पंजाब वक्फ बोर्ड का बड़ा फैसला, बढ़ाया अपने मुलाजिमों का अच्छा-खासा वेतन

पंजाब वक्फ बोर्ड की सूबे में 1947 के बंटवारे बाद ऐतिहासिक भूमिका रही है। 1966 में पंजाब तीन हिस्सों में बंट गया। पंजाबी सूबे के तौर पर, परंपरागत सिख जत्थेबंदियों के लंबे संघर्ष के बाद मौजूदा पंजाब वजूद में आया। इसमें सिख समुदाय का अलहदा बहुसंख्यक रूप सामने आया (जबकि शेष देश में उन्हें अल्पसंख्यक होने का दर्जा हासिल है)। हिंदू यहां अल्पसंख्यक हो गए। देश विभाजन से पहले पंजाब सुदूर लाहौर (अब पाकिस्तान में) फैला हुआ था। 47 के ऐतिहासिक पलायन के बाद बहुत बड़ी तादाद में सिख और हिंदू पाक से हजरत करके पंजाब आए थे। दोनों समुदायों की पीड़ा साझी थी, इसलिए एकता के धागे भी बेहद मजबूत थे। 

पाकिस्तान में उनका सब कुछ रह गया था और यहां पंजाब वक्फ बोर्ड संस्था के जरिए उन्हें जमीन-जायदादें अलॉट की गईं। हिजरत दोतरफा थी। भारतीय हिस्से वाले पंजाब से भी बड़ी तादाद में मुसलमानों ने पाकिस्तान की ओर पलायन किया और वहां भी ऐसी व्यवस्था की गई कि सिखों और हिंदुओं के घर-खेत बाकायदा उनके हवाले कर दिए गए। पाकिस्तानी पंजाब में भी यह काम पंजाब वक्फ बोर्ड ने ही किया। दोनों देशों के पंजाब में अंग्रेज हुक्मरानों की गठित इस संस्था की बेहद महती भूमिका थी। भारतीय पंजाब में भी वक्फ बोर्ड ने पलायन करके आए लोगों को घर, दुकानें, खेती लायक जमीन और अन्य संपत्तियां (जहां नए सिरे से सरकारी अस्पताल, स्कूल और अन्य प्रशासनिक कार्यालय देश और राज्य के कानून के मुताबिक बनाए गए)। यही सब वक्फ बोर्ड ने पाकिस्तानी पंजाब में किया।                           

1947 के बंटवारे के वक्त पंजाब वक्फ बोर्ड के पास असीमित अधिकार और संपत्तियां थीं। संचालन मुसलमान अधिकारियों के हाथों में था लेकिन इस पर वर्चस्व सिख और हिंदू सियासत दानों का था। सो यहां भी राजनीतिज्ञों ने स्वाभाविक दखलंदाजी की। लेकिन बावजूद इसके पंजाब वक्फ बोर्ड एक शक्तिशाली संस्था के बतौर कायम रहा और उसे अपने जन्म काल से लेकर ही बाकायदा संविधानिक दर्जा हासिल है। 1966 में संयुक्त हिंदुस्तानी पंजाब का बंटवारा हुआ। हरियाणा और हिमाचल प्रदेश नामक दो राज्य पंजाब से ही निकल कर बने। वक्फ बोर्ड की भूमिका यहां भी महत्वपूर्ण थी। 

हरियाणा और हिमाचल में अलग से वक्फ बोर्ड ने संपत्ति बंटवारे में उल्लेखनीय भूमिका अदा की। सन 66 के बाद उसकी शक्तियां कुछ सीमित भी हुईं। विशेषकर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में। सामुदायिक समीकरणों के लिहाज से हिंदू इन दोनों राज्यों में बहुसंख्यक हो गए और पंजाब में सिख। ब्रिटिश शासकों के बनाए बेशुमार कानून एवं संस्थाएं आज भी अपनी शक्तियों से लैस हैं। पंजाब वक्फ बोर्ड उनमें से एक है। हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में दक्षिणपंथी ताकतें जैसे-जैसे ताकतवर होती गईं, वैसे-वैसे बाकायदा विचार धारात्मक नीति के तहत पंजाब वक्फ बोर्ड को दोनों राज्यों में शक्तिहीन करने की साजिशें आकार लेने लगीं। 

