पटना में विपक्षी दलों की बैठक: बिहार का ‘महागठबंधन’ बनेगा विपक्षी एकता का मॉडल?

पटना। पूरा पटना शहर G-20 समिट और विपक्षी दलों की बैठक के पोस्टरों से पटा हुआ है। मोदी सरकार की नीतियों और कारगुजारियों से पीड़ित हर व्यक्ति की निगाहें 23 जून को पटना में हो रही विपक्षी दलों की बैठक की ओर लगी हुई हैं। जहां भाजपा के शीर्ष नेता खामोश हैं वहीं पर आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में इस पर लिखा जा रहा है।

इसमें संदेह नहीं कि नीतीश कुमार बिहार में श्रीकृष्ण सिंह के बाद सबसे बड़े नेता हैं। राजद ने भी अपने पोस्टर में लालू-तेजस्वी के साथ नीतीश को जगह दी है। बिहार सरकार के वित्त मंत्री विजय चौधरी के मुताबिक 23 जून को होने वाली विपक्षी एकजुटता की बैठक को लेकर तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। इस बैठक में राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला सहित कई नेता पटना पहुंच रहे हैं।

बिहार में बैठक से कुछ दिन पहले हम पार्टी के संस्थापक जीतन राम मांझी ने नीतीश सरकार से हटकर नैरेटिव बनाने की कोशिश की कि महागठबंधन को बिहार में ही झटका लग गया।

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह बताते हैं कि, “विपक्षी एकता को लेकर बीजेपी कितनी घबराई हुई है, इसकी एक बानगी जीतन राम मांझी के महागठबंधन से बाहर आना है। मांझी के अलग होने से महागठबंधन पर कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं है। क्योंकि माझी का असर मगध की तीन-चार विधानसभा सीट तक सीमित है। कुल मिलाकर वोट उतना मायने नहीं रखता, मांझी के सहारे बीजेपी विपक्षी एकता को लेकर नीतीश की पहल की घेराबंदी बिहार से करने की तैयारी भाजपा ने शुरू कर दी है।”

क्या फिर दुहराया जाएगा इतिहास?

विपक्षी एकता देश में कोई नई बात नहीं है। इंदिरा गांधी के आपातकाल के विरोध में भी पूरा देश खड़ा हुआ था। सारी विपक्षी पार्टियों ने एकजुट होकर इंदिराशाही का अंत किया था और लोकतंत्र की पुनर्स्थापना की थी। पटना में हो रही विपक्षी दलों की बैठक के बाद सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या आधी सदी बाद इतिहास फिर दुहराने जा रहा है?

राजद के सोशल मीडिया टीम से जुड़े आलोक चीक्कू लिखते हैं कि “भारत के विपक्षी दलों के नेताओं की महत्वपूर्ण बैठक पटना में होने जा रही है। यह देश की राजनीति की दशा और दिशा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाएगी। भाजपा के फरमान पर गोदी मीडिया इस पूरे समारोह पर चुप्पी साध कर बैठा है। 23 तारीख की ऐतिहासिक बैठक की एक खबर अपने चैनल पर चलने नहीं देंगे। भाजपा जानती है कि लोकसभा चुनावों के उसके सबसे अच्छे प्रदर्शन में भी 62.64% वोट उसके विरुद्ध पड़े थे। पर तब ये वोट विपक्षी दलों में विखंडित थे, एकीकृत नहीं थे, विपक्षी दल एकजुट नहीं थे। पर इस बार बिहार में महागठबंधन का प्रयास है कि राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन मॉडल को उतारा जाए। जिससे भाजपा का सत्ता से बाहर होना तय है।”

राजद सुपौल से जुड़े लव यादव बताते हैं कि “अचानक जिस तरीके से सीबीआई और ईडी सक्रिय हुई है, पुल गिरने और एंबुलेंस घोटाले में तेजी से सुनवाई करने का निर्णय लिया है। इससे एक बात तो तय है कि बीजेपी पूरी तरह डरी हुई है। ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार को पटकनी कैसे दी जाये इसके लिए शाह ने खुद कमान संभाल रखा है।” मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विपक्षी बैठक के तुरंत बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा 24 जून को झंझारपुर और गृहमंत्री अमित शाह 29 जून को मुंगेर में रैली करने पहुंच रहे हैं।

क्या शत-प्रतिशत विपक्षी एकता सम्भव?

भूपेंद्र नारायण मंडल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर शशि झा बताते हैं कि, “एक बात तय है कि शत-प्रतिशत विपक्षी एकता सम्भव नहीं है। इंदिरा गांधी के वक्त भी यह नहीं हुआ था। कई विपक्षी पार्टियां सीबीआई और ईडी से डर जाएंगी। कई विपक्षी पार्टियों को पद का लोभ दिया जाएगा। वहीं कॉरपोरेट पूरी तरह बीजेपी को समर्थन कर रहा है। लेकिन जहां विचारों की लड़ाई की बात होगी। वहां विपक्षी एकता से बीजेपी को नुकसान होगा। इस सब के बीच एक बात तय है कि 2024 में मोदी की वापसी हुई तो लोकतंत्र पर कॉरपोरेट का अधिपत्य होगा और देश एक कट्टर विचारधारा वाली पार्टी की तानाशाही के शिकंजे में जकड़ जाएगा।”

भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि,”बिहार की महागठबंधन सरकार भाजपा से मुकाबला करने के लिए विपक्षी एकता का एक मॉडल है। पूरे देश में इस तरह के मॉडल को स्थापित करना पड़ेगा। बिहार राज्य तानाशाही शासन के खिलाफ हमेशा मुखर रहा है। जेपी आंदोलन इसका सबसे खूबसूरत उदाहरण है। बीजेपी के कुशासन ने देश की अखंडता और धर्मनिरपेक्षता को गहरे संकट में डाल दिया है। समय आ गया है कि फासीवादी ताकतों से मुकाबला के लिए सभी को एकजुट होना चाहिए।”

कर्नाटक चुनाव बेहतर उदाहरण

मिथिला भाषा के लेखक और पेशे से किसान अरुण झा बताते हैं कि,” कर्नाटक चुनाव में बजरंग बली तक को उतार दिया गया था, लेकिन बीजेपी चुनाव हार गई। कर्नाटक चुनाव से अनेक सन्देश दिख रहे हैं जो बताते हैं कि भाजपा के विनाशकारी राज के खिलाफ आम जनों, गरीबों, महिलाओं और युवाओं की एकता बन सकती है। जो विपक्षी दल बीजेपी का सपोर्ट करते दिखेंगे वो जेडीएस की तरह लड़ाई के मैदान से बाहर हो जाएंगे।”

(बिहार के पटना से राहुल की रिपोर्ट।)

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