उत्तराखंड: टनल में फंसे मजदूरों तक 24 घंटे बाद भी नहीं पहुंची मदद

देहरादून। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री मार्ग में निर्माणाधीन टनल के ढहने से पिछले 24 घंटे से ज्यादा समय से 40 मजदूर फंसे हुए हैं। घटना के बाद से ही मजदूरों तक पहुंचने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन अब तक सफलता नहीं मिल पाई है। यह घटना दीवापली की सुबह 5 बजे के करीब हुई थी। फिलहाल प्रशासन ने टनल के फंसे मजदूरों की सूची के साथ ही एक मोबाइल नंबर भी जारी किया है, लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं हो पाया है।

‘जनचौक’ ने थोड़ी देर पहले जिला प्रशासन के संबंधित अधिकारी ने बात की। अधिकारी ने दावा किया कि सभी मजदूर सकुशल हैं और उनसे वॉकी-टॉकी पर बात हो रही है। मजदूरों ने खाना मांगा था, उन्हें पाइप लाइन के जरिये कुछ चना-चबैना भेजा गया है। यह भी बताया गया है कि पानी के निकासी के लिए टनल के भीतर लगाई गई इसी पाइप लाइन से ऑक्सीजन भी सप्लाई की जा रही है। दावा किया गया है कि मलबा हटाने के साथ ही मजदूरों तक पहुंचने के लिए एस्केप पैसेज बनाया जा रहा है। लेकिन, 24 घंटे बीत जाने के बाद भी यह एस्केप पैसेज तैयार न हो पाना मजदूरों की सुरक्षा को लेकर चिन्ता पैदा कर रहा है।

यह टनल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट कही जा रही चारधान सड़क परियोजना का हिस्सा है। यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर ब्रह्मखाल के नजदीक सिलक्यारा से डंडालगांव के बीच यह टनल बनाई जा रही है। यह इस प्रोजेक्ट की सबसे लंबी टनल बताई जाती है, जिसकी लंबाई 4.5 किमी है। अब तक इस टनल का करीब 4 किमी निर्माण पूरा हो चुका है। टनल का निर्माण नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी कर रही है।

हादसे की सूचना देते हुए उत्तरकाशी पुलिस ने बताया कि घटना 12 नवंबर को सुबह 6 बजे के करीब हुई। उस समय रात की शिफ्ट के मजदूर और कर्मचारी टनल से बाहर आ रहे थे, जबकि दिन के शिफ्ट वाले अंदर जा रहे थे। उसी समय टनल के करीब 270 मीटर अंदर करीब 30 मीटर हिस्सा ढह गया और टनल पूरी तरह से बंद हो गई। शुरू में पुलिस और प्रशासन को यह भी जानकारी नहीं थी कि कितने मजदूर और कंपनी के कर्मचारी सुरंग में फंसे हैं, लेकिन देर शाम 40 लोगों की सूची जारी कर दी गई।

ज्यादातर यूपी-झारखंड के मजदूर

जिला प्रशासन ने टनल में फंसे जिन लोगों की सूची जारी की है, उनमें सबसे ज्यादा 14 मजदूर झारखंड के हैं। उत्तर प्रदेश के 8 लोगों के नाम इस सूची में हैं। इसके अलावा उड़ीसा के 5, बिहार के 4, असम के 3, पश्चिम बंगाल के 3, उत्तराखंड के 2 और हिमाचल प्रदेश के एक व्यक्ति का नाम इस सूची में दर्ज है। यह सूची कंपनी के हाजिरी रजिस्टर के आधार पर तैयार की गई है। लेकिन इस तरह के निर्माणों में बड़ी संख्या में ऐसे मजदूर भी रखे जाते हैं, जिनका लेखा-जोखा नहीं रखा जाता।

7 फरवरी 2021 को ऋषिगंगा में आई बाढ़ के बाद तपोवन-विष्णुगाड हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में इस तरह का मामला सामने आ चुका है। बताया जाता है कि इस तरह के मजदूर कंपनियों के लिए सबसे मफीद साबित होते हैं। पहले तो उन्हें कम मजदूरी दी जाती है और फिर इस तरह के हादसों की स्थिति में कंपनी उनके प्रति जवाबदेह नहीं होती।

