प्रोपेगेंडा चीफ़ बोले – सोशल मीडिया का कोई माई-बाप नहीं

“एक वक्त था जब शक्तिशाली प्रिंट और टेलीविजन मीडिया के मालिक और संपादक हुआ करते थे, मगर सोशल मीडिया का कोई माई-बाप नहीं है। प्रिंट और विजुअल मीडिया में पहले कुछ लोग हुआ करते थे, जिनका नियंत्रण होता था, मगर सोशल मीडिया पर किसी का कंट्रोल नहीं है। इसलिए अगर आप सचेत नहीं रहते हैं तो आप मीडिया ट्रायल का शिकार हो सकते हैं। – उपरोक्त बातें लखनऊ में आयोजित सोशल मीडिया वर्कशॉप में योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी आईटी सेल के वर्कर्स और अधिकारियों से ‘भारत में मीडिया के बदलते स्वरूप’ पर बात करते हुए कहा है।

उन्होंने आगे कहा है कि – “इसलिए इस बेलगाम घोड़े को नियंत्रित करने के लिए हमारे पास उस प्रकार का प्रशिक्षण और उस प्रकार की तैयारी बहुत आवश्यक है।

सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि मौजूदा समय में सोशल मीडिया एक तरह से ‘बेलगाम घोड़ा’ है और इस पर लगाम कसने के लिए प्रशिक्षण और तैयारियों की जरूरत है।

आदित्यनाथ ने पार्टी कार्यकर्ताओं को सतर्क करते हुए चेताया कि अगर वे सावधानी नहीं बरतते हैं तो फिर वे मीडिया ट्रायल का शिकार हो सकते हैं। पेगासस जासूसी कांड विवाद का हवाला देते हुए उन्होंने पार्टी के आईटी सेल के कार्यकर्ताओं से कहा कि सोशल मीडिया पर जवाब देने के लिए तैयार हो जाइए और किसी मुहूर्त का इंतजार मत कीजिए।

वहीं कांग्रेस के सीनियर नेता कपिल सिब्बल ने तंज कसा है। कपिल सिब्बल ने ट्वीट कर कहा कि योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि सोशल मीडिया एक बेलगाम घोड़ा है और इस पर लगाम के लिए उन्होंने ट्रेनिंग और तैयारियों का आग्रह किया। इसी ट्वीट में उन्होंने सवाल किया कि भारत में कौन सा एक राज्य है जो बेलगाम प्रदेश है।

अपना साइबर सेल बना रहा आरएसएस

भाजपा, मोदी-योगी के ख़िलाफ़ आये दिन चलने वाले हैशटैग से चारों खाने चित्त पड़ी भाजपा और सरकार की मदद के लिये आरएसएस अपने हर एक स्वयंसेवक को ट्रेनिंग देकर सोशल मीडिया पर बैठाएगा और इसके लिये वो अपना खुद का साइबर सेल बनायेगा।

हाल ही में चित्रकूट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पांच दिवसीय चिंतन शिविर में समय के हिसाब से स्वयंसेवकों को भी हाईटेक होने की ज़रूरत पर बल दिया गया। और निर्णय लिया गया कि जल्द ही भाजपा की तर्ज़ पर आरएसएस का खुद का आईटी सेल होगा। एक-एक स्वयंसेवक सोशल मीडिया से जुड़ेगा, और दमदार तरीके से अपनी बात रखेगा। इसके साथ ही संघ कार्यकर्ता नवरात्र से चुनाव अभियान का आगाज करेंगे। और कोरोना की तीसरी लहर से बचने और सबको बचाने का काम करेंगे। बैठक में आरएसएस के सदस्यों को सोशल मीडिया का प्रशिक्षण देने की बात भी की गयी।

बैठक में कहा गया कि आरएसएस कार्यकर्ता अभी ग्रामीण और दुर्गम इलाकों में शाखाओं या फिर सेवा कार्यों के जरिए अपने विचारों को रख पाते हैं। लेकिन, सोशल मीडिया से जुडऩे के बाद आसानी से अपनी बात रख पाएंगे। तर्को के साथ भ्रांतियों को भी दूर कर सकेंगे। इसलिए सोशल मीडिया का प्रशिक्षण भी स्वयंसेवकों को दिया जाएगा।

