पुण्यतिथि: राजीव गांधी की आंखों ने देखा था भारत के आधुनिकीकरण का सपना

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की आज पुण्य तिथि हैं। आज ही के दिन 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर में एक चुनावी सभा में लिट्टे समर्थक आतंकवादियों ने मानव बम से उनकी हत्या कर दी थी। राजीव गांधी राजनीति में आने के इच्छुक नहीं थे। छोटे भाई संजय गांधी की असामयिक मृत्यु के बाद मां इंदिरा गांधी के दबाव में वे राजनीति में आए। अल्प समय ही में वे दुनिया से चले गए। लेकिन पांच वर्षों का उनका प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल भारत में लोकतंत्र को मजबूत करने और देश को आधुनिक बनाने के रूप में याद किया जाता है। राजनीति और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए सुधारों के अलावा उनका सुदर्शन व्यक्तित्व देश-विदेश में आकर्षण का कारण रहा है। सुदर्शन होने के साथ-साथ उनका संकोची स्वभाव और हंसमुख चेहरा आज भी बरबश लोगों के जेहन में कौंध जाता है। वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी उनके व्यक्तित्व और राजनीति के विभिन्न पहलुओं को याद कर रहे हैं।
एक प्रोफेशनल का राजनीति में पदार्पण
राजीव गांधी के साथ मैंने देश-विदेश में कई यात्राएं की, चुनावी कवरेज भी किया। इस दौरान राजीव गांधी को देखने-परखने के बाद हमने जो अनुभव किया उसके आधार पर यह कह सकता हूं कि वे राजनीति में स्वेच्छा से नहीं आए थे। यदि उनके तेज-तर्रार छोटे भाई संजय गांधी का विमान दुर्घटना में असामयिक निधन नहीं हुआ होता वे पायलट ही बने रहते। संजय गांधी की मौत को बाद प्रधानमंत्री मां की इच्छा को वे टाल नहीं सके और अनमने से राजनीति के मैदान में कूद पड़े। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए और अमेठी से लोकसभा उपचुनाव में विजयी बने। अमेठी से चुनाव जीतने के बाद विरासत की राजनीति में विधिवत प्रवेश किया। लेकिन विरासत की इस राजनीति का भी 21 मई 1991 में बहुत दुखद अंत हुआ। राजनीति में रहते हुए राजीव गांधी ने अपने कार्य प्रणाली की स्पष्ट छाप छोड़ी। वे कई मायने में अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों से अलग थे। उनके द्वारा किए गए कार्यों को आज भी याद किया जाता है।
भारत को 21 वीं सदी में ले जाने का आकांक्षी
राजीव गांधी बार-बार यह दोहराते थे कि हम भारत को 21 वीं सदी में ले जाएंगे। 1985 में मैंने नवभारत टाइम्स में एक बड़ा लेख लिखा था। उसमें हमने सवाल उठाए थे कि क्या राजीव गांधी देश में ‘उन्नत पूंजीवाद’ लाएंगे। इसका मतलब क्या वे भारत को पूर्ण रूपेण आधुनिक बना सकेंगे। क्योंकि भारत का पूंजीवाद सामंती है। 25 दिसंबर 1985 को मुंबई में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था। उस अधिवेशन में इस लेख की बड़ी चर्चा हुई थी। भारत को आधुनिक राष्ट्र बनाने में क्या-क्या दुश्वारियां हैं, उस लेख में हमने लिखा था। भारत आज भी सामंती मानसिकता से ग्रस्त है।
राजीव गांधी वास्तविक अर्थों में देश का आधुनिकीकरण करना चाहते थे। वे देश के राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जड़ता को तोड़ना चाहते थे। राजीव ने उस समय देश में कंप्यूटरीकरण की बात की थी। भाजपा के नेता उस समय कंप्यूटरीकरण का विरोध करते हुए राजीव की खिल्ली उड़ाते थे। और उन्हें कंप्यूटर कहना शुरू कर दिए थे। जैसे आज राहुल गांधी को पप्पू कहते हैं। विडंबना देखिए आज उस कंप्यूटर का सबसे ज्यादा राजनीतिक लाभ वही लोग लिए जो उसका विरोध कर रहे थे। आज वे डिजिटल इंडिया की बात कर रहे हैं।
लोकतंत्र को मजबूत करने और युवा नेतृत्व को तरजीह
राजीव गांधी ने देश के लोकतंत्रीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वयस्क मताधिकार को 21 से घटाकर 18 वर्ष किया। पंचायती राज अधिनियम को लाकर ग्राम पंचायतों को सशक्त किया। राजीव गांधी बहुत बड़े एवं खुले मन के थे। उन्होंने यह स्वीकार किया कि दिल्ली से विकास कार्यों के जो पैसा जाता है, यदि एक रुपये जाता है तो गांवों तक मात्र 15 पैसे ही पहुंचता है। लोकतंत्र को मजबूत करने वे लगे रहे। यह अलग बात है कि लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में युवाओं को मताधिकार देना उन पर भारी पड़ा और 1989 में कांग्रेस हार गई।
