जनविरोध के बाद श्रीलंका ने अडानी समूह को बंदरगाह के प्रोजेक्ट से किया बाहर

आपकी निगाहों से पता नहीं यह खबर गुजरी कि नहीं, जिसमें कहा गया है कि श्रीलंका में एक बंदरगाह बनाने का कांट्रैक्ट भारत और जापान के हाथ से निकल गया है, क्योंकि श्रीलंका सरकार ने इसे रद्द कर दिया है। मुख्यधारा की गोदी मीडिया या तो इस खबर को पी गई या फिर अंडरप्ले कर दिया। जब इसकी पड़ताल की तो पता चला कि जापान के साथ अडानी की कंपनी को यह काम मिला था। तब से सोच रहा हूं कि अडानी का अर्थ भारत कब से और कैसे हो गया है?

दरअसल श्रीलंका ने भारत को रणनीतिक डील के मोर्चे पर बड़ा झटका दे दिया है। भारत और जापान ने साथ मिलकर श्रीलंका में एक बड़ा पोर्ट टर्मिनल बनाने के समझौते पर हस्ताक्षर के थे, लेकिन श्रीलंका में एक सप्ताह से चल रहे विरोध प्रदर्शन की वजह से प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने डील को रद्द करने की घोषणा कर दी। हिंद महासागर में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रहे भारत के लिए यह झटका माना जा रहा है।

श्रीलंका ने दोनों देशों के साथ समझौते के तहत रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) बनाने का फैसला किया था। इस डील में टर्मिनल का 49 फीसदी हिस्सा भारत और जापान के पास होता। श्रीलंका पोर्ट अथॉरिटी के पास इसमें 51 फीसदी का हिस्सा होता।

चीन के कर्ज तले दबे श्रीलंका ने कोलंबो पोर्ट पर बनने वाली ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) परियोजना से भारत को बाहर कर दिया है। कहा जा रहा है श्रीलंकाई सरकार ने देश भर के ट्रेड यूनियनों के कड़े विरोध के बाद यह फैसला किया है, लेकिन यह विरोध यदि ट्रेड यूनियनों का होता तो वे चीन द्वारा श्रीलंका में विकसित किए जा रहे दूसरे बंदरगाह का भी विरोध करते, लेकिन ऐसी सुर्खियां तो विशेषज्ञों को भी कहीं देखने को नहीं मिलीं।

गौरतलब है कि श्रीलंका ने चीन का क़र्ज़ न चुका पाने के कारण हंबनटोटा बंदरगाह चीन की मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स लिमिटेड कंपनी को 99 साल के लिए लीज पर दे दिया था। वर्ष  2017 में इस बंदरगाह को 1।12 अरब डॉलर में इस कंपनी को सौंपा गया। इसके साथ ही पास में ही क़रीब 15,000 एकड़ जगह एक इंडस्ट्रियल ज़ोन के लिए चीन को दी गई थी।

वर्ष 2019 में श्रीलंका सरकार ने भारत और जापान के साथ मिलकर इस पोर्ट पर कंटेनर टर्मिनल बनाने के लिए समझौता किया था। भारत के इस प्रोजक्ट को हंबनटोटा पोर्ट पर चीन की मौजूदगी की काट के रूप में देखा गया था, लेकिन भारत की तरफ से यह काम अडानी की कंपनी को मिला था। सामारिक नज़रिए से ये ईस्ट कंटेनर टर्मिनल बहुत ही महत्वपूर्ण बताया जाता है। उस इलाक़े का लगभग 70 फ़ीसदी कारोबार इसी के ज़रिए होता है। ये ट्रांसशिपमेंट कोलंबो के नज़दीक है।

श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने कैबिनेट की बैठक के बाद बताया कि अब ईस्ट कंटेनर टर्मिनल का संचालन श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी अपने दम पर करेगी। भारत ने श्रीलंका सरकार के इस फैसले के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया दी है। भारत ने कहा कि मौजूदा त्रिपक्षीय समझौते को लेकर श्रीलंका को एकतरफा कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। आरोप लग रहे हैं कि श्रीलंका यह सब चीन के दबाव में कर रहा है, क्योंकि आर्थिक संकट में फंसे देश को चीन 50 करोड़ डॉलर का कर्ज दे रहा है।

