रवीश कुमार और निर्भीक पत्रकारिता को मिला सम्मान

यूं तो एशिया का नोबेल पुरस्कार कहलाने वाला रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार इससे पहले भी कुछ भारतीयों को मिला है। लेकिन रवीश कुमार को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलना उन सभी पुरस्कारों में निसंदेह सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। एक ऐसे समय मे जब देश की पत्रकारिता का स्तर निरन्तर पतन की ओर है, ये पुरस्कार भारतीय पत्रकारिता जगत में मील के पत्थर की तरह स्थापित हो गया।
चौतरफा विषाक्त और विद्वेषपूर्ण वातावरण में पत्रकारिता जगत को एक विशिष्ट पहचान देने वाले रवीश कुमार (एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर) को वर्ष 2019 के रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। एनडीटीवी के रवीश कुमार को ये सम्मान हिंदी टीवी पत्रकारिता में उनके उत्कृष्ट योगदान और निर्भीक पत्रकारिता के लिए मिला है। एशिया का नोबेल पुरस्कार कहलाने वाला रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार एशिया के व्यक्तियों और संस्थाओं को उनके अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार फिलीपीन्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति रैमॉन मैगसेसे की याद में दिया जाता है।

चन्द दिनों पहले विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक की सलाना रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ द्वारा जारी किया गया था जिसमें भारत की रैंकिंग 2 स्थान और नीचे खिसक कर 140 वें स्थान पर पहुंच गई थी। इस रिपोर्ट में भारत में चल रहे चुनाव के दौर को पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक वक्त बताया गया है। लेकिन ऐसे खतरनाक वक्त में भी एक पत्रकार सत्ता के फासीवादी गैंग से बग़ैर डरे, बगैर झुकें, बेखौफ, बेपरवाह होकर, सत्ताधारियों के गालियों की बौछारों के बीच जनपक्षीय पत्रकारिता का ध्वजवाहक बना रहा।

भारी-भरकम लाइमलाइट के बीच टीआरपी के पीछे भागते टीवी एंकरों ने देश का पूरा माहौल विषाक्त बनाने में कोई कसर नही छोड़ी है, कैमरों के सामने चीखना-चिल्लाना, असभ्य-असंसदीय भाषा वाली टीवी डिबेट भारतीय पत्रकारिता जगत की पहचान बन गई है। लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहने वाली मीडिया आज की फासीवादी दौर की सत्ता की चाटुकारिता वाली आवाज बन गई है। कहा जाता है कि “जरूरत पड़ने पर मीडिया एक विपक्ष की भूमिका का भी निर्वहन करता है।” पर यहां बिल्कुल उलटा है। खासकर ऐसी स्थिति में जब विपक्ष बेहद कमजोर हो तो सत्ता की निरंकुशता और अलोकतांत्रिक रवैये के खिलाफ़ मीडिया का दायित्व और भी बढ़ जाता है, लेकिन देश की हालात ये है कि विपक्षी दल अपने प्रवक्ताओं को मीडिया चैनलों पर भेजना बन्द कर दिया है। टीवी एंकर सत्ताधारी दल के प्रवक्ता की तरह कार्य कर रहे हैं। इस कठिन हालात में भी खुद को जीरो टीआरपी का पत्रकार कहने वाला रवीश कुमार युवाओं और बेरोजगारों के लिए “नौकरी सिरीज” लाता है। महंगाई, बेरोजगारी जैसे जनपक्षीय मुद्दों को उठाता है तो यक़ीनन पत्रकारिता जगत ऐसे जनपक्षीय पत्रकार से गौरवान्वित होता है।

रवीश कुमार की पत्रकारिता के स्तर को पुरस्कार संस्था के ट्वीट से सहज समझा जा सकता है संस्था ने ट्वीट कर बताया कि रवीश कुमार को यह सम्मान “बेआवाजों की आवाज बनने के लिए दिया गया है।” अवार्ड फाउंडेशन ने कहा, “रवीश कुमार का समाचार कार्यक्रम ‘प्राइम टाइम’ आम लोगों की वास्तविक जीवन से जुड़ी समस्याओं से संबंधित है.” पुरस्कार फाउंडेशन यहीं नही रूका, संस्था के अनुसार, “यदि आप लोगों की आवाज बन गए हैं, तो आप एक पत्रकार हैं।”

