सरकारी दमन के खिलाफ दिखने लगा है गुस्सा

मिर्जापुर। इस जिले का नाम सबसे पिछड़े जिलों में देश के आता है। लेकिन पिछले दो महीनों में पूरे देश को इसका नाम पता चल गया होगा। पहला, एक डीएम ने आदिवासियों की सैकड़ों साल से खेती कर रहे जमीन पर तहसील में अपने परिवार के लोगों के नाम करवा दी, और बाद में उसे करोड़ों के दाम पर बेच दिया। जिसका परिणाम हुआ दर्जन भर आदिवासियों की हत्या कर, जमीन का कब्ज़ा लेने की दबंगई। 

दूसरी घटना पिछले हफ्ते की है। जब बच्चों को दिए जाने वाले मिड डे मील में रोटी के साथ नमक दिए जाने की घटना सामने आई। 

यहां पर डीएम ने तत्काल कार्यवाही करते हुए, कुछ कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया और मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की।  यही सिस्टम में होता भी है। बात आई गई हो जाती है। लेकिन सरकार को अपनी कोई भी बदनामी बर्दाश्त नहीं। उन्हें मालूम है कि वे गलत को भी सही साबित कर सकते हैं।

अभी तक करते आये हैं। उनके पास मीडिया और सोशल मीडिया में एक फ़ौज है, जो गलत को सही करवा सकती है। प्रशासन का डंडा है।

एक हफ्ते बाद डीएम के सुर बदल गए। इस घटना को कवर करने वाले पत्रकार पवन जायसवाल पर तमाम धाराओं में केस दर्ज कर उसे आजीवन कारावास कैसे दिया जाए, इसकी तरतीब तैयार कर दी गई। 

इससे पत्रकार का जो होता सो होता, लेकिन उसके बहाने कई सर उठा रहे हजारों पत्रकार बिरादरी को स्पष्ट संदेश मिल जाता।  लेकिन दाल में नमक ज्यादा होना एक बात है, लेकिन नमक में दाल डाल देंगे तो कब तक चलेगा?

अब यह खबर जो कब की दब चुकी होती, देश भर में चर्चा का विषय है। अब तो यहां तक खबर आ रही है कि रोटी नमक ही नहीं बल्कि कई बार चावल में नमक बच्चों को खाने को मिलता था। 2 लीटर दूध में पानी मिलाकर स्कूल भर के बच्चों को दूध मिलता था। स्कूल में न तो तेल, मसाला हो तो सब्जी का क्या करें? केले आदि टीचर घर ले जाते थे।

यह सब अब भोजन माता खुद बता रही हैं, गरीब को किसका डर? उसके पास है ही क्या जो सरकार लूट लेगी/ वे तो लुटे हुए पहले से हैं।

और ताजा मामला पत्रकार कृष्ण कुमार सिंह की मॉब लिंचिंग का है। अगर पुलिस मौके पर नहीं पहुंचती तो भगवाधारियों के नेतृत्व में लोग 58 वर्षीय इस पत्रकार को मार ही डालते। इससे संबंधित एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया है जिसमें उनको पीट-पीट कर तकरीबन निर्वस्त्र कर दिया गया है।

अच्छी बात यह हुई है कि मिर्जापुर में पत्रकारों ने इन घटनाओं का सामूहिक तौर पर विरोध किया है। उन्होंने धरना देकर जिला प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। इसी तरह से पत्रकारों का एक प्रदर्शन आजमगढ़ में भी हुआ है।

यही एपिसोड मरणासन्न विपक्ष में भी देखने को मिल रहा है।

जो नहीं माना उसके खिलाफ सीबीआई, ईडी लग जाती थी। बहुत सारे तो इससे पहले कि कार्यवाही हो, शरणागत हो गए। 

लेकिन कल कर्नाटक में कांग्रेस के नेता डी शिवकुमार की गिरफ्तारी ने माहौल बदल दिया है। पहली बार गिरफ्तारी, बदनामी के बजाय ख्याति और उपलब्धि के रूप में सामने आई है। लोग गुस्से में हैं। विरोध प्रदर्शन यहां तक कि हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं। पानी सर के ऊपर गुजर जाने पर यह होना स्वाभाविक है।

इन दोनों घटनाओं से सबक सरकार और जनता दोनों अपने अपने स्तर पर ले रही होगी, मीडिया भी बिकने के बावजूद मौका मिलने पर खुद को आजाद दिखाना चाहता है। 

देखिये क्या क्या होता है?

(यह टिप्पणी स्वतंत्र टिप्पणीकार रविंद्र सिंह पटवाल ने की है।)

रविंद्र पटवाल
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