पलामू; अवैध उत्खनन के खिलाफ ग्रामीणों ने खोला मोर्चा

दिसम्बर महीने में छाये बादल मौसम के बिगड़ते मिजाज के प्रमाण हैं। यह सिर्फ हमारे झारखंड में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हो रहा है। गर्मी से तपने वाले क्षेत्रों में ठंड पड़ रही है, तो बर्फ से ढके रहने वाले क्षेत्र के लोग असहनीय गर्मी झेल रहे हैं। बाढ, तूफान, सूखा, बेमौसम बरसात के साथ ही लगातार बढ़ती गर्मी जलवायु में हो रहे परिवर्तन की देन है। इसके साथ ही तरह-तरह की बीमारियों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। कोरोना के साथ ही कई दूसरे वायरस भी दस्तक दे रहे हैं।

यानी जलवायु में हो रहे परिवर्तन हमारी जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित कर रहे हैं। मतलब मानसून का अपने निर्धारित रास्ते से भटकना खतरे की घंटी है। अक्टूबर के महीने में केरल में आयी बाढ़, उत्तराखंड में बादलों का कहर बन कर बरसना, राजस्थान में तबाही के साथ ही कई जगह भयंकर सूखे की समस्या सोचने को मजबूर कर रही है। हर साल गर्मी पड़ने का रिकार्ड टूट रहा है। उत्तराखंड में बरसात का पिछले 126 सालों का रिकार्ड टूट गया है। आषाढ़ में ठीक-ठाक रहा मानसून सावन में दगा दे गया, हमसब इससे वाकिफ हैं। सावन में औसत से 92 प्रतिशत कम बारिश हुई। 

1901 के बाद इस साल यह छठा साल है, जब औसत से कम बारिश हुई। मौसम के बदलते मिजाज से महासागर चेतावनी दे रहे हैं, तो ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं। वायु प्रदूषण से एक तरफ जान जा रही है, तो दूसरी ओर भूगर्भ जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। गाँव के कुंए कूड़ेदान बन गये हैं, तो गाड़े गये चापाकल खूंटे बनते जा रहे हैं। अब तो बोरिंग भी फेल हो रहा है। बहुत जल्द समर्सेबल पम्प भी जवाब देने वाले हैं।

इस भयावह परिस्थिति के लिये मौजूदा विकास मॉडल ही जिम्मेवार है। जिस तरह पहाड़ों को क्रशर चबा रहे हैं, जंगल उजड़ रहे हैं, बेतरीब ढंग से बालू निकालने से नदियां सूख रही हैं, पानी पाताल में जा रहा है, खेती-किसानी बर्बाद हो रही है, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन होने से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है तो जाहिर है कि स्थितियां और बिगड़ेंगी ये तय है। लेकिन सरकार के लिये यह कोई मुद्दा नहीं है। इसके उलट, केन्द्र से लेकर राज्य सरकार तक इन्हीं मूल्यवान धरोहरों का सौदा करने में लगी हुई है। जल, जंगल, जमीन, नदी, पहाड़ के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों को देशी-विदेशी पूंजीपतियों को सौंपने के काम में तेजी आई है। रोज ही लीज पर खनन हेतु पहाड़ प्रसाद की तरह बांटे जा रहे हैं। इसमें न नियमों का ख्याल रखा जा रहा है और न ही प्रावधानों का पालन हो रहा है।

उल्लेखनीय है कि इससे अलग हालात झारखंड के पलामू प्रमंडल का भी नहीं है। पलामू प्रमंडल का लातेहार, पलामू व गढ़वा जिले के कई प्रखंडों में पहाड़, खनिज, नदी के बालू जंगल व जमीन की लूट धड़ल्ले से हो रही है। लातेहार का बड़ा हिस्सा कोयला व पत्थर के खनन से प्रभावित है, पलामू जिले के छतरपुर अनुमंडल में सैकड़ों पहाड़ गायब हो चुके हैं। पत्थर माफिया के सैकड़ों क्रशर आज भी पत्थर को चबा रहे हैं। छतरपुर के अलावे चैनपुर, रामगढ़, सतबरवा व गढ़वा जिले के रमकंडा सहित कई प्रखंड के पहाड़ों को भी पत्थर माफिया मिटाने में लगे हुये हैं। माफियाओं के निशाने पर अब विश्रामपुर व पांडू प्रखंड भी हैं। इन प्रखंडों में स्थित पहाड़ भी उनके निशाने पर हैं। कुछ स्थान पर तो क्रशर स्थापित होकर पहाड़ों को भी चबाना आरम्भ कर दिया है।

