संघ-बीजेपी की गिरफ्त के खिलाफ उठने लगी है उच्च शिक्षण संस्थानों से आवाज

नई दिल्ली। केंद्र में सत्ता में आने के साथ ही संघ-भाजपा ने उच्च शैक्षणिक संस्थानों पर अपनी गिरफ्त मजबूत करनी शुरू कर दी थी। जेएनयू से शुरू हुआ ये सिलसिला बारी-बारी से तकरीबन सभी उच्च शैक्षणिक संस्थानों तक पहुंच गया। और इस कड़ी में न केवल उच्च शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता छीनी गयी बल्कि अकादमिक वातावरण और पाठ्यक्रमों में भी बड़े बदलाव किए गए। इसी दौरान जेएनयू, जामिया, उस्मानिया और हैदराबाद विश्वविद्यालय को वामपंथियों का अड्डा बताकर बदनाम करने की साजिश रची गयी। लेकिन इस जकड़बंदी के खिलाफ अब उन्हीं परिसरों से आवाजें उठने लगी हैं। इसके दो ताजा मामले अशोका विश्वविद्यालय और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी) बेंगलुरू के हैं। पहले में एक अध्यापक के इस्तीफा देने पर तमाम दूसरे अध्यापक उसके साथ खड़े हो गए हैं। जबकि बेंगलुरू में तीस्ता सीतलवाड़ के परिसर में न घुसने देने के प्रशासन के फैसले के खिलाफ वहां की फैकल्टी खड़ी हो गयी।

शुरुआत भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बेंगलुरु से करते हैं। जहां बुधवार को छात्रों द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में तीस्ता सीतलवाड़ को शामिल होने से रोक दिया गया। लेकिन छात्रों और फैकल्टी के दबाव में प्रशासन को झुकना पड़ा। छात्रों ने ‘ब्रेक द साइलेंस’  नामक कार्यक्रम में नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार तीस्ता सीतलवाड़ को सांप्रदायिक सद्भाव और न्याय पर बातचीत करने के लिए आमंत्रित किया था लेकिन उन्हें संस्थान में प्रवेश करने से रोकने की कोशिश की गयी।  

आयोजनकर्ता छात्र समूह के अनुसार सीसीएस सेमिनार हॉल में होने वाले कार्यक्रम का आयोजन करने से पहले आईआईएससी के रजिस्ट्रार से अनुमति ली गई थी। बावजूद इसके कार्यक्रम के दिन, बिना किसी अग्रिम सूचना के संस्थान के सुरक्षा कर्मियों को सीतलवाड़ को परिसर में प्रवेश ना करने देने का निर्देश दिया गया था। जिसके बाद संस्थान के प्रोफेसरों ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और तीस्ता सीतलवाड़ को प्रवेश करने की अनुमति मिली।

हालांकि, तय किए गए जगह पर यानी सेमिनार हॉल में ये चर्चा नहीं हो पाई और आयोजन स्थल को बदल कर कैफेटेरिया के पास सर्वम कॉम्प्लेक्स में आयोजित किया गया। आईआईएससी के प्रोफेसरों और छात्रों सहित लगभग 45 लोगों की उपस्थिति में चर्चा को आरंभ किया गया।

चर्चा में भाग लेने वाले एक प्रतिभागी ने कहा कि “सीतलवाड़ को परिसर में प्रवेश करने से रोकना लोकतंत्र के खिलाफ था। आईआईएससी जैसी प्रमुख संस्था को अभिव्यक्ति की आजादी बनाए रखने की जरूरत है। संस्थान की इस तरह की कार्रवाई निंदनीय है।”

अशोका विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर सब्यसाची दास के एक शोध पत्र ‘डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग इन द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी’ से उपजे राजनीतिक विवाद के बाद उन्हें विश्वविद्यालय से इस्तीफा देना पड़ा। क्योंकि सत्तारूढ़ दल के विरोध के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने बयान जारी कर रिसर्च पेपर से अपने को अलग कर लिया था। और रिसर्च पेपर के गुणवत्ता पर भी सवाल उठाया था। जिसके बाद दो दिनों के अंतराल में अर्थशास्त्र विभाग के दो प्रोफेसर सब्यसाची दास और पुलाप्रे बालाकृष्णन ने इस्तीफा दे दिया था।

सब्यसाची दास का शोध पत्र ‘डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग इन द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी’ जिसमें 2019 के चुनाव परिणामों के हेर-फेर के बारे में विद्वतापूर्ण तरीके से बताया गया है। जिसके बाद सत्तारूढ़ भाजपा ने उनके रिसर्च पेपर के निष्कर्षों पर सवाल उठाया था। हालांकि, इन प्रोफेसरों के इस्तीफे के बाद से विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के प्रोफेसर विश्वविद्यालय प्रशासन का खुलकर विरोध कर रहे हैं।

इस्तीफा देने के बाद अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पुलाप्रे बालाकृष्णन ने कहा है कि मैं इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि मैंने इस्तीफा दे दिया है।

टेलीग्राफ के द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या सब्यसाची के पेपर मामले में जांच हुई थी तो उन्होंने इसका हां में उत्तर दिया। यह पूछे जाने पर कि क्या वह उसका हिस्से थे। उन्होंने कहा कि “नहीं मैं नहीं था। कोई भी प्रोफेसर जो एकैडमिक स्वतंत्रता का सम्मान करता है उसका हिस्सा नहीं हो सकता है।”

अकादमिक निष्कर्षों को राजनीतिक बहस में लाकर किसी प्रोफेसर को इस्तीफे के लिए विवश करने की खबर से भारत में शैक्षणिक स्वतंत्रता की स्थिति के बारे में चिंताएं फिर से बढ़ने लगी हैं।

एक अन्य मामले में जिसमें एक शिक्षक बेहतर भविष्य के लिए पढ़े-लिखे नेता को चुनने का सुझाव देता है उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है। बात 14 अगस्त की है, ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म अनएकेडमी के शिक्षक करण सांगवान का 44 सेकंड का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होता है जिसमें ऑनलाइन क्लास के दौरान करण अपने अनुभव को साझा करते हुए छात्रों से पढ़े-लिखे नेता को चुनने का सलाह देते हैं।

जिसके बाद बीजेपी की आईटी सेल करण सांगवान के पीछे पड़ गई, और उनका आरोप ये था कि सांगवान ने अपने लेक्चर के दौरान बीजेपी और बीजेपी के सबसे बड़े नेता यानी प्रधानमंत्री मोदी के ऊपर टिप्पणी की है। जिसके बाद करण सांगवान को नौकरी से निकाल दिया जाता है। इस बात की पुष्टि अनएकेडमी के संस्थापक रोमन सैनी ने ट्वीट करके बताया था जिसमें उसने लिखा था कि हम जो कुछ भी करते हैं उसके केंद्र में हमारे शिक्षार्थी होते हैं। कक्षा व्यक्तिगत राय और विचार साझा करने की जगह नहीं है क्योंकि वे उन्हें गलत तरीके से प्रभावित कर सकते हैं। वर्तमान स्थिति में, हमें करण सांगवान से अलग होने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि वह आचार संहिता का उल्लंघन कर रहे थे। लेकिन मैनेजमेंट के इस कदम का चारों तरफ विरोध हो रहा है।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

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