सच्चाई का दिग्दर्शन: हज़ारहा सलाम दानिश

सलाम दानिश! अपनी कुर्बानी देकर तुमने फोटो पत्रकारिता को जो मुकाम दिया है वह पत्रकारों के लिए ज़रुर एक सबक होगा। आज के दौर में जब मीडिया ग़ुलाम होता जा रहा हो। चंद ज़मीर वाले पत्रकारों पर खंजर लटक रहे हों। उन पर हमले हो रहे हों। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मापने के पैमाने बदलकर उन पर राजद्रोह जैसे मामले दर्ज हो रहे हों। चारों ओर दहशतज़दा माहौल हो। जनता की तकलीफों को सामने लाना सरकार की गलतियों को बताना जुर्म हो। ऐसे में दानिश सिद्दीकी के फोटो ने जो सच्चाईयां बयां की वह ऐतिहासिक है। ये फोटो दुनिया की उन तमाम परेशानियों से हमें रूबरू कराते रहे जिन्हें मीडिया ने दिखाने में कोताही बरती। उनके फोटो बोलते हैं, सारी दास्तान कह डालते हैं। इसलिए विदेशी फोटो पत्रकारिता भी उन्हें सलाम करती है। पुलित्ज़र जैसे सम्मान से सम्मानित करती है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि वे जांबाज फोटोग्राफर थे। वे उन स्थानों पर पहुंचते रहे जहां जान की जोखिम रही। जामिया के सामने भारी भरकम पुलिस की मौजूदगी में फायर करने वाले व्यक्ति का लगभग सामने से फोटो लेना, जिसे प्राय:सभी ने देखा होगा लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं इस चित्र को खींचने का जोखिम लेने वाला निडर फोटोग्राफर दानिश ही था। यह एक फोटो वहां की हकीकत से रूबरू कराता तो है ही साथ ही साथ अपराधी का चेहरा जिस तरह सामने लाता है वह अदालत के लिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है। पुलिस का चरित्र भी उजागर करता है।

एक और चित्र रोहिंग्या जब म्यांमार से समुद्र के रास्ते भगाए जाते हैं, हमारे देश में भी उनको लेकर विरोध की आंधी चल रही होती है तब दानिश एक समुद्र पार कर रोहिंग्या महिला बच्चे का थकान और क्लांत तट को छूते जो अद्वितीय फोटो सामने रखते हैं वह बेजोड़ है। रोहिंग्या के दर्द को वे इस तरह उकेरते हैं कि कोई भी संवेदनशील इंसान उनको आने से नहीं रोक सकता। यह चित्र दुनिया में सराहा गया और वे पुलित्ज़र अवार्ड के भागीदार बने।

कोरोना काल में दिल्ली में जलती चिंताएं और बड़ी संख्या में तैयार की जा रही चिताएं और अस्पताल के कॉरीडोर के चित्र कोरोना की भयावहता के साथ ही सरकार की कार्यपद्धति की पोल खोल देता है इससे प्रवासी मजदूरों के दर्दनाक दृश्य। कोरोना काल के हृदय स्पर्शी दृश्य कितना कुछ कह जाते हैं। दानिश ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऐसी तस्वीरें खींचीं जिन्हें देखकर लोगों को इस महामारी की भयावहता का अंदाजा लगा।

वे न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम करते थे। सिद्दीकी की मौत शुक्रवार को पाकिस्तान बॉर्डर के नजदीक स्पिन बोल्डक में हुई। वे मौत के समय अफगान सुरक्षा बलों के साथ थे। इससे पहले भी उन पर 13 जुलाई को हमला किया गया था। युद्ध क्षेत्र से बराबर वे चित्र भेज रहे थे।    

रॉयटर्स अध्यक्ष माइकल फ्राइडनबर्ग और मुख्य संपादक एलेजेंड्रा गैलोनी ने दुख जताते हुए दानिश को असाधारण पत्रकार बताया। कहा, वे एक समर्पित पति व पिता थे और अपने सहकर्मियों में बेहद लोकप्रिय थे।  उधर, तालिबान प्रवक्ता जबिउल्लाह मुजाहिद ने एक बातचीत में कहा, ‘युद्ध क्षेत्र में प्रवेश कर रहे किसी भी पत्रकार को हमें सूचित करना चाहिए। हम उस व्यक्ति का खास ध्यान रखेंगे।’ उन्होंने कहा, ‘हमें भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत का दुख है।

दानिश के जाने का ग़म उन सबको है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं। फिर वे चाहे फोटोग्राफर, चित्रकार , कवि, कहानीकार लेखक और नाटककार  क्यों ना हों? सच से रूबरू कराना इनकी जिम्मेदारी बनती है। पत्रकार और हर किस्म का रचनाकार लोकतंत्र का चतुर्थ स्तंभ है। इनका साहसी और निर्भीक होना बहुत ज़रूरी है। दानिश सिद्दीकी ऐसे ही फीचर फोटोग्राफर थे जिन्होंने हर जोखिम भरे मुकाम पर जाकर अपने फोटो के ज़रिए यथार्थ को सामने रखा। इसलिए वे लोग ख़ुश हैं जो झूठ में विश्वास रखते हैं। वे याद रखें सत्य कालजयी होता है झूठ नहीं। वास्तव में सत्य के विरोध में खड़े लोग आत्महंता होते हैं। वे भले गांधी या दानिश को मार डालें पर ऐसे लोग मरते नहीं सदैव के लिए अजर अमर हो जाते हैं।

(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र लेखिका हैं।)

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