सवाल पूछने वाली पत्रकार की ट्रोलिंग से उठे लोकतंत्र को लेकर मोदी के दावों पर अमेरिका में सवाल

अमेरिकी दौरे पर गये भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकतंत्र को भारतीय डीएनए में शामिल बताया था, लेकिन जिस तरह से उनसे सवाल पूछने वाली एक महिला पत्रकार को उनके समर्थकों की ओर से निशाना बनाया जा रहा है, उसने इस दावे पर सवाल खड़े कर दिये हैं। हालत ये है कि मोदी की मेज़बानी करने वाले व्हाइट हाउस, यानी अमेरिकी राष्ट्रपति के दफ़्तर ने भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई है।

दरअसल, राष्ट्रपति जो बाइडन और प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त रूप से प्रेस के सामने उपस्थित हुए थे। मोदी से एक सवाल पूछने की अनुमति थी। इस पर वॉलस्ट्रीट जर्नल की पत्रकार सबरीना सिद्दीकी ने भारत के मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों और भेदभाव की नीतियों को लेकर सवाल पूछा था जिस पर पीएम मोदी ने कहा था कि लोकतंत्र भारत के डीएनए में है और किसी भी स्तर पर किसी के साथ भेदभाव नहीं होता।

लेकिन इसी के साथ सबरीना सिद्दीकी ऑनलाइन ट्रोलिंग का शिकार हो गयीं। उनके मुसलमान होने को लेकर सवाल उठाया जाने लगा। जबकि उनका सवाल वही था जो अमेरिका में सक्रिय तमाम मानवाधिकार संगठनों ने उठाया था। यहां तक कि 75 अमेरिकी सांसदों ने पत्र लिखकर राष्ट्रपति बाइडन से प्रधानमंत्री मोदी के सामने इन सवालों को उठाने का आग्रह किया था। ऐसे में वॉल स्ट्रीट जर्नल की पत्रकार सबरीना को निशाना बनाये जाने को लेकर व्हाइट हाउस की भूमिका पर सवाल उठने लगे थे। 

आखिरकार 26 जून को व्हाइट हाउस में हुई एक प्रेस वार्ता में अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के प्रवाकता जॉन किर्बी ने सबरीना से जुड़े सवाल के जवाब कहा कि “हम सबरीना सिद्दीकी के उत्पीड़न की रिपोर्ट्स से अवगत हैं. ये स्वीकार्य नहीं है।” उन्होंने साफ़ कहा कि व्हाइट हाउस कहीं भी और किसी भी परिस्थिति में पत्रकारों के साथ होने वाले  उत्पीड़न की निंदा करता है। उन्होंने यह भी कहा कि पत्रकारों का उत्पीड़न करना लोकतंत्र के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है।

उधर वॉल स्ट्रीट जर्नल ने भी अपनी पत्रकार को निशाना बनाये जाने की निंदा की है। संस्थान की ओर से जारी किए गये बयान मे कहा गया है कि सबरीना सिद्दीकी, कई दक्षिण एशियाई और महिला पत्रकारों की तरह केवल अपना काम करने के लिए उत्पीड़न का सामना कर रही हैं। प्रेस की स्वतंत्रता किसी भी लोकतंत्र की पहचान है और पीएम मोदी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नेतृत्व करते हैं।

ज़ाहिर है, वॉल स्ट्रीट जर्नल ने सबसे बड़े लोकतंत्र होने की याद दिलाते हुए पीएम मोदी के बयानों को ही आईना बनाया है। वहीं तमाम मानवाधिकार संगठनों ने भी पत्रकार के उत्पीड़न की निंदा की है। भारतीय अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल (IAMC)  ने इस सलिसिले में कड़ी प्रतिक्रिया जतायी है।

संगठन ने कहा है कि वह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़ा महज़ एक सवाल पूछने की वजह से पत्रकार सबरीना सिद्दीकी को निशाना बनाये जाने की कड़ी निंदा करता है। पत्रकार नेताओं को जवाबदेह बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्हें इसके लिए धमकी या उत्पीड़न का सामना करना पड़े, ऐसा कभी नहीं होना चाहिए। आईएएमसी ने कहा है कि वह सबरीना और ऐसे ही मामलों में उत्पीड़न का सामना करने वाले सभी पत्रकारों के समर्थन में खड़ा है।

