जनता के सम्मान को कभी गिरने नहीं दूंगा: माले विधायक अमरजीत कुशवाहा

राजनीति के अपराधीकरण व सामंती उत्पीड़न के खिलाफ बुलंद होती आवाज़ की जब-जब बात होती रही, तब-तब बिहार के लोगों में अनायास देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ। राजेंद्र प्रसाद के पैतृक जिले सीवान व मातृभूमि जीरादेई का नाम आता रहा है। तकरीबन ढाई दशक तक चले इस सिलसिले में जेएनयू छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष चंद्रशेखर की हत्या ने जिले को कुछ पल के लिये अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर ला खड़ा किया था। एक ओर गरीबों के अधिकार व सम्मान के लिये संघर्षरत भाकपा माले व दूसरी तरफ सामंती ताकतों के लिये सुरक्षा कवच बनकर खड़े आरजेडी के कद्दावर नेता व तत्कालीन सांसद मो। शहाबुद्दीन के बीच टकराव की सैकड़ों घटनाएं हुईं। जिसका नतीजा रहा कि जीरादेई क्षेत्र की धरती बार-बार रक्तरंजित होती रही।

इन्हीं घटनाओं की चपेट में कभी जनता तो कभी नेता दोनों आते रहे। उसी जमात में जीरादेई का एक और शख्स आ गया। नाम है अमरजीत कुशवाहा। गोरखपुर विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद किसी निजी जिंदगी के सपने को पूरा करने के लिए किसी नौकरी में जाने या फिर पैसा हासिल करने के लिए किसी व्यवसाय के रास्ते पर बढ़ने की जगह उन्होंने संघर्ष के रास्ते को चुना। और उतर गए सीवान के धधकते खेतों और खलिहानों में। और फिर यहीं राजेंद्र प्रसाद की धरती से अपराधी-माफियाओं को खत्म कर जनता की सत्ता को स्थापित करने का संकल्प लिया। लेकिन यह रास्ता इतना आसान नहीं था। इसमें अगर जान जाने का खतरा था तो शत्रुओं की साजिश का बड़ा मकड़जाल भी था। अमरजीत एक दौर तक इन सबका जनता की ताकत के बल पर मुकाबला करते रहे। लेकिन इसी बीच दुश्मन अपनी साजिश में सफल हो गए। और इलाके में हुई एक हिंसक घटना में उनका नाम शामिल करवाने में कामयाब हो गए। नतीजतन वह पांच साल तक जेल की सींखचों के पीछे रहते हुए जनता के संघर्षों के नायक बने रहे। उनके खिलाफ बरते जा रहे अन्याय का ही नतीजा था कि वह जेल से ही चुनाव लड़े और जीते। और फिर जनता के प्यार और उसके द्वारा पैदा किया गया लोकतांत्रिक दबाव ही था जिससे उन्हें जमानत मिली।

परिवार के सदस्यों के साथ।

हालांकि निजाम बदला तो राज्य सहित जिले की राजनीति भी बदल गयी। भाकपा माले का मानना है कि वे सामंती ताकतें अब सीधे सत्ता का ही हिस्सेदार बन गयी हैं। अब लड़ाई सांप्रदायिक व फासीवादी ताकतों से है। ये ताकतें पूर्व में अन्य को मोहरा बनाकर अपने लोकतंत्र विरोधी एजेंडे पर लगी थीं। बिहार की जनता के सामने अब उनका चेहरा लोकतंत्र व संविधान विरोधी के रूप में सामने आ गया है। उसका कहना है कि अब लड़ाई क्षेत्र के विकास के साथ ही लोकतंत्र व संविधान बचाने की है। इन सब जुड़े तमाम सवालों को लेकर जनचौक के वरिष्ठ संवाददाता जितेंद्र उपाध्याय ने इंकलाबी नौजवान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व जीरादेई के विधायक अमरजीत कुशवाहा से विस्तार से बात की। आपको बता दें कि अमरजीत जेल में रहते हुए सर्वाधिक अंतर से चुनाव जीते हैं। वे जेल में पांच वर्ष छह माह की लंबी अवधि तक एक गोली कांड में आरोपित रहने के चलते बंद रहे। हाल ही में नियमित जमानत पर बाहर आये हैं। उनसे वार्ता का प्रस्तुत है प्रमुख अंश:

सवाल: लंबे समय तक जेल में रहने के बाद भी लोगों ने आप पर विश्वास जताया, आप इसे किस रूप में देखते हैं?

अमरजीत कुशवाहा: जेल में रहने के बावजूद लोगों ने विकास की उम्मीद के साथ हमें जीत का आर्शीवाद दिया है। इसके लिये विधानसभा क्षेत्र के समस्त मतदाताओं के प्रति शुक्रगुजार हूं। हमारी पार्टी व महागठबंधन के सभी कार्यकर्ताओं ने चुनाव को एक अभियान के रूप में लेते हुए जीत दिलायी। उनका तहे दिल से स्वागत करता हूं तथा यह वादा है कि उनके सम्मान को कभी गिरने नहीं दूंगा। हमारी जीत में क्षेत्र के युवाओं का सबसे बड़ा योगदान है।

सवाल- विधानसभा क्षेत्र जीरादेई के विकास को लेकर आपका रोड मैप क्या है?

