कॉरपोरेट लूट बंद करने की मांग के साथ मथुरा में जी-20 के खिलाफ प्रदर्शन

मथुरा। 9-10 सितम्बर 2023 को देश की राजधानी दिल्ली में जी-20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों की बैठक हुई। आमंत्रित देशों के साथ विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रतिनिधियों के साथ-साथ दुनिया भर के कॉरपोरेट घरानों के प्रतिनिधियों ने भी बैठक में भाग लिया। इस बैठक के दौरान दिल्ली के सभी ऑफिस, स्कूल-कॉलेज और अदालतों आदि को बंद करके यातायात को पूरी तरह से बाधित कर दिया गया तथा दिल्ली की जनता को एक बार फिर लॉकडाउन जैसी स्थिति में कैद रहने ‌के लिए मज़बूर कर दिया गया।

दिल्ली में जी-20 के सम्मेलन के लिए ‘जहां झुग्गी, वहीं मकान’ का नारा देने वाली सरकार ने हज़ारों लोगों के घरों को तोड़कर उन्हें बेघर कर दिया, जिन लोगों के घरों तथा झुग्गी-झोपड़ियों को वे तोड़ न सके, उन्हें जी-20 के बैनरों से ढक दिया गया, जिससे कि दुनिया भर के लोग वास्तविक भारत को न देख सकें।

भारत सरकार ने जी-20 शिखर सम्मेलन में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (एक विश्व, एक परिवार, एक भविष्य) का नारा दिया, परन्तु वर्तमान विश्व के इस परिवार में मज़दूर, किसान व देश के आम आदमी का कोई सुरक्षित भविष्य नहीं है। दिल्ली तथा पूरे राजधानी क्षेत्र को एक पुलिस छावनी में बदल दिया गया। हर तरह के विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई। गुरुग्राम में कुछ संगठनों के विरोध प्रदर्शन करने पर उनके साथ मारपीट की गई तथा उन्हें गिरफ़्तार भी किया गया।

इसी सब वजहों से दिल्ली के कुछ जनसंगठनों- जिसमें समाजवादी लोकमंच, सोशलिस्ट अड्डा जैसे संगठनों- ने जी-20 को लेकर छात्रों, नौजवानों तथा बौद्धिक समुदाय के बीच शिखर सम्मेलन के पहले दिन मथुरा में एक संगोष्ठी एवं विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया, जिसमें भारी संख्या में छात्र-छात्राओं ने भी भाग लिया।

गोष्ठी में बोलते हुए समाजवादी लोकमंच के धर्मेन्द्र आज़ाद ने कहा कि “इस सम्मेलन के दौरान विभिन्न शहरों में आयोजित बैठकों की तैयारी के लिए लाखों लोगों के मकान-दुकान तोड़कर उन्हें बेघर-बेरोज़गार बना दिया गया। उनके राहत और पुनर्वास के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है।”

दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक तथा जनाधिकार संघर्ष दल के अश्विनी कुमार ‘सुकरात’ ने कहा कि “दुनिया भर के पूंजीपति एक तरफ़ तो अपना माल बेचकर मुनाफ़ा बटोरना चाहते हैं, मगर दूसरी तरफ़ एक बड़ी आबादी की जेब से वे पहले ही पैसे निकाल चुके हैं, इसी संकट को हल करने के लिए दुनिया की एक फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले कॉरपोरेट जी-20 जैसे समूहों के ज़रिए लूट के नये तरीके ढूंढ रहे हैं।”

दिल्ली से आए न्यूज़ सोशलिस्ट इनिशिएटिव के स्वदेश सिन्हा ने बताया कि “आज दुनिया भर की जनता में जी-20 के देशों के ख़िलाफ़ व्यापक आक्रोश है। यूरोप, अमेरिका तथा फ्रांस जहां भी इसके सम्मेलन हुए, वहां पर जनता ने इसके ख़िलाफ़ व्यापक विरोध प्रदर्शन किया। वास्तव में इसका गठन बहुराष्ट्रीय निगमों और कॉरपोरेट के मुनाफ़े और लूट को बढ़ाने के लिए किया गया है।”

