सत्ता हमेशा स्वतंत्र अभिव्यक्ति की दुश्मन रही है: लोकजतन सम्मान में बोले हरदेनिया

भोपाल।  लोकजतन सम्मान 2021 से इस वर्ष वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट लज्जाशंकर हरदेनिया को सम्मानित किया गया।  

लोकजतन के संस्थापक सम्पादक शैलेन्द्र शैली (24 जुलाई 1957- 07 अगस्त 2001) के जन्म दिन पर पिछली तीन वर्षों से यह सम्मान दिया जाता है।  इस बार इसका आयोजन भोपाल में हुआ।  

इस सम्मान को स्वयं को गौरवान्वित करने वाला बताते हुए हरदेनिया ने कहा कि वे सरकार और पूंजी घरानों द्वारा पत्रकारों को सम्मान इत्यादि दिए जाने के खिलाफ रहे हैं किन्तु  लोकजतन जनपक्षधरता को समर्पित अखबार है।  उसके द्वारा सम्मानित होना गौरव की बात है। 

पिछले  60 वर्षों से देश भर के समाचार समूहों में अंग्रेजी और हिंदी दोनों की पत्रकारिता से जुड़े रहे देश के प्रतिष्ठित पत्रकार हरदेनिया ने कहा कि पत्रकारिता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पूंजी के अंतर्विरोध में घिर कर संकट में आयी है। विज्ञापन और खरे  समाचार के बीच द्वंद में पत्रकार की स्वतन्त्रता और खबर दोनों ही मारे जाते हैं। अखबारों और मीडिया संस्थानों का न्यूज़ रूम वह जगह है जहां अभिव्यक्ति की सबसे ज्यादा खतरे में होती है। 

इस संबंध में अपने 6 दशक के अनुभवों की अनेक घटनाएं उन्होंने बयान कीं।   उन्होंने कहा कि पत्रकार बिल्कुल भी आजाद नहीं है- उसे अपने जमीर और विवेक की कीमत चुकानी पड़ती है।  हालांकि पहले कई सम्पादक ऐसे भी हुए हैं जिन्होंने दबाव के आगे घुटने नहीं टेके।  ऐसे कुछ उदाहरण भी उन्होंने दिए। 

हरदेनिया ने कहा कि सत्ता हमेशा स्वतंत्र अभिव्यक्ति की शत्रु रही है।  खुद अपने साथ घटी कई घटनाओं के जरिये उन्होंने सरकारों की दुर्भावना रेखांकित की। 

इंडियन फेडरेशन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट के स्थापना सम्मेलन में स्वीकृत घोषणापत्र का जिक्र करते हुए हरदेनिया ने कहा कि इसमें  देश के बड़े पत्रकार चेलापति राव ने दर्ज किया था कि जब गरीब और अमीर के बीच की बात हो तो पत्रकार को गरीब का, जब शोषित और शोषक के बीच की बात हो तो उसे शोषित का साथ देना चाहिए।  पत्रकारों को अपनी कन्शेन्स – जमीर और विवेक – की हत्या नहीं करनी चाहिए।  मगर हालत यह है कि पत्रकार देश का सबसे ज्यादा असुरक्षित नागरिक है। नौकरी गंवाने के बाद सिवाय भूखों मरने के कोई और विकल्प उसके पास नहीं होता।  उसकी हिफाजत के लिए बना वर्किंग जर्नलिस्ट क़ानून भी मोदी सरकार ने समाप्त कर दिया है।  

इमरजेंसी में पत्रकारिता पर लगे अंकुश का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि उस दौर में भी मेनस्ट्रीम के निखिल चक्रवर्ती  सहित अनेक सम्पादक थे जिन्होंने अपनी रीढ़ सलामत रखी- जबकि आज जो आपातकाल में कुर्बानी का दावा कर रहे हैं उस आरएसएस के सरसंघचालक ने इंदिरा गांधी को सराहना और याचना की चिट्ठियां लिखी थीं।  देश भर में माफियां माँगी थी।  

लोकजतन की तरफ से वरिष्ठ साहित्यकार और लोकजतन के स्तम्भकार राजेश जोशी ने हरदेनिया को सम्मानित किया।  लोकजतन की प्रकाशक संध्या शैली की अध्यक्षता और संचालन में हुए समारोह में सम्पादक बादल सरोज ने लोकजतन की निरंतरता के 22 वर्ष और कार्यकारी सम्पादक रामप्रकाश त्रिपाठी ने सम्मानित पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में जानकारी दी। 

आयोजन में लोकजतन के सम्पादक मण्डल के सदस्य प्रमोद प्रधान, स्तम्भकार मनोज कुलकर्णी, जनविज्ञान आंदोलन की नेत्री आशा मिश्रा, जमस की प्रदेश अध्यक्षा नीना शर्मा, प्रगतिशील लेखक संघ के प्रांतीय महासचिव शैलेन्द्र कुमार शैली, मध्यप्रदेश हिंदी ग्रन्थ अकादमी के पूर्व निदेशक शिवकुमार अवस्थी, कैलाश तिवारी, जमस भोपाल की सचिव खुशबू केवट, जन विज्ञान आंदोलन के प्रमोद मिश्रा सहित अनेक लोग उपस्थित थे।  इस आयोजन का डिजिटल छायांकन लेफ्ट फ्रंट वेबसाइट के दृगचंद प्रजापति तथा अनिल मयूर ने किया। 

इससे पहले लोकजतन सम्मान 2019 से डॉ राम विद्रोही (ग्वालियर), तथा 2020 के सम्मान से कमल शुक्ला (रायपुर) को सम्मानित किया जा चुका है।  

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