अमरजीत कुशवाहा: वर्ष 2015 के चुनाव में हमने जिन सवालों को हल करने का वादा किया था, उस संकल्प को आगे बढ़ाऊंगा। उस चुनाव में काफी कम अंतर से हमे हार का सामना करना पड़ा था। अब लोगों ने प्रतिनिधित्व दिया है तो उन वादों को पूरा करूंगा। शिक्षा का सवाल, युवा पीढ़ी का खेल व संस्कृति से जुड़ा सवाल हमारे एजेंडे में है। प्रत्येक प्रखंड में स्टेडियम की स्थापना को लेकर जीरादेई व मैरवा में खोले जाने की मांग हमने सदन में उठायी है। नहरों के निर्माण व जीर्णोद्धार के साथ हर खेत तक पानी पहुंचाने की पहल करूंगा। शिक्षा के अधिकार के तहत प्राइवेट स्कूलों में 25 फीसदी गरीबों के बच्चों का दाखिला सुनिश्चित कराऊंगा। झोपड़ी युक्त आवास से मुक्ति दिलाकर समस्त गरीबों को पक्का मकान उपलब्ध कराने के लिये सरकार व प्रशासन के समक्ष संघर्ष करूंगा। नीतीश कुमार सरकार द्वारा गठित बंद्योपाध्याय आयोग की रिपोर्ट लागू करते हुए सरकारी जमीनों से दबंगों का कब्जा समाप्त कर भूमिहीनों के नाम आवंटित करने की मांग व इसके लिये निर्णायक संघर्ष किया जायेगा। दलित बस्तियों सहित अन्य गांवों को संपर्क मार्ग से जोड़ने की योजना हमारी प्राथमिकता में है। 

सवाल: सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई में शहादत देने वालों के सम्मान में आपकी क्या वचनबद्धता होगी?

अमरजीत कुशवाहा: आजादी के आंदोलन मे शहीद हुए उमाकांत सिंह के पैतृक गांव नरेंद्रपुर में स्मारक स्थल का विस्तार करने की योजना है। साथ ही सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई में शहीद हुए साथियों के गांव में स्मारक स्थल का निर्माण कराया जायेगा। इसके तहत शहीद श्यामनारायण यादव के गांव ठेपहां में उनकी प्रतिमा स्थापना की योजना है।    

सवाल: भाजपा की योजना के तहत सीवान के तत्कालीन सांसद ओम प्रकाश यादव ने जीरादेई गांव को गोद लिया था, उनके द्वारा किए गये विकास की क्या स्थिति है?

अमरजीत कुशवाहा: जीरादेई गांव में विकास के नाम पर एक ईंट तक नहीं रखी गयी। प्रथम राष्ट्रपति का निवास पुरातत्व विभाग के संरक्षण में रहने के चलते कोई निर्माण बिना अनुमति नहीं करने की बात की जाती है। यहां के लोग अपने गृह निर्माण करने से भी वंचित हैं। ये मजबूरी में पुलिस व प्रशासन की खुशामद कर निर्माण कराते हैं। पुरातत्व विभाग के मौजूदा प्रावधान को शिथिल कराते हुए विकास की गति को तेज करूंगा।

सवाल: पांच वर्ष छह माह जिस गोलीकांड में आप जेल में रहे, उस घटना से आपका क्या वास्ता रहा है?

अमरजीत कुशवाहा: वर्ष 2013 में गुठनी क्षेत्र के चिल्हमरवा में गोलीकांड हुआ था। गांव के गरीब दस वर्षों से सरकारी जमीन पर स्थाई कब्जा को लेकर संघर्षरत थे। प्रतीकात्मक रूप से उस पर उनकी झोपड़ियां भी थीं। उसे उजाड़ने के लिये दरौली के तत्कालीन विधायक रामायण मांझी व उनके साथ गुंडा वाहिनी ने एक साथ हमला बोल दिया। लेकिन ग्रामीणों ने उन्हें सफलतापूर्वक खदेड़ दिया। परंतु दूसरी बार हथियारों से लैस अपराधियों ने ग्रामीणों पर हमला बोला। इस घटना के दौरान मैं जिला मुख्यालय पर कलक्ट्रेट के सामने धरने पर था। यह बातें समाचारपत्र व इलेक्ट्रानिक चैनलों के माध्यम से सामने आ चुकी है। लेकिन राजनीतिक प्रतिशोध में विधायक सत्यदेव राम व मेरा नाम फर्जी मुकदमे में फंसाया गया। इसको लेकर मैंने व मेरी पार्टी ने कई बार न्यायिक जांच की मांग एसपी, डीजीपी से लेकर मुख्यमंत्री तक से की। उस समय के फोन लोकेशन की जांच कराने की बात भी हमने कही थी। उसे अनसुना कर दिया गया। हमें न्यायालय पर विश्वास है। आज जमानत मिली है कल दोषमुक्त साबित होंगे।

सवाल: चिल्हमरवा गोलीकांड के रूप में आप राज्य के कई जेलों में बंद रहे, बिहार में कारागारों की क्या स्थिति है?

