श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इनकार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद स्थल को कृष्ण जन्मभूमि के रूप में मान्यता देने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस फैसले से किसी भी कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के किसी भी पक्ष के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करना नहीं चाहती। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकील महक महेश्वरी की याचिका खारिज कर दी थी।

पीठ ने आदेश दिया, “हम दिए गए फैसले में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं और इसलिए, विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।” पीठ ने कहा कि तथ्यों के विवादित सवालों को देखते हुए न्यायालय का हस्तक्षेप करना सही नहीं होगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष दायर अपनी याचिका में, माहेश्वरी ने मांग की थी कि पूजा स्थल अधिनियम, 1991 की धारा 2, 3 और 4 को असंवैधानिक घोषित किया जाए और तर्क दिया था कि 1991 के कानून द्वारा लगाई गई रोक जन्मभूमि मामले में लागू नहीं होगी। भूमि हमेशा से मंदिर की रही है।

माहेश्वरी ने तर्क दिया था कि विभिन्न ऐतिहासिक रिकॉर्ड इस तथ्य का हवाला देते हैं कि विवादित स्थल, शाही ईदगाह मस्जिद, भगवान कृष्ण का वास्तविक जन्मस्थान है और यहां तक कि मथुरा का इतिहास रामायण युग का है, जबकि इस्लाम सिर्फ 1,500 साल पहले आया।

हाईकोर्ट ने पिछले साल अक्टूबर में जनहित याचिका को खारिज कर दिया था। उस समय हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा था- “चूंकि वर्तमान रिट (पीआईएल) में शामिल मुद्दे पहले से ही उचित कार्यवाही (यानी, लंबित मुकदमों) में अदालत का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं, इसलिए हम रिट याचिका पर विचार नहीं कर सकते, इसे खारिज किया जाता है।”

जनहित याचिका में विवादित जमीन से मस्जिद हटाने की भी मांग की गई थी। उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए मामले को खारिज कर दिया था कि मांगी गई राहत पहले से ही संबंधित मुकदमों में उच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है। इसके चलते शीर्ष अदालत के समक्ष अपील की गई।

उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका अधिवक्ता महक माहेश्वरी ने 2020 में दायर की थी। उन्होंने तर्क दिया कि कई ऐतिहासिक ग्रंथों ने दस्तावेज किया है कि विचाराधीन स्थल वास्तव में कृष्ण जन्मभूमि था।

इसके अलावा, याचिका में कहा गया है कि मथुरा की ऐतिहासिक जड़ों का पता रामायण के समय से लगाया जा सकता है, जबकि इस्लाम लगभग 1,500 साल पहले बहुत बाद में आया था।

याचिका में कहा गया है कि शाही ईदगाह इस्लामी न्यायशास्त्र के तहत एक वैध मस्जिद के रूप में योग्य नहीं है क्योंकि बल के माध्यम से अधिग्रहित भूमि पर मस्जिद का निर्माण नहीं किया जा सकता है। दूसरी ओर, हिंदू न्यायशास्त्र के अनुसार, एक मंदिर अपनी पवित्र स्थिति को बरकरार रखता है, भले ही वह खंडहर में हो।

याचिकाकर्ता ने अदालत से हिंदू समुदाय को भूमि के हस्तांतरण का आदेश देने का आग्रह किया। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने कृष्ण जन्मभूमि जन्मस्थान के लिए एक वैध ट्रस्ट की स्थापना के लिए प्रार्थना की, जो उसी भूमि पर मंदिर बनाने के लिए समर्पित होगा।

इसके अतिरिक्त, याचिका में विवादित स्थल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा जीपीआरएस तकनीक का उपयोग करके अदालत की निगरानी में खुदाई के लिए प्रार्थना की गई, जिसके बारे में माना जाता है कि इसका निर्माण कृष्ण जन्मस्थान के ऊपर किया गया था।

इसी तरह की राहत के लिए एक दीवानी मुकदमा पहले से ही निचली अदालत में लंबित है।इससे पहले उत्तर प्रदेश की निचली अदालत, इलाहाबाद उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने विवादित स्थल के वैज्ञानिक सर्वेक्षण की हिंदू ट्रस्ट की याचिका खारिज कर दी थी ।

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद के परिसर का निरीक्षण करने के लिए अदालत आयुक्त की नियुक्ति की अनुमति देने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर मौखिक रूप से रोक लगाने से इनकार कर दिया।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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