सत्ता की खोपड़ी पर टिकैत की ठक-ठक

किसान आंदोलन में पंजाब और हरियाणा के किसानों को खालिस्तान से जोड़ना सरल था। जब से किसान आंदोलन की कमान उत्तर प्रदेश के किसान नेता चौधरी राकेश टिकैत और उनके भाई नरेश टिकैत ने संभाली है, भाजपा के लिए मुश्किल दौर शुरू हो गया। टिकैत परिवार का साथ देने के लिए खाप पंचायतें जुटने लगी हैं। भाजपा से नाराज चल रहा मुस्लिम भी उनके साथ खड़ा हो गया है। जाट और मुस्लिम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ ही साथ हरियाणा के भी कुछ इलाकों में अपना असर रखता है।

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार टिकैत की ताकत का सही आकलन नहीं कर पाई।  भारतीय किसान यूनियन के लिए ऐसे आंदोलन कोई बड़ी बात भी नहीं हैं।  भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत और उनके छोटे भाई राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत इससे भी बड़े आंदोलनों का नेतृत्व कर सरकारों को चुनौती देकर पटखनी देने का काम करते रहे हैं।

साल 2007 में मायावती सरकार के समय बिजनौर में किसानों की एक रैली में किसान यूनियन के अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत ने मायावती पर कथित तौर पर जातिसूचक टिप्पणी कर दी। इससे नाराज मुख्यमंत्री मायावती ने महेंद्र सिंह टिकैत की गिरफ्तारी के आदेश दिए। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद पुलिस उनको गिरफ्तार करने के लिए उनके गांव सिसौली पहुंच गई। किसानों को जब इस बात की जानकारी हुई तो सभी ने पूरे गांव को घेर लिया और कह दिया ‘बाबा को गिरफ्तार नही होने देगें।’ पुलिस के खिलाफ किसानों ने ट्रैक्टर और ट्राली से पूरे गांव को घेर लिया था। पुलिस गांव में तीन दिन तक घुस ही नहीं पाई।

भारतीय किसान यूनियन ने मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के समय एक बड़ा आंदोलन किया था। शामली के करमूखेड़ी बिजलीघर पर उनके नेतृत्व में किसानों ने अपनी मांगों को लेकर चार दिन का धरना दिया था। चौधरी महेंद्र टिकैत की अगुवाई पर पहली मार्च, 1987 को करमूखेड़ी में ही प्रदर्शन के लिए गए। किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसमें एक किसान की मौत हो गई। इसके बाद भाकियू के विरोध के चलते तत्कालीन यूपी के सीएम वीर बहादुर सिंह को करमूखेड़ी की घटना पर अफसोस दर्ज कराने के लिए सिसौली आना पड़ा था।

साल 1988 में नई दिल्ली के वोट क्लब पर हुई किसान पंचायत में किसानों के राष्ट्रीय मुद्दे उठाए गए और 14 राज्यों के किसान नेताओं ने चौधरी टिकैत की नेतृत्व क्षमता में विश्वास जताया। अलीगढ़ के खैर में पुलिस अत्याचार के खिलाफ आंदोलन और भोपा मुजफ्फरनगर में नईमा अपहरण कांड को लेकर चले ऐतिहासिक धरने से भाकियू एक शक्तिशाली अराजनीतिक संगठन बन कर उभरा। किसानों ने चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को किसान ‘महात्मा टिकैत’ और ‘बाबा टिकैत’ नाम दिया।

चौधरी टिकैत ने देश के किसान आंदोलनों को मजबूत बनाने में जो भूमिका निभाई, उसी राह पर उनके दोनों बेटे नरेश टिकैत और राकेश टिकैत चल रहे हैं। कृषि कानूनों के खिलाफ जब किसानों ने आंदोलन शुरू किया तो उसकी अगुवाई राकेश टिकैत ने की। जब सरकार ने उनको धरना देने से जबरन रोका तो उनके आंसू निकल पड़े। उनके आंसू देखकर किसान गुस्से में आ गए और उनके समर्थन में धरना तेज कर दिया। उत्तर प्रदेश के किसानों के आंदोलन में उतर आने से सरकार अब बड़ी मुसीबत में फंस गई है।

(स्वतंत्र पत्रकार मदन कोथुनियां का लेख।)

मदन कोथुनियां
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