छत्तीसगढ़ में जारी आंदोलन में एक किसान की मौत, चार लाख के मुआवजे से लोग संतुष्ट नहीं

रायपुर। सियाराम मर गया। सियाराम किसान था। छत्तीसगढ़ में किसानों की सरकार है। एक किसान पुत्र मुख्यमंत्री है। सियाराम विस्थापित था। एक सरकार ने नई राजधानी बनाने के नाम पर उसकी जमीन छीनी तो दूसरी ने उसकी जिंदगी। उसने केवल अपना हक मांगा। पर उसे मौत मिली। खैर, एक किसान के मरने से भला किसको फर्क पड़ता है। सब चुप हैं।

मुख्यमंत्री ने मौत पर 4 लाख मुआवजा देने की घोषणा की है। यूपी के लखीमपुर के किसानों की मौत पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने 50-50 लाख का मुआवजा बांटा था। यूपी के किसान की जान महंगी थी। छत्तीसगढ़ के किसान की जान सस्ती। यह एक किसान पुत्र मुख्यमंत्री का न्यायहै।”

यह वक्तव्य है रायपुर प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर काउनका कहना है कि यह छत्तीसगढ़ सरकार के ” न्याय का गणित है।”

दरअसल छत्तीसगढ़ में इन दिनों आंदोलनों का पर्व चल रहा है और तमाम वर्ग छत्तीसगढ़ की सरकार के वादाखिलाफी के खिलाफ महीनों से सड़क पर हैं। बस्तर में आदिवासी आंदोलनरत हैं। सरगुजा में आदिवासी आंदोलनरत हैं। रायगढ़ में आदिवासी आंदोलन को थे कहीं खरीद के नाम से विस्थापन हो रहा है तो कहीं युवाओं के साथ जो धोखाधड़ी हुई है उसके खिलाफ आंदोलन हो रहा है। ऐसा ही एक आंदोलन नया रायपुर के 27 गांवों के प्रभावित किसानों ने इसी साल 3 जनवरी, 2022 को शुरू किया था जिसे आज ठीक 68 दिन होने को आया है। इन 68 दिनों में प्रदेश के अपने आपको छत्तीसगढ़िया और किसान पुत्र बताने वाले मुख्यमंत्री ने इन किसानों से बात करना भी उचित नहीं समझा बातचीत की आशा में एक किसान सियाराम ने आज धरती ही छोड़ दिया।

किसान का शव और आस-पास एकत्रित आंदोलनकारी

मुख्यमंत्री महोदय उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को निपटा कर वापस आ चुके हैं उनका बंगला जिसे इवेंट बंगला कहा जाता है और साल भर वहां इवेंट होते रहते हैं कोरोना समय में भी लगातार वहां इवेंट होते रहे। मगर मुख्यमंत्री किसान पुत्र को इस किसान की याद भी नहीं आई और देखने भी नहीं पहुंचे ना उनके घर के रिश्तेदारों से बात की। हां औपचारिकता के तौर पर प्रदेश के जनसंपर्क विभाग ने किसान के परिवार को चार लाख का मुआवजा देने का निर्णय जारी कर दिया है और इस तरह से प्रदेश सरकार के कर्तव्य की इति श्री हो चुकी है।

किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे कामरेड तेजराम विद्रोही ने जनचौक से बात करते हुए कहा कि किसान लगातार सरकार से संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे मगर सरकार लगातार किसानों की उपेक्षा करते आ रही थी। इसी सिलसिले में 11 मार्च को किसानों का दल ज्ञापन देने मंत्रालय की ओर निकला था कि अचानक सियाराम की मौत हो गई , उन्होंने इस मौत को शहादत बताया।

तेजराम विद्रोही किसान आंदोलन के नेता

छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष कामरेड संजय पराते ने इस मुद्दे पर जनचौक से बात करते हुए कहा कि पिछली भाजपा सरकार ने नया रायपुर बनने से विस्थापित होने वाले किसानों के साथ जो समझौता किया था, उसे पूरा नहीं किया और कांग्रेस सरकार ने चुनाव से पहले किसानों से वादा किया था कि उनकी सरकार आने के बाद इस समझौते को लागू किया जाएगा। कांग्रेस ने भी इस समझौते को लागू नहीं किया जो पूरी तरह से गलत है और अगर सरकार किसानों के प्रति संवेदनशील है तो जो जिस किसान की मौत इस आंदोलन के दौरान हुई है उसे पर्याप्त मुआवजा मिलना चाहिए।

वहीं भाजपा के प्रवक्ता गौरी शंकर श्रीवास का कहना है कि छत्तीसगढ़ सरकार की प्राथमिकता में किसान कभी नहीं रहा, किसान इनके लिए केवल वोट बैंक का माध्यम है। किसानों का आंदोलन पिछले 3 महीने से लगातार जारी है मगर सरकार इनको लगातार भटकाने की कोशिश कर रही है इनकी मांगों पर संवेदना से कोई विचार नहीं किया जा रहा है। कभी कमेटी के नाम पर तो कभी धारा 144 लगाकर आंदोलन को रोकने को दबाने की कोशिश की जा रही है।

गौरीशंकर श्रीवास

(रायपुर से वरिष्ठ पत्रकार वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला की रिपोर्ट।)

कमल शुक्ला
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