सोशल मीडिया पर लगाम के लिये लाये नया क़ानून

भारत में सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाम लगाने के लिये दशकों पुराने इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट (Information Technology Act) में संशोधन करके 26 फरवरी 2021 को नया  एक्ट ले आई। जिनमें बिलकुल नए कोड़ ऑफ एथिक्स पेश किए गये।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के बारे में विधान है कि उन्हें किसी मैसेज या ट्वीट (संदेश) के फर्स्ट ओरिजिनेटर (उद्भावक) के बारे में बताना होगा। इसके पीछे सरकार की एक मंशा ये है कि सोशल मीडिया की कंपनियों को लेकर उपभोक्ताओं को कोई शिकायत है तो वे इस शिकायत का निवारण करें।

इसका मैकेनिज्म ये है कि सोशल मीडिया कंपनियों को चीफ कंपलायन्स ऑफिसर (अनुपालन अधिकारी) रखना होगा। उसका जिम्मा नये नियमों का अनुपालन करवाने की होगी। एक नोडल ऑफिसर रखना होगा जो कानून के अमल से जुड़ी एजेंसी से आठों पहर संपर्क में होगा। और कंपनियों को एक रेजिडेंट ग्रेवांस ऑफिसर भी तैनात करना होगा जो शिकायत निवारण की विहित प्रक्रियाओं का पालन करते हुए जरुरी कार्रवाई करेगा। ये तीनों ही अधिकारी भारत के निवासी होने चाहिए। अगर कोई ऐसी शिक़ायत आती है कि सोशल मीडिया के उपभोक्ता की गरिमा की हानि हो रही है, मिसाल के लिए किसी महिला की अस्मिता को चोट पहुंचाने वाला कोई कृत्य सोशल मीडिया पर चढ़ता और बढ़ता है तो ये अधिकारी तय करेंगे कि ऐसा संदेश 24 घंटे के अन्दर हटा लिया जाये। सोशल मीडिया कंपनियों को इस बाबत हर माह कंपलायन्स (अनुपालन) रिपोर्ट भी देनी होगी।

इसी से जुड़ा एक हिस्सा ये है कि जिस संदेश को लेकर शिकायत है उसके फर्स्ट ओरिजिनेटर (प्रथम उद्भावक) के बारे में सोशल मीडिया कंपनियों को हर वक्त नहीं बल्कि विशेष आदेश पर बताना होगा। गाइडलाइन्स रुल्स (2021) के नियम संख्या 5(3) में स्पष्ट कहा गया है कि मैसेजिंग प्लेटफॉर्म जिसके उपभोक्ता केंद्र द्वारा निर्धारित संख्या से ज्यादा हों, उन्हें सक्षम न्यायाधिकरण (कंपिटेंट ज्यूरीस्डिक्शन) के आदेश पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69 के तहत संदेश के प्रथम उद्भावक के बारे में अपने कंप्यूटर रिसोर्स के सहारे जानकारी देनी होगी। अगर संदेश को प्रथम उद्भावक भारत के बाहर का हुआ तो प्रथम उद्भावक उसे माना जायेगा जिसने भारत में संदेश-विशेष को पहली बार अपने पोस्ट या ट्वीट आदि में जगह दी या उसका प्रथम प्रसारक बना।

66ए क़ानून खत्म होने का बावजूद सरकार कर रही कार्रवाई

05 जुलाई 2021 को नोटिस जारी करके सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि साल 2015 में खत्म की गई IT ACT की धारा 66A के तहत अब भी केस क्यों दर्ज हो रहे है। गौरतलब है कि धारा 66A को मार्च 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि रद्द होने के बावजूद FIR और ट्रायल में इस धारा का इस्तेमाल क्यों हो रहा है। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि कानून की किताबें अभी पूरी तरह से बदली नहीं हैं। इसके बाद कोर्ट ने हैरानी जताते हुए केंद्र को नोटिस जारी किया है।

कोर्ट ने ये नोटिस मानवाधिकार पर काम करने वाली संस्था पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) की याचिका पर जारी किया था। PUCL ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि अभी भी 11 राज्यों की जिला अदालतों में धारा 66A के तहत दर्ज 745 मामलों पर सुनवाई चल रही है।

अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला है 66 ए

साल 2015 में 66ए को निरस्त करते हुये तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस कानून की परिभाषा स्पष्ट नहीं है। एक कंटेंट जो किसी एक के लिए आपत्तिजनक होगा तो दूसरे के लिए नहीं। अदालत ने कहा था कि धारा 66 ए से लोगों के जानने का अधिकार सीधे तौर पर प्रभावित होता है।

तब तत्कालीन जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस रॉहिंटन नारिमन की बेंच ने कहा था कि ये प्रावधान साफ तौर पर संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है। वर्ष 2015 में जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त किया तो उसका मानना था कि ये धारा संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) यानि बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी का हनन है।