अमरजीत कुशवाहा: आजादी के 70 दशक बाद भी अंग्रेजों का जेल मैनुअल चला आ रहा है। इसमें कुछ आंशिक सुधार कर अब इसे सुधारगृह कहा जा रहा है। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। शहीद जुब्बा साहनी केंद्रीय कारागार भागलपुर में सात माह, आदर्श कारा बेऊर में आठ माह व शेष अवधि में मंडल कारा सीवान में मैं बंद रहा। आज भी बंदियों के साथ अंग्रेजी हुकूमत की तरह व्यवहार किया जाता है। बंदी अपने अधिकार की बात करते हैं तो उन्हें अन्य जिलों के कारागार में भेज दिया जाता है। ऐसे में बंदी से मिलने में परिवार जनों को परेशानियों का समाना करना पड़ता है। जिसके चलते मजबूरी में बंदी जुल्म सहते रहते हैं। मंडलकारा में एक कैदी के इलाज के अभाव में मौत होने पर हमने तीन दिनों तक आंदोलन चलाया। इस घटना का विरोध सीवान की सड़कों पर भी हुआ। तीन दिनों तक जेल का चूल्हा नहीं जला। आखिरकार जेल प्रशासन मुझ सहित 14 बंदियों को केंद्रीय कारागार भागलपुर भेज दिया। सेंट्रल जेल भागलपुर व बेउर में शरीर से आसहाय बड़ी संख्या में कैदी लंबे समय से  बंद हैं। जिन्हें पेरोल पर रिहा किया जा सकता है। उनके कार्य व्यवहार पर जेल अधीक्षक की रिपोर्ट को आधार बनाकर रिहाई का प्रावधान होना चाहिए। कोरोना काल में सोशल डिस्टेंसिंग के पालन के लिए प्रोविजनल बेल पर जमानत का आदेश माननीय उच्चतम न्यायलय ने दिया था। लेकिन इसका पालन बिहार के किसी जेल में नहीं हुआ। जेलों में क्षमता से 60 फीसदी अधिक बंदी पड़े हैं।

सवाल: छात्र जीवन में आपका वामपंथी राजनीत से जुड़ाव कैसे हुआ?

अमरजीत कुशवाहा: मैं विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूं। विज्ञान और आध्यात्म के बीच के अंतर्द्वंद्व ने हमें वामपंथ के साथ खड़ा किया। साथ ही जुल्म व अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने की इच्छा छात्र जीवन से ही रही। लिहाजा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर विश्वविद्यालय के अंगीभूत कॉलेज मदन मोहन मालवीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय भाटपार रानी में दाखिला के दौरान ही आइसा से जुड़ गया। इससे जुड़कर गोरखपुर व देवरिया में संगठन का काम किया। संगठन से जुड़ाव का वह दौर था, जब भगवा उभार के खिलाफ बीएचयू, जेएनयू, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, गढ़वाल विश्वविद्यालय ने आइसा संगठन के पक्ष में छात्र खड़े हो रहे थे। इन विश्वविद्यालयों के छात्र संघ में आइसा ने अपना परचम लहराया था। इसका प्रभाव हम पर सर्वाधिक पड़ा। उधर सामंती उत्पीड़न से मेरा गांव व इलाका भी प्रभावित था। ऐसे में छात्र जीवन के बाद मैं भाकपा माले से जुड़ गया। हालांकि मां-बाप के इकलौता बेटा होने के नाते व निम्न मध्यमवर्गीय पारिवारिक आधार के चलते बहुत कठिनाइयां भी आयीं। इन सबके बीच से हमने न्याय का रास्ता चुना। इस रास्ते पर ही आगे चलकर जुल्म व ज्यादती के खिलाफ संघर्ष जारी रखूंगा।

जनचौक संवाददाता जितेंद्र उपाध्याय के साथ।

सवाल: आरजेडी व भाकपा माले के तल्ख रिश्तों के बाद अब आप दोनों महागठबंधन का हिस्सा हैं। यह रिश्ता कब तक चलेगा?

अमरजीत कुशवाहा: बदलते समय के साथ राजनीत की मांग भी बढ़ी है। आरजेडी का सामंती ताकतों ने इस्तेमाल किया। आज उनके बीच यह तस्वीर साफ हो चुकी है। ऐसे में आरजेडी व भाकपा माले दोनों के लिये पहली लड़ाई संविधान व लोकतंत्र बचाने की है। सांप्रदायिक व फासीवादी ताकतों को शिकस्त देने की है। हमारे जन आंदोलनों के बदौलत सामंती ताकतें अब पीछे हटी हैं। लेकिन हमारा संघर्ष खत्म नहीं हुआ है। विकास के लिए व जुल्म ज्यादती के खिलाफ संघर्ष जारी रहेगा।

जितेंद्र उपाध्याय
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जितेंद्र उपाध्याय