सदानंद गौड़ा ने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर कर्नाटक में बढ़ाया भाजपा का संकट

नई दिल्ली। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हारने के छह महीने बाद भी भाजपा के पास न तो प्रदेश अध्यक्ष है और ना ही विधायक दल का नेता। पूर्व मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा ने चुनावी राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी है। जिसके बाद भाजपा नेताओं में बेचैनी छाई हुई है। 70 वर्षीय गौड़ा ने बुधवार 8 नवंबर को हासन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके राज्य में कृषि संकट को दूर करने में राज्य सरकार की विफलताओं पर चर्चा की। गौड़ा भाजपा की सूखा अध्ययन समिति के सदस्य के रूप में वहां मौजूद थे।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब उनसे पूछा गया कि क्या वह राज्य में फिर से पार्टी का नेतृत्व करने के इच्छुक हैं, तो उन्होंने यह कहकर सबको चौंका दिया कि, “मैंने इसका हिस्सा न बनने का एक छोटा सा निर्णय लिया है। मेरे 30 साल के राजनीतिक करियर में मेरी पार्टी ने मुझे सब कुछ दिया है। बी एस येदियुरप्पा के अलावा, मैं नंबर एक लाभार्थी हूं। मैंने 10 साल तक विधायक के रूप में, 20 साल तक सांसद के रूप में, एक साल तक मुख्यमंत्री के रूप में, चार साल से अधिक समय तक प्रदेश अध्यक्ष के रूप में और नरेंद्र मोदी सरकार में सात साल तक कैबिनेट मंत्री के रूप में कार्य किया। यदि मैं और अधिक की आकांक्षा करता हूं तो मैं स्वार्थी कहलाऊंगा।”

पार्टी के भीतर चर्चा के अनुसार, येदियुरप्पा के करीबी विश्वासपात्र और बेंगलुरु उत्तर से सांसद गौड़ा को अगले साल लोकसभा चुनाव में नहीं उतारा जा सकता है। बीजेपी नेताओं ने कहा कि पूर्व सीएम इतने महीनों तक विधानसभा में पार्टी नेता का चयन नहीं होने से खुश नहीं थे। बुधवार को उन्होंने कहा कि विपक्ष के नेता की नियुक्ति में देरी पार्टी के लिए शर्मिंदगी की बात है।

उन्हें संसदीय चुनावों के लिए भाजपा-जद(एस) गठबंधन से भी नाखुश बताया गया था। 7 अक्टूबर को उन्होंने कहा कि, ”राज्य के नेताओं को इस फैसले से बाहर रखा गया। हमसे इस मुद्दे पर चर्चा तक नहीं की गई। हो सकता है, यह पार्टी के राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए और कांग्रेस का विरोध करने के लिए किया गया हो।’ कुछ हफ्तों बाद, 25 अक्टूबर को, पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने गौड़ा को दिल्ली बुलाया।

गौड़ा दक्षिण कन्नड़ जिले के पुत्तूर के रहने वाले हैं। कानून की पढ़ाई करने वाले और 1983 में राज्य भाजपा युवा मोर्चा में जाने से पहले वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के जिला महासचिव के रूप में कार्य किया।

तटीय कर्नाटक के एक अनुभवी भाजपा नेता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि, “सदानंद गौड़ा का पुत्तूर में उदय तब शुरू हुआ जब तटीय क्षेत्र सहित कर्नाटक में भाजपा की ज्यादा उपस्थिति नहीं थी। हालांकि, आरएसएस की जड़ें मजबूत हैं। वी एस आचार्य, सदानंद गौड़ा और अन्य नेता लगभग शुरुआती भाजपा कार्यकर्ता और तत्कालीन तटीय कर्नाटक के नेता थे। जब पार्टी बढ़ी तो जाहिर सी बात थी कि उन्हें पद भी मिले। उनके विकास में संघ की बड़ी भूमिका है।”

जब अगस्त 2011 में अवैध खनन और अन्य भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण येदियुरप्पा सरकार गिर गई, तो येदियुरप्पा ने उन्हें सीएम पद के लिए चुना। इससे गौड़ा भी हैरान रह गए जिन्होंने राज्य की कमान संभालने के बाद कहा था, “इधु बयसदे बंध भाग्य (यह एक अप्रत्याशित भाग्य है)।”

सीएम की कमान संभालने से कुछ महीने पहले, उन्होंने कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (KMF) का प्रमुख नियुक्त नहीं किए जाने पर निराशा जताई थी। लेकिन इसके तुरंत बाद उनका येदियुरप्पा से मतभेद हो गया और जुलाई 2012 में उनकी जगह जगदीश शेट्टर को ले लिया गया।

2014 में बेंगलुरु उत्तर से जीतने के बाद, उन्होंने छह महीने तक रेल मंत्री के रूप में कार्य किया और फिर केंद्रीय कानून मंत्री बने। उनके पास सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन, रसायन और उर्वरक विभाग भी रहे हैं। उनका एक वीडियो सार्वजनिक होने के कुछ दिनों बाद जुलाई 2021 में एक फेरबदल में उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटा दिया गया, जिससे राज्य और केंद्र दोनों को शर्मिंदगी उठानी पड़ी। गौड़ा ने दावा किया कि वीडियो “फर्जी और मनगढ़ंत” था। इस घटना ने उन्हें पार्टी में हाशिये पर धकेल दिया और तब से वह राज्य की राजनीति में बहुत सक्रिय नहीं हैं।

(‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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