क्या बाबा रामदेव का अरबों डॉलर का साम्राज्य मलबे में तब्दील होने जा रहा है?

इसे 2024 लोकसभा चुनावों का बुखार ही कह सकते हैं, जब बाबा रामदेव और उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के संयुक्त उपक्रम पतंजलि आयुर्वेद पर सुप्रीम कोर्ट एक के बाद एक सख्त टिप्पणियां और फैसला लेने जा रहा है। लेकिन इसकी भनक आम लोगों तक कम ही पहुंच रही है। एक वजह यह भी है कि लोग यह मान कर चल रहे हैं कि बाबा रामदेव को सत्तारूढ़ भाजपा किसी आफत में जिस तरह से पहले बचाती रही है इस बार भी उनके ऊपर कोई आफत नहीं आने देने वाली है और उनका धंधा इसी तरह से फलता-फूलता रहेगा।  

लेकिन कहते हैं न कि ‘समय सबसे बलवान होता है’, ऐसा लगता है कि पीएम नरेंद्र मोदी के साथ-साथ बाबा रामदेव का भी समय ठीक नहीं चल रहा है। बल्कि यूं कहें कि बाबा रामदेव पर विपत्ति ने चौतरफा हमला बोल दिया है, और बचने के लिए उनके पास रास्ता कम है क्योंकि वे स्वयं पूरे सिस्टम को नहीं चला रहे हैं। 

बहरहाल सबसे पहले जानते हैं कि बाबा रामदेव के खिलाफ सर्वोच्च अदालत आखिर क्यों इस कदर खफा है कि दो-दो बार बिना शर्त माफ़ी मांगने के बावजूद कोर्ट उनके माफीनामे को नाकाफी बता रहा है? 

केरल के आरटीआई एक्टिविस्ट और आईएमएफ की पहल 

इस मामले को इस मुकाम तक ले जाने वालों में एक प्रमुख नाम है डॉ. केवी बाबू का, जो नेत्र विशेषज्ञ होने के साथ-साथ आरटीआई एक्टिविस्ट का भी काम करते हैं। उनके एक दोस्त की मां ग्लूकोमा की बीमारी का इलाज कराने उनके पास आया करती थीं, लेकिन अचानक उन्होंने दवा और आवश्यक परामर्श लेना बंद कर दिया था। करीब डेढ़ वर्ष बाद जाकर जब वे उनके क्लीनिक वापस आईं, तो उनकी आंखों की रौशनी लगभग जा चुकी थी। पता चला कि इस बीच वे आयुर्वेदिक पद्धति से अपना इलाज जारी रखे हुए थीं। 

इस घटना के बाद डॉ. केवी बाबू को एहसास हुआ कि किस प्रकार भ्रामक विज्ञापनों के चक्कर में आकर लाखों लोग अपने स्वास्थ्य और जान-माल से हाथ धो रहे हैं। पतंजलि आयुर्वेद का नाम इनमें शीर्ष पर था, और इसी को ध्यान में रखते हुए आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ. केवी बाबू ने फरवरी, 2022 में पहली बार शिकायत दर्ज की। लेकिन फर्जी विज्ञापनों और नेशनल मीडिया पर पतंजलि आयुर्वेद के विज्ञापन और चमत्कार का शिकार तो लोग कई वर्षों से हो रहे थे। 

अपनी शिकायत में डॉ. बाबू ने दो कानूनों का हवाला दिया, जिसमें से पहला है, ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 जिसमें 54 बीमारियों, विकारों या स्थितियों को सूचीबद्ध किया गया है जिनके निदान, इलाज, शमन, उपचार एवं रोकथाम के दावे करने वाले विज्ञापनों पर पाबंदी है। उदाहरण के लिए अस्थमा, अंधापन, कैंसर, मोतियाबिंद, बहरापन, मधुमेह, मासिक धर्म और गर्भाशय संबंधी विकारों को दूर करने का दावा करने वाले विज्ञापन निषिद्ध हैं। दूसरा कानून है ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट एंड रूल्स, 1945। इसमें 51 बीमारियों की सूची दी गई है, जिसमें कहा गया है कि “कोई दवा इन बीमारियों को रोकने या ठीक करने का दावा नहीं कर सकती है।” इन कानूनों के चलते कोई एलोपैथिक दवा निर्माता ऐसा विज्ञापन करने से बचता है, लेकिन पतंजलि के करीब-करीब सभी विज्ञापन इन दोनों कानूनों का खुला उल्लंघन करते हैं। 

