वाराणसी से ग्राउंड रिपोर्ट: जी-20 की धूम में हवा-पानी और रोजी-रोटी के लिए तरस गए चौकाघाट-राजघाट के बाशिंदे

वाराणसी। उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में जी-20 की बैठक का तीसरा दिवस यानी आखिरी दिन। स्थान चौकाघाट की लकड़ी-पटरा-चौकी मंडी। यह जीटी रोड का रास्ता गंगा के तीर खिड़किया घाट (नमो घाट) स्थित राजघाट से उस पार पड़ोसी जनपद चंदौली से बिहार-पश्चिम बंगाल को चला जाता है, हाइवे में सटता-सटाता। राजघाट को वाराणसी का पूर्वी प्रवेश द्वार (ईस्ट गेटवे) कहा जाता है। रोजाना करोड़ों की तादात में इस रास्ते से लोगों का बनारस आना-जाना लगा रहता है। 13 जून बुधवार की सुबह नौ बजे तक रास्ते के दोनों तरफ रंग-बिरंगे, अध्यात्म, संस्कृति, व्यापार, पर्यटन, उत्तर प्रदेश में आपका स्वागत है आदि-आदि के बोर्ड-बैनर व फ्लैक्स पोस्टर लगे हुए हैं। ये जी-20 के लोगो और कलेवर में रंगे हुए हैं।

सड़क के किनारे लगे इलाकों में बुनकरी, रेशम, सूती वस्त्र, लोहा, लकड़ी, बांस, दूध, पनीर, अनाज, बर्तन, दवा, कोयला, पर्यटक, तीर्थ, धर्म, परिवहन, थोड़ी ही दूरी पर दो रेलवे स्टेशन, सड़क और अंतरदेशीय जलमार्ग यानी यह प्राचीन, मध्यकालीन और वर्तमान का अनोखा संगम। प्राचीनता, नवीनता, अर्थ, तीर्थ और पर्यटन के बेजोड़ संगम के ताने-बाने में भारत के कोने-कोने समेत सात समंदर पार के भूखंड भी बुने हुए हैं। जिसे हर कोई पलभर ठहरकर निहारना और सूक्षम्ता से विश्लेषित करने को मचल जाता है।

जी-20 के डिलिगेट्स के लिए सजाया गया राजघाट पुल और खिडकिया घाट।

जी-20 बैठक को लेकर राजघाट भी आकर्षण के केंद्र में से एक रहा। देश-विदेश से आये 200 से अधिक डेलीगेट्स ने खिड़किया घाट (नमो घाट) से गंगा की अविरलता और शहर की प्राचीनता को निहारा, यहां तक तो ठीक रहा। लेकिन, इसके राजघाट से लेकर चौकाघाट के लाखों बाशिदों का अलग तरह की मुश्किलें उठानी पड़ी।

दाल-रोटी के लिए जंग

चौकाघाट की रहने वाली बयालीस वर्षीय रेखा देवी सुबह आठ बजे के आसपास अपने घर में लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े इकठ्ठा कर रहीं हैं। आज की सुबह उनके लिए आसान नहीं है। मानो, वह जंग के मैदान में अपने व बच्चों के सर्वाइवल के लिए हर संभव कोशिश में जुटी हैं। उनका तेरह वर्षीय बच्चा रात की रोटी लेकर खाने की तैयारी में है। लकड़ी के गत्ते खरीदने के लिए एक कबाड़ी उनके घर में पहुंच गया है।

पोस्टर और होर्डिंग्स से घिरे रेखा देवी का घर-दुकान में उमस से एक पल ठहरना भी दुश्वार

पांच रुपये प्रतिकिलो में लकड़ी के गत्तों की बिक्री-खरीद का सौदा पटा है। गत्ते से हुई आमदनी से रेखा को अपने चार सदस्यीय परिवार के लिए भोजन की व्यवस्था करनी है। उनका घर तीन तरफ मकानों और दीवारों से घिरा हुआ था। घर दक्षिण दिशा में रोड की तरफ खुला हुआ था, जो एक हफ्ते से पोस्टर और चादर की दीवार से ढक दिया गया है। इससे उनके घर या आंगन में हवा के न आने से उमस भरा माहौल था, और वह पसीने से तर-बतर हैं।

