समितियों की रिपोर्ट पर कांग्रेस सरकारी तरीके से करती है अमल

अहमदाबाद। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की अप्रत्याशित हार के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तीन सदस्यीय समिति गठित की है। समिति के गठन के बाद रिपोर्ट पर कांग्रेस पार्टी बिल्कुल सरकारी समिति की तरह ही सुझावों पर अमल नहीं कर पाती है। 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद एके एंटनी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा “सेक्युलरिज्म बनाम कम्युनलिज्म” में हिंदुओं को लगता है कि कांग्रेस मुसलमानों का पक्ष लेती है। बीजेपी बार-बार कांग्रेस पर तुष्टीकरण का आरोप लगाकर बहुसंख्यक हिंदुओं को अपने पक्ष में करती है।

कांग्रेस ने अब तक रिपोर्ट के सुझावों पर न तो कोई रणनीति बनाया है और न ही सुझावों पर अमल। गुजरात कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता कमेटी के गठन के खिलाफ हैं। लेकिन आला कमान के निर्णय का खुलकर विरोध नहीं कर पा रहे हैं। उनका कहना है। कांग्रेस गुजरात में अपनी पूरी ताकत से लड़ी ही नहीं। इमरान खेड़ावाला जो 2022 में मात्र मुस्लिम विधायक हैं। इमरान ने खुलकर कहा “भारत जोड़ो यात्रा के कारण राहुल गांधी और अन्य बड़े नेताओं की प्रचार से अनुपस्थिति के कारण कांग्रेस की ऐसी दुर्दशा हुई है।” कांग्रेस के बड़े नेताओं की अनुपस्थिति के अलावा भारत जोड़ो यात्रा से बीजेपी द्वारा प्रचारित एजेंडा” मुस्लिम तुष्टीकरण ” को बल मिला। 

राहुल गांधी नफरत के बाज़ार में मोहब्बत बेचने निकले हैं। लेकिन वास्तविकता यही है कि अब साबरमती नदी के आस-पास भी मोहब्बत के खरीददार नहीं हैं। भारत के वर्तमान वातावरण में जब कोई सेक्युलरिज्म, एकता और जोड़ने की बात करता है। तो देश के बहुसंख्यक समाज को लगता है। कि मुसलमानों की तरफदारी हो रही है। 2014 की हार के बाद एंटनी कमेटी ने भी सुझाया था कि मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप पर कांग्रेस को जवाब देना चाहिए। लेकिन अब तक कांग्रेस ने एंटनी कमेटी के सुझावों पर अमल नहीं किया। राहुल गांधी भारत जोड़ने के बजाय भारत को बचाने के लिए यात्रा करते तो और केंद्र सरकार को आर्थिक मुद्दों पर घेरते तो इस यात्रा को अधिक सफलता मिलती। गुजरात का परिणाम भी कम से कम इतना बुरा नहीं होता।

गुजरात को चार भागों में बांटा गया है। सौराष्ट्र-कच्छ, उत्तर गुजरात, मध्य गुजरात और दक्षिण गुजरात। सौराष्ट्र में आम आदमी पार्टी विधायक संख्या के अनुसार कांग्रेस से बड़ी पार्टी है। क्योंकि सौराष्ट्र में आप के चार विधायक हैं। और कांग्रेस के तीन विधायक जीते हैं। दक्षिण गुजरात में विधायक संख्या के अनुसार कांग्रेस और आप बराबर हैं। दोनों के दक्षिण गुजरात में 1-1 विधायक जीते हैं। कांग्रेस पार्टी ने इस चुनाव में आदिवासी वोट बैंक को खो दिया। जो उसका परंपरागत वोट था। बीजेपी पहली बार अनुसूचित जन जाति की 27 सुरक्षित सीटों में से 23 सीटें हासिल की। 

परंपरागत तौर पर गुजरात अनुसूचित जनजाति के मतदाता कांग्रेस के साथ रहे हैं। 2017 विधान सभा चुनाव में जनजाति की 27 सुरक्षित सीटों में से कांग्रेस को 15 , बीजेपी को 9 और बीटीपी को 2 सीटें मिली थी। 2012 में कांग्रेस को 16 , बीजेपी को 10 और जेडीयू को एक सीट मिली थी। विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को आदिवासी बेल्ट की मात्र 1 सीट मिली लेकिन 10 सीटों पर कांग्रेस पार्टी से अधिक वोट लेकर दूसरे नंबर की पार्टी रही। अनुसूचित जनजाति की सुरक्षित सीटों पर प्रति सीट आम आदमी पार्टी को 42044 वोट मिले। वहीं कांग्रेस पार्टी का प्रति सीट औसत 44477 वोट रहा। 

इन सुरक्षित सीटों की विधानसभा के परिणाम को लोक सभा में परिवर्तित करने पर दाहोद और बारडोली लोकसभा सीट पर आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर पर है। आम आदमी पार्टी का दूसरे नंबर पर आना ही कांग्रेस का सबसे बड़ा नुकसान है। इस वोट बैंक पर दोबारा पकड़ बनाना एक बड़ी चुनौती है।

