जन्मदिन पर विशेष: मौजूदा क्रूर व्यवस्था भी मांग रही है भगत सिंह जैसी कुर्बानी

आज से 90 साल पूर्व शहीद-ए-आजम स्वर्गीय भगत सिंह की कही बातें आज मोदीराज में बिल्कुल सत्य साबित हो रही हैं

‘चाह नहीं मैं सुरबाला के

गहनों में गूंथा जाऊँ,

चाह नहीं, प्रेमी माला में

विंध प्यारी को ललचाऊँ,

चाह नहीं सम्राटों के शव पर

हे हरि ! डाला जाऊँ,

मुझे तोड़ लेना वनमाली!

उस पथ पर देना तुम फेंक,

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने

जिस पथ पर जावें वीर अनेक। ‘

उक्त कविता स्वर्गीय माखनलाल चतुर्वेदी ने शहीद-ए-आजम भगत सिंह के जीवन काल में ही बिलासपुर की सेन्ट्रल जेल की बैरक नंबर 9 में कैदी अवस्था में 18 फरवरी, 1922 को लिखा था। उस समय भगत सिंह 15 वर्ष की आयु को प्राप्त कर चुके थे। इस कविता में शहीदों के प्रति एक पुष्प द्वारा की गई अभिव्यक्ति किसी भी शहीद के सम्मान में गढ़े गये शब्द की सीमा का अतिरेक है, राष्ट्रकवि स्वर्गीय माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित इस कविता में शहीदों के प्रति जो अगाध और अप्रतिम शब्दों का प्रयोग किया गया है, वह वर्णनातीत है। शहीद-ए-आजम भगत सिंह इस कविता को जरूर पढ़े होंगे। इस धरती पर सबसे मूल्यवान चीज किसी व्यक्ति या जीव का जीवन होता है। किसी दार्शनिक ने कहा है कि ‘मनुष्य भगवान तो बना सकता है,परन्तु एक छोटे से पतिंगे को नहीं बना सकता।’ अपने उस अमूल्य जीवन को शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने इस देश को आजाद कराने हेतु यहाँ के युवाओं के रक्त में एक उमंग और जोश भरने के लिए स्वयं को मात्र साढ़े 23 साल की अल्प आयु में होम कर दिया, कुर्बान कर दिया।

इस देश को स्वतंत्र कराने में हजारों-लाखों लोगों के त्याग, बलिदान और कुर्बानियों को नहीं भुलाया जा सकता। गाँधी, सुभाष, नेहरू,आजाद, अशफ़ाक़, बिस्मिल, बटुकेश्वर आदि जैसे हजारों-लाखों लोगों का अप्रतिम योगदान है,परन्तु इस देश में शहीद-ए-आजम भगत सिंह के अपने स्वयं को प्राणोत्सर्ग करके इस देश में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रति देश के जन-जन में घृणा और आक्रोश पैदा करने के उनके अप्रतिम योगदान के आगे उक्त सभी लोग फीके पड़ जाते हैं। शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने अपनी फाँसी होने से पूर्व ये उद्गार व्यक्त किया था कि ‘देश तो निश्चित रूप से स्वतंत्र हो जाएगा, परन्तु हमें ये आशंका है कि इस देश की स्वतंत्रता के बाद भी यहां के आम आदमी, किसानों, दिहाड़ी मजदूरों, छोटे दुकानदारों आदि के जीवन स्तर में कोई ख़ास परिवर्तन नहीं होगा, क्योंकि ब्रिटिश अंग्रेज पूंजीपतियों की जगह देशी भूरे पूंजीपति आ जाएंगे। इस देश की कथित आजादी में मात्र सत्ता परिवर्तन होगा व्यवस्था परिवर्तन नहीं होगा। वह जस का तस रहेगा या और भी विकराल रूप धारण कर लेगा।’

भगत सिंह द्वारा उक्त कथन कहने के 90 वर्षों बाद भी उस क्रांतिकारी दूरद्रष्टा और महास्वप्नद्रष्टा महामानव की एक-एक बात आज सत्य साबित हो रही है। आज एक आम भारतीय पैसे-पैसे के लिए मोहताज है, इस देश में बेरोजगारी पिछले 40 सालों में सर्वोच्च स्तर पर है, राज्य प्रश्रयित कमीशनखोरों द्वारा जानबूझकर जीवनरक्षक दवाओं और ऑक्सीजन का कृत्रिम अभाव पैदाकर हजारों नवजात बच्चों को जान बूझकर मार दिया जाता है, संबन्धित राज्य का मुख्यमंत्री कमीशनखोरों को दंडित करने के बजाय,उन्हें बचाने का कुकृत्य करता है, ठीक इसके विपरीत एक नेकदिल डॉक्टर को महीनों जेल में अनावश्यक बंद कर प्रताड़ित करता है। इसी देश के गोदामों में एक तरफ करोड़ों टन अनाज भरा रहता है,हर साल उसे जानबूझकर सड़ाया जाता है,दूसरी तरफ इसी देश में करोड़ों लोग रात में भूखे पेट सो जाने को अभिशापित हैं, उन्हें जानबूझकर इसके लिए बाध्य किया जाता है।

