नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो-3: दवा कम्पनियों से भी अवैध वसूली , रिश्वतखोरी में रंगे हाथ पकड़ा गया था एक जोनल डायरेक्टर

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) दवा कम्पनियों के वैध दवा लाइसेंस की आड़ में धड़ल्ले से नशीली दवाएं बनाने की रोकथाम करता है लेकिन यह धन उगाही का भी माध्यम बन जाता है जब सम्बन्धित अधिकारी स्टाक रजिस्टर में गड़बड़ी के लिए रिश्वत मांगने लगता है। कई कम्पनियां रिश्वत देकर मामला रफा दफा कर लेती हैं लेकिन कोई सीबीआई तक शिकायत कर देता है। ऐसे में सीबीआई ट्रैप लगाकर रिश्वत लेते हुए रंगे हांथ रिश्वत मांगने वाले को पकड़ती है और प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट की सुसंगत धाराओं में मुकदमा दर्ज़ करती है। ऐसा ही एक मामला चंडीगढ़ में तैनात एनसीबी के जोनल डायरेक्टर सुनील कुमार सेखरी का है जिन्हें एक दवा कम्पनी से रिश्वत मांगने के आरोप में सीबीआई ने रंगे हाथ गिरफ्तार किया था।

वर्तमान मामला राजेश दुआ द्वारा की गई शिकायत का है जो दिनांक 5सितम्बर, 2009 को दर्ज किया गया था। मेसर्स यूफोरिया इंडिया फार्मास्युटिकल्स के मालिक राकेश दुआ ने आरोप लगाया कि आरोपी सुनील कुमार सेखरी ने अपने कार्यालय के अधीक्षक के साथ 23 जुलाई, 2009 को बद्दी (हिमाचल प्रदेश) में शिकायतकर्ता के कारखाने के परिसर में छापा मारा और रिकॉर्ड का निरीक्षण किया जो सही पाया गया। इसके बावजूद, उसने फर्म के रिकॉर्ड छीन लिए और उसे चंडीगढ़ में आरोपी के कार्यालय में आने के लिए कहा। शिकायतकर्ता ने आरोपी सुनील कुमार सेखरी से दिनांक 24जुलाई 2009 और 25जुलाई 2009 को चंडीगढ़ स्थित अपने कार्यालय में मुलाकात की, जिन्होंने फर्म के रिकॉर्ड वापस कर दिए और शिकायतकर्ता राजेश दुआ से नशीले पदार्थों के आरोप में एफआईआर दर्ज करने से बचने के लिए 5 लाख रुपये की रिश्वत की मांग की।

शिकायतकर्ता ने रिश्वत देने में असमर्थता दिखाई तो आरोपी ने उसे इस संबंध में दिल्ली में संपर्क करने के लिए कहा। 17अगस्त 2009 को, आरोपी ने शिकायतकर्ता को फोन किया और उसे फन सिनेमा, प्रशांत विहार के पास मिलने का निर्देश दिया। निर्देश के अनुसार, शिकायतकर्ता ने आरोपी से फन सिनेमा प्रशांत विहार, दिल्ली के पास मुलाकात की, जहां आरोपी ने शिकायतकर्ता से 5 लाख रुपये की रिश्वत की अपनी मांग दोहराई। शिकायतकर्ता के अनुरोध पर, आरोपी ने उससे कहा कि उसे 2 लाख रुपये की रिश्वत देनी होगी और सभी रिकॉर्ड भी पूरे करने होंगे।

शिकायतकर्ता द्वारा यह भी आरोप लगाया गया है कि उसे आरोपी द्वारा जारी एक नोटिस दिनांक 2सितम्बर 2009 को प्राप्त हुआ था जिसके तहत उसे 15सितम्बर 2009 तक अपनी फर्म के तीन साल के रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया गया था। शिकायतकर्ता ने आरोपी से 3सितम्बर 2009 को उसके मोबाइल नंबर09417095….. पर संपर्क किया और उस नोटिस के बारे में पूछताछ की जिस पर आरोपी ने शिकायतकर्ता को रिकॉर्ड के साथ 5सितम्बर 2009 को अपने कार्यालय का दौरा करने का निर्देश दिया था। 5 सितम्बर, 2009 को, शिकायतकर्ता ने आरोपी के कार्यालय में फोन किया, जहां से उसे पता चला कि आरोपी स्टेशन से बाहर है। इसके बाद शिकायतकर्ता ने आरोपी को उसके मोबाइल नंबर 09417095….पर कॉल कर आरोपी को बताया कि वह सभी रिकॉर्ड के साथ चंडीगढ़ आ गया है।

