान है। सेंट-पीटर्सबर्ग में जगह-जगह बिल्लियों के फ़ोटो और मूर्तियाँ दिख जाती हैं। इसके पीछे एक मार्मिक कहानी है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब जर्मनी, इटली और फ़िनलैंड की सेना ने लेनिनग्राद को घेर लिया और सप्लाई बाधित कर दी थी तब लोगों के खाने की किल्लत हो गयी थी। कुल नौ सौ दिनों (सितम्बर 8, 1941 से जनवरी 27, 1944) तक शहर नाज़ी सेना से घिरा रहा। हिटलर की योजना थी, रूसियों को भूखे-तड़पाकर मारने की और इस शहर को नक़्शे से मिटाने की, लेकिन रूसी जीवट निकले, फिर भी पन्द्रह लाख लोगों की मौत हुई थी। शहर में जितना खाद्यान्न बचा था, उसे रूसी प्रशासन सबका कोटा तय कर बिना भेद-भाव के बांट रहा था।

कुछ माताओं ने आत्महत्या कर ली ताकि बच्चे उनका मांस खा कर बचें, महिलाओं ने कई को अपना दूध पिलाकर बचाने की कोशिश की। कुछ लोग चमड़े के जूते उबालकर खाने लगे थे। उस दौरान वर्तमान रूसी राष्ट्रपति पुतिन का दो वर्षीय बड़ा भाई वीत्या भी भूख से मर गया था। लोगों की लाशें सड़कों, पार्कों में पड़ी मिलती थीं। उसी दौरान शहरवासी जीवन बचाने के लिये बिल्लियों को मार कर खाने लगे। बाद में शहर में बिल्लियाँ नहीं बची और चूहे बढ़ गये। एक तो शहर दुश्मनों से घिरा था, दूसरे सीमित बचे खाद्यान्न को चूहों ने क्षति पहुँचाना शुरू कर दिया, साथ ही चूहों के कारण कई संक्रामक बीमारी फैली। उनसे भी लोग मरने लगे। जैसे ही लेनिनग्राद (सेंट-पीटर्सबर्ग) नाज़ी सेना से आज़ाद हुआ, यहाँ के प्रशासन ने अपने पहले फ़ैसले में तय किया कि यहाँ बिल्लियों को लाकर बसाया जायेगा। तब एक कार्यक्रम के तहत रूस के कई शहरों के कई नस्लों की बिल्लियाँ लायी गयीं। उस युद्ध के दौरान यहां की इमारतों और बुनियादी ढांचे को भी बहुत नुकसान पहुंचाया गया था लेकिन लेनिनग्राद का बहुत जल्द पुनर्निर्माण कर लिया गया।

सेंट पीटर्सबर्ग भ्रमण की शुरुआत का केन्द्र, विंटर पैलेस है जो 1732 से 1917 तक जारशाही सम्राटों का जाड़े का शाही निवास रहा है। पीटर द ग्रेट ने लकड़ी से बनने वाले परंपरागत मकानों के बजाय पत्थर से विंटर पैलेस को बनवाने की योजना बनाई। बाद में, 1730 से 1837 तक कई बार इस भवन का निर्माण हुआ है और इसके स्वरूप में बार-बार परिवर्तन किया गया है। इस भवन के निर्माण में कई वास्तुकारों का हाथ है परन्तु मुख्य रूप से इटली के वास्तुकार बार्टोलोमेयो रास्ट्रेली (1700-1771) ने इसका स्वरूप निर्धारित किया है। इस महल में कई बार आग लगने के कारण 1837 में इसका पुनर्निर्माण किया गया। बाह्य संरचना में कोई परिवर्तन नहीं किया गया मगर आंतरिक संरचना को अलंकरण शैली में सजाया गया। इस महल में 1886 दरवाजे, 1945 खिड़कियां, 1500 कमरे और 117 सीढ़ियां बनी हैं।

खूनी रविवार के नाम से प्रसिद्ध एक घटना का संबंध इस महल से जुड़ता है जब 22 जनवरी 1905 को जॉर्जिया गैपोन के नेतृत्व में निहत्थे लोगों ने विंटर पैलेस पर प्रदर्शन किया था। शाही गार्डों ने प्रदर्शनकारियों का नरसंहार किया था इसलिए इसे खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है। उस घटना के बाद शाही परिवार सेंट पीटर्सबर्ग से 48 किलोमीटर दूर, अलेक्जेंडर पैलेस में चला गया जो त्रास्कोये सोलो नामक शहर में स्थित है। उसके बाद केवल विशेष अवसरों या कार्यक्रमों के समय ही शाही परिवार विंटर पैलेस में आता रहा। फरवरी 1917 की रूसी क्रांति के बाद शाही साम्राज्य का पतन हुआ और निकोलस द्वितीय के भागने के बाद, कुछ समय तक यह पैलेस रशियन प्रोविजनल गवर्नमेंट का केन्द्र रहा, जिसका नेतृत्व प्रसिद्ध वकील, अलेक्जेंडर केरेंस्की ने किया। अक्टूबर क्रांति के फलस्वरूप, 7 नवम्बर 1917 को लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक क्रांतिकारियों ने केरेंस्की को परास्त कर सत्ता अपने हाथ में ले ली और यह पैलेस सोवियत संघ का हिस्सा बना।