सरकारी अस्पतालों, स्कूलों, रेलवे, बसों की हालत अत्यंत खराब करके कुछ चंद पूँजीपतियों को देश का सारा संसाधन लुटा दिया जा रहा है, आम जनता पैसे-पैसे के लिए मोहताज है, वहीं इस देश के भूरे भारतीय पूंजीपति वर्तमान समय के सत्ता के कर्णधार के सहयोग से एक दिन में ही अरबों रूपये धन अर्जित कर रहे हैं, मतलब भीषण असमानता विकराल रूप से बढ़ी है। शहीद-ए-आजम भगत सिंह की विचारधारा के प्रेरणापुरूष तत्कालीन सोवियत क्रांति के जनक और सोवियत संघ के संस्थापक व्लादीमिर इल्यिच लेनिन थे, परन्तु भारत में शहीद-ए-आजम भगत सिंह की फाँसी के बाद उनकी विचारधारा को भी पूंजीवादी विचारधारा के पोषक नेताओं गाँधी, नेहरू और पटेल आदि ने गहरे में दफ़न कर दिया। वर्तमान काल का भारतीय राजनैतिक नेतृत्व करने वाले सत्ता के कर्णधार तो पूरी बेहयाई से पूंजीपतियों की गोद में ही बैठकर इस देश की सत्ता को चला रहे हैं।

सबसे बड़े दुःख की ये बात है कि इस देश को ब्रिटिश साम्राज्यवाद से मुक्त कराने में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले उस वीर शिरोमणि शहीद-ए-आजम के लिए इस देश में एक स्मारक तक नहीं बनवाया गया है। भगत सिंह का जन्म स्थल और फाँसी स्थल दोनों भारत-पाकिस्तान बंटवारे में पाकिस्तानी भूभाग में चला गया है। भगत सिंह की स्मृति के रूप में भारत में केवल एक यादगार स्मृतिस्थल कानपुर के रामनारायण बाजार की तंग गलियों में स्थित पीलखाना में शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा स्थापित प्रताप प्रेस का एक अत्यन्त जर्जर भवन अभी भी गुमनामी की चादर लपेटे खड़े खड़े खून के आँसू बहा रहा है। जहां भगत सिंह लगभग ढ़ाई साल तक रहकर बलवंत सिंह के छद्म नाम से प्रताप समाचार पत्र में अपने ओजस्वी लेख लिखते रहे। क्या इस राष्ट्र, इस समाज और इस देश के लिए यह कुकृत्य अपने उस महान सपूत के प्रति कृतघ्नता की पराकाष्ठा नहीं है कि हम जिसकी वजह से स्वतंत्र देश में आज़ादी की सांस ले रहे हैं, उसी महानायक के प्रति इतनी बेरूखी और उसकी अवमानना कर रहे हैं। क्या इस देश के लोगों,यहाँ के समाज और यहाँ के सत्ता के कर्णधारों का यह पुनीत कर्तव्य नहीं बनता कि उस अमूल्य धरोहर को संरक्षित कर उसे एक पावन व पवित्र धरोहर स्थल या स्मारक के रूप में विकसित करें।

भगत सिंह को शहीद हुए 89 वर्ष हो चुके हैं,इतने वर्षों बाद इस देश की दुःखद व बदहाल हालात और परिस्थितियों को देखकर यह लग नहीं रहा है कि जैसे आज भगत सिंह पुनः जिंदा हो गये हों,उठ खड़े हुए हों ?क्योंकि आज से ठीक 89 वर्ष पहले उन्होंने कहा था कि ‘यह देश स्वतंत्र तो हो जाएगा,परन्तु इसकी व्यवस्था जस की तस बनी रहेगी,यहाँ के किसानों,आम आदमी,छोटे दुकानदारों,मजदूरों के जीवन में कोई खास परिवर्तन नहीं होगा,क्योंकि इस देश से अंग्रेज मतलब शोषक ब्रिटिशसाम्राज्यवादी चले जाएंगे,परन्तु उनकी जगह देशी भूरे अंग्रेज उनको स्थानापन्न कर देंगे,जो अंग्रेजों से भी ज्यादे गरीब,मजदूर व किसानों आदि समाज के निचले तबके का अनवरत शोषण करेंगे। ‘उनकी कही ये बातें 89 साल बाद हमारी आँखों के सामने बिल्कुल सच होती हमें आज सच में दिखाई दे नहीं रहीं हैं ?