रवीश कुमार की पत्रकारिता जीवन पर अगर बारीक निगाह डालें तो उनके संघर्ष और जनता के प्रति प्रतिबद्धता का सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है। रवीश कुमार का जन्म बिहार के जितवारपुर गांव (मोतिहारी जिला) में हुआ। वे 1996 में न्यू दिल्ली टेलीविजन नेटवर्क (एनडीटीवी) से जुड़े थे। शुरुआती दिनों में एनडीटीवी में आई चिट्ठियां छांटा करते थे इसके बाद वो रिपोर्टिंग की ओर मुड़े तो पत्रकारिता जगत के बड़े शख्सियत बन गए। इनका कार्यक्रम ‘रवीश की रिपोर्ट’ बेहद चर्चित हुआ जो हिंदुस्तान के आम लोगों का कार्यक्रम बन गया। पत्रकारिता जगत के कई अहम पुरस्कार रवीश के पीछे-पीछे चलता रहा।

ENBA अवॉर्ड 2018 में NDTV इंडिया को न्यूज चैनल ऑफ द ईयर के सम्मान से सम्मानित किया गया था और रवीश कुमार को सर्वश्रेष्ठ एंकर का पुरस्कार। एशिया के सबसे विश्वसनीय न्यूज चैनल का बड़ा अवॉर्ड एनडीटीवी को दिलाना रवीश की ही पत्रकारिता का प्रतिफल था। सर्वश्रेष्ठ भारतीय पत्रकारिता अवॉर्ड रामनाथ गोयनका अवार्ड से सम्मानित शख़्सियत रवीश कुमार हमेशा ही बेहद शांत, सौम्य, बेहद मधुर आवाज में जनपरक मुद्दों को उठाते चले गए। कहा जाता है जब पत्रकार सत्ता पक्ष या सरकार से गालियां सुननें लगें तो यह माना जाता है कि वह उस समय का सर्वश्रेष्ठ पत्रकार है जो अपने कर्तव्य और दायित्व का पूर्ण पालन कर रहा हैं। और शायद यही बात रवीश की पत्रकारिता जीवन की हकीकत बन चुकी है। सताधारी पक्ष के सस्ते ट्रोलरों ने रवीश को ट्रोल करने की कोई कसर नही छोड़ी। फोन कर, व्हाट्सएप पर उन्हें मारने तक की धमकियां थोक में दी जाती रहीं, लेकिन इस साहसी पत्रकार की आवाज़ दिन-प्रतिदिन मजबूत होती चली गई।

रवीश कुमार को इस प्रतिष्ठित पुरस्कार मिलने के बाद ये बात उठना बहुत स्वभाविक है कि -“देश के मजबूत प्रधानमंत्री विशाल चुनावी सफलता के रथ पर विराजमान होकर भी ऐसे सुयोग्य पत्रकार को एक अदद इंटरव्यू क्यों नहीं दे पाएं ? सिर्फ प्रधानमंत्री ही नही बल्कि उनके मन्त्रिमण्डल के बड़े राजनेताओं ने भी रवीश कुमार को एक इंटरव्यू देने की हिम्मत नही जुटा पाएं। अब जब रवीश को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला है तो न केवल पत्रकारिता जगत वरन सम्पूर्ण देश का सिर गर्व से ऊंचा हुआ है। ऐसे समय मे स्वघोषित राष्ट्रवादी सरकार और प्रधानमंत्री का दायित्व नहीं बनता है कि रवीश कुमार को धन्यवाद और बधाई देने के बहाने ही सही, एक इंटरव्यू उन्हें दें? कम से कम प्रधानमंत्री का एक ट्वीट तो जरूर बनता हैं रवीश को बधाई देने के लिए।
(दया नन्द स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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