विंटर पैलेस की शुरुआत 1711 में पीटर द ग्रेट द्वारा स्विस वास्तुकार डोमनिको ट्रेजिनी के सहयोग से कराया। 1725 में नहर में डूब रहे एक मजदूर को बचाने की वजह से पीटर द ग्रेट को निमोनिया हुआ और उसकी मृत्यु हो गई। पीटर की मृत्यु के बाद उसकी विधवा कैथरिन प्रथम शासक बनी मगर उसकी मृत्यु 1727 में हो गयी। अब उसका पुत्र पीटर द्वितीय गद्दी पर बैठा। स्विस वास्तुकार के निर्देशन में 1728 में वहां तीसरा विंटर पैलेस का काम पूरा हुआ मगर तब शाही न्यायालय सेंट पीटर्सबर्ग से मॉस्को स्थानान्तरित होने से विंटर पैलेस का महत्व कम हो गया। 1730 में पीटर द्वितीय की मृत्यु हो गयी और पीटर द ग्रेट या पीटर प्रथम की भतीजी अन्ना के हाथ में सत्ता आयी। उसके शासन काल में, 1732 में सेंट पीटर्सबर्ग का विंटर पैलेस, शाही निवास का केन्द्र बन गया और 1918 तक रूस की जारशाही की राजधानी बना रहा।

अन्ना ने 1740 तक शासन किया। उसकी मृत्यु के बाद उसका अल्प वयस्क पुत्र जार इवान शासक बना मगर पीटर द ग्रेट की बेटी एलिजाबेथ ने खूनी संघर्ष के बाद सत्ता पर कब्जा कर लिया और 1741 से 1762 तक, अपनी मृत्यु तक शासन किया। उन्होंने अपने भतीजे को पीटर तृतीय के रूप में उत्तराधिकारी घोषित कर रखा था और भतीजे की पत्नी के रूप में जर्मन राजकुमारी सोफी को चुना था। वह शादी सफल न रही। 1762 में सोफी ने पति की हत्या कर सत्ता अपने हाथ में ले ली और कैथरिन द ग्रेट के रूप में विख्यात हुई। उसने विंटर पैलेस से जुड़े तीन बड़े पैलेसों का निर्माण कराया जिन्हें संयुक्त रूप से हर्मिताज कहा गया। उसकी सत्ता मृत्युपर्यंत 1796 तक रही। उसके बाद उसका बेटा पॉल प्रथम गद्दी पर बैठा परन्तु 1801 में उसकी हत्या कर दी गयी और उसके बाद उसका चौबीस वर्षीय बेटा अलेक्जेंडर प्रथम गद्दी पर बैठा। उसने अपने शासन काल में फ्रांसीसी शासक नैपोलियन प्रथम से 1803 से 1815 तक कई युद्ध किए और उसे परास्त किया। उसके बाद नैपोलियन की महारानी की कलाकृतियों से विंटर पैलेस को समृद्ध किया। अलेक्जेंडर प्रथम का उत्तराधिकारी, उसका पुत्र निकोलस प्रथम 1825 में सत्ता संभाला और विंटर पैलेस के वर्तमान कलेवर को उसी के द्वारा संवारा गया है। 1837 में आग से हुए नुकसान के बाद उसने इसका पुनर्निर्माण कराया ।