कांग्रेसियों के शासन में भी जनता और मजदूरों तथा किसानों का यह शोषण तो था ही,परन्तु आज कथित सबसे अच्छे प्रधानमंत्री के राज में इन कुटिल, क्रूर और दरिंदे शासकों का मजदूरों के प्रति क्रूर व्यवहार आज से ठीक 89 साल पूर्व भगत सिंह के कथनानुसार भूरे देशी अंग्रेजों की मजदूरों से क्रूरता वाली बात आँखों के सामने घटित हो रही है, जहाँ इस देश के मजदूरों पर इन सत्ता के कर्णधारों, जो वास्तविक रूप में पूंजीपतियों के दलाल हैं,के इशारों पर निरपराध, निरीह, बेसहारा, मजदूरों, बेरोजगार युवाओं, अल्पसंख्यकों, स्वतंत्र चिंतक पत्रकारों, प्रोफेसरों, डॉक्टरों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, आदिवासियों, अनूसूचित जातियों व जनजातियों के पक्ष में आवाज उठाने वाले पत्रकारों व भले लोगों को अनावश्यक अर्बन नक्सली घोषित कर के फर्जी मुकदमे करके जेलों में अकथनीय जुल्म किया जा रहा है, राज्य पालित पुलिस द्वारा सम्पूर्ण देश में, जगह-जगह लाठियों से बेमतब जबर्दस्त पिटाई हो रही है, उनकी सीधे गोली मारकर हत्याएं की जा रही हैं।

अब इस देश के लाखों अन्नदाता पिछले 73 सालों से हो रहे अपने अनवरत शोषण से तंग आकर इस देश की राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में आकर सत्ता के क्रूर व असहिष्णु कर्णधारों तक उन्हें अपनी बात कहना चाह रहे हैं,लेकिन फॉसिस्ट व क्रूर स्वभाव तथा तानाशाही प्रवृत्ति के वर्तमान समय के कर्णधारों ने अपने ही देश के अन्नदाताओं पर पिछले 52 दिनों से लगातार अवर्णनीय जुल्मोसितम किए जा रहे हैं ! इसके अलावे अपने उन अन्नदाताओं को ऐसी-ऐसी गालीगलौज कर रहे हैं,जिनके श्रम से उपजाए अन्न को वे खुद भी बेशर्मी से खाते हैं कि इनके द्वारा किए जा रहे जुल्मों के सामने इस दुनिया का सबसे क्रूरतम् तानाशाह जर्मनी का एडोल्फ हिटलर के जुल्म भी फीके पड़ गए हैं, उन्हें आतंकवादी,खालिस्तानी तक कह देनेवाले वर्तमान सत्ता के कर्णधारों को जरा भी शर्म-हया नहीं बची है। भारत के वर्तमान सत्ता के कर्णधारों की अमानवीयता,असहिष्णुता,क्रूरता,बर्बरता की दास्तान वर्णनातीत है,जो दिसम्बर-जनवरी की भयावह ठंड में शहीद होने वाले 70 अन्नदाताओं की शहादत पर उन शहीद अन्नदाताओं के लिए अभी तक समवेदना के एक शब्द तक नहीं बोले हैं !

भारत के वर्तमान समय के राजनीतिक सत्ता के कर्णधारों का यह वहशीपना भरा व्यवहार इस धरती पर मानवीय संवेदना आधारित मूल्यों के ह्रास और पतन की पराकाष्ठा की सीमा इतिहास में वर्णित सबसे असभ्य,निरंकुश,असंवेदनशील और क्रूर तानाशाह शासकों यथा रोम के नीरो, फ्रांस के राजा लुई सोलहवें,रूस के जार,ईटली के फॉसिस्ट तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी और जर्मन नात्सी तानाशाह,नरपिशाच एडोल्फ हिटलर को भी पीछे छोड़ता नजर आ रहा है ! हम करोड़ों भारतीयों को भारत के इस वर्तमान सत्ता पर काबिज नव साम्राज्यवादियों पर उक्तवर्णित तानाशाहों से भी ज्यादे घिन और घृणा होने लगी है ! इन नव फॉसीवादियों का देश हित में जितना जल्दी हो शीघ्रता से सर्वनाश हो जाना चाहिए, जैसे इस दुनिया से ब्रिटिशसाम्राज्यवादियों का नाश हुआ,नाजियों का नाश हुआ,हिटलर का नाश हुआ,मुसोलिनी का नाश हुआ,ठीक उसी प्रकार भारत के इन वर्तमान सत्ता के नवफॉसीवादियों का नाश अब शीघ्रता से होनी ही चाहिए,अब जुल्म की इंतहा हो चुकी है !

(निर्मल कुमार शर्मा पर्यावरणकर्मी हैं। आजकल गाजियाबाद में रहते हैं।)

निर्मल कुमार शर्मा
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निर्मल कुमार शर्मा