योगी राज में बेलगाम हुई पुलिस, लगातार पत्रकारों का कर रही उत्पीड़न

वाराणसी। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में पत्रकारों पर पुलिसिया उत्पीड़न का क्रम थमने का नाम नहीं ले रहा है। आलम यह है कि कहीं फर्जी मुकदमे दर्ज हो रहे हैं, तो कहीं उनके मोबाइल और कैमरे को छीना और पटका जा रहा है। हद की बात तो यह है कि कुछ स्थानों पर बिना किसी जांच पड़ताल के मुकदमे भी दर्ज कर लिए जा रहे हैं। इससे भी बड़ा घोर आश्चर्य का विषय यह है कि गुहार लगाए जाने के बाद न्याय की बात तो दूर है उनकी सुनवाई तक नहीं हो पा रही है। यूं कहें कि देश का ‘चौथा स्तंभ’ कहे जाने वाले मीडिया की आवाज को कुचलने का कुचक्र थमने का नाम नहीं ले रहा है।

उत्तर प्रदेश के वी-वीआईपी क्षेत्रों में शुमार वाराणसी देश के प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है। देश के प्रधानमंत्री के अलावा योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर, राज्यमंत्री दयाशंकर मिश्र दयाल और रविंद्र जायसवाल भी यहीं के हैं। चंदौली से सांसद व बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष तथा मौजूदा समय में केंद्रीय मंत्री महेंद्र पांडेय, जौनपुर से राज्यमंत्री गिरीश यादव, मिर्ज़ापुर से सांसद एवं केन्द्रीय राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल तथा यूपी के कैबिनेट मंत्री आशीष पटेल का यह इलाका गढ़ कहा जाता है। बावजूद इसके कलमकारों का उत्पीड़न थमने का नाम नहीं ले रहा है। और ना ही इनकी कोई सुनवाई हो पा रही है।

सिपाही ने मीडियाकर्मी का मोबाइल तोड़ा

ताज़ा मामला प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से सटे हुए चंदौली जनपद का है, जहां 26 नवंबर 2023 को शराबियों का वीडियो बना रहे एक समाचार पत्र के प्रतिनिधि का सिपाही ने मोबाइल छीना और पटकर तोड़ दिया। जिसकी जानकारी होते ही पत्रकारों में उबाल आ गया। पुलिस अधिकारियों से इसकी शिकायत कर कार्रवाई की मांग की गई है। जिसपर कार्रवाई का आश्वासन तो जरूर मिला है, लेकिन तीन दिन बीतने के बाद भी कार्रवाई तो दूर किसी ने पीड़ित पत्रकार की व्यथा को भी जानना उचित नहीं समझा है।

क्या है पूरा मामला?

चंदौली जनपद में शराब पीकर सड़कों, गलियों या सार्वजनिक स्थलों पर उत्पाद मचाने वाले लोगों के खिलाफ विशेष अभियान चलाया जा रहा है, ताकि शांति व्यवस्था में खलल न उत्पन्न होने पाए, ऐसा पुलिस वालों का कहना है। बात भी ठीक है ऐसे लोगों पर कार्रवाई तो बनती ही है, जो शराब के नशे में खुलेआम किसी को गालियां देते हैं और मारपीट करने पर अमादा हो जाते हैं।

चंदौली जनपद के पीडीडीयू नगर कोतवाली क्षेत्र के चकिया चौराहे पर रविवार की शाम ‘सड़क पर चढ़ेगा शुरूर तो जेल जाओगे जरूर’ अभियान का जीता जागता दृश्य कैमरे में कैद करना पत्रकार को महंगा पड़ गया है। दरअसल, चकिया चौराहे के पुलिस बूथ के समीप तीन शराबियों का उत्पात और आपसी गुत्थम-गुत्था का दृश्य कैमरे में कैद कर रहे पत्रकार अशोक कुमार जायसवाल का मोबाइल पुलिस पिकेट पर तैनात मनबढ़ सिपाही आलोक सिंह ने छीन लिया, और उनके साथ अभद्रता पूर्ण व्यवहार भी किया गया।

इस दौरान उक्त सिपाही द्वारा शराबियों के ऊपर जमकर डंडे भी बरसाए गए। जिसका वीडियो वायरल हो रहा है। पत्रकार अशोक ने सिपाही के इस कृत्य और मोबाइल छीनने की घटना को अपने अन्य पत्रकार साथियों को बताई तो घटना के वीडियो के साथ टेक्स्ट मैसेज लिखकर एसपी को मामले से अवगत कराया गया। जिस पर एसपी चंदौली ने आरोपी सिपाही के खिलाफ कार्रवाई की बात कही तो जरूर, लेकिन मामले के तीन दिन बीत जाने के बाद भी सिपाही के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

निर्ममता से पिटाई का अधिकार किसने दिया?