वर्तमान समय में नेवा नदी के तट की ओर से लेकर, पैलेस स्वॉयर तक हर्मिताज म्यूजियम, अपनी भव्यता और विभिन्न प्रकार की शाही सामग्रियों से लेकर रूसी क्रांति की झलक दिखाता, शहर का केन्द्रीय आकर्षण है। यहां विश्व का सबसे पुरानी और बड़ी आर्ट गैलरी है। कुल छः बड़े भवनों में फैले हर्मिताज की नींव कैथरिन द ग्रेट या कैथरिन द्वितीय ने 1764 में रखी थी और जनता के लिए यह 1852 में खुला। विंटर पैलेस का मुख्य भवन जारशाही के निवास के रूप में इस्तेमाल होता रहा। हर्मिताज में पश्चिम के महान कलाकारों जैसे माइकल एंजेलो, गिआम्बतिस्ता पिटोनी, लियानार्दो दा विंची, पीटर पॉल रूबेन्स, एंथेनी वैन डाइक, रेम्ब्रांट, पॉसिन, क्लाउड लोरेन, वट्टू, टाईपोलो, कैनालेटो, कैनोवा रोडिन, मोनेट, पिसारो, रेनॉयर, वैन गॉग, गाउगिन, पिकासो और मैटिस के कई संग्रह शामिल हैं। जारशाही की भव्यता और सोने की पेंटिग का अद्भुत काम, इस संग्रहालय में देखने को मिलता है। रंगकर्म के मशहूर देवता मेलपोमेन की मूर्ति, तत्कालीन समय में मुखौटों के प्रयोग को दर्शाता है। मेलपोमेन अपने एक हाथ में मुखौटा पकड़े हुए है।

सेंट पीटर्सबर्ग शहर की सुन्दरता को यहां के चौकोर आकार-प्रकार एवं समान ऊंचाई वाले भवन निखार देते हैं। अब नए निर्मित हो रहे भवनों की ऊंचाई बढ़ रही है मगर पहले विंटर पैलेस से ज्यादा ऊंची बिल्डिंग बनाने की अनुमति न थी।
वैसे तो हरर्मिताज को बारीकी से देखने के लिए कई दिन लगेंगे मगर हम लोगों ने इसे एक दिन में ही निबटा दिया।

दूसरे दिन हम सेंट पीटर्सबर्ग के मेट्रो स्टेशन देखने गए। सेट पीटर्सबर्ग का मेट्रो दुनिया का सबसे गहराई में बना मेट्रो है। इसके निर्माण के बारे में बहुत पहले से विचार चल रहा था मगर कार्य 1941 में प्रारम्भ हुआ। धरती से 86 मीटर नीचे बनीं मेट्रो लाइनों और स्टेशनों की वास्तुकारी अद्भुत है। प्रत्येक स्टेशन, भिन्न प्रकार के वास्तुशिल्प से सुशोभित है। उन पर सोवियत संघ में शामिल राज्यों की संस्कृतियों को दर्शाया गया है। लेनिन की मूर्ति भी एक स्टेशन पर लगी है । कभी स्टॉलिन की मूर्ति लगी थी मगर अब उसे हटा दिया गया है। जमीन के अंदर बने मेट्रो का उपयोग द्वितीय विश्वयुद्ध के समय बमबारी से बचने के लिए किया गया था। 15 नवम्बर 1955 को यह अंतिमरूप से चालू हुआ।
मेट्रो स्टेशनों पर बहुत कम सूचनाएं अंग्रेजी में हैं। सब कुछ रूसी में है, जो हम जैसे पर्यटकों को कुछ परेशानी पैदा करता है फिर भी नए लोग अंग्रेजी समझते हैं। वे मदद करते हैं। मेट्रो की सवारी दिल्ली की ही तरह है मगर स्टेशन की घोषणाएं रूसी भाषा में हैं, इसलिए स्टेशन नोट कर रखना उचित होगा।
अगले दिन हम शहर के कुछ मुख्य आर्थोडॉक्स चर्चों को देखते रहे। आर्थोडॉक्स चर्चों की रूस में मजबूत सत्ता रही है। वे रोम के पोप तक को नहीं मानते बल्कि अपने-अपने राष्ट्रीय धर्मसंघ को मानते हैं और परम्परावादी होते हैं। इन चर्चों में आइकॉन का बहुत महत्व होता है।

सेंट पीटर्सबर्ग के भ्रमण में आर्थोडॉक्स कैथड्रल की भरमार है। उनमें स्वर्ण पेंटिंग की सुनहरता, भव्यवता और विशालता, राज प्रसादों जैसी झलक दिखाती है। इन कैथड्रल के निर्माण में अत्याधिक धन व्यय हुआ होगा और जाहिर है बिना शाही सहयोग के ऐसा संभव नहीं होगा। शहर में पचास से अधिक कैथड्रल हैं। सभी को देखने के लिए जितने समय की आवश्यकता होती, वह हमारे पास न थी। मैंने कुछ मुख्य कैथड्रल को ही देखने का निश्चय किया।