‘कल का कल देखा जाएगा’

साड़ी के आंचल से अपने चेहरे-माथे पर ढुलक रहे पसीने के बूंदों को पोछते हुए रेखा जनचौक से कहती हैं कि “एक हफ्ते से हमारा घर चारों तरफ से घिर गया है। मैं लकड़ी की चौकी (तख्त) और पटरा आदि खरीद कर 100-200 के मुनाफे पर बेचती हूं। यही मेरी आमदनी का स्रोत है। मेरा घर ही दुकान है। रास्ता तो छोड़िये, हवा आने तक की जगह नहीं है। पांच-छह दिनों से बोहनी नहीं हुई है। जो घर में आटा-दाल था, अबतक बना। आज न राशन है और न ही पैसे।”

दाल-रोटी की व्यवस्था के लिए कबाड़ी को लकड़ी के गत्ते बेचतीं रेखा देवी।

रेखा कहती हैं कि “तीन बच्चे हैं, इनको भी खाना खिलाना है और खुद के लिए भी दाना-पानी का प्रबंध करना है। कुछ नहीं होने से लकड़ी-पटरे के छोटे-छोटे टुकड़ों (गत्ते) को पांच रुपये प्रति किलो बेचकर कुछ पैसे जुटाने की कोशिश में लगी हूं। जिससे कम से कम आज के लिए दाल-रोटी की व्यवस्था हो जाए। कल का कल देखा जाएगा। रास्ता बंद होने से कोई ग्राहक भी नहीं आ रहे कि, कुछ सामान ही बिक जाए। हम लोग रोज खाने कमाने वाले हैं। कई दिनों से कुछ बिका नहीं, इससे फांका करने जैसे हालात बन रहे हैं।”

बेलगाम हुए अधिकारी-प्रशासन

ओम प्रकाश, विजय और रवि अपने घर-दुकान को रंगीन चादर और बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स से ढके जाने पर गुस्से में हैं। ओम प्रकाश कहते हैं कि “हम लोग छोटे-मोटे लड़की विक्रेता हैं। टॉल वालों से लकड़ी खरीदकर बेचते हैं। इसी आमदनी से घर-परिवार चलता है। पांच दिनों से काम-धंधा बंद है। पहले थानेदार आया था, उसने घर के बाहर रखे सामानों को हटाने के लिए कहा। उसे हम लोगों ने बिना कुछ कहे सुने हटा दिया। अगले दिन नगर निगम के अधिकारी फ़ोर्स लेकर आते हैं और मनमाने तरीके से सामानों को जबरिया हटा देते हैं।

ओम प्रकाश, रवि और विजय

बात यहीं ख़त्म नहीं होती है, अधिकारियों ने कहा कि “तुम लोग जी-20 कार्यक्रम को लेकर अपने घर और दुकानों के सामने बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाओ। मंदी और महंगाई से गुजर रहे हम लोगों ने तीन से चार हजार रुपये खर्च कर होर्डिंग्स बनवाए। जिस पर मोदी और योगी की तस्वीर छपी थी, जो कहा गया था। जी-20 की बैठक से ठीक एक दिन पहले हम लोगों की होर्डिंग्स को उठाकर कूड़े की तरह फेंक दिया गया। सरकारी कर्मचारी हमारे घर और दुकान के सामने रंगीन चादर और ऊंची होर्डिंग्स की दीवार बना गए। इससे हम लोगों की होर्डिंग्स बेकार पड़ गईं और हजारों रुपये बर्बाद हो गये।”

‘हम लोग कोर्ट में मुकदमा करेंगे’