सबरीना सिद्दीकी ने पीएम नरेंद्र मोदी से पूछा था कि ‘भारत खुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र मानता है, लेकिन कई मानवाधिकार संगठन कहते हैं कि आपकी सरकार ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव किया है, अपने आलोचकों को चुप कराने की कोशिश की है, आपकी सरकार मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों में सुधार लाने और स्वतंत्र अभिव्यक्ति को बनाए रखने के लिए क्या कदम उठा रही है?’ 

इस सवाल का सीधा जवाब न देते हुए पीएम मोदी ने लोकतंत्र के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का हवाला दिया था। उन्होंने कहा था कि ‘भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं है। लोकतंत्र हमारी आत्मा है, लोकतंत्र हमारी रगों में दौड़ता है, हम लोकतंत्र में रहते हैं, हमारी सरकार ने लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों को अपनाया है। हमने हमेशा साबित किया है कि लोकतंत्र डिलीवरी दे सकता है। जब मैं डिलीवरी की बात करता हूं तो ये जाति, पंथ, धर्म, लिंग की परवाह किए बिना होता है।’

सिर्फ़ सबरीना का मामला ही नहीं है। अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी के दावों को झुठलाने के लिए भारत में उनके समर्थकों ने और मुद्दों पर भी उत्साह दिखाया। अपने मुस्लिम विरोधी रुख के लिए हाल के दिनों में चर्चा में आये हेमंत बिस्वा सरमा ने तो सीधे अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को निशाने पर लिया। उन्होंने उन्हें बराक हुसैन ओबामा संबोधित करते हुए पीएम मोदी पर उठाये गये सवाल की आलोचना की।

दरअसल, सीएनएन को दिये गये एक इंटरव्यू में बराक ओबामा ने कहा “अगर मैं प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत करता, जिन्हें मैं अच्छी तरह जानता हूं, तो मैं उनसे कहता कि अगर वह भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा नहीं करेंगे, तो ऐसी आशंका है कि किसी पॉइंट पर आकर भारत टूट सकता है।” ओबामा ने कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडन को पीएम मोदी से मुलाकात में भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर बात करनी चाहिए। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि अपने सहयोगियों के साथ मानव अधिकारों की बात करना थोड़ा मुश्किल होता है। 

ओबामा के इस बहुचर्चित बयान के जवाब में असम के मुख्यमंत्री ने जिस तरह उनके नाम के हुसैन को हाईलाइट किया, उस पर अमेरिकी मीडिया में काफ़ी चर्चा है। वाशिंगटन पोस्ट में छपे एक लेख में ब्राउन यूनिवर्सिटी में सेंटर फ़ॉर कांटम्प्रेरी साउथ एशिया के निदेशक आशुतोष वार्ष्णेय की टिप्पणी का इस्तेमाल किया गया है जिसमें उन्होंने कहा है कि सरमा की प्रतिक्रिया बताती है कि बीजेपी में बड़े कद के नेता जो संवैधानिक पद पर भी हैं, मुसलमानों के बारे में क्या सोचते हैं। बराक ओबामा के मिडिल नेम यानी हुसैन को ट्विस्ट करके ये बताने की कोशिश की गयी है कि ऐसा एक मुसलमान की ओर से कहा गया है जबकि ओबामा इस्लाम को मानने वाले नहीं हैं।

कुल मिलाकर चाहे पत्रकार सबरीना सिद्दीकी का मसला हो या फिर बराक ओबामा के नाम का, भारत में मोदी भक्तों और बीजेपी नेताओं की प्रतिक्रियाओं ने लोगों को नया तर्क दे दिया है कि वे भारत के लोकतंत्र पर सवाल  उठायें। भारत के डीएनए में लोकतंत्र के होने के पीएम मोदी के दावे पर भरोसा न करें। 

(चेतन कुमार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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