पत्रकार से दुर्व्यवहार और मोबाइल छीनकर पटक देने के बाद सिपाही आलोक सिंह बस यहीं नहीं रुकता। वह वर्दी के रौब में उत्पात मचा रहे शराबियों को निर्ममता से लाठी से पीटने लगता है। सवाल उठता है कि आखिरकार शराबियों को इस कदर सरेराह पीटने का अधिकार सिपाही को किसने दिया और यह कहां तक न्यायसंगत है। जबकि चंदौली एसपी के निर्देशन में संचालित ‘सड़क पर चढ़ेगा शुरूर तो जेल जाओगे जरूर’ अभियान के तहत जागरूक करने और 34 IPC के तहत कार्रवाई अमल में लाने की कवायद करनी है। इतने सख्त निर्देश के बावजूद शराबियों के ऊपर डंडे बरसाना क्या उचित कहा जा सकता है?

पीड़ित पत्रकार अशोक कुमार जायसवाल संसदवाणी न्यूज के संवाददाता हैं। जिनके साथ मनबढ़ सिपाही आलोक सिंह द्वारा न केवल अभद्रता की गई है बल्कि उनका मोबाइल छीनकर पटक दिया गया। इस मामले में शिकायत के बाद भी अभी तक किसी कार्रवाई का ना होना मामले में लीपापोती की ओर इशारा कर रहा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि महकमे के उच्च अधिकारी भी मूकदर्शक बन सिपाही के कृत्यों पर पर्दा डालने के प्रयास में जुटे हुए हैं। लोगों की माने तो उक्त सिपाही पर अवैध वसूली से लेकर ग्रामीणों का मोबाइल छीनकर अपने पास रखने का भी आरोप पूर्व में लग चुका है।

सिपाही आलोक सिंह के इस करतूत को लेकर स्थानीय पत्रकारों में जहां आक्रोश है वहीं तमाम मीडिया संगठनों के सदस्यों ने इस मसले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। वरिष्ठ पत्रकार अंजान मित्र कहते हैं कि “मौजूदा समय में जिस प्रकार से कलमकारों पर हमले होने की घटनाओं से लेकर उनके साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ी हैं ऐसे पहले कभी नही हुआ है।” वह कहते हैं “पत्रकार ग्रामीण हो या नगरों-महानगरों का सभी अपने दायित्वों का पालन करते हैं। जिनसे आमजन से लेकर अपराधी और अधिकारी तक उम्मीद के साथ आस लगाते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश यही इनका उत्पीड़न भी करने से पीछे नहीं हैं।”

कार्रवाई के बजाए मिलते रहे कोरे आश्वासन

पत्रकार के साथ हुए दुर्व्यवहार की घटना को बीते तीन दिन हो चुके हैं, लेकिन अभी तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है। विभिन्न संगठन के सदस्यों ने कई बार एसपी को फोन कर मामले से अवगत कराया, लेकिन एसपी ने सिर्फ कार्रवाई का आश्वासन ही दिया है। विभिन्न संगठन के बैनर तले पत्रकारों का हुजूम सोमवार को एसपी कार्यालय पहुंचा तो एसपी नहीं मिले। एसपी के निर्देश पर समकक्ष अधिकारी ने पत्रक लेकर कार्रवाई का आश्वासन दिया तो जरूर, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं।

हालांकि इस दौरान एसपी ने फोन पर वार्ता कर जांच कर उचित कार्रवाई का आश्वासन एक बार पुनः दिया है। इस बाबत पीड़ित पत्रकार अशोक जायसवाल ने बताया कि “एसपी ने कार्रवाई की बात कही है, यदि उचित कार्रवाई अमल में नहीं लाई जाती और पत्रकारों का उत्पीड़न नहीं रुकता तो पत्रकारों का हुजूम बड़े आंदोलन को बाध्य होगा, जिसकी सारी जिम्मेदारी चंदौली पुलिस महकमे की होगी।”

अब देखना यह है कि आखिरकार अभद्र सिपाही के खिलाफ क्या कुछ कार्रवाई अमल में लाई जाती है या मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। पीड़ित पत्रकार अशोक कुमार जायसवाल के पक्ष में आवाज बुलंद करते हुए पत्रकारों ने कहा है कि पीड़ित पत्रकार को न्याय दिलाने के लिए वह जरूर पड़ने पर राजधानी के लिए भी कूच करने को तैयार हैं।

