कोविड के यूपी मॉडल संबंधी आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट को विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने बताया मैनिपुलेटेड

(आईआईटी कानपुर के एक प्रोफेसर मनिंद्र अग्रवाल ने कोरोना से लड़ने के मामले में यूपी सरकार के तरीके को एक मॉडल के तौर पर पेश किया था। विज्ञान जगत से जुड़े विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने इस पर कड़ा एतराज जताया है। उन्होंने न केवल उदाहरणों के जरिये इसे गलत साबित किया है बल्कि पूरी से मैनिपुलेटेड और पक्षपातपूर्ण बताया है। इस सिलसिले में 210 वैज्ञानिकों ने बाकायदा हस्ताक्षरित बयान जारी कर अपना पक्ष रखा है। पेश है उनका लिखत बयान-संपादक)

आईआईटी कानपुर द्वारा एक कथित वैज्ञानिक अध्ययन, जिसका शीर्षककोविडसंग्रामयूपीमॉडल: नीतियुक्ति, परिणामहै, को पिछले कुछ हफ्तों में मीडिया में व्यापक रूप से प्रसारित व प्रचारित किया गया है। रिपोर्ट के लेखक और मुख्य संपादक प्रो. मनिंद्र अग्रवाल हैं, जो आईआईटी कानपुर में एक संकाय सदस्य हैं। साथ ही वे तथाकथित ‘सूत्र मॉडल’ के प्रमुख वास्तुकारों में से एक हैं। सूत्र मॉडल संक्रामक रोगों का एक कंपार्टमेंटल मॉडल है।

सूत्र मॉडल प्रभावी तौर पर एक कर्व फिटिंग अभ्यास है व जिसकी संक्रामक रोगों के संदर्भ मे भविष्यवाणी करने की शक्ति या वैज्ञानिक योग्यता काफी कम है। इस मॉडल के आधार पर अग्रवाल व उनके सहयोगियों ने बार-बार ऐसी सार्वजनिक घोषणाएं की हैं जो कि अनुभव के आधार पर गलत साबित हुई हैं। उदाहरण के लिए, 9 मार्च 2021को, अग्रवाल ने ट्विटर पर घोषणा की कि भारतमेंकोईदूसरीलहरनहींहोगी। 30 जनवरी को, अग्रवाल व उनके सहयोगियों ने एक वैज्ञानिक पत्र में केंद्र सरकार की नीतियों की सराहना की और दावा किया कि “यह स्थापित करना आसान है कि लिए गए निर्णयों ने कई लहरों को आने से बचा लिया।”

जब ये भविष्यवाणियां गलत निकलीं, तब अपनी गलतियों को स्वीकार करने के बजाय अग्रवाल व उनके सहयोगियों ने नए डेटा को फिट करने के लिए बस अपने मॉडल में मापदंडों व राशियों को बाद में संशोधित कर दिया। उदाहरण के लिए, उनके पेपर के बाद के संस्करण में, यह स्पष्ट करने के बजाय कि भारत सरकार की आदर्श नीतियों को स्थापित करने वाला उनका “आसान” विश्लेषण पहले स्थान पर त्रुटिपूर्ण क्यों था, उन्होंने बस चुपचाप उपरोक्त वाक्य को हटा दिया।

रिपोर्ट अपने आप में सरकारी डेटा और सरकारी कार्यक्रमों के विवरण का एक गैर-आलोचनात्मक पुनरुत्पादन है, जिसका पारदर्शी उद्देश्य यह दर्शाना है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने महामारी का प्रबंधन किसी अन्य राज्य की तुलना में बेहतर तरीके से किया है। इस रिपोर्ट के कई दावे निराधार हैं, इसके निष्कर्ष अक्सर अतिरंजित हैं, और इसके डेटा को अस्पष्ट तरीके से प्रस्तुत किया गया है। अग्रवाल और उनकी टीम नियमित रूप से सरकारी खर्च या प्रयास के दावों को इसके इच्छित प्राप्तकर्ताओं पर सकारात्मक प्रभाव के साथ भ्रमित करती है; इस तरह के दावों को शोध और फील्डवर्क द्वारा समर्थित होना चाहिए, और इस रिपोर्ट में इनमें से कोई भी नहीं है। 

दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश पर आधारित विस्तृत सूचना की समीक्षा करने पर, यह स्पष्ट हो जाता है कि महामारी के प्रति यूपी सरकार की प्रतिक्रिया अपर्याप्त थी। कई लाख मेहनतकशों पर इन विफलताओं का प्रभाव चौंका देने वाला रहा है, और अभी तक जो नुकसान हुआ है, उसका पूरी तरह से आकलन होना बाकी है। यह रिपोर्ट सरकार की नीति के ईमानदार मूल्यांकन से बहुत दूर है, और इसके लेखकों का दोषपूर्ण विज्ञान और राज्य सरकार की त्रुटिपूर्ण नीतियों को मजबूत करने के अलावा और कोई उद्देश्य नहीं है।

हमारा मानना है कि आईआईटी कानपुर व अन्य अकादमिक संस्थानों पर महामारी से निपटने के लिए सरकार के प्रयासों व उसके असर का अध्ययन व  मूल्यांकन करने की एक गंभीर जिम्मेदारी है ताकि हमने जो भयावहता देखी है, वह खुद को न दोहराए। ऐसे में‌ यह खास तौर पर महत्वपूर्ण है कि ऐसे अध्ययन खुले और ईमानदार तरीके से किये जायें, न कि इस तरह से कि लोगों के हितों पर एक विशिष्ट सरकार के हितों को तरजीह दी जाए।

इस संदर्भ में, हमें यह अस्वीकार्य लगता है कि आईआईटी कानपुर के निदेशक ने इस तरह की रिपोर्ट के निष्कर्षों का समर्थन करते हुए एक प्रस्तावना लिखी है। हम, अधोहस्ताक्षरी, महामारी के यूपी सरकार के घोर कुप्रबंधन पर पर्दा डालने के लिए आईआईटी कानपुर की छाप व साख का उपयोग करने के इस प्रयास की निंदा करते हैं।

Janchowk
Published by
Janchowk