सीबीआई को केस सौंपने की अर्णब की याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

प्रशांत भूषण के इस कथन का असर उच्चतम न्यायालय पर आंशिक तौर पर दिखने लगा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि आज, सबसे बड़ी समस्या उच्चतम न्यायालय की स्वतंत्रता में कमी होना और सरकार के इशारे पर चलने की उसकी तत्परता है। रिपब्लिक टीवी और उसके प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी को पर्सनल लिबर्टी के नाम पर जेल से तत्काल रिहाई का आदेश देने वाले उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एआरजी आउटलॉयर मीडिया प्राइवेट लिमिटेड (रिपब्लिक टीवी चैनल चलाने वाली कंपनी) और अर्णब गोस्वामी द्वारा मुंबई पुलिस द्वारा चैनलों की संपादकीय टीम के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर के खिलाफ दायर एक रिट याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार किया और कहा कि यह याचिका प्रकृति में महत्वाकांक्षी है। पीठ ने कहा कि आप चाहते हैं कि महाराष्ट्र पुलिस किसी भी कर्मचारी को गिरफ्तार न करे और केस को सीबीआई को हस्तांतरित कर दे। बेहतर है कि आप इसे वापस ले लें। याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ले ली है।

याचिका में कहा गया था कि सभी एफआईआर रद्द की जाएं और सभी मामलों को जांच के लिए सीबीआई को सौंपा जाए। इसके अलावा, कोई संपादकीय और अन्य कर्मचारी महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तार नहीं किए जाएं।

इसके पहले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मिलिंद साठे ने पीठ को बताया कि याचिका पिछले कुछ महीनों से चैनल और उसके कर्मचारियों के पीछे पड़ने  से सुरक्षा की मांग करते हुए दायर की गई है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने याचिका में प्रार्थनाओं को देखने के बाद टिप्पणी की कि यह थोड़ा महत्वाकांक्षी है, जैसे कि रिपब्लिक कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए भारत संघ को निर्देश, सभी मामलों को सीबीआई को हस्तांतरित करना, महाराष्ट्र पुलिस को रिपब्लिक कर्मचारियों को गिरफ्तार करने से रोकना आदि।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुझाव दिया कि बेहतर होगा कि आप इसे वापस ले लें। इस पर, साठे ने वैकल्पिक उपायों को अपनाने के लिए स्वतंत्रता की मांग की। तदनुसार, याचिका को वैकल्पिक उपायों की तलाश के लिए याचिकाकर्ताओं के अधिकारों के पक्षपात के बिना वापस ले लिया।

पिछली 23 अक्तूबर को मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी की संपादकीय टीम और एंकरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उन्होंने अपनी उस रिपोर्ट में पुलिस अधिकारियों के बीच नफरत को उकसाया, जिसमें यह भी कहा गया था कि मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह के खिलाफ विद्रोह भड़क रहा है।

यह प्राथमिकी, पुलिस शाखा (1) की धारा 3 (1) के तहत एनएम जोशी मार्ग पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई थी। एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि इस तरह की सामग्री प्रसारित करने से चैनल और उसके पत्रकारों ने जानबूझकर पुलिस कमिश्नर के खिलाफ पुलिस कर्मियों के बीच असहमति को भड़काने की कोशिश की और यह कृत्य मुंबई पुलिस की छवि को भी खराब करता है।

हाल ही में इसी पीठ ने रायगढ़ पुलिस द्वारा अन्वय आत्महत्या मामले में अर्णब गोस्वामी को अंतरिम जमानत दी थी। अक्तूबर में इसी पीठ ने टीआरपी घोटाले की प्राथमिकी के खिलाफ गोस्वामी द्वारा दायर एक और रिट याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था। इससे पहले, अप्रैल में जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पालघर लिंचिंग और बांद्रा प्रवासियों की घटनाओं की रिपोर्ट पर कई एफआईआर को समेकित करके गोस्वामी को सीमित राहत दी थी, लेकिन एफआईआर को रद्द करने और सीबीआई को जांच स्थानांतरित करने की याचिका को खारिज कर दिया था।

चार्जशीट की टीस
इससे पहले जब आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में पुलिस ने टीवी पत्रकार अर्णब गोस्वामी के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था तो इसकी राजनितिक चोट जहां लगनी थी, वह  सामने आ गई। बिना किसी विलंब के महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शनिवार को सवाल दाग दिया कि उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणियों के बावजूद आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में महाराष्ट्र की शिवसेना की अगुवाई वाली महाविकास अघाड़ी सरकार ने टीवी पत्रकार अर्णब गोस्वामी के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करने में ‘जल्दबाजी’ क्यों दिखाई?

नेता प्रतिपक्ष फडणवीस ने ट्वीट कर सवाल किया कि अर्णब गोस्वामी के मामले में क्या यह उच्चतम न्यायालय के फैसले का मजाक नहीं है? क्या वे दोबारा निजी स्वतंत्रता को कुचलने का प्रयास कर रहे हैं?

उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने गोस्वामी के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में पिछले महीने महाराष्ट्र सरकार से सवाल किए थे और कहा था कि अगर इस तरह किसी व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता को प्रभावित किया जाता है तो यह न्याय का मजाक होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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