विभिन्न संगठनों से जुड़े पत्रकारों- प्रताप नारायण चौबे, डॉ साजिद अंसारी, अजीत कुमार, संजीव कुमार, विजय कुमार, इकबाल हुसैन, मनमोहन कुमार, निखिल श्रीवास्तव, ओपी श्रीवास्तव का कहना है कि “जिस प्रकार से चंदौली से पूर्वांचल के जनपदों में पत्रकार उत्पीड़न की घटना बढ़ी हैं वह बेहद चिंताजनक हैं, जिस पर अंकुश ना लगने से स्वतंत्र होकर कार्य करना कठिन होने लगा है।

हैरानी जताते हुए पत्रकारों ने कहा कि “जिन माननीयों और विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए दिन रात कलमकार उनकी हर छोटी बड़ी उपलब्धियों, समस्याओं को प्रमुखता से उठाते हैं, उनकी आवाज बनते हैं। वह खुद पत्रकारों पर होने वाले जुर्मों सितम के मामले में चुप्पी साध जाते हैं। ऐसे लोगों को भी महिमा मंडित करने से पत्रकारों को बाज आना चाहिए।”

 पूर्वांचल के जनपदों में बढ़ी पत्रकार उत्पीड़न की घटनाएं

योगीराज में पत्रकार उत्पीड़न की घटनाओं की मानो बाढ़ सी आ गई है। अकेले पूर्वांचल के विभिन्न जनपदों की बात करें तो शायद ही ऐसा कोई जनपद अछूता होगा जहां किसी न किसी पत्रकार के साथ दुर्व्यवहार, उत्पीड़न की घटनाएं न हुई हों। वाराणसी से प्रकाशित धारदार हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र ‘अचूक संघर्ष’ के संपादक अमित मौर्य को 24 अक्टूबर 2023 की रात पुलिस की मौजूदगी में मारा-पीटा गया लेकिन कार्रवाई तो दूर उन्हें जेल भेज दिया गया, जो अभी तक कैद में हैं।

जबकि जय श्री राम का नारा लगाते हुए अमित मौर्य की पिटाई करने वाले लोग- जो ऊंची जाति का होने की दंभ भरते हैं- खुलेआम घूम रहे हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई की हिकामत तक वाराणसी पुलिस नहीं कर पाई है। आश्चर्य की बात है कि इस मसले पर वाराणसी के जनप्रतिनिधियों ने भी जुबान खोलने का साहस नहीं किया है। शायद ‘अचूक संघर्ष’ की साहसिक लेखनी से सभी दहले थे, उन्हें डर था कि पिछड़ी जाति के संपादक का समर्थन कहीं अगड़ों को नागवार न गुज़रे।

वहीं जौनपुर के पेसारा में गौशाला की हकीकत दिखाने पर चार पत्रकारों पर फर्जी मुक़दमें लाद दिए गए। जौनपुर के पत्रकार विनोद कुमार बताते हैं कि पेसारा गांव स्थित गौशाला की हकीकत दिखाने पर उन पर और उनके साथ गए तीन अन्य पत्रकारों पर केराकत कोतवाली में 24 मार्च 2023 को फर्जी मुक़दमा दर्ज किया जाता है।

मिर्ज़ापुर के ड्रमंडगंज में ग्रामीण पत्रकार अभिनेष प्रताप सिंह को 11 जून को ड्रमंडगंज थाना प्रभारी की मौजूदगी में दरोगा द्वारा दुर्घटना की कवरेज करते समय उठाकर थाने में लाकर बिना किसी अपराध के लॉकअप में बंदकर बुरी तरह से पिटाई की जाती है। मिर्ज़ापुर के ही मड़िहान कोतवाली क्षेत्र के कलवारी में जून महीने में पानी की समस्या को लेकर सड़क पर उतरे लोगों की कवरेज करने पहुंचे मीडिया के लोगों के मोबाइल छिन लिए गए थे।

शाय़द ही ऐसा कोई जनपद रहा हो जहां हाल के वर्षों और महीने में पत्रकार उत्पीड़न की घटनाएं न हुई हों। हद की बात तो यह है कि जब रक्षक ही भक्षक बन कलमकारों को कुचलने पर तुले हुए हों तो भला कैसे और किससे सुरक्षा और सम्मान की उम्मीद कलमकार करें।

(वाराणसी से संतोष देव गिरी की रिपोर्ट।)

संतोष देव गिरी
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संतोष देव गिरी