कोरोना से हुई मौतों को छुपाने के लिए मुक्तिधामों से गायब किए जा रहे हैं रजिस्टर: कांग्रेस

नई दिल्ली। कोरोना से संक्रमित होने और मरने वालों की सही संख्या को लेकर देश एकमत नहीं है। मोदी सरकार पर मौतों की असली संख्या छुपाने का आरोप लगता रहा है। उत्तर प्रदेश के कई शहरों में गंगा के किनारे दफनाई लाशों के उजागर होने के बाद इस आरोप को बल भी मिलता है। अब कांग्रेस के प्रवक्ता नेता पवन खेड़ा ने एक प्रेस कांफ्रेंस करके कोरोना से हुई मौतों को छुपाने का आरोप लगाया है।

पत्रकारों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इस सरकार का आंकडों से सांप-नेवले वाला रिश्ता है। पिछले सात साल में ये दृश्य बड़ा सामान्य हो गया है। वो नौकरियां हो, अर्थव्यवस्था हो, जीडीपी हो, तमाम आंकड़ों से या तो सरकार उन आंकड़ों को छुपाती है या किसी तरह से वो बाहर निकल आएं, तो उनसे छुपती हैं। पार्लियामेंट में अक्सर लोकसभा और राज्यसभा में ये देखा गया है कि एनडीए का मतलब ही नो डेटा अवेलेबल है। आंकड़े ही नहीं होते हैं, छुपाते हैं, दिखाते ही नहीं-अर्थव्यवस्था पर हो, नौकरियों पर हो, बेरोजगारी पर हो। लेकिन जब बात इंसान की जिंदगी, एक-एक हिंदुस्तानी की जिंदगी से जुड़ी हो, मौत से जुड़ी हो, तब भी अगर आंकड़े छुपाए जा रहे हों, तो ये घोर पाप माना जाएगा।

अब तक जो संवाद होता था, सरकारों के बीच में, मीडिया के बीच में, तो किसी हादसे में अगर मौत लोगों की हो जाए, तो पत्रकार लोग, आप जैसे लोग, प्रबुद्ध वर्ग के लोग कहते थे, अरे साहब! ये महज एक आंकड़ा नहीं होना चाहिए, ये इंसानी जिंदगी है। नए भारत में तो ये स्थिति आ गई है कि अब ये महज आंकड़ा भी नहीं है। कहाँ बात होती थी कि इंसानी जिंदगी को don’t reduce it to mere statistics, अब ये स्थिति आ गई है कि it’s not even a statistics, ना अब एक आंकड़ा भी नहीं। ये है नया भारत।

गुजरात के उदाहरण आपके सामने आए। जहाँ एक अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में जितनी मौतें हुई, सरकार के अगर दावे देखें, तो पूरे राज्य में भी उससे कम हैं। 10 अप्रैल में 9 मई के बीच में पूरे राज्य में 3,578 मौतें बताई गई और अहमदाबाद में 698 मौतें बताई गई, सरकारी आंकड़ों में। सच्चाई क्या निकली कि अकेले अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में इसी दौरान 3,416 मौतें कोविड से हुई, सिर्फ एक अस्पताल की बात की है। सोचिए पूरे राज्य की क्या स्थिति होगी, अलग-अलग शहरों से रिपोर्ट आई है – सूरत, राजकोट, वडोदरा, भरूच। हाईकोर्ट ने भी गुजरात सरकार को लताड़ पिलाई, वहाँ पर भी इन्होंने गलत, झूठे आंकड़े रखे।

आइए मध्य प्रदेश, हम सबने रिपोर्ट देखी कि किस तरह से मुक्तिधामों से रजिस्टर गायब किए जा रहे हैं कि कहीं आप जैसे खोजी पत्रकारों को कोई आंकड़े ना मिल जाएं। जैसा कि मैंने कहा कि ये आंकड़ों से डरते हैं। ये आंकड़े नहीं हैं, ये किसी के भाई-बहन, माता-पिता, पत्नी-पति, बेटा-बेटी, ये वो लोग हैं, जिन्होंने अपनी जान गंवाई और सरकार के लिए आंकड़े भी नहीं हैं। ऐसी डरी हुई सरकार, विपक्ष से इतनी डरी हुई सरकार, आंकड़ों से इतनी डरी हुई सरकार। भारत के इतिहास में नहीं हुआ।

