केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सिर्फ 4 फीसदी प्रोफेसर, 6 फीसदी एसोसिएट प्रोफेसर ओबीसी

शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार ने सोमवार को संसद में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कार्यरत प्रोफेसरों का आंकड़ा साझा किया। इन आंकड़ों के अनुसार 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में केवल 1 कुलपति (वीसी) अनुसूचित जाति (एससी) श्रेणी, 1 कुलपति अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी से और 5 कुलपति अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी से संबंधित हैं। 

किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय में वीसी सर्वोच्च प्रशासनिक पद होता है। जब रजिस्ट्रार की बात आती है तो यह विश्वविद्यालय में दूसरा सबसे बड़ा पद होता है, और वर्तमान समय में  केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 2 रजिस्ट्रार एससी श्रेणी, 5 एसटी श्रेणी और 3 रजिस्ट्रार ओबीसी श्रेणी से हैं।

संख्याओं को प्रतिशत के रुप में देखें तो तस्वीरें कुछ और ही नजर आती है। 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कार्यरत केवल 4% प्रोफेसर और 6% एसोसिएट प्रोफेसर ओबीसी श्रेणी से आते हैं। ओबीसी प्रोफेसरों की संख्या एससी और एसटी से भी कम है।

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षित श्रेणियों के प्रतिनिधित्व पर आंध्र प्रदेश के संजीव कुमार सिंगारी द्वारा पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए, सुभाष सरकार ने कहा कि 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों के केवल पांच कुलपति ओबीसी श्रेणी के हैं। 

प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर श्रेणियों में ओबीसी का प्रतिनिधित्व एससी की तुलना में भी कम है। जबकि 85% प्रोफेसर और 82% एसोसिएट प्रोफेसर सामान्य वर्ग से आते हैं। 

मद्रास विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एसपी त्यागराजन ने कहा कि “ओबीसी पदों को भरने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग अभियान चलाना चाहिए। इस तरह का अभियान पूरे देश के विश्वविद्यालयों में कार्यरत ओबीसी के योग्य संकाय सदस्यों को आकर्षित करेगा”। उन्होंने कुलपतियों की नियुक्ति के लिए योग्य प्रोफेसरों का एक डेटाबेस बनाने का भी प्रस्ताव रखा है।

किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति पद के योग्य होने के लिए एक प्रोफेसर के रूप में कम से कम 10 वर्ष का अनुभव होना आवश्यक है। सहायक प्रोफेसरों के प्रवेश स्तर पर, ओबीसी का प्रतिनिधित्व थोड़ा बेहतर है क्योंकि 18% ओबीसी से हैं और 59% सामान्य वर्ग से हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी जाति के लिए आरक्षित 27 फीसदी सीट अभी भी भरी नहीं गई है। गैर-शिक्षण कर्मचारियों में भी केवल 12% ओबीसी से हैं, जबकि 70% कर्मचारी सामान्य वर्ग के हैं। 

वर्त्तमान समय में देश भर के 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसरों की कुल संख्या 17256 है। इनमें से प्रोफेसर की संख्या 1341 है, जिनमें से 1146 प्रोफेसर सामान्य वर्ग के हैं और 195 प्रोफेसर ओबीसी, एससी, एसटी और अन्य श्रेणी के हैं। ऐसा ही कुछ हाल एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसरों के मामले में भी है। विश्वविद्यालयों में एसोसिएट प्रोफेसर की कुल संख्या 2817 है, जिनमें से 2304 प्रोफेसर सामान्य वर्ग के हैं और 513 प्रोफेसर ओबीसी, एससी, एसटी और अन्य श्रेणी से आते हैं। असिस्टेंट प्रोफेसरों की कुल संख्या 13098 है, जिनमें से 8734 प्रोफेसर सामान्य वर्ग के हैं और 4364 प्रोफेसर ओबीसी, एससी, एसटी और अन्य श्रेणी से आते हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अन्य श्रेणीयों के किसी भी प्रकार के प्रोफेसरों की संख्या का सामान्य वर्ग के मुकाबले आधा है।     

टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ अदर बैकवर्ड क्लासेज एम्प्लॉइज वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव जी. करुणानिधि ने कहा कि, “क्रीमी लेयर के नियम के वजह से योग्य ओबीसी उम्मीदवार केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आवेदन नहीं कर पा रहे हैं।” उन्होंने आगे बताया कि “सरकार को आय सीमा को 8 लाख प्रति वर्ष से बढ़ाकर 15 लाख करना चाहिए। कम आय सीमा सरकारी कर्मचारियों के बेटे-बेटियों को ऐसे पदों के लिए आवेदन करने से रोक रही है। क्रीमी लेयर की अवधारणा को ही हटा दिया जाना चाहिए।”

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