पटियाला राजघराने के अंधविश्वास के आगे नतमस्तक प्रशासन, क्या ढकोसलों से थम जाएगा बाढ़ का कहर?

पंजाब में मूसलाधार बारिश एकबारगी थम गई है लेकिन नदियां, नहरें और नाले उफान पर हैं। राज्य में मंगलवार को छह लोगों की मौत बाढ़ के चलते हुई और 4 लोग बह गए। फिलहाल तक उनका कोई अता-पता नहीं। मौसम साफ है लेकिन बाढ़ पीड़ितों की परेशानियां जस की तस हैं। पहाड़ी इलाकों का पानी सूबे में कहर ढा रहा है और पाकिस्तान भी पानी छोड़ रहा है।   

बाढ़ की तबाही को आगे की पंक्तियों में और ज्यादा बयान करेंगे लेकिन फिलहाल उस पहलू पर आते हैं जो 21वीं सदी में आ रही बाढ़ सरीखी आपदाओं का मुकाबला वैज्ञानिक तौर- तरीके से नहीं बल्कि अंधविश्वास से करता है। यह रिवायत बहुत पुरानी है। राज्य में जब भी बाढ़ का कहर टूटता है तो सबसे पहले रियासती जिला पटियाला (नुकसान के लिहाज से) जद में आता है।

इस बार भी यही आलम रहा। बरसात के पानी से शहर से गुजरने वाली बड़ी नदी का पानी जब कई फिट ऊपर चला जाता है और लोगों के घरों-दुकानों को सालों तक पूरा न होने वाला दुखदायी नुकसान देता है तो तमाम सरकारी तामझाम के बावजूद पुरातन काल से चला आ रहा एक अंधविश्वास रस्म के तौर पर निभाया जाता है और मान लिया जाता है कि इससे नदी का कथित रौद्र रूप कमोबेश शांत हो जाता है और पानी नीचे उतरने लगता है।

पानी का बहाव कम होना तथा नीचे उतरना एक सर्ववदित वैज्ञानिक घटना है। लेकिन बेहिसाब नुकसान सहने के बाद भी पटियाला के ज्यादातर बाशिंदे मानते हैं कि बड़ी नदी आखिरकार तब शांत होती है जब वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के ‘शाही घराने’ की ओर से नथ और चूड़ा वहां चढ़ाया जाता है। कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनका पूरा परिवार विदेशों तक पढ़े हैं। वैज्ञानिक फलसफों से लबरेज ‘मोती महल’ की लाइब्रेरी बेमिसाल है। वहां मौजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर की नायाब किताबें अंधविश्वास से लड़ाई की प्रेरणा देने वाली हैं। बाढ़ के हालात में गोया पुस्तकालय का कोई वजूद ही नहीं बचता। मानो वे पूरी तरह मर जाती हैं।

मंगलवार को मौसम साफ था और धूप निकली हुई थी। पटियाला के एक पत्रकार ने बताया कि उफान पर आई बड़ी नदी सामान्य की ओर जा रही थी। उसका पानी जिस स्तर पर था; वहीं टिका हुआ था। अचानक दोपहर के 12.14 बजे कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी और पटियाला से सांसद परनीत कौर (भाजपा की राजनीति में कदम रख चुकी) अपनी बेटी जय इंदर कौर के साथ बड़ी नदी के मुख्य स्थल पर पहुंचती हैं। उनके साथ ‘शाही परोहित’ और ‘शाही ग्रंथी’ भी होते हैं। पटियाला शाही राजघराने के राजपुरोहित की मौजूदगी में सांसद परनीत कौर ने बड़ी नदी में सोने की नथ और चूड़ा चढ़ाया। सांसद ने कहा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी आना था लेकिन रास्तों में भारी जलभराव के कारण वह नहीं पहुंच पाए तो यह रस्म उन्होंने अदा कर दी।

परनीत कौर ने बताया कि यह परंपरा कैप्टन अमरिंदर सिंह के पूर्वज और पटियाला रियासत के संस्थापक बाबा आला सिंह के वक्त से चली आ रही है। पटियाला शहर में जब भी बाढ़ आती है तो सबसे बड़ी वजह बड़ी नदी बनती है और तब नथ व चूड़े की परंपरा निभाई जाती है और उसके बाद बाढ़ का प्रकोप खत्म होने लगता है।    