कांग्रेसी दक्षिणपंथियों की सलाह से हुआ नुकसान
कांग्रेस में विचारधाराओं का संगम है। इसमें दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों विचारों के मानने वाले शामिल हैं। उनके सलाहकारों ने उनको अंधेरे में रखकर शाहबानो, राम मंदिर का ताला आदि कई ऐसे काम करवाए जिससे उनको राजनीतिक रूप से काफी नुकसान हुआ। उनके मंत्रिमंडल के जिस सहयोगी आरिफ मोहम्मद खान ने इस्तीफा दिया था आज वे भाजपा में हैं।
बोफोर्स तोप सौदे से ‘मिस्टर क्लीन’ की छवि पर बट्टा
बोफोर्स तोप सौदे में 60 करोड़ रुपये की तथाकथित रिश्वत मामले ने उनकी छवि को तोड़ कर रख दिया। उनके कैबिनेट के सहयोगी विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार और कांग्रेस से इस्तीफा देकर बोफोर्स मामले पर राजीव गांधी की घेरेबंदी की। चुनावी सभाओं में वे कहते थे कि सत्ता में आने के तीन महीने बाद बोफोर्स तोप में रिश्वत खाने वालों को सामने ला देंगे। लेकिन आज तक उसका कुछ पता नहीं चला। मुझे तो लगता है कि यह सुनियोजित साजिश थी। राजीव गांधी प्रधानमंत्री रहते हुए विदेशी महाशक्तियों के सामने नहीं झुके। इसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ी।
मुझे याद है कि प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने खाड़ी युद्ध के समय जब अमेरिकी विमानों को तेल देना स्वीकार किया तो राजीव ने विरोध किया था। देश की आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान को बचाकर ही वे कुछ करने के पैरोकार थे। निर्गुट आंदोलन को पुनर्जीवित करने का उन्होंने बहुत प्रयास किया। युगोस्लाविया में निर्गुट आंदोलन की मीटिंग के दौरान मैं मीडिया टीम के साथ वहां गया था। वहां बड़ी शिद्दत से उन्होंने निर्गुट आंदोलन की वकालत की थी। सार्क-दक्षेस की शुरुआत उन्होंने की। भारत और श्रीलंका के संबंधों को सुधारने की बड़ी कोशिश की और इसी में उनको अपनी जान भी गंवानी पड़ी।
आधुनिक एवं गौरवपूर्ण राष्ट्र बनाने का सपना
राजीव गांधी का सपना भारत को आधुनिक, गौरवपूर्ण और समृद्ध राष्ट्र बनाने का था। देश में लोकतंत्र को मजबूत करने, जनता को लोकतंत्र में भागीदार बनाने और सत्ता को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने का उनका सपना था। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने ‘जनता संवाद’ कार्यक्रम शुरू किया था। हर हफ्ते वे अपने आवास पर जनता से संवाद किया करते थे। मैंने कई जनता संवाद को कवर भी किया था। उस संवाद में कोई भी पहुंच कर अपनी समस्या को बता सकता था। समस्याओं को सुनने के बाद प्रधानमंत्री उसके समाधान के लिए निर्देश देते थे। आम जनता से मिलने और समस्याओं को सुनने के बाद वे समस्याओं को समझ जाते थे। अत्यंत गरीब और बेसहारा लोगों से भी वे बात करते थे। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘मन की बात’ करते हैं। लेकिन जनता के मन की बात नहीं सुनते हैं।
यह तो जगजाहिर है कि राजनीति में वे अनिच्छा से आए थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद वे राजनीतिक रूप से परिपक्व नहीं थे। लेकिन व्यक्ति के रूप में वे बहुत ही संवेदनशील थे। वे जिंदा रहते तो देश को एक संवेदनशील इंसान के साथ ही परिपक्व प्रधानमंत्री भी मिलता। स्वार्थी तत्वों ने उनको गलत सलाह देकर कई गलत काम भी करवाए, जिसका खामियाजा उनको अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। यह कहा जा सकता है कि वे भारतीय राजनीति के अभिमन्यु थे, विरासत के कारण राजनीति के चक्रव्यूह में तो वे आसानी से घुस गए, लेकिन निकलने का हुनर सीखने के पहले ही बहेलियों के शिकार बन गए।

रामशरण जोशी
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रामशरण जोशी