इलाहाबाद हाईकोर्ट के बोझिल, लंबित आपराधिक अपीलों पर सुप्रीमकोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान

उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित आपराधिक अपीलों पर स्वत: संज्ञान लिया है। हाईकोर्ट में लंबे समय से अटकी इन अपीलों के निपटारे के लिए ऐसा किया गया है। उच्चतम न्यायालय ऐसे मामलों पर दिशानिर्देश देने पर विचार कर रहा है। उसने इस मामले को पंजीकृत करने का आदेश दिया है। जस्टिस संजय कृष्ण कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि ऐसा सिस्टम होना चाहिए कि अगर कोई आरोपी हाई कोर्ट जाए तो जमानत अर्जियों को सुनवाई के लिए तुरंत सूचीबद्ध किया जाए। पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा हलफनामे में दिए गए सुझावों को बोझिल बताते हुए स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज करने का आदेश दिया।

पीठ ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से एक हलफनामा दायर किया गया है । इसमें सरकार के सुझावों को स्वीकार किया गया है। अगर हम इन सुझावों पर गौर करें तो इससे जमानत देने की प्रक्रिया और अधिक बोझिल हो जाएगी। अगर कोई अपील हाईकोर्ट में लंबित है और दोषी आठ साल से अधिक की सजा काट चुका है तो अपवाद के अलावा ज्यादातर मामलों में जमानत दे दी जाती है। इसके बावजूद मामले विचार के लिए सामने नहीं आते। हमें यह स्पष्ट नहीं है कि जमानत के ऐसे मामलों को सूचीबद्ध करने में कितना वक्त लगता है।’

पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि हाईकोर्ट द्वारा हलफनामा दायर किया गया है जहां वे सरकार द्वारा जमानत के मानदंड के रूप में सूचीबद्ध प्रस्तावों से सहमत हैं। हमने हलफनामे का अध्ययन किया है और हमारे विचार में सुझाव अधिक बोझिल हैं। यदि अपीलहाईकोर्ट के समक्ष लंबित है और यदि व्यक्ति को 8 साल हो गए हैं, तो ज्यादातर मामलों में जमानत दी जानी चाहिए, इसके बावजूद कि मामला सामने नहीं आ रहा है। ऐसे अपराधी हो सकते हैं जो जमानत आवेदनों को स्थानांतरित करने के लिए कानूनी सहायता तक पहुंच का अनुरोध करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। हाईकोर्ट को उन मामलों का पता लगाना चाहिए जहां आरोपी को 8 साल की सजा हुई है, उसे जमानत देने पर विचार किया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि ऐसे दोषी हो सकते हैं कि जिनके पास जमानत अर्जियां देने के लिए कानूनी सलाह लेने की सुविधा नहीं हो और ऐसी स्थिति में हाई कोर्ट को उन सभी मामलों पर गौर करना चाहिए जहां आठ साल की सजा काट चुके दोषियों को जमानत दी जा सकती है।पीठ ने कहा कि दोषी को पहले हाई कोर्ट जाना चाहिए ताकि सुप्रीम कोर्ट पर अनावश्यक रूप से मामलों का बोझ नहीं बढ़े। लेकिन, कोई तंत्र होना चाहिए कि अगर कोई आरोपी हाई कोर्ट का रुख करता है तो जमानत याचिका तत्काल सूचीबद्ध की जाए।

पीठ ने कहा कि कुछ मामले उम्रकैद की सजा के भी हो सकते हैं और ऐसे मामलों में जहां 50 फीसदी सजा की अवधि पूरी हो चुकी हो वहां इस आधार पर जमानत दी जा सकती है। हम हाई कोर्ट को इस संबंध में अपनी नीति रखने के लिए चार हफ्तों का वक्त देते हैं। हम अपने सामने लंबित सभी मामलों पर विचार नहीं करना चाहेंगे।

पीठ ने कहा कि उसके समक्ष लंबित मौजूदा जमानत अर्जियों को सुनवाई के लिए हाईकोर्ट के समक्ष तत्काल रखा जाए। पीठ ने कहा कि इस मामले पर और गौर करने के लिए आगे के निर्देशों के लिए अदालत के समक्ष एक अलग स्वत: संज्ञान मामला दर्ज किया जा सकता है। हम रजिस्ट्री (पंजी) को इस संबंध में स्वत: संज्ञान मामला दर्ज करने और 16 नवंबर को इसे अदालत के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश देते हैं। हमारे समक्ष जमानत के लिए सूचीबद्ध की गई अन्य याचिकाओं को हाई कोर्ट ट्रांसफर किया जाए। सुनवाई की शुरुआत में वरिष्ठ अधिवक्ता विराज दतार ने कहा कि हाई कोर्ट ने सरकार के सुझावों को स्वीकार कर लिया है।

इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद हाई कोर्ट के अधिकारियों को एक साथ बैठने और दोषी व्यक्तियों की अपीलों के लंबित रहने के दौरान जमानत अर्जियों के मामलों के नियमन के लिए संयुक्त रूप से सुझाव देने का निर्देश दिया था।उच्चतम न्यायालय जघन्य अपराधों में दोषियों की 18 आपराधिक अपीलों पर सुनवाई कर रहा था जिसमें इस आधार पर जमानत मांगी गई है कि उन्होंने जेल में सात या उससे अधिक साल की सजा काट ली है और उन्हें जमानत दी जाए क्योंकि उनकी दोषसिद्धि के खिलाफ अपीलें लंबित हैं।

आदेश में कहा गया कि हम उस परिदृश्य से भी अवगत हैं जहां अपील सुनवाई के लिए आती है और अपीलकर्ता बहस करने के बजाय स्थगन की मांग कर सकता है। यह निश्चित रूप से जमानत देने का मामला नहीं होगा जहां अदालत को योग्यता से निपटना है। हम इस विचार से भी हैं कि दोषी को पहले हाईकोर्ट पहुंचना चाहिए क्योंकि यह अदालत पहले से ही मुकदमों के बोझ से दबी है। लेकिन एक तंत्र होना चाहिए कि यदि आरोपी वहां पहुंचता है, तो अपील को तुरंत सुना जाना चाहिए।

पीठ ने पहले इस मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट से जवाब मांगा था । पीठ ने कहा था कि कई दोषी सजा को निलंबित करने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहे हैं क्योंकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में आपराधिक अपीलों पर सुनवाई नहीं हो रही है। उसके बाद, उच्च न्यायालय और उत्तर प्रदेश राज्य दोनों ने आपराधिक अपीलों की शीघ्र सुनवाई के लिए सुझाव देते हुए हलफनामा दायर किया।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

जेपी सिंह
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