प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट कही जाने वाली इस परियोजना में काम कर रहे मजदूरों की सुरक्षा का कितना ध्यान रखा जा रहा है, यह बात सिलक्यारा हादसे ने एक बार फिर साफ कर दी है। सुबह 5 बजे हादसा हो जाने के बाद से लेकर शाम तक प्रशासन के पास राहत कार्य शुरू करने के लिए एक पोकलैंड मशीन के अलावा बाकी कोई साधन नहीं था। पोकलैंड मशीन टनल के मुहाने पर खड़ी थी और इधर-उधर पड़े पत्थरों को तोड़ रही थी, जिसका वास्तव में इस रेस्क्यू ऑपरेशन से कोई सीधा संबंध नहीं था। संकट में फंसे मजदूरों तक पहुंचने के लिए वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन की जरूरत थी।

इतने भारी भरकम काम को करते हुए इस तरह के उपकरणों की कभी भी जरूरत पड़ सकती है, लेकिन इस तरफ न तो नेशनल हाईवे एंड इंन्फ्रॉस्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन ने ध्यान दिया और न ही टनल बना रही कंपनी नवयुग इंजीनियरिंग ने इसकी जरूरत समझी। हादसा हो जाने के बाद जिला प्रशासन विकासनगर और लखवाड़ जैसे दूर के शहरों और कस्बों से वर्टिकल ड्रिलिंग मशीन के लिए संपर्क करता रहा। बाद में उत्तराखंड जल संस्थान की ओर से मशीन भेजी गई। बताया जाता है कि मशीन देर रात घटनास्थल पर पहुंची। इसके बाद ही असल में रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू किया जा सका।

सुरंगें उत्तराखंड के लिए खतरा

उत्तराखंड में हाल के वर्षों में टनल बनाने का काम तेज हुआ है। चारधाम सड़क योजना के लिए कई जगहों पर टनल बनाई जा रही हैं। इसके अलावा ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन का ज्यादातर हिस्सा टनल से ही गुजारा जा रहा है। इस रेल लाइन के ज्यादातर स्टेशन भी धरती का पेट चीरकर ही बनाये जा रहे हैं सभी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए टनल बनाई जाती हैं। जोशीमठ में भूधंसाव की सबसे बड़ी वजह भी तपोवन-विष्णुगाड हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की टनल ही बताई जाती है।

हालांकि 8 सरकारी संस्थानों द्वारा करवाई गई जांचों में इस टनल का कोई जिक्र नहीं है। इसी टनल में फंसकर 7 फरवरी 2021 को दो सौ से ज्यादा मजदूरों की मौत हो गई थी। इसके अलावा राज्य सरकार ने चारधाम यात्रा मार्ग और अन्य भीड़ वाली जगहों पर पार्किंग के लिए भी टनल बनाने की बात कही है। मसूरी का चंबा से जोड़ने के लिए टनल बनाने की योजना को लेकर लगातार विवाद हो रहा है।

पिछले महीने जनचौक ने ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के लिए बनाई जा रही टनलों से प्रभावित कुछ गांवों का दौरा किया था और इन गांवों के मौजूदा हालात पर रिपोर्ट लिखी थी। ऐसे कई गांवों में प्राकृतिक जलस्रोत सूख गए हैं, घर धंस रहे हैं और खेती बर्बाद हो गई है। इसके बावजूद उत्तराखंड सरकार इस तरफ ध्यान नहीं दे रही है। भूवैज्ञानिक डॉ. एसपी सती कहते हैं कि अंधाधुंध सुरंगों का निर्माणा हिमालय रीजन के लिए ठीक नहीं है। अब इन सुरंगों के निर्माण में रोक लगाना जरूरी है। वे कहते हैं कि यदि सुरंगें बनानी जरूरी हों तो वैज्ञानिक जांच और वैज्ञानिक तौर-तरीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। विस्फोटों से टनल बनाने के गंभीर नतीजे सामने आ सकते हैं।

(उत्तराखंड से त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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Bhairav dutt dhyani
Bhairav dutt dhyani
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5 months ago

उत्तराखंड में सुरंग निर्माण शीघ्र प्रतिबंध लगाना आवश्यक है क्योंकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से क्षेत्र को
जमीन खिसकने का खखतरा बना रहता है । और गरीब मजदूरों को अपनी जान से हाथ धोने पड़ रहे हैं । सरकार या कंपनियाँ इन गरीब मजदूरों को बीमा से वंचित रख रखा है । राज्य सरकार निर्माण कंपनियों से लिखितरूप में आश्वासन ले और कम से कम हर मजदूर का एक करोड़ का बीमा करवाये ताकि उनके आश्रितों को उचित मुआवजा मिल सके ।
सरकार इस ओर शीघ्र ध्यान दे और इस दिशा में तुरत कार्यवाही करे ।
भैरव दत्त ध्यानी, सचिव, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, दक्षिण पश्चिम जिला परिषद,दिल्ली
Bhaiirav dutt dhyani
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