ओम प्रकाश आगे कहते हैं कि “मैं प्रशासन से यह पूछना चाहता हूं कि जब उसे अपने होर्डिग्स, बैनर और टेंट की दीवार बनानी ही थी तो हम लोगों के लाखों रुपये क्यों खर्च कराये? चौकाघाट लकड़ी मंडी के लोगों का लगभग सवा लाख रुपये का प्रशासन ने नुकसान कराया है। जीएसटी भी भरी है, जिसकी रसीद हम लोगों के पास है। हम लोग कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। जी-20 की बैठक के बाद कोर्ट में मुकदमा दायर कर वाराणसी प्रशासन से हर्जाने की मांग करेंगे। यहां तकरीबन 125 लकड़ी व्यवसायी, 200 से अधिक अन्य सामानों के व्यापारी हैं। स्थानीय रहवासियों की तादात लाखों में है। सभी को प्रशासन ने मुश्किल में डाल दिया है।”

रंगीन होर्डिंग्स की दीवार से छुपाये गए चौकाघाट-राजघाट रोड के किनारे गरीब नागरिकों के आशियाने।

सदमें में बिता दिए चौबीस पहर

स्थानीय कन्हैया लाल चौहान की लकड़ी की पुश्तैनी दुकान चौकाघाट में रोड के उत्तर दिशा में है। वह अपनी दुकान पर मंगलवार की सुबह गुमशुम अवस्था में बैठे हुए हैं। श्रमिकों को काम नहीं मिलने से कई लोग अपने गांव चले गए हैं। पास में ही लकड़ी चीरने की आरा मशीन धूल फांक रही है।

यह पूरा इलाका सड़क से लगा हुआ है, और दोनों तरफ टेंट, चादर, शामियाना, होर्डिंग्स, बांस-बल्ली और केबल से घेरा गया है। इस वजह से घनी आबादी वाले घर-मकानों में उमस और गर्मीं के मारे रहना दूभर हुआ जा रहा है। गर्मी से बचने के लिए उन्होंने अपने आस-पास पानी का छिड़काव किया है। टेंट-तिरपालों की दीवारों में आने-जाने के लिए एक छोटा तंग रास्ता छोड़ा गया है, जो नाकाफी है।

बंद पड़ी आरा मशीन।

वे दिन कहां चले गए?

बासठ वर्षीय कन्हैया लाल कहते हैं कि “हम लोग जी-20 का स्वागत करते हैं। इसके पहले इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी, मायावती व देश-विदेश के ऊंचे ओहदे के सैकड़ों आला हुक्कमरान और अफसर बनारस आये। मुझे याद है, राजीव गांधी जब हमारे घर के सामने से गुजर रहे थे, तो वे खुली जीप में थे। हजारों लोगों की भीड़ का उन्होंने खुली जीप से गुजरते हुए हाथ हिलाकर अभिवादन किया।”

वो आगे कहते हैं कि “एक दौर वह था लेकिन आज जब भी कोई वीआईपी/नेता/ मंत्री आते हैं, उसका सबसे पहला शिकार गरीब और कम आमदनी वाले व्यापारी बनते हैं। लगभग एक दशक से ऐसी नौटंकी को देखते और सहते आ रहे हैं। अब बहुत हो गया है। आए दिन के दौरे और ढकोसलों से अजीज आ गए हैं। ऐसे ही चलता रहा तो हम लोग दाने-दाने को मोहताज हो जाएंगे।”

उदास बैठे कन्हैया लाल और पप्पू।

कन्हैया लाल की इन बातों का पास में ही प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठे हुए पचपन वर्षीय पप्पू और एक अन्य ने समर्थन करते हुए कहा कि “अब बनारस को राजनीतिक विकल्प पर काम करना चाहिए। ये लोग गरीबों को अपनी जमीन से उजाड़ने में लगे हुए हैं।”

प्रशासन की गुंडई से पहुंचा है आघात

चौकाघाट-राजघाट रोड पर पानी टंकी के पश्चिम में रोड के उत्तर दिशा में सन 1956 से रहते आ रहे साठ वर्षीय छोटे अपनी पत्नी और बेटों के साथ अपने घर से लगी छोटी सी दुकान पर बैठकर समय काट रहे हैं। वह कहते हैं “जी-20 की घेराबंदी के चलते चार-पांच दिनों से कोई काम नहीं है। कुछ दिन पहले पुलिस आई थी, सामान हटाने के लिए कहा था। हम लोग पूरा सहयोग किये, लेकिन अगले दिन प्रशासन के लोग आये और रौब-दाब दिखाने लगे। दुकान को तोड़ने और फोड़ने की बात कह रहे थे।”