जंगलों, पहाड़ों, नदियों के साथ ही अपने आसपास से पुरखा जमाने के धरोहरों को गायब होते हम रोज-ब-रोज देख रहे हैं। इसके परिणामों को झेल भी रहे हैं, लेकिन हमारे संज्ञान में नहीं है। पांडू प्रखंड में कुटमू के बरवाही टोला में पुरखा जमाने से पहचान के रूप में खड़ा धजवा पहाड़ पर मंडराता खतरा इसी से जुड़ा हुआ मामला है। 10 एकड़ से भी ज्यादा क्षेत्र में फैला धजवा पहाड, जो आसपास के लोगों के लिये आस्था के केन्द्र के साथ ही मवेशियों के लिये ठहराव स्थल भी है, आज पत्थर चबाकर सम्पति बनाने वालों के निशाने पर है। धजवा  पहाड़ जिसके गोद में पेड़-पौधे खड़े हैं और पहाड़ के नीचे पड़ा है जीवनदाता जल ।

पहाड़ की चोटी पर लहराने वाला झंडा और पहाड़ के नीचे पड़ा पानी दोनों को बचाने की गुहार लगा रहे हैं। पहाड़, जंगल, नदियां व पर्यावरण बचेंगे, तभी हम भी बच पायेंगे इसलिये पहाड़ की पुकार को अनसुना करना खतरे को आमंत्रण देने जैसा है वह भी तब जब पहाड़ को मिटाने की तैयारी गैर-कानूनी और फर्जी तरीके से हो रही हो। लीज के कागजात दूसरी जगह के होते हैं और काम कहीं और होता रहता है।

सूचना अधिकार के तहत प्राप्त सूचना से यह स्पष्ट हो गया है कि थाना संख्या 559 के खाता संख्या 174, प्लॉट संख्या 1046, रकबा 5.08 एकड़ का लीज खनन हेतु मिला है, लेकिन खनन का काम प्लॉट संख्या 1048 में, जिसमें धरोहर धजवा पहाड़ सदियों से खड़ा है, में करने का प्रयास हो रहा है। खनन हेतु लीज भी फर्जी ग्रामसभा की बैठक के हवाले से लिया गया है। शिवालया कन्ट्रक्शन पहाड़ को निगलने हेतु अपने ‘दाँत-पंजे’ ठीक करने में लगा है।

प्रावधानों के विपरीत फर्जी कागजात के आधार पर प्राप्त लीज को रद्द करने की मांग को लेकर धजवा पहाड़ बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले ग्रामीण पिछले 52 दिनों से पहाड़ पर डेरा डाले हुये हैं। आंदोलन को तेज करने के निमित्त 19 दिसम्बर से वे क्रमिक भूख हड़ताल पर भी हैं। प्रशासन मौखिक आश्वासन देकर आंदोलन समाप्त करवाने के प्रयास में है, लेकिन लीज रद्द करने की प्रक्रिया आरम्भ होने तक ग्रामीणों ने आंदोलन पर डटे रहने का संकल्प ले रखा है।

इस बावत धजवा पहाड़ बचाओ संघर्ष समिति के संरक्षक युगल पाल कहते हैं कि पलामू प्रतिरोध की धरती रही है, पुरखों ने संघर्ष के बल पर हक पाने की सीख दी है। विरासत को बचाते हुए सरकार, प्रशासन व प्राकृतिक संसाधनों के बल पर सम्पत्ति का पहाड़ खड़ा करने वालों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिये जरूरी है कि एकजुट होकर संघर्ष को और तेज किया जाए और यह समाज के हर तबके के सहयोग के बिना संभव नहीं है। जीवन रक्षक धजवा ही नहीं अस्तित्व के लिये जरूरी पलामू प्रमंडल में स्थित पहाड़, जंगल, नदी व जमीन की रक्षा हेतु बड़ी लड़ाई की तैयारी जरूरी है। 

बताते चलें कि पलामू जिला अंतर्गत पांडू प्रखंड के बरवाही गाँव में स्थित धजवा पहाड़ पर शिवालया कंपनी व सम्बंधित ठेकेदार द्वारा पत्थरों का अवैध खनन किया जा रहा है। जिसके विरोध में पिछले 52 दिनों से ग्रामीण इस गैर-क़ानूनी खनन के विरुद्ध संघर्षरत हैं लेकिन अभी तक प्रशासन की ओर से खनन के विरुद्ध कोई कार्यवाई नही की गयी है।

सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त सूचना अनुसार ठेकेदार को प्लाट सं 1046 में खनन करने का लीज मिला था। साथ में ग्राम सभा का सहमति पत्र लेने को कहा गया था। लेकिन कंपनी ने इसके बजाय प्लाट 1048 (धजवा पहाड़) में खनन शुरू कर दिया। दूसरी तरफ न तो ग्राम सभा से सहमती ली गयी और न ही ग्राम सभा को सूचित किया गया। इसके विरोध में ग्रामीण व कई जन संगठन धजवा पहाड़ बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले संघर्षरत हैं। लगभग एक महीने तक पहाड़ पर धरने पर बैठे रहे लोगों के आन्दोलन के बाद भी जब सरकार की ओर से कोई सकारत्मक कार्यवाई नहीं हुई तब इस आन्दोलन ने 19 दिसम्बर से क्रमिक अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल का रूप ले लिया। 

बता दें कि जन दबाव में अंचल अधिकारी द्वारा जाँच की गयी एवं उनके रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया कि कंपनी व लीजधारक ने अवैध खनन किया है। लीज़ 1046 के लिए मिला था लेकिन 1048 पर अवैध खनन किया गया। लेकिन इस जांच रिपोर्ट के बाद भी अवैध खनन को बंद कराकर कंपनी के विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाई नही की गई बल्कि उल्टा ही प्रशासन ने पुलिस भेजकर 19 दिसम्बर को ग्रामीणों के अनशन पर ही हमला कर उनके समान व राशन को फेंक दिया और कई ग्रामीणों के विरुद्ध प्राथमिकी भी दर्ज कर दी ।

मौखिक आश्वासन के बल पर आंदोलन को समाप्त कराने में नकामी हासिल होने पर दमन का सहारा लेने से जहाँ प्रशासन की पोल खुली, वहीं जनता की एकजुटता मजबूत हुई है।

इस आंदोलन में कई राजनीतिक दल, जनसंगठन, सामाजिक संगठन के नेता व कार्यकर्ता भूख हड़ताल में शामिल हैं।

सनद रहे कि धजवा पहाड़ को निगलने के लिए पत्थर माफियाओं द्वारा किए गये कागजी प्रयास जाली साबित हो चुके हैं। प्रखंड के अंचलाधिकारी ने नापी के हवाले से स्पष्ट कर दिया है कि लीज जिस प्लॉट का हुआ है उसमें पत्थर नहीं धान के फसल लगे हैं। ग्राम सभा फर्जी, प्लॉट फर्जी , जमीन मालिक के साथ ही एग्रीमेंट फर्जी, लेकिन माफियाओं को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, वे पुलिस अफसरों व लठैतों के बल पर पहाड़ को चबाने को आतुर दिख रहे हैं। बावजूद इसके ग्रामीण डटे हैं।वे पानी के स्रोत पहाड़, उसके पास बने आहर, पर्यावरण व अपने पुरखों के अध्यात्मिक स्थल धजवा पहाड़ को बचाने के लिए कटिबद्ध हैं।

सरकारी उदासीनता, प्रशासन की ढुलमुल नीति के विरोध व आंदोलन के समर्थन में भूख हड़ताल पर बैठने वाले सीपीआई माले (लिबरेशन), सीपीआई माले (रेड स्टार), भारतीय समाजवादी पार्टी, जन संग्राम मोर्चा, हुल झारखंड क्रांति दल, मूल निवासी संघ, दिहाड़ी मजदूर यूनियन, एसटी एसी मानिरिटी एकता मंच, युवा पाल महासंघ, फूलन देवी विचार मंच व पीपीआई के प्रतिनिधियों ने कहा कि जनता की हितैषी होने का दावा करने वाली हेमंत सरकार जन विरोधी नीतियों को लागू करने की ओर बढ़ती दिख रही है। 

प्राकृतिक संसाधनों के बल पर विकास को अस्वीकार करने की हाई कोर्ट की टिप्पणी के बाद भी अवैध खनन का जारी रहना चिंता का विषय है। पहाड़, खनिज, नदी के बालू, जंगल के साथ ही जमीन की लूट जोरों पर है। 

संगठन के प्रतिनिधियों ने स्पष्ट रूप से कहा कि मनमानी पर उतरी सरकार व प्रशासन को संघर्ष के बल पर ही सबक सिखाया जा सकता है इसीलिए हमसब एक साथ एकजुटता प्रदर्शित करने व सरकार को चेतावनी देने धजवा पहाड़ पर भूख हड़ताल पर बैठे हैं।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)

विशद कुमार
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