नये ऊर्जा अध्यादेश के जरिए संघीय ढांचे पर नये हमले की तैयारी में मोदी सरकार!

कृषि अध्यादेश-2020 के जरिए संघीय ढांचे को भोथरा करने की कवायद करने वाली नरेंद्र मोदी सरकार अब ऊर्जा क्षेत्र में आमूल बदलाव की आड़ में संघवाद पर नया हमला करने की तैयारी में है। गौरतलब है कि संसद के आगामी सत्र में बिजली संशोधन बिल-2020 लाया जा रहा है। इसके तहत बिजली कानून-2003 रद्द कर दिया जाएगा और राज्यों के अधिकारों पर कुठाराघात करता हुआ नया कानून लागू किया जाएगा।

नए प्रस्तावित बिजली कानून के जरिए राज्यों से बिजली क्षेत्र के अधिकार छीन लिए जाएंगे, वहीं पंजाब में खेती-मोटरों के बिल खुद किसान अदा करेंगे। यानी किसानों की मुश्किलें भी बढ़ेंगी। सरकार सब्सिडी सीधे किसानों के खातों में डालेगी। पंजाब सरकार ने कुछ समय पहले सब्सिडी सीधे किसानों के खातों में डालने की केंद्रीय तजवीज को रद्द किया था लेकिन नया बिजली संशोधन बिल पारित तथा लागू होने की सूरत में सूबा सरकार के पास कोई दूसरी राह नहीं बचेगी।           

विशेषज्ञों के मुताबिक अगर सब्सिडी बावक्त किसानों के खातों में नहीं पहुंची तो पावरकॉम बिजली कनेक्शन काटने का रास्ता अख्तियार करेगा। केंद्र का कहना है कि सब्सिडी में देरी होने पर कनेक्शन नहीं काटा जाएगा। नये ऊर्जा अध्यादेश-2020 में प्रावधान है कि बिजली रेगुलेटरी कमीशन का गठन अब केंद्र सरकार करेगी। जबकि पहले राज्य सरकारें सदस्यों और चेयरमैन का चयन करती थीं। सदस्यों और चेयरमैन की नामजदगी के लिए बनाई गई कमेटी में राज्यों का प्रतिनिधित्व तक खत्म हो जाएगा। सब कुछ केंद्र के हाथों में रहेगा। प्रस्तावित ऊर्जा अध्यादेश-2020 के अनुसार केंद्रीय चयन कमेटी की अगुआई सुप्रीम कोर्ट के कोई एक मौजूदा जज करेंगे। जिक्र-ए-खास है कि पहले हर राज्य में राज्य सरकार द्वारा तय चयन कमेटी बनती थी और अब तमाम सूबों के लिए एक केंद्रीय कमेटी बनेगी।

केंद्रीय बिजली मंत्री आर के सिंह साफ कह चुके हैं कि अगले सेशन में ऊर्जा अध्यादेश-2003 को निरस्त करने वाला नया अध्यादेश रखा जाएगा। आशंका है कि जिस मानिंद नरेंद्र मोदी सरकार ने आनन-फानन में बगैर लोकसभा और राज्यसभा में रखे कृषि अध्यादेश-2020 पारित कर दिया, उसी तरह प्रस्तावित ऊर्जा अध्यादेश-2020 भी पिछले दरवाजे से पारित न कर दिया जाए। नए संशोधन बिल में यह प्रावधान भी है कि केंद्र सरकार नई इलेक्ट्रिसिटी कॉन्ट्रैक्ट एनफोर्समेंट अथॉरिटी का गठन करेगी, जिसकी निगरानी हाईकोर्ट के सेवा मुक्त जज करेंगे।

गौरतलब है कि नहीं अध्यादेश में प्राइवेट बिजली कंपनियों को जबरदस्त मुनाफा देने के कई रास्ते खुले रखे गए हैं। विवाद खड़ा होने की सूरत में निजी बिजली कंपनियां पहले राज्य सरकारों तक पहुंच करती थीं, अब निपटारा नई एनफोर्समेंट अथॉरिटी करेगी यानी किसी भी राज्य सरकार की किसी किस्म की कोई भूमिका नहीं रहेगी। यानी प्राइवेट पावर कंपनियों पर राज्यों का रत्ती भर भी नियंत्रण नहीं रहेगा।                    

मौजूदा वक्त में स्टेट पावर कॉम ‘क्लीन एनर्जी’ की केंद्रीय शर्त के तहत सौर ऊर्जा और गैर सौर ऊर्जा अपने तईं खरीदता है लेकिन नया ऑर्डिनेंस लागू होने के बाद हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से कम से कम एक प्रतिशत बिजली खरीदना अपरिहार्य होगा। पंजाब के हाइड्रो प्रोजेक्ट रणजीत सागर डैम और भाखड़ा डैम को इससे बाहर रखा गया है। ऊर्जा अध्यादेश-2020 में क्रॉस सब्सिडी घटाने की बात रखी गई है जो कि पंजाब में फिलवक्त 20 फ़ीसदी तक है।

राज्य में बड़े लोड वाले खपतकारों के लिए मूल्य स्लैब अलग-अलग हैं। क्रॉस सब्सिडी खत्म होने की सूरत में हर वर्ग को एक भाव में बिजली मिलेगी। नया अध्यादेश बिजली निजीकरण के तमाम रास्ते आसानी से खोलता है और जगजाहिर है कि आज के दिन भाजपा समर्थक बड़े औद्योगिक घरानों का प्राइवेट बिजली कंपनियों पर एकमुश्त कब्जा है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इन्हीं के फायदे के लिए नया ऑर्डिनेंस लाया जा रहा है। राज्यों के अधिकार हड़पने की साजिश तो है!                                                   

पंजाब इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड इंजीनियर एसोसिएशन के अध्यक्ष जसवीर सिंह धीमान कहते हैं कि नया बिजली अध्यादेश लागू करने से पहले राष्ट्रीय स्तर पर बहस होनी चाहिए क्योंकि यह राज्यों के अधिकारों में खुला हस्तक्षेप है। वह जोर देकर कहते हैं कि नया अध्यादेश ऊर्जा क्षेत्र को पूरी तरह से निजी हाथों में सौंपने की बड़ी तैयारी है और पंजाब के लोग तो पहले से ही पिछली अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के बिजली समझौतों का नागवार खामियाजा भुगत रहे हैं।                      

बहरहाल, पंजाब में जैसे कृषि अध्यादेश-2020 का चौतरफा तीखा विरोध हो रहा है, तय है कि नए बिजली ऑर्डिनेंस का भी जोरदार विरोध होगा।

(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक सिंह की रिपोर्ट।)

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