दिल्ली मेयर चुनाव पर SC ने कहा- मनोनीत सदस्यों को वोटिंग का हक नहीं, 24 घंटे में जारी हो नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली नगर निगम के मेयर के चुनाव को लेकर चल रहे एक बड़े विवाद को खत्म करते हुए कहा कि नगर निगम के मनोनीत सदस्य मेयर के चुनाव में मतदान नहीं कर सकते। न्यायालय ने यह भी कहा कि मनोनीत सदस्य डिप्टी मेयर और स्थायी समितियों के चुनाव में भी मतदान नहीं कर सकते। कोर्ट ने पहली मीटिंग में दिल्ली मेयर चुनाव करवाने के निर्देश दिए। इसके लिए 24 घंटे के अंदर नोटिस जारी करने के लिए कहा है।

शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नॉमिनेटेड मेंबर्स को वोटिंग का हक नहीं है। यह बहुत ही दूरगामी निर्णय है क्योंकि यूपी में भी नगर निगमों में नॉमिनेटेड मेंबर्स की परम्परा है, जो उप नगर प्रमुख से लेकर कार्यकारिणी तक के चुनाव में मत देते हैं और सता पक्ष के प्रत्याशियों को चुनाव जिताने में मदद करते हैं। हालांकि नगर प्रमुख (मेयर) का चुनाव जनता द्वारा किया जाता है।

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 243 आर और दिल्ली नगर निगम अधिनियम, 1957 की धारा 3 (3) पर भरोसा करते हुए कहा कि प्रशासक द्वारा नामित व्यक्तियों को वोट का अधिकार नहीं है। पीठ ने आदेश दिया कि धारा 3(3)(बी)(1) के संदर्भ में नामित सदस्यों पर मतदान के अधिकार का प्रयोग करने पर प्रतिबंध पहली बैठक में लागू होगा जहां महापौर और उप महापौर का चुनाव होना है।

पीठ ने दिल्ली के लेफ्टिनेंट जनरल और दिल्ली नगर निगम की इस दलील को खारिज कर दिया कि मनोनीत सदस्य वोट देने के हकदार हैं। पीठ ने जो निर्देश जारी किए उनमें कहा गया है कि

1. एमसीडी की पहली बैठक में महापौर पद के लिए शुरू में चुनाव होगा और उस चुनाव में मनोनीत सदस्यों को वोट देने का अधिकार नहीं होगा।

2. महापौर के चुनाव होने पर, महापौर उप महापौर और स्थायी समिति के सदस्यों के चुनाव के संचालन के लिए पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्य करेगा, जिसमें नामित सदस्यों के मतदान करने पर भी प्रतिबंध जारी रहेगा।

3. नगर निगम की पहली बैठक बुलाने की सूचना 24 घंटे के भीतर जारी की जाएगी। नोटिस में नगर निगम की पहली बैठक का संकेत होगा जिसमें महापौर का चुनाव होना है।

याचिकाकर्ता ने यह तर्क देने के लिए डीएमसी अधिनियम की धारा 76 पर भी भरोसा किया कि महापौर और उप महापौर को सभी बैठकों की अध्यक्षता करनी होती है, इसलिए, तीन पदों (मेयर, डिप्टी मेयर और स्थायी समिति के सदस्य) के लिए एक साथ चुनाव कराना डीएमसी अधिनियम के विपरीत है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट शादान फरासत की सहायता से सीनियर एडवोकेट डॉ एएम सिंघवी ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 आर के साथ-साथ इसके मिररिंग प्रावधान- 1957 के डीएमसी अधिनियम की धारा 3 (3) के अनुसार, नामित व्यक्ति वोट नहीं कर सकते।

आप की मेयर प्रत्याशी शैली ओबेरॉय ने याचिका लगाकर मनोनीत पार्षदों को मेयर चुनाव में वोटिंग राइट देने के फैसले को चुनौती दी थी। शैली ने कोर्ट से मांग की थी कि मेयर का चुनाव सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में की जाए।

इससे पहले सोमवार को इस मामले में सुनवाई हुई, जहां जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कानून बिल्कुल स्पष्ट है कि मनोनीत सदस्यों को वोट देने का अधिकार नहीं है। इसके बाद एलजी के कार्यालय की ओर से बताया गया कि 16 फरवरी के चुनाव को स्थगित कर दिया गया।

इसके पहले एलजी वीके सक्सेना की ओर से मनोनीत 10 MCD सदस्यों को वोट देने की अनुमति के फैसले का आप ने कड़ा विरोध किया। इस कारण 6 जनवरी, 24 जनवरी और 6 फरवरी को पार्षदों की बैठक में भाजपा और आप ने जमकर हंगामा किया। इस कारण मेयर का चुनाव नहीं हो सका। दिल्ली नगर निगम अधिनियम भी कहता है कि मनोनीत सदस्य या एल्डरमैन सदन की बैठकों में मतदान नहीं कर सकते।

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप ने उपराज्यपाल की ओर से मनोनीत सदस्यों को वोटिंग राइट देने के अधिकार का कड़ा विरोध किया था, जिन्हें केंद्र की ओर से नियुक्त किया गया था। आप ने उन पर दिल्ली सरकार के काम में बाधा डालने की कोशिश करके भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया था।

दिसंबर में हुए एमसीडी चुनावों में आप ने 134 वार्डों में जीत हासिल की और भाजपा के 15 साल के शासन को खत्म कर दिया। बीजेपी ने 104 वार्ड जीतकर दूसरा स्थान हासिल किया, जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही। पार्टी ने नौ वार्डों पर ही जीत हासिल की।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार व कानूनी मामलों के जानकार हैं)

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