शहर के केन्द्र में 102 मीटर ऊंचा सेंट आइजैक कैथेड्रल है जो सेंट पीटर के संरक्षक, डालमटिया के संत इसहाक को समर्पित है और चर्च के संग्रहालय के रूप में जाना जाता है। इसका निर्माण 1858 में पूरा हुआ था। इसके अलावा शहर में ट्रिनिटी कैथड्रल या ट्रॉट्स्की कैथड्रल का निर्माण 1828 से 1835 के बीच वसीली स्टासोव द्वारा डिजाइन कर पूरा किया गया था। चर्च ऑफ द सेवियर ऑन स्पिल्ड ब्लड, आर्थोडॉक्स चर्च है जो वर्तमान में एक धर्मनिरपेक्ष संग्रहालय के रूप में कार्य करता है। इसका निर्माण 1883 और 1907 के बीच किया गया था। यह सेंट पीटर्सबर्ग के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। चर्च उस स्थान पर बनाया गया है, जहां राजनीतिक शून्यवादियों ने 1 मार्च 1881 को सम्राट अलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या कर दी थी। चर्च को अलेक्जेंडर द्वितीय के सम्मान में रोमनोव शाही परिवार द्वारा वित्त पोषित किया गया था।

कज़ान कैथेड्रल या कज़ांस्की काफ़ेद्रलनी सोबोर, जिसे कैथेड्रल ऑफ लेडी ऑफ़ कज़ान के रूप में भी जाना जाता है, मुख्य आकर्षणों में से एक है। यह लेडी ऑफ कज़ान को समर्पित है, जो रूस में सबसे सम्मानित प्रतीकों में से एक है।
अगले दिन हमने अपने भ्रमण कार्यक्रम में परिवर्तन कर, नेशनल लाइब्रेरी ऑफ रसिया देखने गए। हमारे गाइड मार्क ने पुस्तकालाध्यक्ष से बात की और कुछ औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद देखने की अनुमति मिली। पुस्तकालय दिखाने के लिए साथ में पुस्तकालयाध्यक्ष फियोडोर थे और उन्होंने विस्तार से इस पुस्तकालय के बारे में बताया जो रूस का सबसे पुराना पुस्तकालय है। इसकी स्थापना कैथरिन द ग्रेट ने 1795 में की थी और इसका नाम था-इम्पीरीयल पब्लिक लायब्रेरी रखा गया था। बोल्शेविक क्रांति के बाद 1917 से 1925 तक इस पुस्तकालय का नाम रसिया पब्लिक लाइब्रेरी रहा। 1925 से 1992 तक, यानी सोवियत संघ के विघटन तक इसका नाम स्टेट पब्लिक लाइब्रेरी रहा। उसके बाद इसका वर्तमान नाम नेशनल लाइब्रेरी आफ रसिया पड़ा। इस पुस्तकालय का नाम दुनिया के सबसे समृद्ध पुस्तकालयों में से एक है। इस पुस्तकालय में पांडुलिपियों का समृद्ध संग्रह है। यहां प्राचीन अंग्रेजी जाति की, ओस्ट्रोमिर गॉस्पेल, की दूसरी सबसे पुरानी पूर्वी स्लाव पुस्तक, कोडेक्स ज़ोग्राफेनिस की एक पांडुलिपि और वॉल्टेयर के व्यक्तिगत संग्रह मौजूद हैं।

1849 से 1861 तक पुस्तकालय का प्रबंधन काउंट मोडेस्ट वॉन कोरफ (1800-76) द्वारा किया गया था, जो लिसेयुम में अलेक्जेंडर पुश्किन के स्कूल-साथी थे। कोर्फ और उनके उत्तराधिकारी, इवान डेल्यानोव ने पुस्तकालय के संग्रह में न्यू टेस्टामेंट, ओल्ड टेस्टामेंट और सबसे पुराने कुरान की पाण्डुलिपियों में से एक को जोड़ा (7वीं शताब्दी के मध्य का उस्मान कुरान)।

यहां प्रतिदिन ग्यारह हजार से ज्यादा सामग्री आवंटित की जाती हैं या डाउनलोड होती हैं। पुस्तकालय में कुल 40 मिलियन सामग्री है। छपाई के खोज की शुरुआत 1456 के साथ ही 1600 के आसपास की एक पुस्तक इंडिया के बारे में भी है। इस पुस्तकालय के कई पुस्तकालयाध्यक्ष, श्रेष्ठ वैज्ञानिक और लेखक रहे हैं। इतने समृद्ध पुस्तकालय को देख कर मन हर्षित हो गया। हर कक्ष के कर्मचारी, बहुत ही रुचि और नम्रता से संग्रहों के बारे में जानकारी दे रहे थे। यहां पढ़ने के दो हाल, आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित हैं।

(सुभाष चंद्र कुशवाहा साहित्यकार और इतिहासकार हैं रूस की यात्रा से लौटकर उन्होंने यह संस्मरण लिखा है।)

जारी……

सुभाष चंद्र कुशवाहा
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