आरोपी ने शिकायतकर्ता को सूचित किया कि वह दिल्ली में है और उसने 2 लाख रुपये की अपनी मांग दोहराई। आरोपी ने आगे शिकायतकर्ता को 2 लाख रुपये की रिश्वत की राशि की व्यवस्था करने और 6सितम्बर 2009 को फोन करने के बाद दिल्ली में मिलने का निर्देश दिया। शिकायतकर्ता रिश्वत की राशि का भुगतान नहीं करना चाहता था और इसलिए 05सितम्बर, 2009 को एसपी, सीबीआई, एसीबी, चंडीगढ़ के पास सुनील कुमार सेखरी के खिलाफ एक लिखित शिकायत दर्ज कराई। सीबीआई ने ट्रैप लगाकर सेखरी को रिश्वत लेते हए रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया।

मुकदमा सीबीआई कि विशेष न्यायाधीश गगन गीत कौर की अदालत में चला और 25सितम्बर 2017को पारित अपने निर्णय में विशेष न्यायाधीश ने आरोपी को रिश्वत लेने का दोषी पाया और निर्णीत किया कि अभियोजन ने उस अपराध के सभी आवश्यक तत्वों को साबित कर दिया है जिसके लिए आरोपी व्यक्ति पर आरोप पत्र दायर किया गया है। आरोपी व्यक्ति की ओर से मांग, स्वीकृति और वसूली उसकी दोषसिद्धि को प्रमाणित करने के लिए सिद्ध हुई है। इसके अलावा अभियोजन पक्ष के पूरे साक्ष्य से, वैध रूप से, एक अनुमान लगाया जा सकता है कि आरोपी व्यक्तियों ने अपनी इच्छा से उक्त मुद्रा (नोट) को स्वीकार या प्राप्त किए थे।

दोषी की उम्र, चरित्र/पूर्ववृत्त, उसके परिवार के सदस्यों, मुकदमे की लंबी प्रकृति, और विद्वान बचाव पक्ष के वकील के साथ-साथ विद्वान लोक अभियोजक द्वारा की गई दलीलों को ध्यान में रखते हुए, इस अदालत ने दोषी सुनील कुमार सेखरी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(2) के तहत धारा 7 और धारा 13(1)(डी) के तहत अपराध के लिए छह महीने से चार साल के कठोर कारावासऔर दो लाख जुर्माने की सजा सुनाई। दोषी को दी गई सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी। हालांकि, इस मामले की जांच या सुनवाई के दौरान दोषी द्वारा पहले से ही गुजर चुकी अवधि, यदि कोई हो, को सीआरपीसी की धारा 428 के तहत उसे समायोजित किया जा सकता है। मामला पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में लम्बित है। गौरतलब है कि नारकोटिक औषधियां एवं मन: प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 भारत में औषधियों संबंधी कानून के प्रवर्तन के लिए विधिक ढांचे का गठन करता है।

यह अधिनियम विद्यमान अधिनियमों यथा अफीम अधिनियम, 1857, अफीम अधिनियम, 1878 और हानिकर औषधि अधिनियम, 1930 का समेकन करने के लिए अधिनियमित किया गया था। दरअसल दवा कम्पनियां वैध दवा लाइसेंस कि आड़ में धड़ल्ले से नशीली दवाएं भी बनाती हैं ,जिनकी धर पकड़ का जिम्मा नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी)का होता है। नतीजतन एनसीबी के अधिकारी समय-समय पर दवा कम्पनियों का निरीक्षण करते हैं ,कच्चे माल और निर्मित दवाओं का स्टाक चेक करते हैं। सरकार से केमिकल्स से संबंधित मंजूरी साधारण दवाओं को बनाने के लिए ली जाती है जबकि दवा कम्पनियां अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में अधिकतर कैमिकल्स को नशे की दवाओं को बनाने में इस्तेमाल करती रहती हैं । कंपनियों ने हर माह कितना स्टाक इस्तेमाल किया कितना शेष रहा और दवाओं के निर्माण में कहां कहां उपयोग में लाया गया है यह सब चेक करने का अधिकार एनसीबी के पास होता है।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
Published by
जेपी सिंह