पिछले साल की तुलना में जनवरी से मई, मध्य प्रदेश की हम बात कर रहे हैं। पिछले साल से आप 2020 से तुलना करिए जनवरी से मई के आंकड़े, तो 1 लाख 90 हजार मौतें ज्यादा हुई। और जो भी आपमें से सभी लगभग आंकड़ों को समझते हैं, बर्थ और डेथ के ट्रेंड को समझते हैं, प्रोजेक्शन को समझते हैं, ये स्वाभाविक कतई नहीं हो सकता। सरकारी आंकड़े सिर्फ 4,461 मौतों को कोविड से संबंधित बताते हैं। आप बताइए, आप जानकारी दिलवाईए कि बाकी मौतें फिर कैसे हुई? भोपाल, इंदौर, बड़े-बड़े शहरों में आ जाइए, छोटे-छोटे शहरों में आ जाइए औऱ मैं वापस एक बात बता दूं, पिछली बार भी हमने बताई थी ये बात – हम जो आंकड़े आपके सामने रखते हैं या आप जो आंकड़े देश के सामने रखते हैं, ये वो आंकड़े हैं, जिनका टेस्ट हुआ है या अस्पताल में कहीं दर्ज हुए हैं या श्मशान घाट, कब्रिस्तान में कहीं दर्ज हुए हैं। ऐसे अनेक-अनेक, लाखों ऐसे उदाहरण हैं, जिनका पता नहीं चला। वो गांव में हैं, टेस्ट नहीं हुआ, छोटे शहरों में हुआ, टेस्ट हुआ, तो रिपोर्ट नहीं आई, पहले ही मृत्यु हो गई। उन तमाम दुखद मृत्युओं का कोई हिसाब-किताब नहीं है कि ये कोविड से हुई या नहीं हुई।

मध्य प्रदेश में जिस तरह से आंकड़े छुपाए जा रहे हैं, ऐसे लगता है प्रतिस्पर्धा हो रही है। गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, तमाम राज्य आपस में प्रतिस्पर्धा में हैं कि कैसे छुपाया जाए, किस काबिलियत से छुपाया जाए आंकड़ो को। उत्तर प्रदेश की स्थिति सबके सामने है। मीडिया के माध्यम से कई बार आई कि किस तरह से लखनऊ में शमशान घाट के आगे व्यू करटेन लगाए जा रहे थे कि लोगों को दिखे नहीं, लोग फोटो ना खींचे और सोशल मीडिया पर ना डालें।

वाराणसी महत्वपूर्ण स्थान है। बहुत महत्वपूर्ण शहर है। सरकार ने अप्रैल में 227 मौतें दिखाई। मैं उदाहरण दे रहा हूं आपको। वाराणसी में सरकार ने अप्रैल में 227 मौतें दिखाई जबकि अकेले मणिकर्णिका घाट पर अप्रैल माह के एक सप्ताह में 1,500 दाह संस्कार हुए। बताइए ये क्या है? इसी दौरान वाराणसी के 13 कब्रिस्तानों में 1,680 मृतकों को दफनाया गया। बताइए ये आंकड़ा सरकार के दावों से इतना दूर क्यों है, इतना ज्यादा क्यों है? मध्य प्रदेश हो, गुजरात हो, उत्तर प्रदेश हो, बिहार, कर्नाटक, 5 राज्यों के आंकड़े आप सामने लाइए, सरकारी आंकड़े लाइए और इस तरह के आंकड़े जो निकल कर आ रहे हैं, वो सामने रखिए। क्या इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अपनी कुर्सी पर बैठने का एक पल का भी अधिकार है? अबोध जनता की जान से खेल रहे हैं, उनके हाथ इनके खून से रंगे हैं। प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से जिम्मेदारी मुख्यमंत्रियों की बनती है।

हम इसे धोखाधड़ी बोलें, तो ये आपराधिक धोखाधड़ी है। हम यह मांग करते हैं कि इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को तुरंत प्रभाव से इस्तीफा देना चाहिए, नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए। हम प्रधानमंत्री ये यह मांग करते हैं कि एक निष्पक्ष न्यायिक जांच पूरे देश में, हर राज्य में करवाई जाए कि कोविड से कितनी मौतें हुई हैं। जिम्मेदारी फिक्स की जाए, बताया जाए कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है। दो अपराध हैं – एक तो यह कि चिकित्सा सही वक्त पर नहीं मिली, टेस्ट सही वक्त पर नहीं हुआ, वैक्सीन नहीं मिला, उस वजह से लोगों को नुकसान हुआ जान-माल का। और दूसरा वह कि आंकड़े छुपाए किसने? यह जिम्मेदारी फिक्स की जानी चाहिए। यह बिल्कुल नियत किया जाना चाहिए कि इसके लिए यह व्यक्ति जिम्मेदार है।

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