राइट टू हेल्थ पास करने वाला पहला राज्य बना राजस्थान, क्या यह देश के अन्य राज्यों के लिए मॉडल बनेगा?

राजस्थान देश का पहला राज्य बन गया है, जिसने राइट टू हेल्थ बिल पारित किया है। मंगलवार को राज्य सरकार ने विधानसभा में विपक्ष के विरोध और सड़कों पर निजी अस्पतालों के डॉक्टरों के प्रदर्शन के बीच यह बिल पास कर दिया। सरकार का कहना है कि यह राज्य के 8 करोड़ से ज्यादा लोगों को सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में स्वास्थ्य का कानूनी अधिकार देता है।

इसके तहत इमरजेंसी की हालत में प्राइवेट हॉस्पिटल को भी फ्री इलाज करना होगा। प्राइवेट हॉस्पिटल में इमरजेंसी में फ्री इलाज के लिए अलग से फंड भी बनेगा। ऐसे मामलों में हॉस्पिटल की ओर से किसी भी तरह की लापरवाही होती है तो  जिला और राज्य स्तर पर प्राधिकरण बनेगा। जिसमें सुनवाई होगी और दोषी पाए जाने पर 10 से 25 हजार रुपए जुर्माना लगाया जा सकता है।

हालांकि इसे लेकर राज्य के प्राइवेट अस्पताल वाले लामबंद हो गए हैं और मंगलवार को डॉक्टर्स और पुलिस के बीच जमकर झड़प हुई। मंगलवार को विधानसभा का रुख कर रहे डॉक्टरों पर पुलिस ने वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया। डॉक्टरों ने काम बंद कर दिया है और उनका कहना है कि सरकार ने उनकी शर्तों और सुझावों को बिल में जगह नहीं दी है। इस वजह से पूरा डॉक्टर समुदाय हेल्थ सिस्टम का विरोधी दिख रहा है। हालांकि सरकार का कहना है कि डॉक्टरों के सुझावों को शामिल किया गया है।

आइये देखते हैं कि कि इस बिल में है क्या 

  • फीस या चार्ज के पेमेंट के बिना इमरजेंसी के दौरान प्राइवेट अस्पतालों को तुरंत जरूरी इमरजेंसी उपचार देना होगा।
  • इसके साथ ही परामर्श, दवाइयां, डायग्नोसिस, इमरजेंसी ट्रांसपोर्टेशन यानी एम्बुलेंस सुविधा के साथ-साथ  इमरजेंसी ट्रीटमेंट मिलेगा।
  • कोई मेडिको-लीगल मामला है, तो हेल्थ केयर प्रोवाइडर सिर्फ पुलिस की एनओसी या पुलिस रिपोर्ट मिलने के आधार पर इलाज में देरी नहीं करेगा।
  • मरीज की पहुंच डॉक्यूमेंट, जांच रिपोर्ट और इलाज के डिटेल बिलों तक होगी।
  • कीमोथैरेपी और सर्जरी से पहले सूचना देकर मरीज या उसके परिजनों से पूछना होगा।
  • इलाज के वक्त गोपनीयता, मानव गरिमा और गोपनीयता का ख्याल रखा जाएगा।
  • किसी पुरुष कर्मचारी की ओर से महिला पेशेंट के फिजिकल टेस्ट के दौरान महिला की मौजूदगी जरूरी होगी।
  • इलाज के दौरान दवा लेने और जांच के सोर्सेज का सिलेक्शन किया जा सकेगा।
  • स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में मरीज को बताया जाएगा।
  • सभी सरकारी और निजी मेडिकल इंस्टीट्यूट से रेफरल ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा मिलेगी।
  • डॉक्टर की सलाह के खिलाफ जाकर हॉस्पिटल छोड़ने वाले मरीज के मामले में इलाज का ब्योरा हासिल किया जा सकेगा।
  • सड़क दुर्घटना में मुफ्त ट्रांसपोर्टेशन, मुफ्त ट्रीटमेंट और मुफ्त इंश्योरेंस कवर इस्तेमाल होगा।
  • सरकार इलाज की गुणवत्ता और सेफ्टी मेजरमेंट्स और नॉर्म्स शामिल करेगी।

हालांकि इसे लेकर प्राइवेट डॉक्टर खासे गुस्से में है।’संयुक्त संघर्ष समिति’की ओर से राज्य में आंदोलन चलाया जा रहा है। इसमें राजस्थान के निजी  अस्पताल और नर्सिंग  के सदस्य भाग ले रहे हैं।

ये वे डॉक्टर हैं जो अपना प्राइवेट अस्पताल और नर्सिंग होम चलाते हैं। साथ ही डॉक्टरों और दूसरे चिकित्सा कर्मियों की ओर से एक विज्ञापन दिया गया, जिसमें बताया गया है कि स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक रोगियों के लिए फायदेमंद नहीं है। इसमें में कहा गया है कि विधेयक से निम्न समस्याएं आएंगी-

  • प्राइवेट मेडिकल संस्थानों पर गैरजरूरी नौकरशाही का नियंत्रण बढ़ेगा।
  • ससे प्राइवेट अस्पतालों की हालत सरकारी अस्पतालों जैसी हो जाएगी।
  • प्राइवेट अस्पतालों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
  • विज्ञापन में कहा गया है कि इससे डॉक्टर और मरीज के रिश्तों पर असर पड़ेगा
  • डॉक्टरों का कहना है कि सरकार अपनी वाहवाही लूटने के लिए सरकारी योजनाओं को प्राइवेट अस्पतालों पर थोप रही है।
  • योजनाओं के पैकेज अस्पताल में इलाज और सुविधाओं के खर्च के मुताबिक नहीं है, ऐसे में इलाज का खर्च कैसे निकालेंगे?

सदन में इस बिल को लेकर सरकार और विपक्ष में जमकर नोकझोंक हुई। सरकार की ओर से परसादी लाल मीणा डॉक्टरों और कुछ बड़े हॉस्पिटल पर जमकर बरसे। मीणा ने कहा “मूल बिल में इमरजेंसी को लेकर विरोध था, जिसे लेकर सरकार ने जैसा कहा वैसा किया। सवाल इमरजेंसी के खर्च को लेकर भी था, प्रावधान है कि इसके लिए फंड बनेगा। हमने डॉक्टरों की ज्यादातर बातों को माना है।”

इधर मीडिया बात करते हुए सीएम अशोक गहलोत ने राइट टू हेल्थ बिल को लेकर अपना रुख साफ कर दिया है। उन्होंने कहा- इस बिल से आम जनता और डॉक्टर दोनों को ही फायदा होगा।

हालांकि इस बीच इस कानून की मांग को लेकर आवाज़ उठा रहे जन स्वास्थ्य अभियान के डॉ नरेंद्र गुप्ता और छाया पचौली ने इस कानून का स्वागत किया। उन्होंने सीएम अशोक गहलोत को इसे लेकर बधाई भी दी।

जो भी हो जानकार इस कानून को मील का पत्थर मान रहे हैं। कई एक्सपर्ट्स मान रहे हैं कि नागरिकों को राइट टू हेल्थ मिलना उदारीकरण के चलते कल्याणाकारी योजनाओं के सिमटने के वक्त एक नई राह खोलता है। देखना अब ये है कि देश के दूसरे राज्य इस कानून को किस नज़र से देख रहे हैं? अगर अशोक गहलोत सरकार की योजन सफल हो जाती है, तो दूसरी राज्य सरकारों पर भी इस तरह का अधिकार देने का दबाव बनेगा।

( आजाद शेखर जनचौक में सब एडिटर हैं।)

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