इस कंटेनर परियोजना को लेकर श्रीलंका के श्रमिक हड़ताल पर थे। देश के सबसे व्यस्ततम पोर्ट के कर्मियों के हड़ताल को लेकर प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने खुद दखल देकर हड़ताल खत्म करवाई थी। श्रमिकों की मांग थी कि ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) बनाने के लिए किसी विदेशी को मंजूरी न दी जाए।

पूर्ववर्ती सिरिसेना सरकार के कार्यकाल में ईस्ट कंटेनर टर्मिनल को विकसित करने के लिए भारत और जापान के साथ सहयोग ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए थे। इस परियोजना को भारत और जापान चीन की मदद से विकसित हुए कोलंबो इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल (सीआईसीटी) के पास बनाने जा रहे थे। ईसीटी परियोजना को लेकर अभी औपचारिक समझौते पर हस्ताक्षर नहीं हुआ था।

ये करार श्रीलंका, भारत और जापान के बीच था, जिसमें 51 फ़ीसदी हिस्सेदारी श्रीलंका की और 49 फ़ीसदी हिस्सेदारी भारत और जापान की होनी थी। भारत सरकार ने किसी सरकारी कंपनी से यह कांट्रैक्ट पूरा करने के बजाए अडानी को यह पूरा सौदा सौंप दिया और घोषणा की गई कि भारत की ओर से अडानी इस सौदे को पूरा करेंगे, जबकि चीन जैसे बड़े देश भी इस तरह के कांट्रैक्ट अपनी सरकारी कंपनियों को ही देते हैं।

जैसे विभिन्न परियोजनाओं में निवेश को लेकर अडानी समूह का भारत में विरोध होता है, वैसा ही श्रीलंका में भी हुआ। श्रीलंका बंदरगाह श्रमिक संघ के प्रतिनिधियों ने पिछले हफ्ते साफ-साफ कह दिया कि वे अभी भी कोलंबो बंदरगाह के ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के अडाणी समूह के प्रस्ताव के पक्ष में नहीं हैं। निजीकरण का विरोध कर रहे ट्रेड यूनियन वालों के साथ श्रीलंका की सिविल सोसायटी भी आ गई। उसने भी पूरी तरह से श्रमिक संघों का साथ दिया और श्रीलंका की सरकार को झुकना पड़ा एवं करार रदद् कर दिया गया।

अब महिंदा राजपक्षे ने कहा है कि ईस्ट कंटेनर टर्मिनल में 100 फ़ीसदी हिस्सेदारी श्रीलंका पोर्ट अथॉरिटी (एसएलएपी) की ही होगी। उनके इसी बयान के बाद ख़बरें आईं कि भारत के साथ ईस्ट कंटेनर टर्मिनल का करार श्रीलंका ने रद्द कर दिया है। श्रीलंका सरकार ने अब ईस्ट कंटेनर टर्मिनल की जगह वेस्ट कंटेनर टर्मिनल भारत के सहयोग से बनाने का प्रस्ताव दिया है। नए प्रस्ताव के तहत श्रीलंका इसे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप की तर्ज़ पर भारत और जापान के साथ ही मिल कर बनाना चाहता है, हालांकि अभी तक भारत सरकार नए प्रस्ताव को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है।

आर्थिक स्तंभकार गिरीश मालवीय का कहना है कि ऐसा नहीं है कि मोदी और अडानी के इस गठजोड़ की खबर दुनिया को नहीं है। विश्व के प्रमुख आर्थिक अखबारों में इस गठजोड़ की आलोचना हो रही है। पिछले महीने फाइनेंशियल टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि गौतम अडानी का बढ़ता व्यापारिक साम्राज्य आलोचनाओं का केंद्र बन गया है। अडानी की नए करार करने की भूख और राजनीतिक पहुंच ये बात सुनिश्चित करती है कि वो आगे एक केंद्रीय भूमिका निभाने जा रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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