कांग्रेस की गुजरात में हुई हार के दो मुख्य कारण हो सकते हैं। एक केंद्रीय नेतृत्व द्वारा समय पर निर्णय न ले पाना और दूसरा देश में मुस्लिम विरोधी वातावरण में भारत जोड़ो यात्रा कर हिंदुओं से बनी दूरी। इन दो कारणों के अलावा और कई कारण हैं।

1) राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर गांधी परिवार होगा या नहीं… इस निर्णय में बहुत समय लगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में बहुत समय लगा। इसी प्रकार गुजरात में भी प्रदेश अध्यक्ष पद लंबे समय खाली रहा। विधान सभा चुनाव से ठीक पहले प्रदेश कांग्रेस वर्ष 2021 और 2022 के 4 महीने निष्क्रियता में निकाल दिए।

2) आम आदमी पार्टी को हल्के में लेना। जबकि गांधीनगर नगर निगम चुनाव में आप ने अपनी ताकत दिखाकर कांग्रेस को बुरी तरह से हरवा दिया था।

3) सरकारी कर्मचारियों के आंदोलन से कांग्रेस का नदारद रहना अथवा मात्र खाना पूर्ति का समर्थन देना।

4) बेरोज़गारी एक बड़ा मुद्दा था। लेकिन पेपर लीक मामले को कांग्रेस ने सही ढंग से नहीं उठाया। आम आदमी पार्टी द्वारा कमलम का घेराव तथा उसके नेताओं पर मुकदमे और 12 दिनों की जेल के बाद आम आदमी पार्टी ने युवाओं का दिल जीता। कांग्रेस से युवाओं को मायूसी मिली।

5) आम आदमी पार्टी एक के बाद जनता से वादे कर रही थी। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता बिजली बिल माफ, मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य का गारंटी कार्ड बांट रहे थे। तब कांग्रेस अपने नए प्रदेश अध्यक्ष का इंतजार कर रही थी। 

6) जो वादे आम आदमी पार्टी के गारंटी कार्ड में थे। कांग्रेस ने उसकी नकल की और अलग से कुछ नया नहीं किया।

7) कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव को जातिगत आधारित रणनीति पर लड़ा। बीजेपी का कौमवादी और केजरीवाल की रेवड़ी के सामने कांग्रेस का सामाजिक न्याय का ढांचा भरभरा कर गिर पड़ा।

8) कांग्रेस परंपरागत चुनाव लड़ती है। 2017 में हारे उम्मीदवार अपनी विधानसभाओं में निष्क्रिय रहे। 

9) कांग्रेस के बड़े नेताओं की धाक जनता से खत्म हुई। अब चुनाव लड़ने से भी डरते हैं।

10) कांग्रेस में नए चेहरों को जगह नहीं मिलती है। जिस कारण संगठन कमज़ोर हुआ है। नारण राठवा, विठ्ठल रादडिया, कुंवर जी बावलिया, शंकर सिंह, अल्पेश ठाकोर इत्यादि के जाने के बाद कांग्रेस को उनकी जगह पूरी करने वाले उस कद का नेता नहीं मिला।

कांग्रेस पार्टी खानापूर्ती कर परंपरागत तरीके से हर पांच साल बाद चुनाव लड़ती है। जीतने के बाद जीता विधायक मात्र अपनी विधानसभा की नुमाइंदगी करता है। हारा हुआ दोबारा जीतने के लिए पांच संघर्ष करने के बजाय अपने व्यवसाय में व्यस्त हो जाता है। बीजेपी और आम आदमी पार्टी के नेता हारने और जीतने दोनों परिस्थिति में जनता के बीच डटे रहते हैं। आम आदमी ने विधानसभा के परिणाम के बाद से 2024 की तैयारी शुरू कर दी। 

आम आदमी पार्टी ने पूर्व में कांस्टेबल रहे गोपाल इटालिया, पूर्व पत्रकार ईशुदान गढ़वी को राज्य में बड़ा नेता बनाया। सरकारी नौकरी छोड़ सामाजिक कार्यकर्ता बने चैतर वसावा को आप ने विधायक बनाया। कांग्रेस पार्टी किसी प्रतिभाशाली को नेता नहीं बनाती है। जिस कारण कांग्रेस के पास अब नेताओं की कमी है। जो नेता हैं वो सरकारी अफसरों, मंत्रियों और पुलिस की साठ गांठ में रहते हैं। कांग्रेस के सामने गुजरात में अपने वजूद को बचाना अब बड़ी चुनौती है। पहले विपक्ष की जगह लेने वाला कोई नहीं था। आम आदमी पार्टी विधानसभा में 35 सीटों पर दूसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी है। 

(अहमदाबाद से कलीम सिद्दीकी की रिपोर्ट।)

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