अब फिर होगा राफेल के साथ एचएएल का सौदा

नई दिल्ली। राफेल घोटाले की परत दर परत उधड़नी शुरू हो गई है। खबर आई है कि राफेल बनाने वाली दसॉल्ट कम्पनी भारत में विमानों के निर्माण के लिए सरकारी कम्पनी HAL यानी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड से समझौता करेगी। एक समय मोदी सरकार ने पूरा जोर लगा दिया था कि राफेल का कांट्रेक्ट सरकारी कम्पनी HAL से छीनकर अनिल अम्बानी की कम्पनी रिलायंस डिफेंस को दे दिया जाए। और यह कांट्रेक्ट आफसेट क्लॉज की शक्ल में रिलायंस डिफेंस के पास चला भी गया था। लेकिन अब दसॉल्ट को अपनी गल्ती का एहसास हुआ और वो अपने पुराने पार्टनर HAL से राफेल विमान बनाने के समझौते की बात कर रहा है। 

HAL के साथ दसॉल्ट मिराज विमान पर भी काम कर चुका है। दरअसल भारत में एचएएल के पास रक्षा क्षेत्र में मैन्यूफैक्चरिंग का 78 साल का तजुर्बा था और 2015 में वह एक मात्र कंपनी थी जिसके पक्ष में फैसला किया जाना था लेकिन मोदी सरकार के दबाव में दसॉल्ट ने एचएएल से करार तोड़ते हुए अनिल अंबानी की रिलायंस ग्रुप से करार कर लिया।

इकोनामिक टाइम्स में प्रकाशित खबर के मुताबिक इस सिलसिले में दोनों पक्षों के बीच कुछ चरणों की बातचीत हो चुकी है। हालांकि यह बातचीत और समझौता 36 और राफेल विमानों की खरीद के लिए किया जा रहा है। जैसा कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने इस बात के संकेत दिए हैं। उन्होंने हाल में कहा था कि 36 और राफेल विमानों की खरीद के आदेश दिए जा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो दोनों कंपनियों के बीच वर्क शेयर मॉडल पर समझौता हो सकता है जिसमें उसके निर्माण का एक हिस्सा एचएएल को संभालना होगा।

2015 में मोदी सरकार ने इस सौदे से एचएएल को बाहर करते हुए निजी क्षेत्र की ऐसी कंपनी को ठेका दिलाया था। जिसे ऐलान से महज 15 दिन पहले रजिस्टर कराया गया और रक्षा क्षेत्र की मैन्यूफैक्चरिंग तो दूर उसे एविएशन सेक्टर का भी कोई तजुर्बा नहीं था और जिस उद्योगपति को इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी गई, उसका पिछला इतिहास यही कहता है कि उसके बड़े प्रोजेक्ट्स फेल हुए और उसकी कंपनी बड़े कर्ज में डूबी हुई है।

धीरे धीरे अपने आप ही यह साबित हो जाएगा कि राफेल विमान डील आजाद भारत का सबसे बड़ा डिफेंस घोटाला है और इसमें एक नहीं कई गड़बड़ियां की गई हैं।

अभी समझौता फाइनल नहीं हुआ है। सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि इस बात को लेकर विस्तार से बात हुई है कि कैसे एचएएल की सुविधाओं और उसकी विशेषज्ञता का इस्तेमाल किया जा सकता है। और ऐसी स्थिति में जबकि और ज्यादा विमानों की खरीद का आर्डर होना है। हालांकि बताया जा रहा है कि इस सौदे के तरह विमान अगले तीन-चार सालों तक आएंगे।

(गिरीश मालवीय से कुछ इनपुट लिए गए हैं।)

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