जी-20 की तैयारी को लेकर दुकान उठाकर ले जाता प्रशासन का बुलडोजर।

छोटे कहते हैं कि “मेरा पूरा परिवार मेहनत-मजदूरी करके गुजारा करता है। यह भी नहीं की हम लोग अतिक्रमणकारी हों, या सड़क पर पड़े हुए हैं। हम लोगों का पूरा परिवार पुस्तैनी घर मकान और जमीन पर रहता आ रहा है। अपने घर-दुआर पर ही प्रशासन तेज आवाज में धमका कर गई। इसलिए तो हम लोगों ने नहीं वोट दिया था। भला नागरिकों से क्या पुलिस ऐसी भाषा में बात करती है। मन बहुत दुःखी है। अब बहुत हो गया।”

स्मार्ट सिटी में गरीबों का हश्र

छोटे आगे कहते हैं कि “सरकार हमें अब तक आवास नहीं दे पाई है। आधे-अधूरे मकानों में हम लोगों का जैसे-तैसे गुजारा हो रहा है। पूंजी के नाम पर यही थोड़ी सी जमीन बची है। कुछ महीने पहले तक यहां पानी भी आता था, लेकिन सड़क बनाने के लिए पेयजल की पाइप भी उखाड़ दी गई, जिसे आज तक नहीं सुधारा गया। पानी लेने के लिए दूसरों के घरों और 200 फीट से अधिक तीन लेन की सड़क पार कर जाना पड़ता है। बहुत दिक्कत है। कई दिनों से बिजली का संकट भी शुरू हो गया है। स्मार्ट सिटी में गरीबों का हश्र किसी से छिपा नहीं है। देख लीजिये राजघाट किला-कोहना की बस्ती को बुलडोजर से जमींदोज कर दिया गया है। उनका कोई नामो-निशान नहीं बचा है।”

प्रशासन द्वारा बनाए गए होर्डिंग्स की दीवार के बीच तंग रास्ते से गुजरता हुआ रिक्शाचालक।

20 देशों के 200 प्रतिनिधि आये वाराणसी

जी-20 के आर्थिक व सामाजिक विकास मंत्रियों की महत्वपूर्ण बैठक 11 जून से 13 जून, 2023 को वाराणसी में हुई। विदेश मंत्री एस. जयशंकर इस बैठक की अध्यक्षता की और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए इसको संबोधित किया। इसके पहले गत रविवार को जयशंकर ने दलित बूथ अध्यक्ष सुजाता के घर पर नाश्ता कर अपनी यात्रा का आगाज किया।

बैठक में आर्थिक मंदी, ऋण संकट, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव समेत विभिन्न विषयों पर मंथन किया गया। बैठक में फ्रांस, जर्मनी, जापान, साउथ अफ्रीका, यूके, यूएसए समेत समूह से जुड़े अन्य देशों के लगभग 200 डेलीगेट्स आये थे। इसमें 40 से अधिक मंत्री व विभिन्न विभागीय अध्यक्ष, विशेषज्ञ व 160 के आसपास प्रतिनिधि शामिल रहे।

कचहरी पर पीपल गोलंबर पर जी-20 के लोगो-पोस्टर के साथ तस्वीरें खिंचवाते लोग।

राजघाट और गंगा में सैर-सपाटा

होटल ताज में आराम करने के बाद डेलीगेट्स शाम को राजघाट स्थित नमो घाट पहुंचे और चार जलयान पर सवार होकर गंगा की सैर किये। इसके बाद दशाश्वमेध घाट पर पहुंचकर गंगा की आरती देखी। प्रशासनिक तैयारियों के मुताबिक, एक क्रूज पर सवार विभिन्न देशों के विशेष मंत्रीगण आरती में शामिल रहे तो वहीं शेष तीन जलयान पर सवार डेलीगेट्स गंगा की लहरों से ही आरती को निहारे।

(उत्तर प्रदेश के वाराणसी से पवन कुमार मौर्य की रिपोर्ट।)

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