झारखंड और केरल में भी अब सीबीआई की नो एंट्री

पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और केरल की राह पर चलते हुए झारखंड की सरकार ने भी सीबीआई को दी हुई सामान्य सहमति वापस ले ली है। अब केंद्रीय जांच एजेंसी को झारखंड में किसी मामले की जांच के लिए जाने से पहले राज्य सरकार से सहमति लेनी होगी। गुरुवार शाम को झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने इस फैसले पर मुहर लगा दी। इससे पहले छत्‍तीसगढ़, महाराष्‍ट्र और राजस्‍थान भी  सामान्‍य सहमति वापस ले चुके हैं। इन राज्‍यों का आरोप है कि बीजेपी शासित केंद्र सरकार, राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसी का दुरुपयोग कर रही है।

झारखंड गुरुवार 5 नवंबर 2020 को देश का ऐसा आठवां राज्‍य बन गया, जिसने राज्‍य में किसी मामले की सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्‍यूरो) जांच के लिए सामान्‍य सहमति को वापस लेने का फैसला किया है। वह विपक्ष के उन खास राज्‍यों में शामिल हो गया है, जिन्‍होंने अपने दरवाजे केंद्रीय जांच एजेंसी के लिए बंद कर दिए हैं। इस कदम के बाद सीबीआई को अब झारखंड में किसी भी मामले की जांच के लिए राज्‍य सरकार की इजाजत लेना जरूरी होगा। केरल राज्‍य द्वारा उठाए गए ऐसे कदम के एक दिन बाद झारखंड का यह फैसला आया है। गौरतलब है कि झारखंड में झामुमो के हेमंत सोरेन के नेतृत्‍व में सरकार है और इसमें कांग्रेस गठबंधन सहयोगी है।

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस शासित बंगाल ने वर्ष 2018 में सामान्‍य सह‍मति वापस ले ली थी। बंगाल की तर्ज पर चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्‍व वाली आंध्र प्रदेश की तत्‍कालीन सरकार ने भी नवंबर 2018 में ऐसा ही फैसला लिया था। एनडीए से हटने के बाद चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार अपने लाभ के लिए जांच एजेंसियों का इस्‍तेमाल कर रही है। हालांकि जगन मोहन रेड्डी के सत्‍ता में आने के बाद आंध्र प्रदेश सरकार ने इस कदम को वापस ले लिया था।

हाल के समय में पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, राजस्थान और केरल की सरकारों ने भी इसी तरह के फैसले लिए और सीबीआई को दी हुई सामान्य सहमति को वापस ले लिया। इन सभी राज्यों में बीजेपी या उसके गठबंधन सहयोगियों की सरकार नहीं है। झारखंड में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन की सरकार है और जेएमएम के हेमंत सोरेन इसके मुखिया हैं।

दरअसल राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के विपरीत, जो अपने स्वयं के एनआईए अधिनियम द्वारा शासित होती है और जिसका देश भर में अधिकार क्षेत्र है, सीबीआई, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम द्वारा शासित की जाती है। यह अधिनियम उसे किसी भी राज्य में जांच के लिए एक राज्य सरकार की सहमति को अनिवार्य करता है, हालांकि सीबीआई के गठन को ही गौहाटी हाई कोर्ट अवैध घोषित कर चुका है और सीबीआई का अस्तित्व उच्चतम न्यायालय के स्थगनादेश से फिलहाल बचा हुआ है।

राज्य सरकार की कुल दो प्रकार की सहमति होती हैं। पहली, केस स्पेसिफिक और दूसरी जनरल (सामान्य)। यूं तो सीबीआई का अधिकार क्षेत्र केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारियों पर है, लेकिन राज्य सरकार से जुड़े किसी मामले की जांच करने के लिए उसे राज्य सरकार की सहमति की जरूरत होती है। इसके बाद ही, वह राज्य में मामले की जांच कर सकती है।

सामान्य सहमति को वापस लेने का मतलब है कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना इन राज्यों में प्रवेश करते ही किसी भी सीबीआई अफसर के पुलिस अधिकारी के रूप में मिले सभी अधिकार खत्म हो जाते हैं। इसका सीधा मतलब है कि सीबीआई बिना केस स्पेसिफिक सहमति मिले इन राज्यों में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई नया मामला नहीं दर्ज कर पाएगी।

दरअसल सीबीआई दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’ द्वारा शासित है। सीबीआई इस अधिनियम की धारा छह के तहत काम करती है। सीबीआई और राज्यों के बीच सामान्य सहमति होती है, जिसके तहत सीबीआई अपना काम विभिन्न राज्यों में करती है, लेकिन अगर राज्य सरकार सामान्य सहमति को रद्द कर दे, तो सीबीआई को उस राज्य में जांच या छापेमारी करने से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी।

केरल के मुख्यमंत्री पिनयारी विजयन ने आरोप लगाया है कि सोने की तस्करी मामले की जांच कर रहीं केंद्रीय एजेंसियां संवैधानिक तौर पर चुनी गई सरकार की छवि खराब करने और अस्थिर करने के लिए अपनी कानूनी सीमा लांघ रही हैं। उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार मौजूदा कानूनी ढांचे के तहत आवश्यक हस्तक्षेप करेगी।

केरल सरकार द्वारा गरीबों के लिए शुरू किए गए आवास योजना लाइफ मिशन प्रोजेक्ट में विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत अनियमितता को लेकर सीबीआई ने एक एफआईआर दर्ज की थी। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, लाइफ मिशन की याचिका पर अक्तूबर में केरल हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगा दी थी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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