उन्होंने कहा कि “इन मंचों का उपयोग साम्राज्यवादी मु़ल्क़ अपने वर्चस्व को बढ़ाने और दुनिया के बाज़ारों तथा कच्चे माल के स्रोतों पर कब्ज़ा करने के लिए करते हैं। जब बातचीत और दबाव से काम नहीं बनता, तो हमले पर उतारू हो जाते हैं। इसी सब सच्चाई को छिपाने के लिए दिल्ली में सम्मेलन के दौरान सभी तरह के विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई।” 

सामाजिक कार्यकर्ता उदय कुमार ने बताया कि “एक तरफ मोदी सरकार जी-20 आयोजन पर जनता के अरबों रुपये बहाकर इसे जनता के लिए सौगात बताते हुए 2024 के चुनाव से पहले अपना विज्ञापन कर रही है, तो दूसरी तरफ़ चीन और रूस के राष्ट्रपतियों के इसमें शामिल न होने पर इस बैठक का कोई ठोस नतीजा नहीं निकलने वाला।”

गोष्ठी में ढेरों छात्र-छात्राओं ने अपनी बातें रखीं तथा बहस को एक दिशा देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके बाद इन सभी संगठनों ने पुलिस प्रशासन द्वारा अनुमति न दिए जाने के बावजूद बीएसए इंजीनियरिंग कॉलेज रोड मथुरा में नुक्कड़ सभा और पैदल मार्च के माध्यम से विरोध प्रदर्शन किया।

हाथों में ‘जी-20 डाउन-डाउन’,’पेटेंट कानूनों को रद्द करो’,’समाजवाद ज़िंदाबाद’,’साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’,’आईएमएफ-डब्लूटीओ-विश्वबैंक मुर्दाबाद’ लिखी तख़्तियां लिए हुए प्रदर्शनकारियों ने अपने नारों के जरिए इस सम्मेलन को आप जनता के टैक्स के पैसों की बर्बादी और बहुराष्ट्रीय कॉर्पोरेट्स द्वारा दुनिया के विभिन्न बाज़ारों पर कब्ज़े की योजना बनाने का आयोजन बताया।

प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे सौरभ इंसान ने कहा कि, “दुनिया भर में जहां भी जी-20 का आयोजन होता है, वहां इसे विरोध का सामना करना पड़ता है। इंग्लैंड, कनाडा और जर्मनी में तो इसका विरोध बड़े पैमाने पर हो चुका है, इसलिए जागरूक नागरिकों को इस आयोजन के दोनों पक्षों को समझने की कोशिश करनी चाहिए, न कि सरकारी दावों को सच मानकर रह जाना चाहिए।”

वक्ताओं ने कहा कि “संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद हो या जी-20 जैसे मंच, अमेरिका और रूस जैसे साम्राज्यवादी मुल्क़ों और नाटो देशों के लिए कोई अहमियत नहीं रखते हैं। एक तरफ दुनिया में जी-20 जैसे सम्मेलन होते रहे और दूसरी तरफ अमेरिका व नाटो देशों ने इराक-अफगानिस्तान आदि देशों पर हमला करके उन्हें तबाह और बर्बाद कर दिया। रूस ने हमला करके पहले यूक्रेन से क्रीमिया को हथिया लिया और पिछले वर्ष यूक्रेन पर पुनः हमला कर दिया।”

इस विरोध मार्च में G-20 सम्मेलन के विरोध में पर्चा वितरण भी किया गया। प्रदर्शनकारियों में रवीन्द्र सिंह, पवन सत्यार्थी, योगेश इंसान, आरती करदम और शिल्पी आदि ने भी विशेष सहयोग दिया।

(मथुरा से स्वदेश सिन्हा की रिपोर्ट।)

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