यौन उत्पीड़न के आरोपी और एनएसडी के पूर्व प्रोफेसर सुरेश शेट्टी पर गिरफ्तारी की तलवार

राजेश चंद्रा

नई दिल्ली। महिला रंगकर्मी के यौन उत्पीड़न केस में आरोपी और एनएसडी के पूर्व प्रोफेसर सुरेश शेट्टी की जमानत याचिका को दिल्ली हाइकोर्ट ने ख़ारिज़ कर दी है। इसके साथ ही उनकी गिरफ़्तारी की आशंका बढ़ गयी है।

दाख़िले की परीक्षा दे रही महिला रंगकर्मी का यौन उत्पीड़न करने, विरोध करने पर पीड़िता को कमरे में बंद कर उसके साथ क्रूरता बरतने और बाद में पुलिस में शिकायत न करने के लिये पीड़िता एवं उसके परिवार को लगातार धमकाने जैसे आरोपों का सामना कर रहे एनएसडी के कद्दावर प्रोफेसर सुरेश शेट्टी की जमानत याचिका हाइकोर्ट ने ख़ारिज़ कर दी। पिछले 16 नवम्बर को सुनवाई के दौरान न्यायालय ने इस तर्क के आधार पर आरोपी को ज़मानत देने से साफ़ इनकार कर दिया कि आरोपी एक सम्मानित प्रोफेसर हैं और साठ साल के उनके करियर को कभी दाग़ नहीं लगा है।

न्यायालय ने बचाव पक्ष के वकील की इस दलील को बेकार बताते हुए कहा कि दाग़ तो जीवन में एक बार ही लगता है। वह लग चुका। आरोपों की गम्भीरता को देखते हुए न्यायालय ने कहा कि आरोपी को ज़मानत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने मामले की जांच की धीमी रफ़्तार पर रोष प्रकट करते हुए आगामी 21 दिसम्बर को अगली सुनवाई की तारीख़ निर्धारित कर दी। कोर्ट के सख़्त रवैये को देखते हुए सुरेश शेट्टी की गिरफ़्तारी की आशंका काफ़ी बढ़ गयी है और ज़ाहिर है कि इस स्थिति से निपटने के लिये एनएसडी प्रशासन और एनएसडी परिवार में सरगर्मियां बढ़ गयी हैं। ग़ौरतलब है कि एनएसडी का प्रशासन और उसके स्नातकों की ताक़तवर लॉबी शुरुआत से ही यौन उत्पीड़न के इस संगीन मामले को दबाने, आरोपी प्रोफेसर सुरेश शेट्टी को बचाने और पुलिस तथा मीडिया को अपने पक्ष में ‘मैनेज’ करने में लगी रही है।

इसी ‘ताक़तवर मैनेजमेंट’ के होने का नतीज़ा था कि जहां एक तरफ़ मीडिया ने प्रारंभ में तथ्यों को छिपाया और यह झूठ फैलाने का प्रयास किया कि पीड़िता ने दाख़िला न दिये जाने के बाद यह आरोप लगाया, वहीं पुलिस ने शिक़ायत दर्ज़ करने से लेकर मामले की जांच शुरू करने तक पीड़िता को थकाने और परेशान करने का हर हथकंडा अपनाया। हालांकि जल्दी ही सच्चाई सामने आ गयी कि पीड़िता ने कथित घटना के दिन यानी 2 जुलाई को ही एनएसडी प्रशासन से औपचारिक शिकायत की थी और अगले दिन स्कूल प्रशासन ने प्रसिद्ध नारीवादी लेखक, नाटककार और एनएसडी की प्रोफेसर त्रिपुरारी शर्मा की अध्यक्षता में एक आंतरिक कमेटी गठित कर दी थी।

यह बात अलग है कि कमेटी ने पीड़िता की आवाज़ दबाने और मामले को रफ़ा-दफ़ा करने की पुरज़ोर कोशिश की, लेकिन न्याय के लिये पीड़िता के दृढ़ निश्चय को डिगाने में त्रिपुरारी शर्मा को कोई सफलता नहीं मिली। त्रिपुरारी शर्मा ने पीड़िता के बयान और तमाम साक्ष्यों को किनारे रखते हुए अन्तिम रिपोर्ट में आरोपी प्रोफेसर और अपने मित्र सुरेश शेट्टी को क्लीनचिट दे दी। इस तरह उन्होंने एनएसडी परिवार के प्रति अपनी निष्ठा की रक्षा की और न्याय के आदर्शों का गला घोंट दिया।

न्यायालय की सक्रियता से यह विश्वास बढ़ा है कि एनएसडी जैसे ब्राह्मणवादी, मर्दवादी और बेहद शक्तिशाली संस्थान के भीतर अपराध और भ्रष्टाचार का तंत्र टूटेगा ज़रूर। ‘पावर’ और ‘पैसे’ के दम पर ज़ारी अन्याय और उत्पीड़न की इस परंपरा को ढहना ही चाहिये।

एनएसडी में प्रोफेसर सुरेश शेट्टी पर दाख़िले की परीक्षा दे रही लड़की के यौन उत्पीड़न किये जाने के आरोप और शिक़ायत की जांच के लिये एनएसडी की वरिष्ठ प्रोफेसर, प्रसिद्ध नारीवादी नाटककार-निर्देशक और सामाजिक कार्यकर्ता त्रिपुरारी शर्मा के नेतृत्व में विगत 3 जुलाई को ही एक आंतरिक जांच समिति गठित की गयी थी।

सूत्रों के अनुसार इस कमेटी ने सम्बंधित सभी पक्षों और प्रत्यक्षदर्शियों से बातचीत शुरुआती सप्ताह में ही पूरी कर ली थी। ऐसी सूचना है कि इस कमेटी ने पीड़िता से पुलिसिया तरीक़े से बर्ताव किया और अपमानजनक सवाल पूछे। इसके अलावा उसने तीन बार अलग-अलग पेशेवर काउन्सलर बुला कर पीड़िता को प्रताड़ित और भ्रमित करने की कोशिश की। पीड़िता ने इस यातना को भी सहा और उम्मीद रखी कि एक नारीवादी महिला के नेतृत्व वाली कमेटी उसके साथ इन्साफ़ करेगी, पर जल्दी ही उसे निराश होना पड़ा।

10 जुलाई को पीड़िता ने पुलिस के पास शिक़ायत दर्ज़ कराने का प्रयास किया, पर तिलक मार्ग थाने के एसएचओ ने 15 जुलाई तक कोई शिक़ायत नहीं ली। 16 को उन्होंने शिकायत ली और पूरे पन्द्रह दिन एफआईआर दर्ज़ करने में लगा दिये। औपचारिक रूप से एफआईआर 1 अगस्त को दर्ज़ हुई।

पुलिस पन्द्रह दिन गुज़र जाने के बाद भी इस मामले की जांच की प्रगति बताने में असमर्थ है। आरोपी को गिरफ़्तार तक नहीं किया गया और उसे अंतरिम जमानत मिल गयी। पीड़िता के पक्ष द्वारा बार-बार पूछे जाने पर पुलिस बहाने बना रही है कि एनएसडी जांच में सहयोग नहीं कर रहा और कोई भी साक्ष्य नहीं दे रहा। पुलिस पर मामले को टालने और पीड़िता को परेशान करने का कितना दबाव है, इसे घटनाक्रम से समझा जा सकता है।

(ये रिपोर्ट कवि, आलोचक और पत्रकार राजेश चंद्रा के हवाले से प्राप्त हुई है।)

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