सुप्रीम कोर्ट ने कहा- वेश्यावृत्ति भी एक पेशा है, पुलिस बेवजह सेक्स वर्कर्स को परेशान न करे

उच्चतम न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि वेश्यावृत्ति भी एक प्रोफेशन है। कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को आदेश दिया है कि उन्हें सेक्स वर्कर्स के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। पुलिस को बालिग और सहमति से सेक्स वर्क करने वाली महिलाओं पर आपराधिक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को सेक्स वर्कर्स के लिए अपने पैनल की कुछ सिफारिशों का सख्ती से पालन करने के लिए निर्देश जारी करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार सेक्स वर्कर्स को सम्मान के साथ जीने के लिए शर्तें अनुकूल हैं।

उच्चतम न्यायालय कोरोना के दौरान सेक्स वर्कर्स को आई परेशानियों को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। कोर्ट ने कहा कि सेक्स वर्कर्स भी कानून के तहत गरिमा और समान सुरक्षा की हकदार हैं। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने सेक्स वर्कर्स के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में 6 निर्देश भी जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा कि सेक्स वर्कर्स भी देश के नागरिक हैं। वे भी कानून में समान संरक्षण के हकदार हैं।

पीठ ने कहा कि इस देश के हर नागरिक को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार मिला है। अगर पुलिस को किसी वजह से उनके घर पर छापेमारी करनी भी पड़ती है तो सेक्स वर्कर्स को गिरफ्तार या परेशान न करे। अपनी मर्जी से प्रॉस्टीट्यूट बनना अवैध नहीं है, सिर्फ वेश्यालय चलाना गैरकानूनी है। महिला सेक्स वर्कर है, सिर्फ इसलिए उसके बच्चे को मां से अलग नहीं किया जा सकता। अगर बच्चा वेश्यालय या सेक्स वर्कर के साथ रहता है इससे यह साबित नहीं होता कि वह बच्चा तस्करी कर लाया गया है।

पीठ ने कहा कि अगर सेक्स वर्कर के साथ कोई भी अपराध होता है तो तुरंत उसे मदद उपलब्ध कराएं, उसके साथ यौन उत्पीड़न होता है, तो उसे कानून के तहत तुरंत मेडिकल सहायता सहित वो सभी सुविधाएं मिलें जो यौन पीड़ित किसी भी महिला को मिलती हैं। कई मामलों में यह देखा गया है कि पुलिस सेक्स वर्कर्स के प्रति क्रूर और हिंसक रवैया अपनाती है। ऐसे में पुलिस और एजेंसियों को भी सेक्स वर्कर के अधिकारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।

पीठ ने कहा कि पुलिस को प्रॉस्टिट्यूट के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए, पुलिस को उनके साथ मौखिक या शारीरिक रूप से बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। कोई भी सेक्स वर्कर को यौन गतिविधि के लिए मजबूर नहीं कर सकता।

पीठ ने प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया से सेक्स वर्कर्स से जुड़े मामले की कवरेज के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की अपील की है। जिससे गिरफ्तारी, छापे या किसी अन्य अभियान के दौरान सेक्स वर्कर्स की पहचान उजागर न हो। पीठ ने कहा कि यदि मीडिया ग्राहकों के साथ यौनकर्मियों की तस्वीरें प्रकाशित करता है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 354 सी के तहत दृश्यता के अपराध को लागू किया जाना चाहिए।

पीठ ने ये निर्देश भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए सेक्स वर्कर्स के अधिकारों पर कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल द्वारा की गई कुछ सिफारिशों को स्वीकार करते हुए जारी किए। पीठ ने स्पष्ट किया कि ये निर्देश तब तक लागू रहेंगे, जब तक केंद्र सरकार कानून लेकर नहीं आती।

