त्रिवेंद्र को हटाकर बीजेपी कर सकती है कायाकल्प की शुरुआत

दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी अवसाद में है और आत्ममंथन के दौर से गुजर रही है। पार्टी जिस शक्ति के साथ चुनाव में उतरी और इस चुनाव को किसी अन्य राज्य के चुनाव से ज्यादा गंभीरता से लिया किन्तु परिणाम शर्मनाक रहे। पार्टी आगामी चुनाव को देखते हुए अब निर्णायक मोड़ में फैसले करेगी। इस दिशा में भी सोच रही है कि राज्य की एंटी इनकंबेंसी का नुकसान राष्ट्रीय नेतृत्व और नेताओं को ना हो। इसकी शुरुआत उत्तराखण्ड से हो सकती है।

झारखंड चुनाव भाजपा के लिए बड़े सबक थे तभी से पार्टी भाजपा शासित राज्यों पर विचार कर रही थी किंतु दिल्ली चुनाव पर कहीं ये निर्णय उल्टे ना पड़ें इसलिए पार्टी ने मंथन स्थगित कर दिया। दिल्ली की करारी हार से हलकान पार्टी अब बड़े सर्जिकल स्ट्राइक के मूड में है। पार्टी के आंतरिक और कुछ मीडिया के सर्वे के आधार पर जिन राज्यों में पार्टी की छवि आगामी चुनाव के अनुकूल नहीं है वहां परिवर्तन करने से पार्टी नहीं चूकेगी। हाल ही में एक सर्वे के आधार पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की छवि माइनस में आंकी गई है।

उसी तरह कुछ राज्यों के संगठन को दुरुस्त करने की आवश्यकता है। पार्टी अब किसी व्यक्ति की छवि को ढोना नहीं चाहती है और ना ही राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली जैसी करारी हार देखना चाहती है। पार्टी का मानना है कि धारा 370 जैसे ऐतिहासिक निर्णय, पार्टी के संकल्प के अनुसार कोर्ट द्वारा राम मंदिर की लड़ाई जीतने तथा तीन तलाक जैसे निर्णय के बाद भी दिल्ली की हार केवल और केवल रणनीतिक चूक, स्थानीय नेताओं के आपसी अहंकार के कारण हुई। जनता से संवाद ना होने के कारण। पार्टी धरातल से कटी है। 

उत्तराखंड में जितनी नाराजगी पार्टी के विधायकों में है। उससे बढ़कर पार्टी कार्यकर्ताओं में है और सबसे ज्यादा आम जनता में मुख्यमंत्री को लेकर। मुख्यमंत्री का संगठन और अपनी ही सरकार के सहयोगियों से संवाद हीनता पार्टी को आगामी चुनाव में बड़ी हार का कारण बन सकता है। 

पार्टी का मानना है कि जहां केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री मोदी के प्रति जनता का विश्वास।कम नहीं हुआ है। किंतु राज्य के मुखिया के कारण दिल्ली जैसी हार का ठीकरा फिर मोदी और शाह के सिर न फूटे। दिल्ली चुनाव को पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह ने प्रतिष्ठा का विषय बनाया। पूरे देश के मीडिया ने अमित शाह के करिश्माई व्यक्तित्व से जोड़कर इस चुनाव को देखा। पार्टी जिस केजरीवाल को नॉन पॉलिटिकल समझती रही उस केजरीवाल ने आश्चर्यजनक रूप से हैट्रिक तो बनाई ही साथ ही दूसरी बार भी ऐतिहासिक जीत के साथ लौटे।

उत्तराखंड में सरकार के प्रति असंतोष चरम पर है। तीन साल से कैबिनेट विस्तार रणनीति पूर्वक लटकाया जा रहा है। संगठन में चेहरा देखकर पदों पर लोगों को बैठाया गया है। कांग्रेस से आए विधायक मंत्रियों का दबदबा मूल कार्यकर्ताओं को मुंह चिढ़ा रहा है। विभागों की समितियों और निगमों में अभी तक कार्यकर्ताओं का समायोजन बाट जोह रहा है। व्यापारी से सीधे मुख्यमंत्री के उद्योग सलाहकार बने केएस पवार आजकल राज्य के दौरे पर हैं। जिस पर गहरी नाराजगी है क्योंकि राज्य की ब्यूरोक्रेसी और जनप्रतिनिधियों के बजाय सलाहकार का राज्य की समस्याओं का भ्रमण करना सभी को अखर रहा है। पवार  राज्य की भौगोलिक परिस्थिति से अवगत भी नहीं हैं वह भले ही उत्तराखंड मूल के हैं किंतु मुंबई में निवास करते हैं।

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