मजे की बात यह है कि पतंजलि के खिलाफ आयुष मंत्रालय में शिकायत करने वाले डॉ. बाबू अकेले व्यक्ति नहीं थे। उसी महीने मंत्रालय के पास अनेकों शिकायतें आईं थीं, जिन्हें आयुष मंत्रालय के द्वारा उत्तराखंड एसएलए (स्टेट लाइसेंसिंग अथॉरिटी) को यह निर्देश देते हुए आगे बढ़ा दिया गया था कि उक्त विज्ञापनों से डीएमआर एक्ट की अवहेलना हो रही है, और इसके खिलाफ कार्रवाई की जाए।   

मई 2022 में पतंजलि की ओर से कहा गया कि उसके द्वारा तत्काल प्रभाव से आपत्तिजनक विज्ञापनों पर रोक लगा दी गई है, लेकिन जुलाई 2022 में इसके द्वारा फिर से ग्लूकोमा, कंठ रोग, डायबिटीज, हाई/लो ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल जैसी 5 बीमारियों की दवाओं के विज्ञापन टीवी और अखबारों में छापे जाते रहे, जो डीएमआर और डीसीए दोनों का उल्लंघन करने वाले थे। 

स्टेट लाइसेंसिंग अथॉरिटी से इसकी शिकायत करने पर उसके द्वारा पतंजलि को विज्ञापन वापस लेने के लिए कहा गया और उक्त दवा के निर्माण के लाइसेंस को रद्द कर देने की धमकी देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी गई। लेकिन कंपनी द्वारा लगातार कानून का उल्लंघन करने के बावजूद उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी के द्वारा लाइसेंस रद्द करने या कंपनी के खिलाफ डीएमआर एक्ट के तहत केस नहीं किया गया, जिसमें पहली बार दोष सिद्ध होने पर छह महीने की सजा या जुर्माना अथवा दोनों का प्रावधान है और दोबारा दोषी पाए जाने पर एक वर्ष की सजा या जुर्माना या दोनों को लागू किया जा सकता है। 

यहां पर उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी भी खेला करती नजर आती है। हर बार शिकायतें डीएमआर एक्ट के तहत दाखिल की गई थीं, लेकिन अथॉरिटी ने हर बार पतंजलि के खिलाफ डीसीए के रूल 170 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसे दिसंबर 2018 में लाया गया था। इस कानून के तहत सारे आयुष विज्ञापनों को जारी करने से पहले लाइसेंसिंग अथॉरिटी की जांच से गुजरना पड़ेगा। इसको लाने के पीछे यह तर्क दिया गया था कि जब तक ऐसे भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाई जाती है, तब तक लाखों लोग उनका शिकार हो चुके होते हैं। 

लेकिन दवा निर्माता कंपनियों ने इस कानून को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दे दी, और कोर्ट ने इसे लागू करने पर रोक लगा दी थी। पतंजलि ने भी रूल 170 पर बॉम्बे हाईकोर्ट के स्टे आर्डर का हवाला देते हुए उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी के निर्देश को मानने से इंकार कर दिया, और अथॉरिटी ने इसे मान भी लिया। यहां पर ध्यान देना होगा कि शिकायतकर्ता ने ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (डीएमआर) एक्ट के तहत शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन उत्तराखंड अथॉरिटी हर बार बाबा रामदेव की कंपनी को डीसीए एक्ट के तहत क़ानूनी नोटिस भेजती रही, जिसे बॉम्बे हाई कोर्ट में स्टे मिला हुआ था। इससे पता चलता है कि अथॉरिटी और पतंजलि आयुर्वेद देश में उपलब्ध कानून और नए कानून (लेकिन स्टे आर्डर) के चलते अधर में लटके कानून की आड़ लेकर सैकड़ों शिकायतों की खुली अवहेलना करने और लाखों पीड़ितों की जान से खेलने में लगे हुए थे। 