तब शीर्ष अदालत ने ये भी कहा था कि 66ए का जो मौजूदा दायरा है, वो काफी व्यापक है। ऐसे में कोई भी शख्स नेट पर कुछ पोस्ट करने से डरेगा। ये विचार अभिव्यक्ति के अधिकार को अपसेट करता है। ऐसे में 66ए को हम गैर संवैधानिक करार देते हैं।

वर्ष 2015 में जब ये धारा निरस्त हुई थी तब इस धारा के तहत 11 राज्यों में 229 मामले लंबित थे। अब पिछले कुछ सालों में इन्हीं राज्यों में 1307 मामले दर्ज किए गए हैं।

शिवसेना चीफ रहे बाल ठाकरे की मौत के बाद मुंबई की लाइफ अस्त-व्यस्त होने पर फेसबुक पर टिप्पणी की गई थी। घटना के बाद टिप्पणी करने वालों की गिरफ्तारी हुई। इसके बाद इस मामले में लॉ स्टूडेंट श्रेया सिंघल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई। याचिका में आईटी एक्ट की धारा-66ए को खत्म करने की गुहार लगाई गई। सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में ऐतिहासक फैसले में इसे निरस्त कर दिया।

66 ए सरकार के लिये सुरक्षा कवच थी

दरअसल हाल के कुछ बरसों में सोशल मीडिया पर कथित तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट करने पर जिस धारा में प्रशासन और पुलिस लोगों पर मुकदमा दर्ज कर रही थी, वो धारा 66ए ही था। इसमें सोशल मीडिया और ऑनलाइन पर कोई आपत्तिजनक टिप्पणी करना कानून के दायरे में आता था, लेकिन इसकी परिभाषा गोलमोल थी, जिससे इसका दायरा इतना बढ़ा हुआ था कि अगर पुलिस-प्रशासन चाहे तो हर ऑनलाइन पोस्ट पर गिरफ्तारी हो सकती थी या एफआईआर हो सकती थी। ये धारा सूचना-प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत आती थी। रद्द होने से पहले धारा 66 ए के तहत ऑनलाइन तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने पर 03 साल की सजा का प्रावधान था।

धारा 66 ए तब पुलिस को अधिकार देती थी कि वो कथित तौर पर आपत्तिजनक कंटेंट सोशल साइट या नेट पर डालने वालों को गिरफ्तार कर सकती थी। लेकिन अब पुलिस ऐसा नहीं कर सकती।

गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुछ समय पहले इस पर तीखी टिप्पणी करते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस को कठघरे में खड़ा किया था। उसने ऐसी रिपोर्ट को रद्द कर दिया था। इसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस अफसरों पर भी कड़ी टिप्पणी की थी कि वो इस धारा के निरस्त होने के बाद भी इसके तहत प्राथमिकी कैसे दर्ज कर रहे हैं।

सोशल मीडिया की ताक़त से ख़ौफ़जदा आरएसएस भाजपा

मार्केट रिसर्च फर्म टेकएआरसी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 50 करोड़ लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये भी लिखा था कि इंटरनेट की आभासी दुनिया में लोगों की जो आवन-जावन और धमाचौकड़ी यानि वेब ट्रैफिक है उसका 77 फीसद हिस्सा सिर्फ स्मार्टफोन के जरिए हो रहा है। एक आकलन के मुताबिक आज के भारत में वॉट्सअप के 53 करोड़ उपभोक्ता हैं, यूट्यूब के 44.8 करोड़। फेसबुक 41 करोड़ उपभोक्ताओं के साथ तीसरे नंबर पर है तो इंस्टाग्राम 21 करोड़ उपभोक्ताओं के साथ चौथे नंबर पर। और, इन सबके पीछे-पीछे ट्वीटर के 1.75 करोड़ उपभोक्ता हैं। तो कुल संख्या 160 करोड़ के पार है।

गौरतलब है कि भाजपा और आरएसएस सोशल मीडिया पर अपनी खुलती कलई से डरी हुई हैं। वो नहीं चाहती की आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावो में उन्हें मुंह की खानी पड़ी। इसलिये सरकार एक ओर जहां सोशल मीडिया पर क़ानून लाकर अभिव्यक्ति थी आज़ादी को प्रभावित कर रही है वहीं दूसरी ओर अपने साइबर गैंग को और धारदार करने के लिये उन्हें ट्रेनिंग दे रही बल्कि नई भर्तियां भी कर रही है।

-जनचौक के विशेष संवादाता सुशील मानव की रिपोर्ट

सुशील मानव
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