पंजाब वक्फ बोर्ड के मुखिया एडीजीपी एम एस फारूखी

अलबत्ता इन दोनों राज्यों के बड़े भाई का दर्जा रखने वाले पंजाब में वक्फ बोर्ड का जलवा कायम रहा। सरकार किसी भी पार्टी की रही हो, पंजाब वक्फ बोर्ड की सुध ली जाती रही। हां, समय की सरकारों ने अपने अपने ढंग से पंजाब वक्फ बोर्ड को चलाने की कोशिश जरूर की और यह आज भी जारी है। यहां वक्फ बोर्ड का संचालक लगभग कैबिनेट मंत्री का दर्जा रखता है और चेयरमैनी लेने के लिए राजनीतिक दांव पेंच भी खूब खेले जाते हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि आज भी पंजाब वक्फ बोर्ड के पास अरबों रुपए की संपत्तियां हैं, सीमित ही सही-आय के साधन हैं और राज्य में रह रहे मुसलमानों पर अच्छा खासा प्रभाव तो है ही। 

पंजाब वक्फ बोर्ड का दबाव ही था कि ऐतिहासिक शहर मलेरकोटला को जिला मुख्यालय बनाया गया। मलेरकोटला वस्तुतः मुस्लिम बहुल इलाका है। इसके शानदार इतिहास में यह भी शुमार है कि यहां कभी भी दंगा-फसाद नहीं हुआ। आज भी वहां बड़ी तादाद में रहने वाले हिंदू-सिखों की स्थानीय मुसलमानों के साथ गहरी सांझ है। 1947 में इधर के पंजाब से मुसलमानों ने हिंसा का दंश सहते हुए बहुत बड़ी तादाद में पलायन किया था लेकिन मलेरकोटला इस लिहाज से एकदम महफूज रहा था। इतिहास गवाह है कि सिखों और हिंदुओं ने मिलकर, चौतरफा घेराबंदी करके इस शहर की हिफ़ाजत की और एक भी मुसलमान परिवार को हिजरत नहीं करने दी। इसके बीज सिख इतिहास में हैं। यहां के नवाब ने दशम गुरु श्री गोविंद सिंह के साहबजादों की कुर्बानी का प्रबल विरोध किया था और गुरु परिवार का सरेआम साथ दिया था।                   

खैर, पंजाब में कांग्रेस और अकाली दल सरीखी रिवायती  सियासी पार्टियों ने बारी बारी से राज्य की बागडोर संभाली। कांग्रेस ने अलग और शिरोमणि अकाली दल ने अलग, पंजाब वक्फ बोर्ड की बाबत फैसले किए अथवा नईं शासकीय नीतियां बनाईं। अब सूबे में भगवंत मान की अगुवाई में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार है तो उसने भी बोर्ड की बाबत नए और अहम फैसले लिए। पहली बार पंजाब वक्फ बोर्ड की बागडोर एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के हाथ सौंपी गई। नए संचालक पंजाब पुलिस के एडीजीपी एमएफ फारूखी बनाए गए। तेजतर्रार पुलिस ऑफिसर फारूखी को पुलिस तथा सामान्य प्रशासन की भी अच्छी खासी समझ है। वह शायर भी हैं और अपने तौर पर राज्य में कई जगह सालाना साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं या उन जैसे अन्य कार्यक्रमों में शिरकत करते हैं।            

एडीजीपी एमएफ फारूखी ने चंद हफ्ते पहले पंजाब वक्फ बोर्ड की कमान संभाली है और थोड़े अरसे में ही उसमें आमूलचूल परिवर्तन किए हैं। माना जाता है कि मुख्यमंत्री भगवंत मान ने खुद उन्हें स्वतंत्र रहकर कार्य करने की हिदायत दी है।  मलेरकोटला, लुधियाना, जालंधर और अमृतसर जिलों में बड़ी तादाद में मुस्लिम आबादी है। तब चुनावी रैलियों में भगवंत मान अक्सर दोहराया करते थे कि आम आदमी पार्टी की सरकार आने के बाद पंजाब वक्फ बोर्ड में नए सुधार किए जाएंगे और सरकार का दखल बेहद सीमित होगा। तमाम आरोपों में घिरी भगवंत मान सरकार ने ऐसा किया भी। 