उच्चतम न्यायालय ने 19 जुलाई 2011 को द‌िए आदेश में यौनकर्मियों के लिए एक पैनल का गठन किया था। पैनल ने मोटे तौर पर तीन पहलुओं की पहचान की थी – -तस्करी की रोकथाम; -यौन कार्य छोड़ने की इच्छा रखने वाली यौनकर्मियों का पुनर्वास; और -यौनकर्मियों के लिए अनुकूल परिस्थितियां जो सम्मान के साथ यौनकर्मी के रूप में काम करना जारी रखना चाहती हैं। तीसरे बिंदु को संविधान के अनुच्छेद 21 के प्रावधानों के अनुसार यौनकर्मियों के लिए सम्मान के साथ जीने के लिए अनुकूल परिस्थितियों के रूप में संशोधित किया गया था।

हितधारकों से परामर्श के बाद, पैनल ने एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इसके बाद 2016 में जब मामला सूचीबद्ध किया गया था, केंद्र सरकार ने न्यायालय को सूचित किया था कि पैनल द्वारा की गई सिफारिशें विचाराधीन हैं और उन्हें शामिल करते हुए एक मसौदा कानून प्रकाशित किया गया है। इस तथ्य के मद्देनजर कि उक्त कानून ने अभी तक लागू नहीं किया गया, यहां तक कि जब वर्ष 2016 में सिफारिशें की गई थीं, तब भी सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश प्रदान करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति का प्रयोग करना उचित समझा, जैसा कि उसने विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य में किया था।

पीठ ने कहा कि राज्य सरकारों को सभी आईटीपीए सुरक्षा गृहों का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया जाए ताकि वयस्क महिलाओं के मामलों की समीक्षा की जा सके, जिन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध हिरासत में लिया गया है और उन्हें समयबद्ध तरीके से रिहा करने के लिए कार्रवाई की जा सकती है।

इसके पहले पीठ ने भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को यौनकर्मियों को आधार कार्ड जारी करने का निर्देश दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि नाको में राजपत्रित अधिकारी या स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी में प्रोजेक्ट डायरेक्टर की ओर से दिए गए प्रोफार्मा प्रमाणन के आधार पर यौनकर्मियों को आधार कार्ड जारी करे। पीठ ने यूआईडीएआई से यह सुनिश्चित करने को कहा कि आधार कार्ड जारी करने की प्रक्रिया में यौनकर्मियों की गोपनीयता बनी रहे। इस प्रक्रिया में गोपनीयता का उल्लंघन नहीं होगा, जिसमें आधार नामांकन संख्या में किसी भी कोड को असाइन करना भी शामिल है, जिससे कार्ड धारक को सेक्स वर्कर के रूप में पहचाना जा सकता है।

इससे पहले दरबार महिला समन्वय समिति की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आनंद ग्रोवर ने पीठ को अवगत कराया कि यौनकर्मियों को निवास के प्रमाण के बिना आधार कार्ड जारी नहीं किए जा रहे हैं। यूआईडीएआई की ओर से दिए हलफनामे में सुझाव दिया गया था कि यौनकर्मी जो नाको की सूची में हैं और आधार कार्ड के लिए आवेदन करते हैं, लेकिन निवास का प्रमाण प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं, उन्हें आधार कार्ड जारी किया जा सकता है, बशर्ते कि नाको में राजपत्रित अधिकारी या राज्य का स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रोफार्मा प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया जाए, जिनके विवरणों की पुष्टि वो कर रहे हों।

पीठ ने केंद्र सरकार को छह सप्ताह की अवधि के भीतर पैनल द्वारा की गई अन्य सिफारिशों का जवाब देने का निर्देश दिया। पैनल को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार तस्करी की रोकथाम, यौन कार्य छोड़ने की इच्छा रखने वाली सेक्स वर्कर्स के पुनर्वास और सेक्स वर्कर्स के लिए सम्मान के साथ जीने के लिए अनुकूल परिस्थितियों से संबंधित मुद्दों पर सिफारिशें करने का अधिकार दिया गया था। पैनल ने सभी हितधारकों के साथ परामर्श करने के बाद, संदर्भ की शर्तों पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। केंद्र सरकार ने इसकी कुछ सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था जिसे अब पीठ ने राज्यों को अपनाने का निर्देश दिया है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

जेपी सिंह
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