इतना ही नहीं डॉ. केवी बाबू इससे भी बड़ा आरोप लगाते हुए कहते हैं कि 27 सितंबर 2022 को उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी के द्वारा आयुष मंत्रालय को इत्तिला की जाती है कि नियम 170 के चलते कार्रवाई नहीं हो सकती। इसके अगले ही दिन अथॉरिटी की ओर से यह जानते हुए कि स्टे लगा हुआ है, नियम 170 के तहत पतंजलि के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता है, जबकि मैंने डीएमआर एक्ट के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। लेकिन हैरत तो तब होती है जब आयुष मंत्रालय जो अभी तक स्वयं डीएमआर एक्ट के तहत कार्रवाई करने की मांग कर रहा था, ने यू-टर्न लेते हुए टका सा जवाब दे दिया कि रूल 170 पर कोर्ट के स्टे आर्डर की वजह से कोई एक्शन नहीं लिया जा सकता है। 

इस फैसले के खिलाफ तमाम पत्राचार और चुनौती देने और एक सांसद के हस्तक्षेप के बाद फरवरी 2023 में आयुष मंत्रालय ने स्वीकार किया कि डीएमआर एक्ट के तहत कार्रवाई की जा सकती है। लेकिन केंद्रीय मंत्रालय और उत्तराखंड प्रशासन की हीला-हवाली ने पतंजलि आयुर्वेद के हौसले इतने बुलंद कर दिए थे, कि उसने कानून के खुला उल्लंघन को अपना सबसे बड़ा मार्केटिंग टूल बना लिया था।  

इससे पहले अगस्त 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के द्वारा पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ दर्ज शिकायत पर केंद्र सरकार और पतंजलि आयुर्वेद को नोटिस जारी किया था। लेकिन मार्च 2023 को आयुष मंत्रालय ने राज्य सभा में खुद बताया कि पिछले 8 महीनों में पतंजलि के खिलाफ 53 शिकायतें दर्ज की गई हैं, जो बताता है कि पतंजलि ने उत्तराखंड और आयुष मंत्रालय को तो अपने ठेंगे पर रखा ही हुआ था, उसने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की भी जमकर खिल्ली उड़ाई। 

जब सैंया भये कोतवाल, तो डर काहे का 

21 नवंबर 2023 को सर्वोच्च न्यायालय में पतंजलि आयुर्वेद की ओर से एक बार फिर से लिखित अंडरटेकिंग दी जाती है कि उसकी ओर से आगे से कोई भ्रामक विज्ञापन जारी नहीं किया जायेगा, 4 दिसंबर 2023 और फिर 22 जनवरी 2024 को इसके द्वारा विज्ञापन जारी किया जाता है। बाबा रामदेव और बालकृष्ण की ये सारी करतूतें अब सर्वोच्च न्यायालय के भी संज्ञान में हैं।

उत्तराखंड और केंद्र सरकार ने बाबा रामदेव के खिलाफ सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की, इसके पीछे की वजह तो सबको मालूम है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय को तो न तो चुनाव लड़ना है और न ही मीडिया की तरह बाबा के विज्ञापनों के सहारे कोर्ट चलती है, इसलिए वह खुल्लम-खुल्ला अपने आदेशों की धज्जियां उड़ते देख आंख मूंद ले यह संभव नहीं है।

यही वजह है कि 10 अप्रैल को जब सुप्रीम कोर्ट में पतंजलि मामले पर सुनवाई के दौरान उत्तराखंड सरकार का पक्ष रखने के लिए स्टेट लाइसेंसिंग अथॉरिटी की पेशी के दौरान “We will rip you apart” तक कह देने की नौबत आन पड़ी, जिसे लेकर सरकार समर्थक बुरी तरह से बैचेन हो उठे हैं। तो समझा जा सकता है कि मामला कितना गंभीर है।