कई राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राष्ट्रीय फलक पर मुसलमानों को अपने ढंग से प्रभावित करने के लिए ‘आप’ वाया पंजाब ऐसा कर रही है। इसलिए भी कि आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल दिल्ली और अब गुजरात-उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में लगभग और अलोकप्रिय हैं। पंजाब के जरिए वह देशभर में राजनीति करने की मंशा रखते हैं। क्योंकि पंजाब के सियासी समीकरण अलहदा हैं, इसलिए पंजाब वक्फ बोर्ड को नए सिरे से मौलिक पहचान के साथ सशक्त किया जा रहा है। (ताकि बताने के लिए कुछ तो हो!)                

पंजाब वक्फ बोर्ड के नए मुखिया आईपीएस एमएफ फारूखी ने कुछ ही दिनों के भीतर कई अहम फैसले किए हैं, यकीनन जिन्हें ऐतिहासिक भी कहा जा सकता है। समूचे परिप्रेक्ष्य में लगता है कि पहले की किसी सरकार ने ऐसा सोचा तक नहीं, करना तो दूर की बात है। मुख्यमंत्री ने फारूखी को खुली शक्तियां दी हैं। इनमें किसी अन्य मंत्री या नेता की किसी भी किस्म की दखलअंदाजी नहीं होगी।                                

अब आते हैं एमएफ फारूखी के ऐतिहासिक पहलकदमियों की ओर। उनकी अगुवाई में पंजाब वक्फ बोर्ड ने पहली बार आलिम से लेकर सामान्य सेवक तक की तनख्वाह में अति उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी की है। वक्फ बोर्ड की बाबत ऐसा करने वाला पंजाब देश का पहला राज्य हो गया है। मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव और मायावती की सरकारें खुद को मुस्लिम हितों का संरक्षक बताती रही हैं लेकिन उनका ध्यान भी इस और नहीं गया। खैर, नए फैसले के तहत पंजाब में अब हाफिज को 9310 से (बढ़ाकर)15000 रुपए, नाजरा को 8520 से बढ़ाकर 14 हजार रुपए तनख्वाह मिलेगी। मोजिन को 8302 की बजाए 14000 मिलेंगे। 

पहले खादिम (केयर टेकर) को 2500 रुपए दिए जाते थे और अब यह रकम बढ़ाकर 7000 रुपए कर दी गई है। इन सब को सालाना 5 फ़ीसदी इंक्रीमेंट भी हासिल होगा। माहवार वेतन भी अब सीधे अकाउंट में बावक्त जाएगा। पंजाब वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की ओर से बाकायदा इसे लागू करने का पत्र भी जारी कर दिया गया है। पेंशनों में भी उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी की गई है। इन तमाम को जीवन पर्यंत 3000 रुपए महीना पेंशन, रिटायरमेंट के बाद मुतवातर मिला करेगी। वक्फ बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक आने वाले दिनों में ऐसे और भी कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसले लिए जाएंगे। इसे लेकर मुस्लिम समुदाय में खुशी की लहर है और तमाम कर्मचारी तथा अधिकारी एकजुट होकर फारूखी का आभार व्यक्त कर रहे हैं।                 

फिलहाल पंजाब वक्फ बोर्ड में 7 आलिम, 16 हाफिज, 8 नाजरा, 3 मोजिन और 37 खादिउ हैं। गौरतलब है कि आलिम, हाफिज, मोजिन और खादिमों की तनख्वाह में इतनी बड़ी बढ़ोत्तरी करने वाला पंजाब देश का पहला राज्य बन गया है। बेशक मीडिया में यह खबर हाशिए पर है।

(अमरीक सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल जालंधर रहते हैं।)

अमरीक

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  • स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहे जीवट अमरीक सिंह की कलम से लंबे अंतराल बाद रिपोर्ट पढ़कर बहुत अच्छा लगा। हमेशा की तरह शानदार और सटीक लेखनी।

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