राम मंदिर उद्घाटन समारोह में नहीं जाएंगे द्वारका शारदापीठ के शंकराचार्य, ठुकराया निमंत्रण

नई दिल्ली। अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर के उद्घाटन समारोह को लेकर शंकराचार्यों की नाराजगी लगातार सामने आ रही है। शंकराचार्यों का भी मानना है कि ये समारोह पूरी तरह से राजनीतिक है और इस पर गैर धार्मिक लोगों का कब्जा है।

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और पुरी पीठ के शंकराचार्य के बाद अब गुजरात के द्वारका में शारदापीठ के तीसरे शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने भी राम मंदिर के उद्घाटन समारोह का निमंत्रण ठुकरा दिया है। उनका कहना है कि विवादों और “धार्मिक विरोधी ताकतों” से जुड़े होने के कारण वे राम मंदिर अभिषेक में शामिल नहीं होंगे।

इससे पहले, स्वामी निश्चलानंद सरस्वती और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद, ज्योतिष्पीठ (उत्तराखंड) और गोवर्धन पुरी पीठ (ओडिशा) के शंकराचार्य ने भी समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया था। इन सभी का कहना है कि मंदिर का निर्माण अभी अधूरा है और अधूरे मंदिर का अभिषेक करना शास्त्रों का उल्लंघन है।

सदानंद सरस्वती ने शुक्रवार को गुजरात में अपने आश्रम में संवाददाताओं से कहा, “अगर कोई धार्मिक स्थल किसी विवाद में फंसा हो और उस पर धर्म विरोधी ताकतों का कब्जा हो तो वहां पूजा करना प्रतिबंधित है।”

उन्होंने कहा कि “राम मंदिर आंदोलन पिछले 500 वर्षों से चल रहा है, और हम चाहते थे कि विवादित जमीन हिंदुओं को सौंप दिया जाए। हम वहां मौजूद आध्यात्मिक शक्ति के लिए अयोध्या जाते हैं।“

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर इशारा करते हुए कहा कि “लेकिन जब गैर-धार्मिक तत्व ऐसे क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लेते हैं तो हम उस आध्यात्मिक शक्ति को पाने में असफल हो जाते हैं। हमारी संस्कृति के प्रतीक अपनी पवित्रता के लिए आध्यात्मिक लोगों के पास ही रहने चाहिए।”

उन्होंने कहा, “सभी चार शंकराचार्यों को निमंत्रण मिला है लेकिन कोई भी 22 जनवरी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अयोध्या नहीं जा रहा है।”

सदानंद सरस्वती ने भी ये बात कही कि राम मंदिर के अभिषेक को लेकर धर्मग्रंथों को अनदेखा किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “पूजा वेदों में निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार की जानी चाहिए।”

अविमुक्तेश्वरानंद ने मंदिर ट्रस्ट के एक सदस्य की टिप्पणी पर पलटवार किया है, जिन्होंने शंकराचार्यों के रुख पर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा था कि यह मंदिर रामानंदी परंपरा का है, साधुओं या शैवों का नहीं।

उन्होंने कहा कि “अगर ऐसा है, तो ट्रस्ट ने राम मंदिर निर्माण के लिए हमसे दान क्यों मांगा था और उन्होंने हमसे पैसे क्यों स्वीकार किए? हम सनातनी परंपरा से हैं। मैं ट्रस्ट के सदस्य से यह भी कहना चाहूंगा कि वह तुरंत पद छोड़ दें और अगर मंदिर उनकी परंपरा का है तो इसे रामानंदी संतों को सौंप दें।“

वहीं श्रृंगेरी पीठ (कर्नाटक) के शंकराचार्य स्वामी भारती तीर्थ ने अभी तक इस विषय पर कोई बयान नहीं दिया है। शंकराचार्यों की परंपरा के अनुसार संसार मिथ्या है और ब्रह्म परम सत्य है। रामानंदियों का मानना है कि संसार सत्य है और उनके सभी कर्म पृथ्वी पर ही किये जाने हैं।

(‘द टेलिग्राफ’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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