सन् 1993 में बड़ी नदी के लबालब होने के बाद लगभग आधा पटियाला बाढ़ में डूब गया था। यह पत्रकार तब चंडीगढ़ की समाचारों से वाबस्ता एक एजेंसी ‘थर्ड आई’ में वरिष्ठ संवाददाता था और थर्ड आई, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ की वीडियो पत्रिका ‘आई विटनेस’ को भी फुटेज/ग्राउंड रिपोर्ट देती थी। वह बाढ़ मैंने कवर की थी। कैप्टन अमरिंदर सिंह तब लंदन में थे और तत्कालीन सरकार ने उन्हें विशेष हवाई जहाज से पटियाला आकर नथ व चूड़े की रस्म अदा करने की गुजारिश की थी।

वह विशेष सरकारी जहाज से लंदन से आए और इस परंपरा को निभाया। चार दिन हो गए थे और तब तक बड़ी नदी का जलस्तर वैसे भी कम हो चुका था लेकिन अंधविश्वासी लोगों ने यही माना कि शाही परिवार के वंशज द्वारा निभाई गई परंपरा के चलते राहत मिली है। खासे पढ़े-लिखे और फौज में नौकरी करते रहे पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का इस संवाददाता किए सवाल के जवाब में कहना था कि यह रिवायत पटियाला शहर के बसने से चली आ रही है।

बाढ़ प्रकोप दिखाती है और जब नथ व चूड़े परंपरा निभा दी जाए; तब सब सामान्य होने लगता है। तर्कशील इसका विरोध करते हैं। 1988 में भी पटियाला में भयानक बाढ़ आई थी। तब भी सरकार ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के आगे लगभग घुटने टेके कि वह बड़ी नदी जाकर नथ व चूड़ा चढ़ा आएं। यानी लोग ही नहीं शासन-व्यवस्था भी अंधविश्वास के आगे नतमस्तक होती है।

बताया जाता है कि इस बार भी कैप्टन अमरिंदर सिंह और परनीत कौर से रस्म अदायगी के लिए प्रशासन ने कई बार गुहार लगाई, तब जाकर ‘महारानी’ परनीत कौर वहां पहुंचीं। इस बार विपक्ष ने इस सबका विरोध किया कि कैप्टन परिवार और सरकार को अंधविश्वास की बजाए अपने संसाधनों पर भरोसा करना चाहिए। कई लोगों का सवाल है कि आखिर हर बार नथ और चूड़े की रस्म तभी क्यों निभाई जाती है, जब बड़ी नदी का जलस्तर कम होने लगता है। परनीत कौर कहती हैं कि यह आस्था का मामला है और विपक्ष इसमें दखलअंदाजी न करे? पूछा जाना चाहिए कि क्या यह महज आस्था का मामला है, अंधविश्वास का नहीं? 

उधर, घोषणा के मुताबिक शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने बड़े पैमाने पर राहत कार्य शुरू कर दिए हैं। बाढ़ प्रभावित इलाकों में एक डॉक्टर की अगुवाई में टीम के साथ एंबुलेंस भेजी जा रही हैं। बड़े पैमाने पर लोग गुरुद्वारों में पनाह ले रहे हैं। एसजीपीसी प्रधान एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी कहते हैं कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पीड़ित परिवारों को हर तरह की सहायता पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है।                            

इतनी बड़ी तबाही के बाद सरकार कहीं न कहीं मुस्तैद तो नजर आती है लेकिन उसकी नातजुर्बेकारी कई विसंगतियों को जन्म दे रही है। राज्य प्रशासन ने अपने आपदा राहत फंड से 33.50 करोड़ रुपए जारी किए हैं। वरिष्ठ अधिकारियों, मंत्रियों और विधायकों को फील्ड में उतारा है। मुख्यमंत्री खुद मैदानी दौरे कर रहे हैं लेकिन बावजूद इसके सरकार आकस्मिक बाढ़ की बाबत सवालों के दायरे में है।

मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने मई 2023 को एक विशेष बैठक बुलाई थी। मुख्य एजेंडा था मानसून के दौरान किए जाने वाले अपरिहार्य कार्यों का जायजा लेना। बताया गया कि मीटिंग में बरसाती नालों की सफाई, बांधों की मजबूती आदि का काम मानसून से पहले दुरुस्त करने का फैसला किया गया था लेकिन संबंधित नौकरशाही ने सरासर नालायकी दिखाई और नतीजे सामने हैं।

नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा के मुताबिक, “जरूर इस बैठक के एजेंडों को दिल्ली के एजेंटों ने रद्द करवा दिया होगा। केजरीवाल की कोर टीम नहीं चाहती कि पंजाब के मुख्यमंत्री लोकप्रिय हों।” कोई अधिकारी इस पर भी जुबान नहीं खोल रहा कि क्या यह फंडों की कमी के चलते तो नहीं हुआ? पहले राज्य का सिंचाई विभाग फंडों के विधिवत आवंटन के बावजूद सारे काम करवाता रहा है। इस बार इस बाबत कोई भी अधिकारी जुबान खोलने को तैयार नहीं। बाढ़ रोधक कार्य 3 महीने पहले शुरू हो जाने चाहिए थे लेकिन जून के अंत और जुलाई की शुरुआत में राज्य के किसी-किसी हिस्से में कार्य शुरु हुए हैं।

बरसाती नाले तक साफ नहीं हुए और यही वजह है कि पानी शहरों, कस्बा और गांव में इकट्ठा होना शुरू हो गया और पंजाब में कई जगहों पर बांधों के टूटने की वजह से उन इलाकों में जबरदस्त नुकसान हुआ और हो रहा है। नगर निगम तथा नगर पालिकाओं की ढीली कारगुजारी के चलते शहरों के कई हिस्से डूब गए। रोजी-रोटी का साधन दुकानें और मकान पूरी तरह से टूट गए।

नाम नहीं देने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस संवाददाता को बताया कि बाढ़ के चलते हुए कुल नुकसान का अंदाजा कई हफ्तों के बाद पता चलेगा, क्योंकि इस मौके पर बहुत से इलाकों तक रेवेन्यू विभाग के अधिकारियों का अपने अमले के साथ पहुंचना संभव नहीं है। फिर सरकार ने उन्हें अलग कार्य सौंपे हुए हैं।

9 जुलाई को पंजाब भारी बरसात के चलते गंभीर संकट की दहलीज पर आ खड़ा हुआ था और मुख्यमंत्री को इनपुट दे दिया गया था लेकिन वह हरियाणा में आप सुप्रीमो के समागम में हाजिरी भर रहे थे। बीच में अपने विवाह की वर्षगांठ मनाने में भी मसरूफ रहे। एक जमीनी सच्चाई यह भी है कि मंत्री और विधायक जब बाढ़ पीड़ित इलाकों के दौरे पर निकलते हैं, तब तक उनकी कार के पहिए जाम-से रहते हैं, जब तक स्थानीय निजी टीवी चैनलों के रिपोर्टर न आ जाएं। इसका मतलब साफ है। बर्बाद होते लोगों के बीच जाने के लिए भी प्रचार की भूख!        

आम आदमी पार्टी सरकार का बड़ा प्रोजेक्ट ‘मोहल्ला क्लीनिक’ भी इस मौके पर तकरीबन नाकारा साबित हो रहा है। जलभराव वाले हर इलाके में मोहल्ला क्लीनिकों पर ताले लगे हुए हैं। मरे पशुओं की वजह से बीमारियां फैल रही हैं और संक्रमण बच्चों से लेकर बूढ़ों तक में फैल रहा है। मीडिया का बड़ा हिस्सा सरकार ने मैनेज किया हुआ है। इसलिए तमाम खबरें अपने असली रूप में प्रकाशित नहीं हो रहीं या दिखाई नहीं जा रहीं। नरेंद्र मोदी के पास गोदी मीडिया है तो अरविंद केजरीवाल और भगवंत सिंह मान के पास भी खिलौना मीडिया है। जो उनकी उंगलियों पर नाचता है। 

खैर, धान की पनीरी, मक्की और चारे की फसलें तबाह हो गईं हैं। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान बुधवार को विशेष गिरदावरी और तत्काल मुआवजे का आदेश दे सकते हैं। इन पंक्तियों को लिखने तक तो अभी कोई घोषणा नहीं हुई है।

(अमरीक सिंह की रिपोर्ट)

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