सियासत की मंडी में बजरंग बली को उतारने के लिए शुक्रिया! पढ़िए एक पत्रकार का केजरीवाल को लिखा गया खत

प्रिय केजरीवाल,

आपको इस बात की बधाई कि जिस गंदगी को साफ करने का दावा करते हुए आप राजनीति में आए थे, उसी गंदगी में उतर कर आपने ऐतिहासिक जीत हासिल कर ली है।

मुझे नहीं मालूम कि कट्टर हिंदुत्व बनाम नरम हिंदुत्व में किसे चुना जाना अच्छा है, क्योंकि कम से कम भारत में ‘उदार सांप्रदायिक’ चेहरे ज्यादा भयानक साबित हुए हैं। मुलायमी हिंदुत्व तो हमने अपनी आंखों से देखा है।

सियासत की मंडी में भगवान राम की तरह बजरंग बली को लांच करने के लिए आपको बधाई! जिस देश का पहला प्रधानमंत्री मंचों से कहता था कि अगर कोई किसी पर मजहबी हमला करेगा तो उससे मैं अपनी निजी और सरकार के प्रमुख की हैसियत से उम्र भर लड़ूंगा, उसी देश में 21वीं सदी के चुनाव राम और हनुमान के सहारे जीते जा रहे हैं। उसी दिल्ली में कोई सनकी आराम से फायरिंग करने को आजाद घूम रहा है।

यह आस्थावानों का देश है और आस्था यहां निजी चीज है। आस्था के सहारे चुनाव जीतने का मतलब है कि हम अभी भी उस अंग्रेजी शासन के दौर में हैं जहां एक तरफ हिंदू महासभा थीं और दूसरी तरफ मुस्लिम लीग। इस आजाद भारत का सपना किसने देखा था?

आप के विधायक सौरभ भारद्वाज ने विस्तार से चैनलों को बताया कि कैसे आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने “जय श्रीराम का जवाब जय बजरंग बली” से दिया।

इंदिरा गांधी के कंठी छाप सेकुलरिजम ने नफरत और नरसंहार का क्या गुल नहीं खिलाया? 1983 में असम के नेल्ली नरसंहार की याद अब कम लोगों को होगी, जहां पहले घरों में आग लगाई गई और फिर दो से तीन हजार लोगों को काट डाला गया।

चाहे बांग्लाभाषी मुसलमानों को बसाने का मसला हो, चाहे उन्हें वोटिंग राइट देने का मसला हो, चाहे स्थानीय बनाम बाहरी की लड़ाई हो, मसले हल नहीं हुए, नरसंहार ही देश के हाथ आया। एनआरसी का जिन्न असम की उसी सांप्रदायिक समस्या से निकला है।

चर्चित राजनीति विज्ञानी आशुतोष वार्ष्णेय के मुताबिक, इंदिरा गांधी ने सेकुलरवाद की अवधारणा को बदलकर सेकुलर अहंकार में तब्दील कर दिया था। ‘सेकुलर अहंकार मानता है कि राजनैतिक सत्ता का इस्तेमाल आस्थावान जनता को अपने पाले में करने या उसे ठिकाने लगाने के लिए किया जा सकता है।’ कहीं आप भी तो ऐसा नहीं मानते?

इसी नेल्ली से एक उदार नाम जुड़ा है जिसने सांप्रदायिकता की नई मिसाल कायम की। जिन अटल बिहारी वाजपेयी का सियासी गलियारे में कोई निजी दुश्मन नहीं था, उन्होंने ही नेल्ली में उकसाने वाला भाषण दिया और उसके फौरन बाद यह दंगा भड़का था।

बाद में इन्हीं वाजपेयी ने अयोध्या में जमीन बराबर करने की सलाह दी जिसके बाद देश भर में दंगे हुए और 900 से अधिक लोग मारे गए।

मेरठ और मलियाना के बारे में अब कम लोग बात करते हैं, जिनके सूत्रधान उदार कंठीधारी, सेकुलर और दांव मिलते ही धर्म को हथियार बना लेने वाले राजनीतिज्ञ थे।

यह मुलायमी हिंदुत्व ही था जिसने मुजफ्फरनगर से 50 हजार गरीब लोगों को घर छोड़ने पर मजबूर किया और ऐसा करने के दोषियों को मंत्री बनने दिया। जो मर गए, उनको कौन पूछता है? न्यू इंडिया में तो मुर्दों पर मुकदमा होता है!

आज कश्मीरी पंडित राजनीति के केंद्र में हैं, लेकिन मुजफ्फरनगर के विस्थापित लोगों का कोई नामलेवा नहीं है। हो सकता है कि विस्थापित लोगों में से कोई विधु विनोद चोपड़ा या राहुल पंडिता बन जाय तो उनकी भी चर्चा हो।

पर चर्चा होने से क्या? जब कश्मीरी पंडित भगाए जा रहे थे तब जिस रथ यात्रा ने देश में आग लगाई थी, उस रथ यात्रा और रथ यात्री ने भी पंडितों के लिए क्या किया? उपप्रधानमंत्री, गृह मंत्री और प्रधानमंत्री होकर भी पंडितों का सिर्फ सियासी इस्तेमाल ही हुआ. बुढ़ापे में सस्ती फिलम देखकर आंसू बहा देने से किसी का घर तो बसने से रहा!

साम्प्रदायिकता का उदार चेहरा कम भयानक नहीं होता। उदारता और सेकुलरिज्म का नकाब ओढ़े हुए चेहरों ने कौन सा कम नुकसान किया है?

आज 130 करोड़ लोगों के देश में गांधी, भगत सिंह और नेहरू जैसा कोई नेता नहीं है जो यह कहने की हिम्मत कर सके कि इस देश के हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सब हमारे हैं और किसी के साथ कोई भेदभाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आप भी उन्हीं में से एक हैं जो चुनाव जीतने की धूर्तता सीख गए हैं।

अगर जय बजरंग बली चुनावी चतुराई मात्र थी, तो अब तो चुनाव आपने जीत लिया है। जाइए शाहीन बाग और 90 बरस की उस बुढ़ी औरत को गले लगा लीजिए जो अपनी नागरिकता छिन जाने के भय से दो महीने से सड़क पर बैठी है। क्या आप ऐसा कर पाएंगे?

मुझे नहीं मालूम कि आप दिल्ली की जनता को इस लायक बना देंगे कि जहां सांप्रदायिक राजनीति शर्म की बात हो! यह नहीं तो और कौन सा बदलाव लाने आए थे आप, जब कानून का बेखौफ शासन बहाल नहीं हो सकता?

कहने का कुल जमा अर्थ इतना है कि आपकी प्रचंड जीत से भी वह निराशा नहीं छंटी है जो आपके पहले से मौजूद थी। खैर…

आपको पुन: बधाई और शुभकामनाएं!

(यह पत्र पत्रकार कृष्णकांत अरविंद केजरीवाल को लिखा है। कृष्णकांत इंडिया टुडे समूह में काम करते हैं।)

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