पाप का घड़ा जब छलकने लगा 

पतंजलि संस्थापक रामदेव और बालकृष्ण की ओर से दूसरी दफा माफ़ी की अपील को कोर्ट ने खारिज करते हुए साफ़ कह दिया है कि “हम अंधे नहीं हैं और हम इस मामले में विनम्र नहीं रहने वाले हैं।” कोर्ट को यह बात भी अवश्य अखरी होगी कि अदालत में लिखित माफीनामे को जमा करने से पहले ही मीडिया में यह बात क्यों लीक कर दी गई। रामदेव के लिए कोर्ट या माफीनामे से ज्यादा जरूरी प्रचार है, यह बात बेंच ने महसूस की। जाहिर है रामदेव के लिए अबकी बार कानून की आँख में धूल झोंकना आसान नहीं रहने वाला है। इससे पहले फरवरी माह में भी सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते हुए उसे मामले पर अपनी आंखें बंद किये होने का आरोप लगाया था। 

लेकिन न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह की खंडपीठ ने सबसे सख्त टिप्पणी उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग अथॉरिटी के लिए सुरक्षित रखी थी। परसों 10 अप्रैल का दिन भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में यादगार माना जाना चाहिए। कोर्ट ने उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी को सीधे निशाने पर लेते हुए एक के बाद एक चुन चुनकर हमले किये, जिसे देख एसएलए ही नहीं देश की ब्यूरोक्रेसी के भी कान खड़े हो चुके होंगे। 

मोदी राज के तहत भारतीय संविधान के मुताबिक अपने कर्तव्यों के निर्वहन के बजाय जिस प्रकार से भारतीय नौकरशाही ने चुनावी तानाशाही के आगे खुद को बिछा दिया है, और नतीजे में उसे भी पोस्ट-रिटायरमेंट बेनिफिट हासिल हो रहे हैं, उसके चलते देश का लोकतांत्रिक ढांचा तेजी से तहस-नहस होता जा रहा है। कोर्ट ने पतंजलि के खिलाफ उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी द्वारा लंबे समय से कोई कार्रवाई न करने और मामले में केंद्र की ओर से संतोषजनक जवाब न दिए जाने का भी हवाला दिया है। 

अदालत ने न सिर्फ लाइसेंसिंग अथॉरिटी के साथ कोई रहम-दिली नहीं दिखाई, बल्कि इसके तीन अधिकारियों को बर्खास्त करने के भी निर्देश जारी कर दिए। हालत यह हो गई कि डॉ. कुमार को कहना पड़ा कि मैंने तो हाल ही में पदभार संभाला है। लेकिन कोर्ट के सवाल थे कि खत्म होने का नाम नहीं ले रहे थे। “क्या आपने कानून पढ़ा है? क्या आपको लगता है कि एक चेतावनी जारी कर देना पर्याप्त है? इस कानून में क्या प्रावधान हैं? आपने कौन सा केस दर्ज किया? आपने क्या-क्या कदम उठाये हैं? 

इस पर बेहाल अधिकारी ने जैसे ही कहा, कि “हम मामला दर्ज करेंगे…”, पर कोर्ट ने कहा, “नहीं…अब आप कुछ दिनों के लिए घर पर बैठो। या आप ऑफिस में बैठकर चिट्ठियां लिखो। आप आम लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं!”

ऐसा जान पड़ता है कि इस पूरे मामले की तह में जाकर सुप्रीम कोर्ट अब इस बात से पूरी तरह से आश्वस्त है कि पतंजलि आयुर्वेद, उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी और आयुष मंत्रालय कहीं न कहीं आपस में मिलकर इस पूरे मामले को अभी तक डीसीए के (लंबित) रुल 17 के तहत उलझाकर करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य से खेल रहे थे। कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी के दौरान जब देश में वैक्सीन की उपलब्धता को लेकर हाय-तौबा मची हुई थी, उस दौरान भी बाबा रामदेव ने देश की तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया के साथ मिलकर अपनी दवा कोरोनिल को जिस प्रकार से कोरोना के खिलाफ रामबाण इलाज का दावा किया था, यह सब आपसी सहमति और राजनीतिक-आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर किया गया। इन सभी बातों की जवाबदेही अगर आज नहीं होगी, तो बाबा रामदेव सरीखी शक्तियां पूरे देश को ही निगल सकती हैं।   

(रविंद्र सिंह पटवाल लेखक और टिप्पणीकार हैं।) 

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